लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के सकल घरेलू उत्पाद डेटा से संबंधित चिंताएँ

  • 26 Sep 2023
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

GDP (सकल घरेलू उत्पाद), सकल स्थिर पूंजी निर्माण, क्रय प्रबंधक सूचकांक, बैंक ऋण वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP)।

मेन्स के लिये:

भारत के GDP डेटा से संबंधित चिंताएँ, भारत में GDP के लिये गणना के तरीके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने भारतीय GDP (सकल घरेलू उत्पाद) डेटा की विश्वसनीयता के संबंध में चिंताओं को संबोधित किया है, विशेष रूप से वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में 7.8% की वृद्धि के आलोक में।

  • कई विशेषज्ञों ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद के आँकड़ों में विसंगति की ओर इशारा किया है, जो बिलबोर्ड पर आर्थिक विकास की सकारात्मक छवि को प्रस्तुत करते हैं, जबकि बढ़ती असमानताएँ, रोज़गार की कमी और विनिर्माण रोज़गार में गिरावट जैसे अंतर्निहित मुद्दे लगातार बने रहते हैं।

GDP आँकड़ों के संबंध में चिंताएँ: 

  • GDP गणना में विसंगतियाँ:
    • सकल घरेलू उत्पाद व्यय घटकों के विश्लेषण से एक चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है जहाँ  सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में अधिकांश तत्त्वों में कमी आई है।
      • इसमें निजी खपत, सरकारी खर्च, कीमती वस्तु और निर्यात शामिल हैं।
    • आयात में थोड़ी वृद्धि हुई है, जबकि सकल स्थिर पूंजी निर्माण (परिसंपत्तियों में निवेश) और स्टॉक में परिवर्तन (इन्वेंट्री परिवर्तन) स्थिर बने हुए हैं।
    • इसलिये, GDP  गणना में एक अस्पष्ट अंतर दिखाई देता है, जो रिपोर्ट किये गए आर्थिक आँकड़ों की सटीकता पर सवाल उठाता है।
  • दोहरी GDP गणना के तरीके:
    • भारत की GDP की गणना दो अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके की जाती है: आर्थिक गतिविधि (कारक लागत पर) और व्यय (बाज़ार कीमतों पर)।
      • कारक लागत पद्धति आठ विभिन्न उद्योगों के प्रदर्शन का आकलन करती है। इस लागत में निम्नलिखित आठ उद्योग क्षेत्रों पर विचार किया जाता है:
        • कृषि, वानिकी, और मत्स्य पालन,
        • खनन एवं उत्खनन,
        • उत्पादन,
        • बिजली, गैस, जल आपूर्ति, और अन्य उपयोगिता सेवाएँ,
        • निर्माण,
        • व्यापार, होटल, परिवहन, संचार और प्रसारण,
        • वित्तीय, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाएँ,
        • लोक प्रशासन, रक्षा, और अन्य सेवाएँ
      • व्यय-आधारित पद्धति इंगित करती है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, जैसे व्यापार, निवेश और व्यक्तिगत खपत।
    • इन तरीकों के बीच अंतर से GDP आँकड़ों में भिन्नता हो सकती है।

  • सार्वजनिक धारणा पर प्रभाव:
    • विशेषज्ञ चिंता व्यक्त करते हैं कि GDP आँकड़ों के माध्यम से आर्थिक विकास की अत्यधिक सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने से आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से के सामने आने वाले आर्थिक संघर्ष और चुनौतियाँ छिप सकती हैं।
    • संभवतः इससे जनता की धारणा और नीतिगत निर्णय प्रभावित हो सकते हैं।
  • पुराने डेटा सेट और विलंबित जनगणना:
    • पुराने डेटा सेट का उपयोग GDP की गणना में प्रमुख चिंताओं में से एक है, जो वर्तमान आर्थिक परिदृश्य को सटीक रूप से प्रतिबिंबित नहीं कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, जनगणना के संचालन में देरी आर्थिक आकलन में संभावित अशुद्धियों में योगदान करती है।
    • उपयोग की जाने वाली तकनीकों द्वारा जटिल और गतिशील आर्थिक परिदृश्य को सटीकता से प्रतिबिंबित किये जाने को लेकर चिंताएँ व्याप्त हैं, इससे विकृत GDP अनुमान प्राप्त होते हैं।
  • सरकारी हस्तक्षेप का आरोप:
    • GDP आँकड़ों की गणना और जारी किये जाने की प्रक्रिया में सरकारी हस्तक्षेप संबंधी आरोप देखने को मिले हैं।
    • विशेषज्ञों को चिंता है कि राजनीतिक प्रभाव का आर्थिक डेटा के प्रस्तुतिकरण पर प्रभाव पड़ सकता है, ऐसे में यह इसकी सटीकता तथा विश्वसनीयता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए मुद्दों का सरकार द्वारा समाधान:

  • भारतीय जी.डी.पी. डेटा की विश्वसनीयता:
    • वित्त मंत्रालय ने भारतीय जी.डी.पी. डेटा के विश्वसनीयता संबंधी संदेह से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि इसे वार्षिक रूप से समायोजित नहीं किया जाता है, बल्कि इन डेटा को तीन वर्ष बाद अंतिम रूप दिया जाता है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि अंतर्निहित आर्थिक गतिविधि का आकलन करने के लिये केवल जी.डी.पी. संकेतकों पर निर्भर रहना भ्रामक है।
  • व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता:
    • मंत्रालय ने आलोचकों से आर्थिक गतिविधि के संदर्भ में एक समग्र दृष्टिकोण बनाने के लिये क्रय प्रबंधक सूचकांक, बैंक क्रेडिट वृद्धि और उपभोग पैटर्न जैसे विभिन्न विकास संकेतकों पर विचार करने का आग्रह किया।
  • विकास संबंधी आँकड़ों का निम्न आकलन:
    • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production- IIP) एक उदाहरण है, जहाँ विनिर्माण क्षेत्र में रिपोर्ट की गई वृद्धि कंपनियों द्वारा दर्शाए गये डेटा से अलग हो सकती है। इसका हवाला देते हुए मंत्रालय ने तर्क दिया कि भारत के विकास संबंधी आँकड़े संभावित रूप से आर्थिक वास्तविकताओं को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • सांकेतिक बनाम वास्तविक जी.डी.पी. वृद्धि:
    • वास्तविक जी.डी.पी. वृद्धि की तुलना में सांकेतिक जी.डी.पी. वृद्धि कम होने को लेकर चिंताओं पर विचार करते हुए मंत्रालय ने बताया कि थोक मूल्य सूचकांक (WPI) द्वारा चालित भारत के जी.डी.पी. डिफ्लेटर पर विभिन्न कारकों पर पड़ने वाला प्रभाव आगामी महीनों में सामान्य हो जाएगा।
  • जी.डी.पी. गणना के लिये आय आधारित दृष्टिकोण का उपयोग:
    • मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जी.डी.पी. वृद्धि की गणना के लिये भारत आय आधारित दृष्टिकोण का उपयोग करता है और अनुकूलता को देखते हुए इस दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं करता है। यह सांकेतिक जी.डी.पी. वृद्धि का समर्थन करने वाले तर्कों को खारिज़ करता है।

सकल घरेलू उत्पाद (GDP):

  • परिचय:
    • यह एक विशिष्ट अवधि, आमतौर पर एक वित्तीय वर्ष के लिये देश की सीमा के भीतर उत्पन्न सभी वस्तुओं और सेवाओं का सकल मूल्यांकन है।
      • किसी देश के विकास और आर्थिक प्रगति की पहचान उसकी जी.डी.पी. से की जा सकती है
    • एक तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की प्रतिशत वृद्धि को अर्थव्यवस्था की मानक वृद्धि माना जाता है।
      • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में सांकेतिक जी.डी.पी. के आधार पर भारत विश्व के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। 
  • GDP के प्रकार:
    • वास्तविक GDP:
      • इसे आधार वर्ष के आधार पर मापा जाता है। इसे मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया जाता है और इसलिए इसे इन्फ्लेशन कोर्रेक्टेड सकल घरेलू उत्पाद अथवा वर्तमान मूल्य के रूप में भी जाना जाता है।
        • उदाहरण के लिये; भारत की वास्तविक जी.डी.पी. की गणना के लिये आधार वर्ष 2011- 12 है। पहले यह वर्ष 2004-05 हुआ करता था।
      • ऐसा माना जाता है कि यह जी.डी.पी. का अधिक सटीक चित्रण है क्योंकि यह आधार वर्ष के लिये निर्धारित मूल्य के समायोजन के बाद प्रत्येक निवासी की वास्तविक आय को प्रदर्शित करता है।
    • मौद्रिक GDP:
      • मौद्रिक GDP का आकलन प्रचलित बाज़ार कीमतों का उपयोग करके किया जाता है और इसमें मुद्रास्फीति या अपस्फीति पर विचार नहीं किया जाता है।
      • सरकार के दृष्टिकोण से मौद्रिक GDP आर्थिक विकास का अधिक सटीक प्रतिबिंब है क्योंकि यह नागरिकों को सीधे प्रभावित करता है।
  • GDP की गणना:  
    • व्यय विधि: यह दृष्टिकोण किसी अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्तियों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के लिये किये गए कुल व्यय पर केंद्रित है।
      • GDP (व्यय पद्धति के अनुसार) =  C + I + G + (X-IM) 
      • जहाँ, C: उपभोग व्यय, I: निवेश व्यय, G: सरकारी व्यय और (X-IM): निर्यात और आयात का अंतर, अर्थात् शुद्ध निर्यात है।
    • निर्गत विधि: इस दृष्टिकोण का उपयोग किसी देश में उत्पादित सभी सेवाओं और उत्पादों के बाज़ार मूल्य को निर्धारित करने के लिये किया जाता है।
      • यह विधि मूल्य स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण GDP माप में किसी भी अंतर को समाप्त करने में सहायता करती है।
    • आय पद्धति: यह दृष्टिकोण किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादन के विभिन्न कारकों, जैसे पूंजी और श्रम, द्वारा अर्जित सकल आय पर विचार करता है।
      • यह कंपनियों द्वारा अपने कार्यबल पर किये गए व्यय का योग है।
      • इस दृष्टिकोण के आधार पर गणना की गई GDP को GDI या सकल घरेलू आय के रूप में जाना जाता है।
      •  GDP (आय विधि के माध्यम से) = मज़दूरी + किराया + ब्याज + लाभ

GDP की सीमाएँ: 

  • GDP में गैर-बाज़ार लेनदेन शामिल नहीं हैं जो उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जैसे घरेलू, स्वैच्छिक या अन्य भागीदारी। साथ ही यह निजी उपभोग के लिये उत्पादित वस्तुओं पर भी आधारित नहीं है।
  • भारत उन देशों में से एक है जहाँ असमान आय वितरण इसकी अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख विसंगति है। GDP इसे प्रतिबिंबित नहीं करता है।
  • किसी देश के जीवन स्तर का निर्धारण उसकी GDP से नहीं किया जा सकता। भारत इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इसकी GDP तो उच्च है लेकिन जीवन स्तर अपेक्षाकृत निम्न है।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि GDP यह नहीं दर्शाता है कि उद्योग पर्यावरण और सामाजिक कल्याण को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।

निष्कर्ष:

  • वित्त मंत्रालय ने आर्थिक गतिविधियों का व्यापक दृष्टिकोण बनाने के लिये विभिन्न आर्थिक संकेतकों और उच्च आवृत्ति डेटा पर विचार करने के महत्त्व पर विशेष बल दिया।
  • इसने आलोचकों से डेटा का चयनात्मक उपयोग करने से बचने और भारतीय अर्थव्यवस्था की गहन समझ बनाए रखने का आग्रह किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. पिछले दशक में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि-दर लगातार बढ़ती रही है।
  2. पिछले दशक में बाज़ार कीमतों पर (रुपयों में) सकल घरेलू उत्पाद लगातार बढ़ता रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2