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भारतीय अर्थव्यवस्था

स्टार्टअप की संवृद्धि: भारत के विकास को बढ़ावा

  • 13 Sep 2024
  • 28 min read

यह एडिटोरियल 12/09/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Making India a start-up nation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के तेज़ी से बढ़ते स्टार्ट-अप पारितंत्र की चर्चा की गई है और घातीय वृद्धि एवं वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विज़न की प्राप्ति के लिये शिक्षा, उद्यमिता एवं रोज़गार के तालमेल की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग, डिजिटल इंडिया, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, वैकल्पिक निवेश कोष, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, विक्रम-S, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2024 

मेन्स के लिये:

भारत के स्टार्टअप क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारतीय स्टार्टअप के विकास से संबंधित चुनौतियाँ।

भारत के पास अब विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप पारितंत्र है, जिसमें 140,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्ट-अप शामिल हैं और प्रत्येक 20 दिन पर एक यूनिकॉर्न का उभार हो रहा है। यह वृद्धि शीर्ष-स्तरीय उच्च शिक्षा संस्थानों, सरकारी पूंजीगत व्यय और व्यापक इंटरनेट पैठ द्वारा समर्थित है। हालाँकि, इस गति को बनाए रखने और वर्ष 2047 तक विकसित भारत के विज़न को प्राप्त करने के लिये शिक्षा, उद्यमिता एवं रोज़गार को और अधिक प्रभावी ढंग से एकीकृत करने की आवश्यकता है। 

विकास की व्यापक संभावना मौजूद है, विशेष रूप से यदि भारत के स्टार्ट-अप पारितंत्र की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से की जाए। यदि 5% भारतीय स्नातक भी वैश्विक रुझानों के अनुरूप उद्यमिता का विकल्प चुनते हैं तो इससे सालाना 50,000 नए स्टार्ट-अप उभर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से लाखों रोज़गार अवसर सृजित हो सकते हैं। इसे साकार करने के लिये भारत को अपने उच्च शिक्षा मेट्रिक्स पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, जहाँ पारंपरिक नियोजन (प्लेसमेंट) दरों के साथ-साथ उद्यमिता पर भी बल दिया जाना चाहिये। एकरेखीय दृष्टिकोण से शिक्षा, उद्यमिता एवं रोज़गार को एकीकृत करने वाले एक सहक्रियात्मक प्रतिमान की ओर संक्रमण के माध्यम से भारत अपने ‘अमृत काल’ के दौरान घातीय आर्थिक विकास पर लक्षित हो सकता है।  

भारत के स्टार्ट-अप क्षेत्र की वर्तमान स्थिति  

  • पारिस्थितिकी तंत्र का आकार और विकास: भारत एक मज़बूत स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र रखता है, जो उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के तहत 1.4 लाख से अधिक पंजीकृत स्टार्ट-अप्स के साथ वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है। 
    • इस गतिशील पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषता इसकी तीव्र वृद्धि है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में प्रतिदिन अधिक स्टार्ट-अप्स का योग कर रही है। 
    • इसके अलावा, पिछले सात-आठ वर्षों में प्रत्येक 20 दिन में एक यूनिकॉर्न (unicorn) का उभार भारतीय स्टार्ट-अप परिदृश्य में अपार संभावनाओं और उद्यमशीलता की भावना को उजागर करता है। 
  • रोज़गार सृजन: भारतीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र रोज़गार सृजन का एक महत्त्वपूर्ण चालक रहा है, जहाँ DPIIT द्वारा मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप 15.5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष रोज़गार अवसर पैदा कर रहे हैं। 
    • अकेले 2023 में ही इन स्टार्ट-अप्स ने 3.9 लाख नौकरियों का सृजन किया, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 46.6% की उल्लेखनीय वृद्धि और पिछले पाँच वर्षों की तुलना में 217.3% की व्यापक वृद्धि को दर्शाता है। 
    • यह प्रवृत्ति रोज़गार के अवसर प्रदान करने और देश के आर्थिक विकास में योगदान करने में स्टार्ट-अप्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है। 
  • आर्थिक योगदान: स्टार्ट-अप्स का प्रभाव रोज़गार सृजन से कहीं आगे तक विस्तृत है, जहाँ उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
    • वित्त वर्ष 2023 में स्टार्ट-अप्स और उनके कॉर्पोरेट समकक्षों ने 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर का महत्त्वपूर्ण निवेश किया, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4% है। यह पर्याप्त योगदान आर्थिक विकास और नवाचार के प्रमुख चालकों के रूप में स्टार्ट-अप की भूमिका को उजागर करता है। 

भारत का स्टार्ट-अप क्षेत्र किन कारणों से वृद्धि कर रहा है? 

  • डिजिटल अवसंरचना क्रांति: ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों के नेतृत्व में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के व्यापक अंगीकरण से स्टार्ट-अप्स के लिये अनुकूल माहौल का निर्माण हुआ है। 
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) एक ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हुआ है, जिसके तहत अगस्त 2024 तक लेनदेन मूल्य 20 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया। 
    • इस डिजिटल ढाँचे के साथ-साथ विश्व में निम्नतम डेटा लागत (वर्ष 2023 में औसतन 6.7 रुपए प्रति GB) ने स्टार्ट-अप्स को कुशलतापूर्वक विशाल ग्राहक आधार तक पहुँचने में सक्षम बनाया है। 
  • सहायक सरकारी नीतियाँ: ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ और ‘स्टैंड अप इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से भारत सरकार का सक्रिय रुख महत्त्वपूर्ण रहा है। 
    • 30 जून 2024 तक की स्थिति के अनुसार, DPIIT ने 1,40,803 संस्थाओं को स्टार्ट-अप के रूप में मान्यता प्रदान की है, जिससे उन्हें कर लाभ और सरल अनुपालन मानदंड जैसी सुविधा प्राप्त होती है। 
    • 31 दिसंबर 2022 तक की स्थिति के अनुसार, स्टार्ट-अप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स स्कीम (FFS) के तहत 99 वैकल्पिक निवेश फंड्स (Alternative Investment Funds- AIFs) को 7,980 करोड़ रुपए प्रदान किये गए। 
  • बढ़ता प्रतिभा पूल: भारत का जनसांख्यिकी लाभांश, जहाँ 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, स्टार्ट-अप्स के लिये एक विशाल प्रतिभा पूल प्रदान करता है। 
    • उभरती प्रौद्योगिकियों पर अधिकाधिक ध्यान देने के साथ भारत प्रतिवर्ष 1.5 मिलियन से अधिक इंजीनियरिंग स्नातक तैयार कर रहा है। 
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में व्यावसायिक शिक्षा और उद्यमिता पर बल दिया गया है, जो इस ‘टैलेंट पाइपलाइन’ को और संवृद्ध कर रहा है। 
  • परिपक्व होता वित्तपोषण पारितंत्र: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत के स्टार्ट-अप वित्तपोषण पारितंत्र ने प्रत्यास्थता का प्रदर्शन किया है। 
    • जबकि वर्ष 2023 में वित्तपोषण में गिरावट (‘funding winter’) देखी गई, वर्ष 2024 में इसमें पुनः उछाल आया। भारतीय टेक स्टार्ट-अप्स ने वर्ष 2024 की पहली छमाही (H1) में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए, जो वर्ष 2023 की दूसरी छमाही (H2) से 4% अधिक है। इस प्रकार भारत स्टार्ट-अप क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे अधिक वित्तपोषित देश बना हुआ है। 
    • घरेलू उद्यम पूंजी फर्मों के उदय और वैश्विक निवेशकों के प्रवेश से वित्तपोषण के स्रोतों में विविधता आई है। 
  • क्षेत्र-विशिष्ट अवसर: ‘क्लीनटेक’, ‘स्पेसटेक’ और ‘डीपटेक’ जैसे उभरते क्षेत्र नवाचार की अगली लहर को आगे बढ़ा रहे हैं। 
    • अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी हितधारकों के लिये खोलने के सरकार के निर्णय से उत्साहित भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में वर्ष 2023 में अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के लिये 124.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ। 
    • नवंबर 2022 में स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) द्वारा भारत के पहले निजी तौर पर विकसित रॉकेट विक्रम-S के सफल प्रक्षेपण ने इस क्षेत्र में एक मील के पत्थर को चिह्नित किया। 
  • बढ़ता घरेलू बाज़ार: विश्व आर्थिक मंच (IMF) के अनुसार स्थिर सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर के साथ भारत में वर्ष 2030 तक 140 मिलियन नए मध्यमवर्गीय परिवार होंगे, जो स्टार्ट-अप के लिये एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करेगा। 
    • बढ़ती प्रयोज्य आय और बदलते उपभोक्ता व्यवहार सभी क्षेत्रों में मांग को बढ़ा रहे हैं। 
    • ग्रांट थॉर्नटन (Grant Thornton) के अनुसार, भारत में ई-कॉमर्स का मूल्य वर्ष 2025 तक 188 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। 
  • कॉर्पोरेट और स्टार्ट-अप का तालमेल: स्थापित कॉर्पोरेट्स और स्टार्ट-अप्स के बीच बढ़ते सहयोग से दोनों पक्षों के लिये लाभ की स्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं। 
    • कई बड़े भारतीय समूहों ने ‘स्टार्ट-अप एक्सेलरेटर’ या ‘वेंचर फंड’ स्थापित किये हैं। 
    • उदाहरण के लिये, रिलायंस इंडस्ट्रीज की जियोजेननेक्स्ट (JioGenNext) ने 170 से अधिक स्टार्ट-अप्स को समर्थन दिया है। 
    • वर्ष 2021 में टाटा डिजिटल द्वारा ऑनलाइन फार्मेसी ‘1mg’ का अधिग्रहण इस तरह के सहयोग की क्षमता को परिलक्षित करता है। 

स्टार्ट-अप्स के विकास की राह की प्रमुख बाधाएँ 

  • नियामक बाधाएँ: जटिल और कभी-कभी अस्पष्ट नियामक वातावरण स्टार्ट-अप्स के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। 
    • उदाहरण के लिये, मोटर वाहन अधिनियम के तहत ओला और उबर जैसी ऐप-आधारित कैब सेवाओं के वर्गीकरण पर हाल की बहस ने परिचालन संबंधी अनिश्चितताएँ उत्पन्न की हैं। 
    • हाल ही में पारित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2024 यद्यपि आवश्यक है, लेकिन इससे स्टार्ट-अप्स पर अनुपालन का बोझ बढ़ गया है। 
  • प्रतिभा प्रतिधारण की बाधा: यद्यपि भारत बड़ी संख्या में स्नातक तैयार करता है, लेकिन शीर्ष प्रतिभा का प्रतिधारण (Talent Retention) एक चुनौती बनी हुई है। 
    • प्रतिभाओं को बनाए रखने में स्टार्ट-अप क्षेत्र को स्थापित बहुराष्ट्रीय कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा और विदेशी अवसरों के प्रलोभन का सामना करना पड़ रहा है। 
    • रैंडस्टैड (Randstad) द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि 60% भारतीय तकनीकी पेशेवर बेहतर करियर की संभावनाओं के लिये विदेश जाने को तैयार हैं। 
    • वर्ष 2021 में अमित नैयर द्वारा पेटीएम (Paytm) छोड़ने जैसे हाई-प्रोफाइल मामले प्रतिभा प्रतिधारण के मुद्दे को उजागर करते हैं। 
  • बाज़ार संतृप्ति और अति-प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ क्षेत्रों में तेज़ी से भीड़ बढ़ती जा रही है, जिससे तीव्र प्रतिस्पर्द्धा और कम लाभ मार्जिन की स्थिति बन रही है। 
    • ‘एडटेक’ क्षेत्र को महामारी के बाद मंदी का सामना करना पड़ा, जिसके कारण BYJU's और Unacademy जैसी कंपनियों को कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी। 
      • यह अति-प्रतिस्पर्द्धा प्रायः असंवहनीय नकदी हानि और बाज़ार समेकन की ओर ले जाती है। 
  • अवसंरचना में अंतराल और असमान वित्तपोषण: यद्यपि भारत ने डिजिटल अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी पर्याप्त अंतराल बना हुआ है। 
    • यहाँ तक कि शहरी क्षेत्रों में भी इंटरनेट की पहुँच 71% ही है; इस प्रकार, आबादी का एक बड़ा हिस्सा इससे वंचित है। 
    • शहरी-ग्रामीण डिजिटल विभाजन बहुत अधिक है, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट घनत्व शहरी क्षेत्रों के 69% की तुलना में महज 37% है। 
    • यह असमानता कई डिजिटल स्टार्ट-अप के लिये उपलब्ध बाज़ार को सीमित करती है। उदाहरण के लिये, एग्रीटेक स्टार्ट-अप देहात (DeHaat) अपनी सफलता के बावजूद ग्रामीण किसानों के बीच सीमित इंटरनेट पहुँच के कारण विस्तार में चुनौतियों का सामना कर रहा है। 
    • इसके अलावा, वित्तपोषण में वृद्धि के बावजूद यह व्यापक रूप से असमान बना हुआ है। उदाहरण के लिये, भारत में महिलाओं द्वारा संचालित 6000 से अधिक स्टार्ट-अप वित्तपोषित नहीं हैं। 
  • ‘स्केलिंग’ की चुनौतियाँ: कई भारतीय स्टार्ट-अप अपनी शुरुआती सफलता से आगे बढ़ने में संघर्ष कर रहे हैं। परिचालन अक्षमताओं से लेकर नए बाज़ारों में विस्तार करने में कठिनाइयों तक कई समस्याएँ मौजूद हैं। 
    • आँकड़े दिखाते हैं कि स्टार्ट-अप क्षेत्र की प्रबल वृद्धि के बावजूद लगभग 90% भारतीय स्टार्ट-अप पहले पाँच वर्षों के भीतर विफल हो जाते हैं, जो मुख्य रूप से ‘स्केलिंग’ या परिचालन पैमाने को बढ़ाने से जुड़ी समस्याओं के कारण होता है। 
  • डीप टेक नवाचार का अभाव: यद्यपि भारत नवोन्मेषी व्यवसाय मॉडल के सृजन में उत्कृष्ट क्षमता रखता है, डीप टेक नवाचारों में वह पीछे है। 
    • भारत में अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर व्यय वर्ष 2023 में सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7% था, जबकि अमेरिका में यह 3.5% था। 
    • यह अंतराल सेमीकंडक्टर डिज़ाइन जैसे क्षेत्रों में स्पष्ट है, जहाँ वर्ष 2021 में भारत सरकार द्वारा 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रोत्साहन योजना की घोषणा के बावजूद इस क्षेत्र में कुछ ही स्टार्ट-अप सक्रिय हैं। 
    • उद्योग-अकादमिक सहयोग की कमी इस मुद्दे को और भी गंभीर बना देती है। भारत में लगभग 40,000 उच्च शिक्षा संस्थानों में से 1% से भी कम उच्च गुणवत्तापूर्ण शोध में सक्रिय रूप से भागीदारी करते हैं। 
  • निकास संबंधी चुनौतियाँ: भारतीय स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी निवेशकों के लिये व्यवहार्य निकास विकल्प प्रदान करने में संघर्ष कर रहा है। 
    • वर्ष 2023 में 46 IPOs की पेशकश की गई, जिनसे कुल 41095.36 करोड़ रुपए जुटाए गए। यह वर्ष 2022 में 40 IPOs के माध्यम से जुटाए गए 59301.7 करोड़ रुपए से 30% कम है। 
    • कुछ सूचीबद्ध स्टार्ट-अप्स के फीके प्रदर्शन ने निवेशकों और संस्थापकों दोनों को सतर्क कर दिया है। 

भारत में स्टार्ट-अप क्षेत्र को संवृद्ध करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं? 

  • ‘रेगुलेटरी सैंडबॉक्स’ को सुव्यवस्थित करना: RBI के फिनटेक सैंडबॉक्स की सफलता से प्रेरणा लेते हुए सभी क्षेत्रों में एक व्यापक विनियामक सैंडबॉक्स लागू किया जाए। 
    • इससे स्टार्ट-अप्स को पूर्ण विनियामक बोझ के बिना नियंत्रित वातावरण में नवोन्मेषी उत्पादों का परीक्षण करने की अनुमति मिलेगी। 
    • इस मॉडल को हेल्थटेक, एडटेक और क्लीनटेक जैसे क्षेत्रों तक विस्तारित किया जाए। 
  • लक्षित कौशल विकास कार्यक्रम: उद्योग जगत के नेतृत्वकर्ताओं और शिक्षाविदों के सहयोग से क्षेत्र-विशिष्ट कौशल विकास पहल शुरू की जाए। 
    • AI, ब्लॉकचेन और IoT जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सरकार के ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम का लाभ उठाया जा सकता है और उसका विस्तार किया जा सकता है। 
  • विकेंद्रीकृत स्टार्ट-अप हब: लक्षित अवसंरचना और प्रोत्साहनों के माध्यम से टियर-2 एवं टियर-3 शहरों को स्टार्ट-अप हब के रूप में विकसित किया जाए। 
    • इसे मोहाली के सफल स्टार्ट-अप पारितंत्र पर मॉडल किया जा सकता है, जिसमें 2021 और 2023 के बीच स्टार्ट-अप पंजीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। 
    • एक ‘हब-एंड-स्पोक मॉडल’ (hub-and-spoke model) क्रियान्वित किया जाए, जहाँ प्रत्येक प्रमुख शहर (हब) आसपास के छोटे शहरों (स्पोक) को सहयोग प्रदान करें। 
  • उन्नत कर प्रोत्साहन: सभी मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स के लिये कर लाभ को वर्तमान तीन वर्ष की सीमा से आगे बढ़ाकर पाँच वर्ष किया जाए। 
    • डीप टेक स्टार्ट-अप्स और महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को संबोधित करने वाले स्टार्ट-अप्स के लिये अतिरिक्त कर छूट लागू की जाए। 
    • उदाहरण के लिये, इज़राइल द्वारा प्रौद्योगिकी कंपनियों को प्रदत्त कर लाभों (जिनमें 12% की निम्न कॉर्पोरेट कर दर भी शामिल है) ने उनके स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया है। 
      • भारत में भी इसी प्रकार का मॉडल लागू करने की आवश्यकता है। 
  • सुदृढ़ IP संरक्षण ढाँचा: पेटेंट फाइलिंग एवं अनुमोदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाए, जहाँ नियोजित औसत समय को कम किया जाए। 
    • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में स्टार्ट-अप के लिये फास्ट-ट्रैक परीक्षण शुरू किया जाए। प्रत्येक वर्ष स्टार्ट-अप की बड़ी संख्या को लक्षित करते हुए IP जागरूकता कार्यक्रम लागू किया जाए। 
    • जापान की त्वरित परीक्षण प्रणाली, जिसने पेटेंट परीक्षण के समय को औसतन 14 माह तक कम कर दिया है, एक आदर्श के रूप में कार्य कर सकती है। 
  • सरकारी खरीद को बढ़ावा: MSMEs से मौजूदा 25% सरकारी खरीद की आवश्यकता के समान स्टार्ट-अप्स से भी सरकारी खरीद का एक निश्चित प्रतिशत अनिवार्य किया जाए। 
    • अमेरिका की संघीय सरकार द्वारा 23% प्रमुख सरकारी अनुबंध छोटे व्यवसायों को प्रदान करने का लक्ष्य भारत के लिये भी एक बेंचमार्क हो सकता है। 
    • इससे भारतीय स्टार्ट-अप्स के लिये संभावित रूप से अरबों डॉलर का बाज़ार खुल सकता है। 
  • क्षेत्र-विशिष्ट इन्क्यूबेशन केंद्र: उद्योग जगत के अग्रणी लोगों के सहयोग से क्षेत्र-विशिष्ट इन्क्यूबेशन केंद्र स्थापित किये जाएँ। 
    • स्पेसटेक, बायोटेक और क्लीनटेक जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। उदाहरण के लिये, हैदराबाद में ‘टी-हब’ (T-Hub) की सफलता का क्षेत्र-विशिष्ट फोकस के साथ अनुसरण किया जा सकता है। 
  • स्टार्टअप-अकादमिक सहयोग मंच: स्टार्ट-अप और अकादमिक/शैक्षणिक संस्थानों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिये एक राष्ट्रीय मंच का निर्माण किया जाए। 
    • इसे ब्रिटेन के ‘ज्ञान हस्तांतरण भागीदारी’ (Knowledge Transfer Partnerships) जैसे सफल कार्यक्रमों के आधार पर तैयार किया जा सकता है। 
    • वर्ष 2025 तक प्रतिवर्ष 1,000 ऐसे सहयोग को सुगम बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया जाए। 
  • उन्नत वित्तपोषण पहुँच: स्टार्ट-अप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS) का विस्तार किया जाए और क्षेत्र-विशिष्ट फंड का सृजन किया जाए। 
    • यूके की ‘एंटरप्राइज़ फाइनेंस गारंटी’ के समान भारत में भी स्टार्ट-अप ऋणों के लिये क्रेडिट गारंटी योजना शुरू की जाए। 
  • वर्ष 2025 तक सभी गाँवों में हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिये भारतनेट (BharatNet) जैसी पहलों के कार्यान्वयन में गति लाई जाए। अप्रयुक्त बाज़ारों तक स्टार्ट-अप्स की पहुँच के लिये यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 
    • डिजिटल कारोबारी माहौल को बढ़ावा देने में एस्टोनिया के ‘ई-रेजीडेंसी कार्यक्रम’ की सफलता भारत के लिये भी एक मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है। 

निष्कर्ष 

भारत के स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र ने अपार संभावनाएँ दिखाई हैं और आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है। हालाँकि, इस गति को बनाए रखने और इसे तेज़ करने के लिये विनियामक बाधाओं को दूर करना, शिक्षा एवं उद्योग के बीच गहन सहयोग को बढ़ावा देना और वित्तपोषण एवं अवसंरचना तक समान पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है। भारत शिक्षा, उद्यमिता एवं रोज़गार को एकीकृत कर अपनी उद्यमशीलता क्षमता को साकार कर सकता है और वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर आगे बढ़ सकता है। 

अभ्यास प्रश्न: भारत में तेज़ी से बढ़ते स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के परिप्रेक्ष्य में बताइये यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर प्रस्तुत करता है? सरकार और नीति निर्माता इस पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ किस प्रकार उठा सकते हैं ताकि सतत् एवं समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. वेंचर कैपिटल से तात्पर्य है: (2014)

(A) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली एक अल्पकालिक पूंजी
(B) नए उद्यमियों को प्रदान की गई दीर्घकालिक स्टार्टअप पूंजी
(C) नुकसान के समय उद्योगों को प्रदान की गई धनराशि
(D) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीनीकरण के लिये प्रदान की गई धनराशि

उत्तर: (B)

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