बौद्धिक संपदा अधिकार: एक नज़र में

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बौद्धिक संपदा अधिकार व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

मनुष्य अपनी बुद्धि से कई तरह के आविष्कार और नई रचनाओं को जन्म देता है। उन विशेष आविष्कारों पर उसका पूरा अधिकार भी है लेकिन उसके इस अधिकार का संरक्षण हमेशा से चिंता का विषय भी रहा है। यहीं से बौद्धिक संपदा और बौद्धिक संपदा अधिकारों की बहस प्रारंभ होती है। यदि हम मौलिक रूप से कोई रचना करते हैं और इस रचना का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी तरीके से अपने लाभ के लिये प्रयोग किया जाता है तो यह रचनाकार के अधिकारों का स्पष्ट हनन है। 

जब दुनिया में बहस तेज हुई कि कैसे बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा की जाए तब संयुक्त राष्ट्र के एक अभिकरण विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization-WIPO) की स्थापना की गई। इस संगठन के प्रयासों से ही बौद्धिक संपदा अधिकार के महत्त्व को प्रमुखता प्राप्त हुई। 

इस आलेख में बौद्धिक संपदा अधिकार, उसके प्रकार, बौद्धिक संपदा के संदर्भ में भारत का नज़रिया और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा। 

क्या है बौद्धिक संपदा अधिकार?

  • व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। वस्तुतः ऐसा समझा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का बौद्धिक सृजन (जैसे साहित्यिक कृति की रचना, शोध, आविष्कार आदि) करता है तो सर्वप्रथम इस पर उसी व्यक्ति का अनन्य अधिकार होना चाहिये। चूँकि यह अधिकार बौद्धिक सृजन के लिये ही दिया जाता है, अतः इसे बौद्धिक संपदा अधिकार की संज्ञा दी जाती है। 
  • बौद्धिक संपदा से अभिप्राय है- नैतिक और वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान बौद्धिक सृजन। बौद्धिक संपदा अधिकार प्रदान किये जाने का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिये कि अमुक बौद्धिक सृजन पर केवल और केवल उसके सृजनकर्त्ता का सदा-सर्वदा के लिये अधिकार हो जाएगा। यहाँ पर ये बताना आवश्यक है कि बौद्धिक संपदा अधिकार एक निश्चित समयावधि और एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र के मद्देनज़र दिये जाते हैं।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार दिये जाने का मूल उद्देश्य मानवीय बौद्धिक सृजनशीलता को प्रोत्साहन देना है। बौद्धिक संपदा अधिकारों का क्षेत्र व्यापक होने के कारण यह आवश्यक समझा गया कि क्षेत्र विशेष के लिये उसके संगत अधिकारों एवं संबद्ध नियमों आदि की व्यवस्था की जाए।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

  • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुराने अभिकरणों में से एक है।
  • इसका गठन वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • वर्तमान में 193 देश इस संगठन के सदस्य हैं।
  • भारत वर्ष 1975 में इस संगठन का सदस्य बना था।

बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रकार

  • कॉपीराइट 
    • कॉपीराइट अधिकार के अंतर्गत किताबें, चित्रकला, मूर्तिकला, सिनेमा, संगीत, कंप्यूटर प्रोग्राम, डाटाबेस, विज्ञापन, मानचित्र और तकनीकी चित्रांकन को सम्मिलित किया जाता है। 
    • कॉपीराइट के अंतर्गत दो प्रकार के अधिकार दिये जाते हैं: (क) आर्थिक अधिकार: इसके तहत व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा उसकी कृति का उपयोग करने के बदले वित्तीय पारितोषिक दिया जाता है। (ख) नैतिक अधिकार: इसके तहत लेखक/रचनाकार के गैर-आर्थिक हितों का संरक्षण किया जाता है। 
    • कॉपीलेफ्ट: इसके अंतर्गत कृतित्व की पुनः रचना करने, उसे अपनाने या वितरित करने की अनुमति दी जाती है तथा इस कार्य के लिये लेखक/रचनाकार द्वारा लाइसेंस दिया जाता है। 
  • पेटेंट 
    • जब कोई आविष्कार होता है तब आविष्कारकर्त्ता को उसके लिये दिया जाने वाला अनन्य अधिकार पेटेंट कहलाता है। एक बार पेटेंट अधिकार मिलने पर इसकी अवधि पेटेंट दर्ज़ की तिथि से 20 वर्षों के लिये होती है। 
    • आविष्कार पूरे विश्व में कहीं भी सार्वजनिक न हुआ हो, आविष्कार ऐसा हो जो पहले से ही उपलब्ध किसी उत्पाद या प्रक्रिया में प्रगति को इंगित न कर रहा हो तथा वह आविष्कार व्यावहारिक अनुप्रयोग के योग्य होना चाहिये, ये सभी मानदंड पेटेंट करवाने हेतु आवश्यक हैं। 
    • ऐसे आविष्कार (जो आक्रामक, अनैतिक या असामाजिक छवि को उकसाते हों तथा ऐसे आविष्कार जो मानव या जीव-जंतुओं में रोगों के लक्षण जानने के लिये प्रयुक्त होते हों) को पेटेंट का दर्जा नहीं मिलेगा। 
  • ट्रेडमार्क 
    • एक ऐसा चिन्ह जिससे किसी एक उद्यम की वस्तुओं और सेवाओं को दूसरे उद्यम की वस्तुओं और सेवाओं से पृथक किया जा सके, ट्रेडमार्क कहलाता है।
    • ट्रेडमार्क एक शब्द या शब्दों के समूह, अक्षरों या संख्याओं के समूह के रूप में हो सकता है। यह चित्र, चिन्ह, त्रिविमीय चिन्ह जैसे संगीतमय ध्वनि या विशिष्ट प्रकार के रंग के रूप में हो सकता है। 
  • औद्योगिक डिज़ाइन 
    • भारत में डिज़ाइन अधिनियम, 2000 के अनुसार, ‘डिज़ाइन’ से अभिप्राय है- आकार, अनुक्रम, विन्यास, प्रारूप या अलंकरण, रेखाओं या वर्णों का संघटन जिसे किसी ऐसी वस्तु पर प्रयुक्त किया जाए जो या तो द्वितीय रूप में या त्रिविमीय रूप में अथवा दोनों में हो।

  • भौगोलिक संकेतक 

    • भौगोलिक संकेतक से अभिप्राय उत्पादों पर प्रयुक्त चिह्न से है। इन उत्पादों का विशिष्ट भौगोलिक मूल स्थान होता है और उस मूल स्थान से संबद्ध होने के कारण ही इनमें विशिष्ट गुणवत्ता पाई जाती है। 
    • विभिन्न कृषि उत्पादों, खाद्य पदार्थों, मदिरापेय, हस्तशिल्प को भौगोलिक संकेतक का दर्जा दिया जाता है। तिरुपति के लड्डू, कश्मीरी केसर, कश्मीरी पश्मीना आदि भौगोलिक संकेतक के कुछ उदाहरण हैं।
    • भारत में वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक अधिनियम, 1999 बनाया गया है। यह अधिनियम वर्ष 2003 से लागू हुआ। इस अधिनियम के आधार पर भौगोलिक संकेतक टैग यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत उपयोगकर्त्ता के अतिरिक्त अन्य कोई भी उस प्रचलित उत्पाद के नाम का उपयोग नहीं कर सकता है। 
    • वर्ष 2015 में भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गई ‘उस्ताद योजना’ के माध्यम से शिल्पकारों के परंपरागत कौशल का उन्नयन किया जाएगा। उदाहरण के लिये बनारसी साड़ी एक भौगोलिक संकेतक है। अतः उस्ताद योजना से जुड़े बनारसी साड़ी के शिल्पकारों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की अपेक्षा की जा सकती है।

भारतीय बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था की खामियाँ 

  • सामान्यतः बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-अमेरिका व्यापार में अपेक्षित प्रगति न हो पाने का ज़िम्मेदार भारत की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था में व्याप्त खामियाँ हैं। हालाँकि इस बात में पर्याप्त सच्चाई नहीं है, लेकिन फिर भी इसी बहाने हमारे पास भारत की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था को देखने का उपयुक्त मौका है।
  • ग्रामीण इलाकों में किसानों के पास पर्याप्त सूचना की कमी के चलते उन्हें ये पता नहीं चल पाता कि कौन सा किस्म पेटेंट के तहत आता है और कौन सा नहीं। ऐसे में अक्सर किसानों और कॉर्पोरेट्स के बीच टकराव देखने को मिलता है।
  • भारत में पेटेंट करवाना जटिल कार्य है। हमारे पेटेंट कार्यालयों के पास शोध से जुड़ी सूचनाओं की कमी रहती है।
  • किसी शोध का पेटेंट मंजूर करने से पहले यह जानना बहुत ज़रूरी होता है कि वह शोध पहले से मौजूद उसी तरह के शोध से बेहतर है या नहीं। इस लिहाज़ से निर्धारित समय पर पेटेंट मंजूर करवाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • मौजूदा वक्त आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का है। अब मशीनें भी इंसानों की तरह सोचने लगी हैं। ऐसे में अगर हम बौद्धिक संपदा अधिकार प्राप्त करने का आधार कला या तकनीकी कौशल को बनाते हैं, तो आने वाले वक्त में ये मशीनें ही अपने नाम पर पेटेंट करवाएँगी।
  •  शोध को बढ़ावा देने के लिये निजी क्षेत्र को आकर्षित न कर पाना भी एक बड़ी चुनौती है।

बौद्धिक संपदा के संरक्षण हेतु किये गए सरकार के प्रयास 

  • पेटेंट अधिनियम 1970 और पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005: भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1911 में भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम बनाया गया था। पुनः स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1970 में पेटेंट अधिनियम बना और इसे वर्ष 1972 से लागू किया गया। इस अधिनियम में पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2002 और पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधन किये गए। इस संशोधन के अनुसार, ‘प्रोडक्ट पेटेंट’ का विस्तार तकनीक के सभी क्षेत्रों तक किया गया। उदाहरणस्वरुप- खाद्य पदार्थ, दवा निर्माण सामग्री आदि के क्षेत्र में इसे विस्तृत किया गया।
  • ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999: भारत में ट्रेडमार्क के लिये ट्रेडमार्क एक्ट, 1999 बनाया गया है। ट्रेडमार्क एक्ट में शब्द, चिन्ह, ध्वनि, रंग, वस्तु का आकार इत्यादि शामिल किया जाता है।
  • कॉपीराइट अधिनियम, 1957: वर्ष 1957 में कॉपीराइट अधिनियम बनाकर, बौद्धिक संपदा अधिकारों  की रक्षा के लिये इस कानून को देशभर में लागू किया गया। 
  • वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999: यह कानून सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत उपयोगकर्त्ता के अतिरिक्त अन्य कोई भी उस प्रचलित उत्पाद के नाम का उपयोग न कर सके।
  • डिज़ाइन अधिनियम, 2000: सभी प्रकार की औद्योगिक डिज़ाइन को संरक्षण प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016: 12 मई, 2016 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंज़ूरी दी थी। इस अधिकार नीति के जरिये भारत में बौद्धिक संपदा को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है। इस नीति के तहत सात लक्ष्य निर्धारित किये  गए हैं-
    • समाज के सभी वर्गों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना।
    • बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना।
    • मज़बूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना ताकि बौद्धिक संपदा के हकदार और लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके।
    • सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मज़बूत बनाना।
    • व्यवसायीकरण के जरिये बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण।
    • बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिये प्रवर्तन और न्यायिक व्यवस्था को मज़बूत बनाना।
    • मानव संसाधनों संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना और बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।

बौद्धिक संपदा के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय 

  • औद्योगिक संपदा के संरक्षण जुड़ा पेरिस कंवेन्शन (1883): इसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल हैं।
  • साहित्यिक और कलात्मक कामों के संरक्षण के लिये बर्न कंवेन्शन (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प शामिल हैं।
  • मराकेश संधि (2013): इस संधि के मुताबिक किसी किताब को ब्रेल लिपि में छापे जाने पर इसे बौद्धिक संपदा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। इस संधि को अपनाने वाला भारत पहला देश है।

बौद्धिक अधिकार के संरक्षण में भारत की स्थिति

  • वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक-2020 में भारत 38.46% के स्कोर के साथ 53 देशों की सूची में 40वें स्थान पर रहा, जबकि वर्ष 2019 में 36.04% के स्कोर के साथ भारत 50 देशों की सूची में 36वें स्थान पर था। 
  • सूचकांक में शामिल दो नए देशों, ग्रीस और डोमिनिकन गणराज्य का स्कोर भारत से अच्छा है। गौरतलब है कि फिलीपीन्स और उक्रेन जैसे देश भी भारत से आगे हैं।
  • हालाँकि धीमी गति से ही सही भारत द्वारा किसी भी देश की तुलना में अपनी रैंकिंग में समग्र वृद्धि दर्ज की गई है।

आगे की राह 

  • भारत की इस वृद्धि को बनाए रखने के लिये भारत को अपने समग्र बौद्धिक संपदा ढाँचे में परिवर्तनकारी बदलाव लाने की दिशा में अभी और काम करने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं मज़बूत बौद्धिक संपदा मानकों को लगातार लागू करने के लिये गंभीर कदम उठाए जाने की भी ज़रूरत है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की औद्योगिक विकास संस्था ने अपने एक अध्ययन के द्वारा यह प्रमाणित किया है कि जिन देशों की बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था सुव्यवस्थित वहाँ आर्थिक विकास तेज़ी से हुआ है। अतः यहाँ सुधार की नितांत ही आवश्यकता है।
  • भारत को ‘पेटेंट, डिजाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक’ को चुस्त एवं दुरुस्त बनाने की आवश्यकता है।

प्रश्न- बौद्धिक संपदा अधिकार से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करते हुए बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन चुनौतियों के समाधान में किये जाने वाले प्रयासों की चर्चा भी कीजिये।