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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्वयं सहायता समूहों में NPA की समस्या

  • 02 Sep 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

स्वयं सहायता समूह, गैर-निष्पादित परिसंपत्ति, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

मेन्स के लिये 

ग्रामीण भारत के विकास में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

बैंकों द्वारा स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups-SHGs) को दिया गया ऋण तेज़ी से गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (Non-Performing Assets-NPA) में परिवर्तित हो रहा है, इस समस्या के मद्देनज़र केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्यों से ज़िलेवार NPAs की निगरानी करने और बकाया राशि की वसूली के लिये आवश्यक उपाय करने को कहा है।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की समीक्षा की जा रही थी, इसी मिशन के तहत सरकार स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को बैंकों से जोड़कर उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • बैठक के दौरान स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा लिये गए ऋण के वापस न आने अर्थात् उनके गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के रूप में परिवर्तित हो जाने के मुद्दे पर भी चर्चा की गई।

स्वयं सहायता समूहों में NPAs की समस्या

  • आँकड़े बताते हैं कि कुछ राज्यों में स्वयं सहायता समूहों (SHGs) द्वारा बैंकों से लिया गया एक-चौथाई से अधिक ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में परिवर्तित हो चुका है।
  • मार्च माह के अंत तक देश भर के तकरीबन 54.57 लाख स्वयं सहायता समूहों (SHGs) पर 91,130 करोड़ रुपए बकाया थे, जिसमें से जिनमें से 2,168 करोड़ रुपए अर्थात् 2.37 प्रतिशत NPAs के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं। 
    • यह आँकड़ा वित्तीय वर्ष 2018-19 की तुलना में देश भर के स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋणों के NPAs में समग्र तौर पर 0.19 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
  • गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के विश्लेषण में सबसे खराब प्रदर्शन अरुणाचल प्रदेश का रहा, जहाँ स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का 43.34 प्रतिशत हिस्सा NPA के रूप में परिवर्तित हो गया।
  • उत्तर प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का 36.02 प्रतिशत हिस्सा मार्च 2020 के अंत तक NPA में परिवर्तित हो गया, जबकि बीते वर्ष वर्ष की शुरुआत में यह केवल  22.16 प्रतिशत था। 
  • उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब और उत्तराखंड का स्थान है, जहाँ स्वयं सहायता समूहों द्वारा लिये गए ऋण का क्रमशः 19.25 प्रतिशत और 18.32 प्रतिशत हिस्सा NPA में परिवर्तित हो गया। इनके बाद हरियाणा का स्थान है जहाँ स्वयं सहायता समूहों का 10.18 प्रतिशत ऋण NPA में बदल गया।

गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में वृद्धि के कारण

  • समन्वय का अभाव: विशेषज्ञ मानते हैं कि स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के बीच समन्वय का अभाव उस समूह के डिफॉल्टर होने का सबसे बड़ा कारण है। 
    • कई बार यह भी देखा गया है कि समूह के नेता बिना समूह को सूचित किये ऋण ले लेते हैं और ऋण चुकाने की उनकी असमर्थता पर पूरे समूह को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है।
  • ऋण माफी की उम्मीद: कई बार स्वयं सहायता समूह सरकार द्वारा ऋण माफी की घोषणा का इंतज़ार करते रहते हैं और प्रायः इस इंतज़ार में उनके द्वारा लिया गया ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति में परिवर्तित हो जाता है।
  • पारिवारिक विवाद: स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रायः तब भी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जब उनके परिवार के सदस्य कुछ विशिष्ट मामलों खासतौर पर वित्तीय मामलों में उनके साथ सहयोग नहीं करते हैं।
  • प्राकृतिक आपदा: प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- सूखा, अत्यधिक वर्षा, बाढ़, भूकंप आदि भी स्वयं सहायता समूहों के बढ़ते NPA का एक कारण हो सकते हैं, क्योंकि इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण ग्रामीणों की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है और वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • इसके अलावा विवाह, समारोह और चिकित्सीय आपात स्थिति आदि पर व्यय करने हेतु लिया गया ऋण भी प्रायः गैर-निष्पादित परिसंपत्ति में बदल जाता है, इसका मुख्य कारण यह है कि इस प्रकार के खर्चों से ग्रामीणों की कोई आय नहीं होती है।

स्वयं सहायता समूह और उसका महत्त्व

  • सरल शब्दों में कहें तो स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ ऐसे लोगों का एक अनौपचारिक संघ होता है जो अपनी रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार करने के लिये स्वैच्छा से एक साथ आते हैं।
  • सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन स्वयं सहायता समूह (SHG) कहलाता है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों में सामान्यतः 10-20 सदस्य होते हैं। प्रायः कम सदस्यों वाले समूह को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि अधिक सदस्यों वाले समूह में सभी सदस्य सक्रिय रूप से समूह की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पाते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह (SHG) ग्रामीण भारत में दहेज और शराबबंदी जैसी प्रथाओं का मुकाबला करने के लिये सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूहों के गठन से समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है और महिलाओं के आत्मसम्मान में बढ़ोतरी हुई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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