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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गैर–निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ

  • 04 Jan 2017
  • 11 min read

पृष्ठभूमि

ऐसे समय में, जब खराब ऋण (Bad Loans) यानी ऐसा ऋण जिसकी वसूली नहीं की जा सकती, में भारी उछाल की स्थिति चल रही है, बैंकों द्वारा खराब परिसंपत्तियों (Bad assets) की वसूली दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है| रिज़र्व बैंक से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मार्च 2016 के अंत तक देश की कुल 221,400 करोड़ रुपए की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets) में से खराब परिसंपत्तियों की वसूली दर तकरीबन 10.3 फीसदी यानी 22,800 करोड़ रुपए थी, जबकि वित्तीय वर्ष 2015-16 के अंत में कुल 248,200 करोड़ रुपए की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली दर तकरीबन 12.4%  यानी 30,800 करोड़ रुपए थी|

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2014 में देश की कुल 173,800 करोड़ रुपए की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली दर 18.4 फीसदी के स्तर पर थी, जिनकी कीमत तकरीबन 32,000 करोड़ रुपए थी, जबकि वर्ष 2013 में यह दर अब तक के सबसे उच्च स्तर यानी 22 फीसदी (कुल 105,700 करोड़ रुपए में से तकरीबन 23,300 करोड़ रुपए ) दर्ज़ की गई थी|
  • रिज़र्व बैंक द्वारा प्राप्त जानकारी से ज्ञात होता है कि गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली करने के लिये लोक अदालतों, ऋण वसूली न्यायाधिकरण (debt recovery tribunals) तथा सर्फेसी अधिनियम (SARFAESI Act) के तहत कुल 46.54 लाख मामले दर्ज़ किये गए थे, जिनमें से तकरीबन 44.56 लाख मामलों को मार्च 2016 तक लोक अदालतों से वापस ले लिया गया|
  • बैंकिंग क्षेत्र की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों का सबसे अधिक बोझ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर पड़ा है| अतः रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा पिछले वर्ष (2016) की कुल 27,849 करोड़ की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की तुलना में इस वर्ष (2017 में ) मात्र 19,757 करोड़ रुपए की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली का ही अनुमान व्यक्त किया है|
  • जहाँ एक ओर, गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली में मंदी आने का मुख्य कारण सर्फेसी अधिनियम के माध्यम से हुई वसूली की दर में कमी आना है| यानी, वित्तीय वर्ष 2014-15 के 25,600 करोड़ रुपए की तुलना में वित्तीय वर्ष 2015-16 में मात्र 13,179 करोड़ रुपए की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की ही वसूली की गई|  
  • वहीं दूसरी ओर, लोक अदालतों एवं ऋण वसूली न्यायाधिकरणों के माध्यम से की गई गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली दर में वृद्धि हुई है|बैंकों की सकल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (Gross NPAs -
  • GNPAs) में सितम्बर 2015 के 5.1. फीसदी की तुलना में मार्च 2016 की कुल अग्रिम गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में 7.6 फीसदी का उछाल दर्ज़ किया गया|
  • गौरतलब है कि पिछले 15 महीनों में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ बढ़कर दोगुनी हो गई हैं| मसलन, सितंबर 2015 की तुलना में सितंबर 2016 में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की कुल कीमत 3,40,556 करोड़ रुपए से बढ़कर 6,68,825 करोड़ रुपए हो गई है|
  • हालाँकि, विमुद्रीकरण के कारण आगामी दो तिमाहियों में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली में कमी आने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है|
  • तथापि, हाल ही में भारत सरकार तथा रिज़र्व बैंक  द्वारा उच्च कार्यशील पूंजी सीमा, नकद ऋण सीमा तथा छोटी इकाइयों के लिये ऋण गारंटी सीमा को मद्देनज़र रखते हुए बैंक खातों से धन निकासी करने की सीमा में बढ़ोतरी की गई है|
  • हालाँकि, यदि विशेषज्ञों की बात मानें तो वृद्धिशील परिसंपत्तियों (incremental assets) के संदर्भ में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में स्थायित्व आने की संभवाना है|  
  • ध्यातव्य है कि रेटिंग एजेंसियों द्वारा भी देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी की आवश्यकता तथा वित्तीयन (funding) के विकल्पों की अपर्याप्तता के विषय में चिंता व्यक्त की गई है|
  • विश्व विख्यात रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार, भारत सरकार द्वारा बैंकों में पूंजी के संचार में वृद्धि करने की योजनाओं के इतर बैंकों को समर्थन प्रदान करने के लिये कुछ विशेष कदम उठाये जाने की आवश्यकता है|
  • हालाँकि, वर्तमान में बैंकों द्वारा दिवाला तथा दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) के तहत प्रभावकारी ऋण वसूली की उम्मीद की जा रही है|
  • एक अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उपरोक्त संहिता के तहत प्रभावकारी ऋण वसूली के सटीक क्रियान्वयन के माध्यम से आगामी 4-5 वर्षों में वर्तमान में बंद पड़ी गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में से तकरीबन 25,000 की संभावित वसूली होने की सम्भावना है|
  • यदि इस संहिता को सफलतापूर्वक लागू किया जाता है तो यह भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को 32 फीसदी अथवा इससे अधिक की दर से गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली करने में सहायता प्रदान करेगी|
  • इस संहिता के माध्यम से गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में कमी आने तथा पहले की तुलना में और अधिक क्रेडिट अनुशासन आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है|
  • हालाँकि, हाल ही में गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों के सन्दर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा कुछ विशेष नियमों को और अधिक सख्त करने का फैसला लिया गया है, जिनमें प्रमुखतया जानबूझकर चूक करने वाले लोगों एवं उद्योगों को शामिल किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि रिज़र्व बैंक द्वारा इन सभी नियमों को दिवाला एवं दिवालियापन संहिता के साथ लागू किया जाएगा, जिसके तहत उक्त व्यक्तियों एवं उद्योगों से गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की वसूली करने तथा समग्र क्रेडिट अनुशासन में सुधार करने में सहायता प्राप्त होगी|
  • हालाँकि, इस संहिता को संस्थागत स्वरूप प्रदान करना एक दीर्घावधिक प्रक्रिया है| 
गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ
  • गैर-निष्पादनकरी परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets - NPAs) वित्तीय संस्थानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक ऐसा वर्गीकरण है जिसका सीधा संबंध कर्ज़/ऋण/लोन न चुकाने से होता है|
  • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज अथवा मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति माना जाता है|
  • दूसरे शब्दों में, एनपीए वैसी परिसंपत्ति होती है जो मूल रूप से वसूली की अनुमानित अवधि तक नकद मौद्रिक प्रवाह का हिस्सा नहीं बनती है|
  • हालाँकि वास्तविकता यह है कि एनपीए वास्तविक कारणों, गलत अनुमानों/अक्षमताओं और गलत काम की वजह से उत्पन्न होती हैं| 
वर्ष    लोक अदालतें  ऋण वसूली न्यायाधिकरण सर्फेसी अधिनियम  कुल
 2013-14 दर्ज़ किये गए कुल मामले  16,36,957  28,258  1,94,707  18,59,922
 संलग्नित धनराशि  23,200  55,300  95,300  1,73,800
 प्राप्त धनराशि  1,400  5,300  25,300  32,000
 प्राप्त प्रतिशत  6  9.6  26.  18.4
 2014-15  कुल मामलें दर्ज़ किये गये 29,58,313 22,004 1,75,355  31,55,672
 संलग्नित धनराशि  31,000  60,400  1,56,800  2,48,200
 प्राप्त धनराशि  1,000  42,00  25,600  30,800
 प्राप्त प्रतिशत  3.2 7  16.3  12.4
 2015-16 दर्ज़ किये गए कुल मामले  44,56,634  24,537 1,73,582  46,54,753
 संलग्नित धनराशि 72,000  69,300 80,100  2,21,400
 प्राप्त धनराशि  3,200  6,400  13,200  22,800
 प्राप्त प्रतिशत 4.4  9.2  16.5  10.3
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