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डेली न्यूज़

  • 27 Nov, 2024
  • 84 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, भारतनेट, सामान्य सेवा केंद्र, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY), भारतनेट परियोजना, MUDRA, SFURTI, स्टार्ट-अप इंडिया, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्मार्ट सिटीज़ मिशन, AMRUT, रूर्बन मिशन, eNAM, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना 

मेन्स के लिये:

ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति, ग्रामीण विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये पहल, ग्रामीण विनिर्माण से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिला स्वामित्व वाले गैर-कृषि उद्यमों की भूमिका, ग्रामीण भारत से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: इकोनाॅमिक एंड पॉलिटिकल वीकली

चर्चा में क्यों?

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था गरीबी, बेरोज़गारी और कृषि संकट सहित कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इन मुद्दों को हल करने के लिये ग्रामीण औद्योगीकरण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता (विशेष रूप से महिलाओं के स्वामित्व वाले गैर-कृषि उद्यमों पर) है। 

  • ऐसे उद्यमों के विस्तार से सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में (विशेषकर महिलाओं के लिये) रोज़गार के अवसरों में सुधार हो सकता है।

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति है?

  • ग्रामीण जनसांख्यिकी: 
    • जनगणना 2011 के अनुसार, भारत की 68.85% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और नीति आयोग का अनुमान है कि वर्ष 2045 में भी यह आँकड़ा 50% से अधिक (जो देश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में ग्रामीण भारत के महत्त्व को दर्शाता है) रहेगा।
  • रहन-सहन का स्तर:
    • जनगणना 2011 के अनुसार, लगभग 39% ग्रामीण परिवार एक कमरे वाले आवास में रहते हैं, तथा केवल 53.2% के पास विद्युत् की सुविधा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह सुविधा 92.7% है। 
    • 86% ग्रामीण परिवारों द्वारा खाना पकाने के लिये लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधन का उपयोग किया जाता था, तथा केवल 30.8% परिवारों के पास नल के जल की सुविधा थी, जिससे बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में चुनौतियों पर प्रकाश पड़ता है।
  • ग्रामीण गरीबी:
    • तेंदुलकर विधि से पता चलता है कि वर्ष 2004-05 में ग्रामीण गरीबी 41.8% के स्तर पर चिंताजनक रूप से उच्च थी, जो वर्ष 2011-12 में घटकर लगभग 25% हो गयी। 
      • हालाँकि, वर्ष 2011-12 में 6 राज्यों में गरीबी अनुपात अभी भी 35% से अधिक था।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय (MPCE) शहरी स्तरों की तुलना में काफी कम है, जो सीमित उपभोग क्षमता और तीव्र गरीबी को दर्शाता है।
  • रोज़गार:
    • PLFS रिपोर्ट 2023-24 में बताया गया है कि ग्रामीण रोज़गार मुख्य रूप से स्वरोज़गार (53.5%) और आकस्मिक श्रम (25.6%) की विशेषता है। 
      • ग्रामीण श्रमिकों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (58.4%) कृषि में लगा हुआ है (जो मौसमी रोज़गार प्रदान करता है)।
      • ग्रामीण क्षेत्रों में वेतनभोगी नौकरियाँ कुल कार्यबल का केवल 12% हैं, तथा इनमें से अधिकांश पदों पर अनुबंध, सवेतन अवकाश और नौकरी की सुरक्षा का अभाव है।
    • ILO की भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 से पता चलता है कि शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई है, जिसमें महिलाओं (76.7%) को पुरुषों (62.2%) की तुलना में अधिक बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 2017-18 से वर्ष 2023-24 तक, भारत में 150 मिलियन नौकरियाँ जुड़ीं, जिसमें ग्रामीण महिलाओं ने इस वृद्धि में 54% योगदान दिया, विशेष रूप से कृषि में। 
      • वर्ष 2023-24 में ग्रामीण महिला कार्यबल भागीदारी 12.5% बढ़कर 34.8% हो गई।
  • कृषि संकट:
    • छोटे और सीमांत किसान, जो कृषि आबादी का 86% हिस्सा हैं, के पास केवल 43% कृषि भूमि है, जबकि आर्थिक जोत वाले बड़े किसान 53% भूमि का प्रबंधन करते हैं।
    • कृषि मज़दूर, जो भूस्वामियों की तुलना में ग्रामीण कार्यबल का बड़ा हिस्सा हैं, उन्हें मौसमी काम, कम मज़दूरी और चिकित्सा सहायता और पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों की कमी का सामना करना पड़ता है।

भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं? 

भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता आई है, जो वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद में केवल 15% का योगदान देगा, जो वर्ष 2014-15 में 16.1% से कम है।
  • स्थानिक नियोजन चुनौती: भारत में कृषि से विनिर्माण की ओर बदलाव धीमा और असमान रहा है, यहाँ 40% से अधिक कार्यबल अभी भी कृषि में कार्यरत है, जबकि चीन में यह 20% और अमेरिका में 2% है। 
  • अवसंरचना संबंधी मुद्दे: भारत में विनिर्माण के वि-शहरीकरण ने संगठित विनिर्माण को शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया है, जिससे लागत में कमी आई है, लेकिन अपर्याप्त ग्रामीण अवसंरचना के कारण विकास में बाधा उत्पन्न हुई है  
  • छोटे शहर और ग्रामीण क्षेत्र भारत में आर्थिक विकास के इंजन के रूप में उभर रहे हैं, जहाँ शहरी आबादी का आधा से अधिक हिस्सा रहता है, और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक इसमें उल्लेखनीय वृद्धि होगी।  
  • निवेश की चुनौतियाँ: ग्रामीण विनिर्माण में निजी निवेश सीमित है। खराब भौतिक बुनियादी ढाँचा, विश्वसनीय भूमि अभिलेखों की कमी और विकृत पूंजी बाज़ार जैसे कारक इस कम निवेश में योगदान करते हैं। 
  • कुशल संसाधन आवंटन तंत्र के अभाव ने नए, अधिक कुशल उद्यमों के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया है।

भारत में ग्रामीण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • बुनियादी ढाँचे में निवेश: विनिर्माण वृद्धि और आर्थिक विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने हेतु सड़क, बिजली और दूरसंचार सहित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में महत्त्वपूर्ण निवेश आवश्यक है।
  • MSMEs को बढ़ावा देना: नीतियों को ऋण, भूमि और कौशल विकास कार्यक्रमों तक आसान पहुँच सुनिश्चित करके सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • MSMEs को प्रोत्साहित करने से उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा और रोज़गार सृजित होंगे, विशेष रूप से वे रोज़गार जो ग्रामीण आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
    • संतुलित क्षेत्रीय विकास और शहरी-ग्रामीण असमानताओं को कम करने के लिये छोटे शहरों को औद्योगिक केंद्रों के रूप में विकसित करने की दिशा में नीतिगत बदलाव महत्त्वपूर्ण है।
  • कौशल विकास पर ध्यान: ग्रामीण कार्यबल, विशेष रूप से गैर-कृषि क्षेत्रों में, की रोज़गार क्षमता को बढ़ाने के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की ज़रूरतों के अनुरूप बनाया जाना चाहिये।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि वे ग्रामीण औद्योगिकीकरण से उत्पन्न संभावनाओं के लिये तैयार हैं।
  • महिला स्वामित्त्व वाली गैर-कृषि उद्यम को बढ़ावा देना: ये उद्यम उद्यम, आय में विविधता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये आर्थिक विकास में योगदान करते हैं। 
    • भारत को 2030 तक 8% की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर हासिल करने के लिये, नव सृजित रोज़गार में आधे से अधिक महिलाएँ शामिल होना चाहिये।
    • इन उद्यमों को औपचारिक बनाना और व्यावसायिक क्षेत्र ऋण के माध्यम से लक्ष्य व्यवसाय एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है
  • डिजिटल अवसंरचना में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट रीच और मोबाइल कनेक्टिविटी सहित डिजिटल अवसंरचना का विस्तार करने से गैर-कृषि क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी शामिल होगी। 
    • इससे महिलाओं को बेहतर वित्तीय पहुँच और कुशल व्यवसाय प्रबंधन के लिये फिनटेक समाधानों का लाभ उठाने में मदद मिलेगी।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत के ग्रामीण उद्योग की स्थिति पर चर्चा कीजिये और ग्रामीण उद्योग के समाधान के लिये आने वाली योजना पर चर्चा कीजिये। 

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा/से संस्थान अनुदान/प्रत्यक्ष ऋण सहायता प्रदान करता/करते है/हैं? (2013)

  1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
  2.  राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
  3.  भूमि विकास बैंक

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं?  (वर्ष 2011)

 (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य
(B) गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवारों के वयस्क सदस्य
(C) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य
(D) किसी भी घर के वयस्क सदस्य

 उत्तर: (D)


शासन व्यवस्था

खेतों में लगी आग के बारे में उपग्रह डेटा में विसंगतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

वायु गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनINSAT-3DR, INSAT-3DS, पार्टिकुलेट मैटर

मेन्स के लिये:

पर्यावरण निगरानी में उपग्रह प्रौद्योगिकी, वायु प्रदूषण से निपटने के लिये सरकारी पहल, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) और इसकी प्रभावशीलता

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने उपग्रहों द्वारा एकत्र किये गए खेतों में आग के आँकड़ों में विसंगतियों को उज़ागर किया, जो वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा प्रदान किया जाता है। यह डेटा दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये महत्त्वपूर्ण है। 

  • इसके जवाब में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मौजूदा उपग्रह डेटा में अंतराल को स्वीकार किया और खेतों में आग से संबंधित डेटा का अधिक सटीक विश्लेषण करने के लिये आंतरिक एल्गोरिदम विकसित करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की। 

खेतों में आग लगने की घटनाओं पर वर्तमान उपग्रह डेटा में क्या समस्याएँ हैं?

  • आँकड़ों की सटीकता: राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) के ध्रुवीय-कक्षा उपग्रहों से प्राप्त आँकड़े, खेतों में आग लगने की घटनाओं की सटीक गणना करने के लिये अपर्याप्त हैं। 
    • इसका मुख्य कारण हरियाणा और पंजाब के क्षेत्रों में उनकी सीमित अवलोकन अवधि है।
    • भारत के INSAT-3DR सहित वर्तमान उपग्रह कम रिज़ोल्यूशन वाली छवियाँ प्रदान करते हैं, जो खेतों में लगी आग की सटीक गणना करने के लिये अपर्याप्त हैं। 
      • यह समस्या विशेष रूप से भारत में इन डेटा सेटों के मापांकन और सत्यापन की कमी के कारण और भी जटिल हो गई है।
    • जलवायु परिस्थितियाँ, विशेषकर बादल और जलवाष्प, उपग्रह सेंसरों को बाधित कर सकते हैं, जिससे सटीक रीडिंग और डेटा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
      • इसके अतिरिक्त, मौसमी परिवर्तन और दिन के समय की विसंगतियाँ अग्नि पहचान सीमा की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं, जिससे लगातार निगरानी में बाधा उत्पन्न होती है।
  • किसानों द्वारा पराली जलाने में बदलाव: किसान कथित तौर पर उपग्रहों की निगरानी से बचने के लिये पराली जलाने की अपनी गतिविधियों का समय तय कर रहे हैं। वे अक्सर पराली जलाने में उपग्रहों की गतिविधियों से बचने का प्रयास करते हैं। 
    • इसका नतीजा यह होता है कि सरकारी आँकड़ों में खेतों में आग लगने की घटनाओं की संख्या कम रहती है। इससे खेतों में आग लगने की घटनाओं की निगरानी के लिये सरकारी एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले आँकड़ों की सटीकता के संबंध में चिंताएँ पैदा होती हैं।
  • असंगत रिपोर्टिंग: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जताई गई चिंताओं के बावजूद, CAQM द्वारा अभी तक आवश्यक डेटा समायोजन सार्वजनिक नहीं किया गया है जिससे पारदर्शिता एवं पराली जलाने के मुद्दे के वास्तविक परिदृश्य पर सवाल उठ रहे हैं।

भारत में खेतों में लगी आग के सटीक आँकड़ों की आवश्यकता क्यों है?

  • वायु गुणवत्ता पर प्रभाव: विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में खेतों में लगाई जाने वाली आग से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के क्षेत्रों में गंभीर वायु प्रदूषण को बढ़ावा (विशेष रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान) मिलता है।
  • बेहतर नीति नियोजन: खेतों में लगने वाली आग के बारे में सटीक आँकड़े सरकारी एजेंसियों को प्रदूषण कम करने, कृषि पद्धतियों को विनियमित करने एवं फसल अवशेष प्रबंधन रणनीतियों को लागू करने के लिये समय पर कार्यवाही करने में मदद कर सकते हैं।
    • खेतों में आग लगने के सटीक आँकड़े, फसल जलने की अधिक घटनाओं वाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायक हो सकते हैं, जिससे ऐसे क्षेत्रों में पराली जलाने के विकल्प को बढ़ावा देने या धारणीय कृषि पद्धतियों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करने जैसे हस्तक्षेपों को बढ़ावा मिल सकता है।
  • स्वास्थ्य जोखिम: खेतों में लगी आग से निकलने वाले सूक्ष्म कण (PM 2.5) स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होते हैं। इससे उच्च प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को श्वसन संबंधी समस्याएँ, हृदय संबंधी बीमारियाँ एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती हैं। 
  • विश्वसनीय डेटा स्वास्थ्य अधिकारियों को विभिन्न क्षेत्रों में कार्यों का समन्वय करके इन जोखिमों का पूर्वानुमान लगाने एवं उन्हें कम करने में सहायक होता है।
  • उपग्रह निगरानी में सुधार हेतु ISRO के प्रयास: ISRO ने स्वीकार किया है कि वर्तमान डेटा प्रसंस्करण एल्गोरिदम पंजाब एवं हरियाणा जैसे क्षेत्रों की आग की घटनाओं का सटीक पता लगाने के लिये उपयुक्त नहीं हैं। 
    • यह विदेशी उपग्रह डेटा का अधिक प्रभावी ढंग से विश्लेषण करने के लिये आंतरिक एल्गोरिदम विकसित करने पर कार्यरत है।
    • ISRO का लक्ष्य अपने उपग्रह INSAT-3DS को फरवरी 2025 तक उन्नत करना है ताकि खेतों में लगी आग का अधिक सटीकता से पता लगाने की इसकी क्षमता में सुधार हो सके।
    • ISRO आगामी GISAT-1 के साथ उपग्रह क्षमताओं में सुधार करने पर कार्य कर रहा है लेकिन उपग्रह प्रक्षेपण से संबंधित समस्याओं के कारण प्रगति में देरी हो रही है। 
      • उच्च रिजोल्यूशन इमेजिंग वाले RESOURCESAT-2A जैसे उपग्रहों के उपयोग से खेतों में लगने वाली आग एवं वायु गुणवत्ता पर उसके प्रभाव की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।

खेतों में लगी आग क्या है?

  • परिचय: खेतों में लगने वाली आग से तात्पर्य आमतौर पर कृषि क्षेत्रों में जानबूझकर लगाई जाने वाली आग से है, मुख्य रूप से फसल कटाई के मौसम के बाद फसल अवशेषों को साफ करने के लिये, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ पराली जलाई जाती है। 
    • इन आगों में अक्सर बचे हुए पुआल, अवशेष/ठूंठ या फसल अवशेषों को जलाया जाता है ताकि अगले रोपण सीजन के लिये खेतों को शीघ्रता से तैयार किया जा सके। 
    • हालाँकि मशीनरी की खराबी या अन्य अनपेक्षित कारणों से भी खेतों में आग लग सकती है। 
  • खेतों में आग लगाने से संबंधित चिंताएँ: खेतों में आग लगाना किसानों के लिये लागत प्रभावी और समय बचाने वाला तरीका हो सकता है, लेकिन यह वायु प्रदूषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, क्योंकि इससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में धुआँ, कण पदार्थ और ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं।
    • फसल अवशेषों को जलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर जैसे आवश्यक पोषक तत्त्वों की हानि होती है, जो मृदा उर्वरता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • फसल अवशेष प्रबंधन (CRM): CRM विकल्पों को स्व-स्थानिक (In-Situ) और बाह्य-स्थानिक (Ex-Situ) प्रबंधन विकल्पों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

स्व-स्थानिक फसल अवशेष प्रबंधन

(अवशेषों को सीधे खेत में ही निपटाया जाता है)

  बाह्य-स्थानिक फसल अवशेष प्रबंधन

(खेत से अवशेषों को हटाना और उनका अन्य प्रयोजनों के लिये उपयोग करना)

  • मल्चिंग: फसल अवशेषों को मिट्टी की सतह पर छोड़ता है, जिससे मृदा का कटाव नहीं होता तथा नमी बरकरार रहती है।
    • खरपतवारों को दबाता है और मृदा को पोषक तत्त्वों से समृद्ध करता है।
  • बायोमास विद्युत उत्पादन: फसल अवशेषों को जलाकर बिजली या ऊष्मा उत्पन्न करना, जिससे पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता कम हो जाएगी।
  • बिना जुताई वाली खेती: इसमें फसल अवशेषों को नुकसान पहुँचाए बिना बीजों को सीधे मिट्टी में बोया जाता है।
    • इससे नमी संरक्षण में मदद मिलती है और मृदा अपरदन कम होता है।
  • पशु चारा: अवशेषों, विशेष रूप से अनाज फसलों से, को बंडलों में बाँधकर पशु चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
  • स्ट्रिप-टिल खेती:  इसमें संकरी पट्टियों की जुताई की जाती है, जहाँ बीज बोए जाते हैं, तथा फसल के अवशेष मिट्टी की सतह पर छोड़ दिये जाते हैं।
    • मृदा की गड़बड़ी को कम करता है और बीज अंकुरण के लिये स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देता है।
  • खाद बनाना: फसल अवशेषों को अन्य जैविक पदार्थों के साथ मिलाकर पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद बनाई जाती है, जो मृदा स्वास्थ्य में सुधार करती है।
  • फसल चक्र: मृदा क्षरण को कम करने और मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिये प्रत्येक मौसम में फसलें उगाना।
  • औद्योगिक उपयोग: फसल अवशेषों को कागज, वस्त्र और निर्माण सामग्री जैसे उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग क्या है?

  • परिचय: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और आसपास के क्षेत्रों में CAQM की स्थापना वर्ष 2020 में एक अध्यादेश के माध्यम से की गई थी, जिसे बाद में NCRऔर आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।
  • इसका मुख्य उद्देश्य बेहतर समन्वय, अनुसंधान और प्रदूषण संबंधी समस्याओं के समाधान के माध्यम से, विशेष रूप से दिल्ली और आसपास के राज्यों में वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान करना है।
    • CAQM ने EPCA (पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण) का स्थान लिया, जिसका गठन वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किया गया था।
  • CAQM की शक्तियाँ: वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये निर्देश जारी करना तथा आवश्यक उपाय करना है। वायु गुणवत्ता और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित शिकायतों की जाँच करना।
  • CAQM अधिनियम के प्रावधानों के तहत अधिकारियों द्वारा गैर-अनुपालन के खिलाफ कार्यवाही करना। वायु गुणवत्ता और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित शिकायतों की जाँच करना।
    • यह वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों और कृषि अपशिष्ट जलाने जैसे प्रमुख प्रदूषण स्रोतों को नियंत्रित करने के लिये कार्य योजनाएँ तैयार करता है।
      • इसकी प्रमुख पहलों में से एक ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRP) है, जो प्रदूषण की गंभीरता के आधार पर प्रतिबंधों को लागू करता है।
  • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान:  यह दिल्ली-NCR  में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये एक सक्रिय रणनीति है। इसमें वायु गुणवत्ता के स्तर के आधार पर चरणबद्ध कार्यवाही शामिल है, जो उच्च प्रदूषण अवधि के दौरान स्वास्थ्य जोखिम एवं पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिये समय पर प्रबंधन सुनिश्चित करती है।
    • चरण I (AQI 201-300): "खराब" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहन संबंधी नियमों का सख्ती से पालन जैसे कदम उठाए जाते हैं।
    • चरण II (AQI 301-400): "बहुत खराब" वायु गुणवत्ता, क्षेत्र में चिह्नित हॉटस्पॉट पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये लक्षित कार्यवाही और सभी क्षेत्रों में डीज़ल जेनरेटर का विनियमित संचालन निर्धारित किया गया है।
    • चरण III (AQI 401-450): "गंभीर" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहन प्रतिबंध और संभावित स्कूल बंद होने की संभावना शामिल है।
    • चरण IV (AQI > 450): "गंभीर+" वायु गुणवत्ता, जिसमें वाहनों के प्रवेश पर कड़े प्रतिबंध तथा गैर-आवश्यक व्यवसायों एवं शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने की संभावना होती है।

भारत की फसल अवशेष प्रबंधन पहल

  • बेलर मशीन
  • जैव अपघटक
  • फसल अवशेष प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय नीति (NPMSR): वर्ष 2014 में, कृषि मंत्रालय ने अवशेष जलाने पर रोक लगाने के लिये NPMSR की शुरुआत की। इसके मुख्य उद्देश्यों में शामिल हैं: 
    • फसल अवशेषों के इष्टतम उपयोग और इन-सीटू प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना। खेती के लिये उपयुक्त मशीनरी का समर्थन करना।
    • नवीन परियोजनाओं के लिये बहु-विषयक दृष्टिकोण के माध्यम से निगरानी और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये उपग्रह-आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।

आगे की राह:

  • किसानों को पराली जलाने के विकल्पों के बारे में शिक्षित तथा स्थायी प्रथाओं के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना, खेतों में आग लगने की घटनाओं को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
    • इन-सीटू और एक्स-सीटू फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकों को बढ़ावा देने से पराली जलाने की आवश्यकता को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  • पुरानी हो चुकी सैटेलाइट तकनीक और आग लगने के आँकड़ों के तरीकों पर निर्भरता पर फिर से ध्यान देना आवश्यक है। GIO इमेज़िंग सैटेलाइट से डेटा एकत्र करना और अधिक उन्नत तकनीकों को शामिल करना, जैसे कि उच्च-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेज़री, और जले हुए क्षेत्रों की सीमा को ट्रैक करने के लिये मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, खेत में लगने वाली आग की अधिक सटीक जानकारी प्रदान करेगा।
  • बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये, सभी प्रभावित राज्यों में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिये एक अखिल-क्षेत्रीय नीति, सुसंगत दिशा-निर्देशों एवं समन्वित प्रवर्तन के साथ आवश्यक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: खेतों में लगने वाली आग पर नियंत्रण के समक्ष आने वाली चुनौतियों और वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

Q. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता देश के तीन बड़े शहर हैं लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण अन्य दो शहरों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर समस्या है। ऐसा क्यों है? (2015)


सामाजिक न्याय

फेमिसाइड्स, 2023: ग्लोबल एस्टिमेट्स ऑफ इंटिमेट पार्टनर/फैमिली मेंबर फेमिसाइड्स रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस, संयुक्त राष्ट्र महिला, मादक पदार्थों एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC), राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2022, संयुक्त राष्ट्र महासभा। 

मेन्स के लिये:

महिलाओं से संबंधित मुद्दे, सामाजिक मानदंडों की भूमिका और महिला सशक्तीकरण

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस (25 नवंबर) के दौरान फेमिसाइड्स, 2023: ग्लोबल एस्टिमेट्स ऑफ इंटिमेट पार्टनर/फैमिली मेंबर फेमिसाइड्स रिपोर्ट के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा पर प्रकाश डाला गया।

  • यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महिला और संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) द्वारा जारी की गई, जिसमें महिला हत्या के वैश्विक संकट की गंभीरता पर प्रकाश डाला गया।
  • महिलाओं की हत्या को लिंग-संबंधी प्रेरणा के साथ जानबूझकर की गई हत्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध भेदभाव, असमान शक्ति संबंधों, लैंगिक रूढ़िवादिता या हानिकारक सामाजिक मानदंडों से प्रेरित है। 
    • यह हत्या से भिन्न है, जिसमें लिंग-तटस्थ उद्देश्य मौजूद हो सकता है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • वैश्विक परिदृश्य: वर्ष 2023 में, विश्व में 85,000 महिलाओं और लड़कियों की हत्या जानबूझकर की गई, जिनमें से 60% (लगभग 51,100) की हत्या अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई।
    • औसतन प्रतिदिन 140 महिलाएँ और लड़कियाँ अपने अंतरंग साथी या निकट संबंधियों द्वारा स्त्री-हत्या की शिकार हो जाती हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: अफ्रीका में पीड़ितों की संख्या सबसे अधिक (21,700) और प्रति जनसंख्या महिला हत्या की दर सबसे अधिक (प्रति 100,000 पर 2.9) दर्ज की गई है।
    • इसके बाद अमेरिका और ओशिनिया में क्रमशः 1.6 और 1.5 प्रति 100,000 दर्ज की गई है, जबकि एशिया और यूरोप में यह दर काफी कम, 0.8 और 0.6 प्रति 100,000 थी।
  • गैर-घरेलू महिलाओं की हत्याएँ: गैर-घरेलू महिलाओं की हत्याओं में भी तेज़ी देखी गई है। उदाहरण के लिये, फ्राँस (2019-2022) में 5% और दक्षिण अफ्रीका (2020-2021) में 9% गैर-घरेलू महिलाओं की हत्याओं के मामले दर्ज किये गए है।
  • मानवहत्या: अनुमान है कि वर्ष 2023 में सभी हत्या में से 80% हत्याओं में पुरुष शामिल है जबकि 20% महिलाएँ हैं।
    • लेकिन, घातक हिंसा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है, वर्ष 2023 में जानबूझकर मारी गई लगभग 60% महिलाएँ अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य की हत्या का शिकार होती हैं।

  • महिला हत्या की रोकथाम: अंतरंग साथी (Intimate Partners) द्वारा की गई महिलाओं की हत्या से संबंधित काफी मामलों में पहले हिंसा की रिपोर्ट की गई थी, जिसमें फ्राँस (2019-2022) में 22-37% मामलों के साथ दक्षिण अफ्रीका (2020-2021) में इसी तरह की प्रवृत्ति देखी गई।
  • डेटा और उपलब्धता: इससे संबंधित डेटा उपलब्धता में गिरावट आई है वर्ष 2020 (75 देशों ने) की तुलना में वर्ष 2023 में केवल आधे देशों द्वारा ही इससे संबंधित डेटा उपलब्ध कराए गए।
    • केवल कुछ ही देश UNODC-UN वुमेन फ्रेमवर्क का उपयोग करके गैर-घरेलू महिला हत्याओं से संबंधित डेटा एकत्र करते हैं।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के कौन-कौन से रूप हैं?

  • घरेलू हिंसा: इसमें वर्तमान या पूर्व साथी (प्रायः पति या परिवार के सदस्य) द्वारा की गई ऐसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं जिनसे शारीरिक, यौन या भावनात्मक क्षति होती है।
    • इसके उदाहरणों में शारीरिक आक्रामकता, जबरदस्ती, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार तथा नियंत्रणकारी व्यवहार शामिल हैं।
  • यौन हिंसा: इसमें महिलाओं और बालिकाओं को निशाना बनाकर उनकी सहमति के बिना अवांछित यौन कृत्य किया जाना शामिल है।
    • इसके उदाहरणों में बलात्कार, यौन उत्पीड़न, ऑनलाइन यौन शोषण, गैर-संपर्क यौन शोषण, तस्करी तथा जबरन वेश्यावृत्ति शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2022 के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में 31,000 से अधिक (प्रतिदिन लगभग 87 मामले) बलात्कार के मामले दर्ज किये गए
  • मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार: इसमें नज़रों, इशारों या चिल्लाने के माध्यम से डराना-धमकाना साथ ही अपमान, अश्लील या अपमानजनक टिप्पणियाँ करना शामिल है।
    • इसमें मासिक धर्म वाली महिलाओं को अलग-थलग करने के साथ कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाएँ (जिनसे महिलाओं के अधिकारों एवं सम्मान का उल्लंघन होता है) भी शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक दुर्व्यवहार: इसमें महिला जननांगों की विकृति, बाल विवाह, जबरन विवाह एवं हिंसा जैसी नकारात्मक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ शामिल हैं।
  • प्रौद्योगिकी-प्रचारित हिंसा: इसमें ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म पर बदनामी, उत्पीड़न, पीछा करना, साइबर धमकी, मॉर्फ्ड एवं डीपफेक वीडियो का वितरण तथा डॉक्सिंग (किसी महिला के बारे में निजी जानकारी को सार्वजनिक रूप से जारी करना) शामिल है।

भारत में लैंगिक हिंसा के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) 2022 के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 4% वृद्धि हुई है।
  • महिलाओं के खिलाफ अपराधों की प्रकृति: वर्ष 2022 के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अधिकांश अपराध निम्नलिखित प्रकृति के थे:

  • इसके अतिरिक्त दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत 13,479 मामले दर्ज किये गए।
  • FIR दर्ज करना: NCRB की रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4.45 लाख से अधिक मामले (प्रति घंटे लगभग 51 FIR) दर्ज किये गए
  • बलात्कार के अधिक मामले: वर्ष 2022 में 31,000 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किये गए। वर्ष 2016 में  बलात्कार के मामले लगभग 39,000 तक पहुँच गए।
    • वर्ष 2018 में देश भर में औसतन प्रत्येक 15 मिनट में एक महिला द्वारा बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई गई।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस

  • यह दिवस महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा (Violence Against Women and Girls- VAWG) के  खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिये 25 नवंबर को मनाया जाता है।
  • मिराबल बहनों का सम्मान: यह दिन डोमिनिकन गणराज्य की मिराबल बहनों (पेट्रिया, मिनर्वा और मारिया टेरेसा) के सम्मान में मनाया जाता है, जो राफेल ट्रूजिलो की तानाशाही तथा हिंसा के खिलाफ प्रतिरोध की प्रतीक थीं।
    • 25 नवंबर, 1960 को ट्रूजिलो (Trujillo’s) के आदेश पर दोनों बहनों की हत्या कर दी गई।

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) 

  • वर्ष 1997 में स्थापित UNODC अवैध ड्रग्स, अंतर्राष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद से निपटने में एक वैश्विक अग्रणी संस्था है।
  • मुख्यालय: यह वियना में स्थित है तथा इसके संपर्क कार्यालय न्यूयॉर्क और ब्रुसेल्स में हैं।
  • आतंकवाद की रोकथाम: आतंकवाद के विरुद्ध सार्वभौमिक कानूनी उपायों के अनुसमर्थन और कार्यान्वयन में राज्यों की सहायता के लिये वर्ष 2002 में अपनी गतिविधियों का विस्तार किया।

यू.एन. वीमेन

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र महिला एक संयुक्त राष्ट्र इकाई है जिसका लक्ष्य वैश्विक लैंगिक असमानता को दूर करना और महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना है।
  • निर्माण: संयुक्त राष्ट्र सुधार एजेंडे के हिस्से के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा जुलाई 2010 में स्थापित। इसमें चार मौजूदा संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं का विलय किया गया।
    • महिला उन्नति प्रभाग (DAW)
    • महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (INSTRAW)
    • लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की उन्नति पर विशेष सलाहकार का कार्यालय (OSAGI)
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष (UNIFEM)
  • मुख्य लक्ष्य: महिलाओं और लड़कियों के प्रति भेदभाव को समाप्त करना।
    • महिलाओं को सशक्त बनाना तथा महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता प्राप्त करना।
    • विकास, मानवाधिकार, शांति और सुरक्षा में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।

भारत में महिला सुरक्षा के लिये प्रमुख कानून क्या हैं?

रिपोर्ट के अनुसार महिला हत्या को कैसे रोका जाए?

  • मूल कारणों पर ध्यान देना: विभिन्न स्तरों पर लैंगिक हिंसा के मूल कारणों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • व्यक्तिगत स्तर: हिंसा के दृष्टिकोण, व्यवहार और इतिहास को संबोधित करना।
    • पारस्परिक संबंध: पारिवारिक गतिशीलता और साझेदार अंतःक्रियाओं में सुधार।
    • सामुदायिक स्तर: संगठनात्मक और समुदाय-आधारित सहायता प्रणालियों को मज़बूत करना।
    • सामाजिक स्तर: जड़ जमाये हुए लैंगिक मानदंडों और रूढ़ियों को चुनौती देना।
  • शैक्षिक पहल: लैंगिक समानता, संबंध कौशल और पुरुषों और महिलाओं के लिये स्वीकार्य सामाजिक भूमिकाओं को बढ़ावा देने हेतु पाठ्यक्रम को एकीकृत करना।
    • हिंसा को बढ़ावा देने वाले दृष्टिकोणों और व्यवहारों पर पुनर्विचार करने में दोनों लैगिकों को शामिल करना।
  • कानूनी उपाय: लैटिन अमेरिका की तरह, लिंग आधारित उद्देश्यों से प्रेरित हत्याओं के लिये गंभीर कारकों को जोड़ते हुए, महिला हत्या को एक अलग आपराधिक अपराध के रूप में वर्गीकृत करना।
    • लैंगिक हिंसा से निपटने के लिये पुलिस, न्यायपालिका और अभियोजन सेवाओं के भीतर समर्पित इकाइयाँ स्थापित करना (जैसे, कनाडा, स्वीडन, जॉर्डन)।
  • जोखिम न्यूनीकरण: पुलिस को उच्च जोखिम वाली स्थितियों की पहचान करने और तत्काल हस्तक्षेप करने के लिये प्रशिक्षित करना।
    • हत्याओं की संभावना को कम करने के लिये अपराधियों और पीड़ितों के बीच संपर्क को रोकने के आदेश लागू करना तथा अंतरंग साथी के साथ हिंसा की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को हथियारों का लाइसेंस नहीं देना चाहिये।
  • जागरूकता आंदोलन: लैंगिक हिंसा की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करने और अपकारी प्रथाओं की निंदा करने  के लिये मी टू आंदोलन (#Me Too) और नी ऊना मेनोस (अर्जेंटीना में एक भी महिला कम नहीं) जैसे अभियान।
  • डेटा संग्रहण और विश्लेषण: सरकारों को महिला-हत्या के रुझान और पैटर्न पर वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी चाहिये।
    • नागरिक समाज को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों की निगरानी और विश्लेषण के लिये "फेमीसाइड ऑब्जर्वेटरी" स्थापित करनी चाहिये।

निष्कर्ष

रिपोर्ट में महिला हत्या के वैश्विक संकट पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें लैंगिक हिंसा से निपटने के लिये बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया गया है। रोकथाम के लिये मूल कारणों को संबोधित करना, कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना, सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना और डेटा संग्रह में सुधार करना आवश्यक है। महिला हत्या को रोकने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिये व्यक्तिगत, सामाजिक एवं संस्थागत स्तरों पर सामूहिक कार्यवाही आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: लैंगिक हिंसा के मूल कारणों की जाँच कीजिये और भारत में महिला हत्या को रोकने के लिये रणनीति प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रायः समाचारों में देखा जाने वाला 'बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच (बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन)' निम्नलिखित में से क्या है? (2015)

(a) क्षेत्रीय आतंकवाद से निपटने की एक कार्यनीति (स्ट्रैटजी), शंघाई सहयोग संगठन की बैठक का एक परिणाम।
(b) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में धारणीय आर्थिक संवृद्धि की एक कार्य-योजना, एशिया-प्रशांत आर्थिक मंच (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम) के विचार-विमर्श का एक परिणाम।
(c) महिला सशक्तीकरण हेतु एक कार्यसूची, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित विश्व सम्मेलन का एक परिणाम।
(d) वन्यजीवों के दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) की रोकथाम हेतु कार्यनीति, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट) की एक उद्घोषणा।

उत्तर: C

मेन्स 

प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014)

प्रश्न: महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये। टिप्पणी कीजिये। (2013)


भारतीय राजनीति

संविधान दिवस 2024

प्रिलिम्स के लिये:

संविधान दिवस, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, 26/11 मुंबई हमले, अनुच्छेद 370, सरोजिनी नायडू, संविधान की मूल संरचना, निजता का अधिकार, मौलिक अधिकार, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत, प्रस्तावना

मेन्स के लिये:

संविधान और उसका विकास, भारतीय संविधान पर वैश्विक प्रभाव, भारतीय संविधान का प्रारूपण, भारत के संविधान की मुख्य विशेषताएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

संविधान दिवस, 26 नवंबर 2024 को, भारत के प्रधानमंत्री ने भारतीय संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे होने पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित समारोह में भाग लिया। उन्होंने संविधान को सामाजिक-आर्थिक प्रगति और न्याय के लिये महत्त्वपूर्ण जीवंत दस्तावेज़ बताया।

  • इस अवसर पर 26/11 के मुंबई हमलों के पीड़ितों को भी याद किया गया, तथा भारत की दृढ़ता को रेखांकित किया गया। 

संविधान दिवस क्या है?

  • परिचय: 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अपनाने की याद में संविधान दिवस मनाया जाता है। यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों का जश्न मनाता है और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देता है।
    • वर्ष 2015 में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने नागरिकों के संविधान के साथ एकीकरण को मज़बूत करने के लिये 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया। वर्ष 2015 से पहले, 26 नवंबर को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था।
    • यह दिन संविधान का मसौदा तैयार करने में संविधान सभा के दृष्टिकोण और प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. बी.आर. अंबेडकर की महत्त्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है, जिसके कारण उन्हें "भारतीय संविधान के जनक" की उपाधि मिली।
  • संविधान दिवस 2024 की मुख्य विशेषताएँ:
    • जम्मू और कश्मीर में संविधान दिवस समारोह:  वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, 74 वर्षों में पहली बार जम्मू और कश्मीर ने संविधान दिवस मनाया। 
    • यह आयोजन केंद्र शासित प्रदेश के भारत के कानूनी और राजनीतिक ढाँचे के साथ संरेखण में एक नए अध्याय का प्रतीक है।
  • हमारा संविधान, हमारा सम्मान: श्रम और रोज़गार मंत्री ने "हमारा संविधान, हमारा सम्मान" अभियान में भाग लिया।
    • 24 जनवरी 2024 को शुरू किये गए "हमारा संविधान, हमारा सम्मान" अभियान का उद्देश्य नागरिकों में संविधान और भारतीय समाज को आकार देने में इसकी भूमिका के बारे में समझ को बढ़ावा देना है। 
      • यह संवैधानिक जागरूकता, विधिक अधिकारों और ज़िम्मेदारियों को बढ़ावा देने के क्रम में वर्ष भर चलने वाली पहल है। 
    • इसके तहत क्षेत्रीय कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और सेमिनारों के साथ-साथ सबको न्याय, हर घर न्याय (सभी के लिये न्याय), नव भारत, नव संकल्प (नए भारत के लिये नया संकल्प) एवं विधि जागृति अभियान (विधिक जागरूकता) जैसे उप-अभियान शामिल हैं। 
    • यह अभियान वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के भारत के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • भारत की संविधान सभा की महिलाएँ: भारत के राष्ट्रपति ने संविधान सभा में 15 महिला सदस्यों (जिनमें सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी और विजय लक्ष्मी पंडित शामिल हैं) के योगदान पर प्रकाश डाला है।
  • अम्मू स्वामीनाथन, एनी मैस्करीन, बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल और दक्षिणायनी वेलायुधन जैसे कम-ज्ञात सदस्यों को भी भारत के संविधान को आकार देने के क्रम में मान्यता दी गई।
    • अम्मू स्वामीनाथन: केरल में विधवाओं पर लगे सामाजिक प्रतिबंधों को देखने के बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। हिंदू कोड बिल के माध्यम से लैंगिक समानता का समर्थन किया गया।
    • एनी मास्कारेन (1902-1963): उन्होंने जातिवाद के विरोध के क्रम में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार हेतु अभियान चलाया।
    • बेगम कुदसिया ऐज़ाज़ रसूल (1909-2001): यह मुस्लिम लीग की सदस्य थी। उन्होंने विभाजन पर जटिल विचारों के बावजूद धर्म आधारित निर्वाचन का विरोध किया।
    • दक्षिणायनी वेलायुधन (1912-1978): यह विज्ञान में स्नातक करने वाली पहली दलित महिला और कोचीन विधान परिषद की पहली दलित महिला थी। उन्होंने दलितों के लिये अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध करने के साथ राष्ट्रवाद पर बल दिया।

भारतीय संविधान किस प्रकार एक "जीवंत दस्तावेज़" है?

  • संशोधनीयता: भारतीय संविधान में बदलती ज़रूरतों एवं परिस्थितियों के अनुसार संशोधन किया जा सकता है। यह अनुकूलन इसे समय के साथ विकसित होने एवं इसके मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक है।
    • संशोधन का प्रावधान: भाग XX में अनुच्छेद 368, संसद को निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए, किसी भी प्रावधान को शामिल करने, बदलने या निरस्त करने के द्वारा संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है।
      • संसद संविधान के 'मूल ढाँचे' में संशोधन नहीं कर सकती (जैसा कि केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले, 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था) है।
  • संशोधन के प्रकार: संविधान में संशोधन तीन अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है अर्थात संसद के साधारण बहुमत से, संसद के विशेष बहुमत से तथा कुछ संशोधनों के लिये विशेष बहुमत + राज्य का अनुसमर्थन। 
    • साधारण बहुमत से होने वाले संशोधन अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आते हैं।

  • न्यायिक व्याख्या: न्यायपालिका (विशेषकर सर्वोच्च न्यायालय) संविधान की व्याख्या करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
    • ऐतिहासिक निर्णय एवं विकसित व्याख्याएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि संविधान प्रासंगिक बने रहने के साथ समकालीन मुद्दों के प्रति उत्तरदायी बना रहे।
    • न्यायालयों ने समकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने के क्रम में विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या (जैसे के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 में निजता के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता देना) की है।
  • संघीय ढाँचा: भारतीय संविधान की संघीय संरचना केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच शक्ति संतुलन, क्षेत्रीय आवश्यकताओं तथा विविधता पर प्रकाश डालती है।
    • अनुच्छेद 246 सातवीं अनुसूची में तीन सूचियाँ संघ, राज्य और समवर्ती सूची शामिल हैं: केंद्र सरकार संघ सूची पर कानून बनाती है, राज्य सूची पर राज्य तथा समवर्ती सूची पर दोनों कानून बनाते हैं, राज्य और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति में संघ के कानून लागू होते हैं।
  • संविधान की संरचना: इसमें कुछ प्रावधान कठोर हैं, जो संघवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे मौलिक प्रावधानों की रक्षा करते हैं। 
  • सामाजिक परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी: भारत के संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो उसे सामाजिक परिवर्तनों के प्रति उत्तरदायी बनाते हैं, जैसे कि हाशिये पर पड़े समुदायों की रक्षा करने एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने हेतु नए कानूनों को शामिल करना।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2003 के 89वें संशोधन अधिनियम के द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को अनुच्छेद 338A के तहत एक संवैधानिक निकाय तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) को अनुच्छेद 338 के तहत एक अलग संवैधानिक निकाय बना दिया गया, जिससे अधिक समावेशी समाज के निर्माण में उसकी भूमिका बढ़ गई।

भारत के संविधान के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • संविधान सभा: संविधान सभा को संविधान का मसौदा तैयार करने में लगभग तीन साल (2 साल, 11 महीने, 17 दिन) लगे। शुरू में, इसमें कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 प्रांतीय विधान सभाओं से, 93 रियासतों से और 4 मुख्य आयुक्तों के प्रांतों से चुने गए थे। 
    • हालाँकि, वर्ष 1947 में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के बाद, पाकिस्तान के लिये एक अलग संविधान सभा का गठन किया गया, जिससे भारत की संविधान सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई।

  • मूल संरचना (1949): प्रारंभ में, इसमें एक प्रस्तावना, 395 अनुच्छेद (22 भागों में विभाजित) और 8 अनुसूचियाँ शामिल थीं।
    • वर्तमान संरचना: इसमें वर्तमान में एक प्रस्तावना, 450 से अधिक अनुच्छेद (25 भागों में विभाजित) और 12 अनुसूचियाँ शामिल हैं।
  • संशोधन: सितंबर 2024 तक, वर्ष 1950 में पहली बार अधिनियमित होने के बाद से भारत के संविधान में 106 संशोधन हुए हैं।
    • लंबाई: भारत का संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
      • इसके सुलेखक प्रेम बिहारी नारायण रायजादा थे तथा इसके पृष्ठों को नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में शांतिनिकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया था।
    • विस्तृत आकार का कारण: भारत के आकार और विविधता ने एक व्यापक संविधान को आवश्यक बना दिया है।
      • वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम, जो स्वयं एक व्यापक दस्तावेज़ था, के प्रभाव ने संविधान के आकार में योगदान दिया है।
      • भारत का एकल एकीकृत संविधान, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को नियंत्रित करता है, जो इसके आकार को विस्तृत बनाता है।
      • कानूनी विशेषज्ञों के नेतृत्व में संविधान सभा ने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो कानूनी और प्रशासनिक दोनों ही पहलुओं से संपूर्ण है, जिसमें मौलिक शासन सिद्धांतों के साथ-साथ विस्तृत प्रशासनिक प्रावधान भी शामिल हैं।
      • इसके अलावा संविधान विभिन्न वैश्विक स्रोतों से लिया गया है तथा इसके प्रावधान अमेरिकी, आयरिश, ब्रिटिश, कनाडाई, ऑस्ट्रेलियाई, जर्मन और अन्य संविधानों से प्रेरित हैं, जो इसके डिज़ाइन पर व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को दर्शाते हैं।

भारतीय संविधान की आलोचनाएँ:

आलोचना

खंडन

उधार लिया गया संविधान

संविधान निर्माताओं ने भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप उधार ली गई विशेषताओं को अनुकूलित और संशोधित किया ताकि उनकी कमियों को दूर रखा जा सके।

भारत सरकार अधिनियम, 1935 की कार्बन कॉपी

हालाँकि कई प्रावधान उधार लिये गए थे, किंतु संविधान केवल एक प्रति नहीं है। इसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और परिवर्धन शामिल हैं।

गैर-भारतीय या भारतीय विरोधी

विदेशी स्रोतों से उधार लिये जाने के बावजूद संविधान भारतीय मूल्यों और आकांक्षाओं को दर्शाता है।

गैर-गांधीवादी

हालाँकि यह स्पष्ट रूप से गांधीवादी नहीं है, किंतु  संविधान गांधी के अनेक सिद्धांतों के साथ संरेखित है।

एलीफेंट साइज़ (विस्तृत आकार)

भारत की विविधता और जटिलता को प्रबंधित करने के लिये संविधान की विस्तृत प्रकृति आवश्यक है।

वकीलों की प्रसन्नता (Paradise)

स्पष्टता और प्रवर्तनीयता के लिये कानूनी भाषा आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय संविधान को अक्सर एक 'जीवंत दस्तावेज़' कहा जाता है। बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने की इसकी क्षमता का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021)

(a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य
(b) एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य
(c) एक संप्रभु धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
(d) एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य

उत्तर: (b)


प्रश्न.  निम्नलिखित में से कौन संविधान सभा की संघीय संविधान समिति के अध्यक्ष थे? (2005)

(a) बी.आर. अंबेडकर
(b) जे.बी. कृपलानी 
(c) जवाहरलाल नेहरू 
(d) अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण निम्नलिखित में दी गई योजना पर आधारित है: (2012)

(a) मॉर्ले-मिंटो सुधार, 1909
(b) मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड अधिनियम, 1919
(c) भारत सरकार अधिनियम, 1935
(d) भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: स्वतंत्र भारत के लिये संविधान का मसौदा केवल तीन वर्ष में तैयार करने के एतिहासिक कार्य को पूर्ण करना संविधान सभा के लिये कठिन होता, यदि उनके पास भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्राप्त अनुभव नहीं होता। चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न: निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017)

प्रश्न: यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014)


शासन व्यवस्था

डिज़ाइन कानून संधि (DLT)

प्रिलिम्स केर लिये:

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO), डिज़ाइन कानून संधि (DLT), औद्योगिक डिज़ाइन, बौद्धिक संपदा, डिज़ाइन अधिनियम, 2000, ट्रिप्स समझौता, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट अधिनियम, 1957

मुख्य परीक्षा के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, भारत सहित विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) के सदस्य देशों ने सऊदी अरब के रियाद में आयोजित डिज़ाइन कानून संधि को संपन्न करने और अपनाने के लिये राजनयिक सम्मेलन में डिज़ाइन कानून संधि (डीएलटी) को अपनाया।

भारत की बौद्धिक संपदा की स्थिति

  • भारत की नवाचार रैंकिंग: WIPO के वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) 2024 में भारत को 133 अर्थव्यवस्थाओं में 39वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
    • मध्य और दक्षिणी एशिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत प्रथम स्थान पर रहा है।
  • भारत की वैश्विक IP रैंकिंग: भारत सभी तीन प्रमुख बौद्धिक संपदा अधिकारों- पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिज़ाइन के लिये वैश्विक शीर्ष 10 में स्थान पर है।
    • वर्ष 2023 में 64,480 पेटेंट आवेदनों के साथ भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है।
    • भारत का ट्रेडमार्क कार्यालय विश्व में सक्रिय पंजीकरणों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या रखता है, जिसमें 3.2 मिलियन से अधिक ट्रेडमार्क पंजीकृत हैं।
    • भारत के औद्योगिक डिज़ाइन अनुप्रयोगों में वर्ष 2023 में 36.4% की वृद्धि होगी।
  • IP गतिविधि में वृद्धि: भारत का पेटेंट- जीडीपी अनुपात पिछले दशक में 144 से बढ़कर 381 हो गया है, जो आर्थिक विकास के अनुरूप IP गतिविधि के विस्तार को दर्शाता है।
    • पेटेंट-जीडीपी अनुपात पेटेंट गतिविधि के आर्थिक प्रभाव का एक माप है।

डिज़ाइन कानून संधि (DLT) क्या है?

  • DLT के बारे में: DLT को विश्व में  औद्योगिक डिज़ाइनों की सुरक्षा को सुव्यवस्थित और सुविधाजनक बनाने के लिये एक व्यापक ढाँचे के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य लालफीताशाही को दूर करने तथा डिज़ाइनरों के लिये अपनी बौद्धिक संपदा की सुरक्षा हेतु एक विश्वसनीय और आसानी से संचालित होने योग्य प्रणाली स्थापित करना है।

प्रमुख प्रावधान:

  • डिज़ाइन आवेदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना:
    • उपयोग: एक आवेदन में एकाधिक डिज़ाइन की अनुमति प्रदान करता है, तथा मूल रूप से दाखिल करने की तिथि को सुरक्षित रखता है, भले ही कुछ अस्वीकार कर दिये जाएँ।
    • स्पष्ट अनुप्रयोग आवश्यकताएँ: सभी डिज़ाइन अनुप्रयोगों के लिये एक समान, स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करता है।
    • प्रतिनिधित्व में लचीलापन: आवेदक औद्योगिक संपत्ति कार्यालयों के समक्ष डिज़ाइन प्रस्तुत करने के लिये विभिन्न प्रारूपों (चित्र, फोटो, वीडियो) का उपयोग कर सकते हैं।
  • आवेदन करने की प्रक्रिया में सुधार: 
    • दाखिल संबंधी समय सीमा का सरलीकरण: आवेदक प्रारंभ में आवश्यक भागों को जमा करके दाखिल करने की तिथि सुरक्षित कर सकते हैं, बाद में संपूर्ण आवेदन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
    • सार्वजनिक प्रकटीकरण के लिये अनुग्रह अवधि: छह या 12 महीने की अनुग्रह अवधि, दाखिल करने से पहले प्रकट किये गए डिज़ाइनों की नवीनता की रक्षा करती है।
  • पंजीकरण के बाद की प्रक्रिया और सुरक्षा: 
    • प्रकाशन नियंत्रण: आवेदक आवेदन दाखिल करने के बाद छह महीने तक प्रकाशन को नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे गोपनीयता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ सुनिश्चित होता है।
    • समय सीमा में चूक होने पर राहत उपाय : समय सीमा से चूकने वाले आवेदकों को राहत प्रदान की जाएगी, जिससे उनके अधिकारों का नुकसान रोका जा सकेगा।
    • अनुदान-पश्चात लेनदेन स्पष्ट : पंजीकरण-पश्चात प्रक्रियाएँ (जैसे, स्थानांतरण, लाइसेंसिंग) आसान प्रबंधन और प्रवर्तन के लिये स्पष्ट रूप से परिभाषित की जाएंगी।
  • द्वि-स्तरीय संरचना: संधि में अनुच्छेद (संधि के मुख्य प्रावधान) और नियम (कार्यान्वयन को नियंत्रित करने वाले विनियम) शामिल होंगे। 
    • अनुबंधकारी पक्षों की सभा डिज़ाइन कानून और प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के अनुकूल होने के लिये नियमों में संशोधन कर सकती है।

औद्योगिक डिज़ाइन क्या है?

  • परिचय: औद्योगिक डिज़ाइन एक सजावटी प्रकृति की मौलिक रचना है, जिसे जब किसी उत्पाद में शामिल किया जाता है या उस पर लागू किया जाता है, तो वह उसे  विशेष रूप प्रदान करता है।
    • ये विशेषताएँ इसके आकार, रेखाओं, रूपरेखा, विन्यास, रंग, बनावट या सामग्री के कारण हो सकती हैं।
    • एक डिज़ाइन त्रि-आयामी हो सकता है, जैसे किसी उत्पाद का आकार, या द्वि-आयामी हो सकता है, जैसे किसी विशिष्ट सतह पैटर्न में।
    • यह एक बौद्धिक संपदा (IP) है जो मानव मस्तिष्क की अमूर्त रचनाएँ हैं जिनका मूल्य है लेकिन वे भौतिक वस्तुएँ नहीं हैं।
  • अनुप्रयोग: डिज़ाइनों को उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला पर लागू किया जाता है, जैसे पैकेजिंग, फर्नीचर, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, चिकित्सा उपकरण, हस्तशिल्प वस्तुएँ और आभूषण।

  • महत्त्व: डिज़ाइन व्यावसायिक परिसंपत्तियाँ हैं जो किसी उत्पाद के बाज़ार मूल्य को बढ़ा सकती हैं और प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान कर सकती हैं।
    • उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिये आकर्षक बनाकर, डिज़ाइन उपभोक्ता की पसंद को प्रभावित करता है।
  • संरक्षण: डिज़ाइनरों को उस देश के बौद्धिक संपदा (IP) कार्यालय द्वारा निर्धारित फाइलिंग प्रक्रियाओं का पालन करना होगा जिसमें वे संरक्षण चाहते हैं।
    • डिज़ाइन अधिकार प्रादेशिक होते हैं, अर्थात् किसी एक देश (या क्षेत्र) में प्राप्त संरक्षण से उत्पन्न अधिकार उस देश (या क्षेत्र) तक ही सीमित होते हैं।
    • भारत में औद्योगिक डिज़ाइनों का पंजीकरण और संरक्षण डिज़ाइन अधिनियम, 2000 द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • भारत में औद्योगिक डिज़ाइन: वर्ष 2014-24 के बीच भारत में डिज़ाइन पंजीकरण में तीन गुना वृद्धि हुई, अकेले  पिछले दो वर्षों में घरेलू पंजीकरण में 120% की वृद्धि हुई है।
    • उल्लेखनीय रूप से, वर्ष 2023 में डिज़ाइन अनुप्रयोगों में 25% की वृद्धि हुई।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)

  • परिचय: WIPO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जिसे वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधि को प्रोत्साहित करने और विश्व भर में बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था।
  • भूमिका : IP की सुरक्षा के लिये सेवाएँ प्रदान करना, IP से संबंधित मुद्दों के लिये मंच प्रदान करना, तथा वैश्विक निर्णय लेने में मार्गदर्शन के लिये डेटा और सूचना प्रदान करना।
  • सदस्यता : इसके 193 सदस्य देश हैं। भारत वर्ष 1975 में WIPO में शामिल हुआ।

डिज़ाइन अधिनियम, 2000 के अंतर्गत संरक्षण प्रावधान क्या हैं?

  • पात्रता: यदि डिज़ाइन सौंदर्यपरक प्रकृति के हैं और वस्तुओं पर लागू होते हैं तो उन्हें संरक्षित किया जाता है।
    • संरक्षण केवल वस्तु के सौंदर्य पर लागू होता है, उसके कार्यात्मक पहलुओं पर नहीं।
    • संरक्षण प्राप्त करने के लिये डिज़ाइन को डिज़ाइन रजिस्ट्री में पंजीकृत होना चाहिये।
  • सुरक्षा हेतु आवश्यकताएँ:
    • नवीनता और मौलिकता: डिज़ाइन नया होना चाहिये और मौजूदा डिज़ाइनों से काफी अलग होना चाहिये।
    • अप्रकटीकरण: डिज़ाइन का भारत या विदेश में सार्वजनिक रूप से प्रकटीकरण नहीं किया जाना चाहिये।
    • कार्यात्मक नहीं: कार्यात्मकता से प्रेरित डिज़ाइन संरक्षित नहीं हैं।
    • आपत्तिजनक नहीं: डिज़ाइनों को सार्वजनिक नैतिकता, सुरक्षा, या अखंडता के साथ टकराव नहीं होना चाहिये।
  • संरक्षण की अवधि: ट्रिप्स समझौते के तहत संरक्षण कम से कम 10 वर्षों तक रहता है जिसे नवीकरण आवेदन के माध्यम से अतिरिक्त 5 वर्षों के लिये बढ़ाया जा सकता है।
  • उल्लंघन और प्रवर्तन: पंजीकृत डिज़ाइन स्वामी दूसरों को उनके डिज़ाइन की नकल करने वाले उत्पाद बनाने, बेचने या आयात करने से रोक सकते हैं।
  • संरक्षण से बाहर रखे गए डिज़ाइन: कुछ वस्तुएँ जैसे टिकट, कैलेंडर, पुस्तकें, झंडे, और इंटीग्रेटेड सर्किट के लेआउट डिज़ाइन को औद्योगिक डिज़ाइन संरक्षण से बाहर रखा गया है।
    • डिज़ाइन में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत परिभाषित ट्रेडमार्क, संपत्ति चिह्न या कोई कलात्मक अधिकार शामिल नहीं हो सकते।

औद्योगिक डिज़ाइन संबंधी निर्णय

  • रितिका प्राइवेट लिमिटेड बनाम बीबा अपैरल्स प्राइवेट लिमिटेड मामला, 2016: रितिका (एक बुटीक परिधान डिज़ाइनर) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में बीबा पर कपड़ों के पुनरुत्पादन एवं बिक्री के संदर्भ में मुकदमा दायर किया, जिसमें रितिका के डिज़ाइनों की नकल की गई थी जबकि ये डिज़ाइन, डिज़ाइन अधिनियम, 2000 के तहत पंजीकृत नहीं थे।
    • इसमें न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ये डिज़ाइन, डिज़ाइन अधिनियम, 2000 के तहत पंजीकृत नहीं थे और इस प्रकार इसमें कोई उल्लंघन नहीं हुआ है
  • क्रॉक्स इंक USA बनाम बाटा इंडिया लिमिटेड और अन्य मामला, 2019: क्रॉक्स इंक USA ने दिल्ली उच्च न्यायालय में विभिन्न भारतीय फुटवियर निर्माताओं के खिलाफ डिज़ाइन उल्लंघन का मुकदमा दायर किया। 
    • इसमें न्यायालय ने कहा कि क्रॉक्स इंक USA इसमें उल्लंघन या चोरी का आरोप नहीं लगा सकता है क्योंकि कथित डिज़ाइन में नवीनता तथा मौलिकता का अभाव है तथा डिज़ाइन का विभिन्न माध्यमों से पूर्व प्रकाशन हो चुका है।

निष्कर्ष

डिज़ाइन कानून संधि (DLT) का उद्देश्य औद्योगिक डिज़ाइनों की वैश्विक सुरक्षा को सरल बनाना है जिससे डिज़ाइनरों के लिये अपनी बौद्धिक संपदा की सुरक्षा करना आसान एवं अधिक सुलभ हो सके। इससे एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया (जिसमें डिज़ाइन, ग्रेस पीरियड और पंजीकरण के बाद की स्पष्ट प्रक्रियाओं के प्रावधान हैं) सुनिश्चित होने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डिज़ाइन सुरक्षा मज़बूत होती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: औद्योगिक डिज़ाइन क्या है? हाल ही में अपनाई गई डिज़ाइन कानून संधि (DLT) का उद्देश्य इसे किस प्रकार संरक्षित करना है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति (नेशनल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स पॉलिसी)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. यह दोहा विकास एजेंडा और TRIPS समझौते के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराता है।  
  2.  औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के  विनियमन के लिये केन्द्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारतीय पेटेंट अधिनियम के अनुसार, किसी बीज को बनाने की जैव प्रक्रिया को भारत में पेटेंट कराया जा सकता है।  
  2.  भारत में कोई बौद्धिक संपदा अपील बोर्ड नहीं है।  
  3.  पादप किस्में भारत में पेटेंट कराए जाने के पात्र नहीं हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न: वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। ( 2014)


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