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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO

  • 29 Mar 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, बेरोज़गारी दर, मानव विकास संस्थान (IHD), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR), बेरोज़गारी दर (UR) 

मेन्स के लिये:

भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024: ILO, भारत में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव विकास संस्थान (IHD) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 'भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जो इस बात पर प्रकाश डालती है कि भारत के युवा बढ़ती बेरोज़गारी दर से जूझ रहे हैं।

  • मानव विकास संस्थान (IHD) की स्थापना वर्ष 1998 में इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (ISLE) के तत्त्वावधान में की गई थी, यह एक गैर-लाभकारी स्वायत्त संस्थान है जिसका उद्देश्य एक ऐसे समाज के निर्माण में योगदान देना है जो समावेशी विकास को बढ़ावा देता है और एक समावेशी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को महत्त्व देता है जो गरीबी एवं अभावों से मुक्त हो।

नोट: 

भारत रोज़गार रिपोर्ट, 2024 श्रम और रोज़गार के मुद्दों पर IHD द्वारा नियमित प्रकाशनों की शृंखला में तीसरा है। युवा रोज़गार, शिक्षा और कौशल पर यह रिपोर्ट भारत में उभरते आर्थिक, श्रम बाज़ार, शैक्षिक एवं कौशल परिदृश्य व पिछले दो दशकों में हुए बदलावों के संदर्भ में युवा रोज़गार की चुनौती की जाँच करती है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • रोज़गार की खराब स्थितियाँ: 
    • समग्र श्रम बल भागीदारी और रोज़गार दरों में सुधार के बावजूद, भारत में रोज़गार की स्थिति खराब बनी हुई है, जिसमें स्थिर या घटती मज़दूरी, महिलाओं के बीच स्व-रोज़गार में वृद्धि एवं युवाओं के बीच अवैतनिक पारिवारिक काम का उच्च अनुपात जैसे मुद्दे शामिल हैं।
    • भारत के बेरोज़गार कार्यबल में लगभग 83% युवा हैं और कुल बेरोज़गारों में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई है।

  • युवा रोज़गार चुनौतियाँ:
    • वर्ष 2000 और वर्ष 2019 के बीच युवा रोज़गार तथा अल्परोज़गार में वृद्धि हुई, शिक्षित युवाओं को बेरोज़गारी के उच्च स्तर का अनुभव हुआ।
    • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) और बेरोज़गारी दर (UR) में वर्ष 2000 तथा वर्ष 2018 के बीच दीर्घकालिक गिरावट देखी गई लेकिन वर्ष 2019 के बाद सुधार देखा गया।
    • यह सुधार दो शीर्ष कोविड-19 तिमाहियों को छोड़कर, कोविड-19 से पहले और बाद में आर्थिक संकट की अवधि के साथ मेल खाता है।

  • विरोधाभासी सुधार:
    • पिछले दो दशकों में, भारत के नौकरी बाज़ार में कुछ श्रम संकेतकों में कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन समग्र रोज़गार की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
    • वर्ष 2018 से पहले कृषि रोज़गार की तुलना में गैर-कृषि रोज़गार तेज़ी से बढ़ने के बावजूद, गैर-कृषि क्षेत्र कृषि से श्रमिकों को अवशोषित करने के लिये पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए हैं।
    • अधिकांश श्रमिक, लगभग 90%, अनौपचारिक कार्य में लगे हुए हैं और नियमित रोज़गार का अनुपात, जो वर्ष 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा था, वर्ष 2018 के बाद घटने लगा।
    • भारत के बड़े युवा कार्यबल को, जिसे अक्सर जनसांख्यिकीय लाभ के रूप में देखा जाता है, आवश्यक कौशल की कमी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
      • युवाओं के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से में बुनियादी डिजिटल साक्षरता कौशल का अभाव है, जिसमें 75% संलग्नक के साथ ईमेल भेजने में असमर्थ हैं, 60% फ़ाइलों को कॉपी और पेस्ट करने में असमर्थ हैं तथा 90% गणितीय सूत्र डालने जैसे बुनियादी स्प्रेडशीट कार्य करने में असमर्थ हैं।
  • मज़दूरी और कमाई में कमी:
    • जबकि वर्ष 2012-22 के दौरान आकस्मिक मज़दूरों की मज़दूरी में मामूली वृद्धि का रुझान बना रहा, नियमित श्रमिकों की वास्तविक मज़दूरी या तो स्थिर रही या गिरावट आई। वर्ष 2019 के बाद स्व-रोज़गार की वास्तविक कमाई में भी गिरावट आई।
    • कुल मिलाकर मज़दूरी कम बनी हुई है। अखिल भारतीय स्तर पर अकुशल आकस्मिक कृषि श्रमिकों में से 62% और निर्माण क्षेत्र में 70% ऐसे श्रमिकों को वर्ष 2022 में निर्धारित दैनिक न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिली।
  • औद्योगिक रोज़गार की संरचना में परिवर्तन:
    • डिजिटल रूप से मध्यस्थता वाले गिग और प्लेटफॉर्म कार्य का परिचय तेज़ी से हुआ है, जो प्लेटफॉर्म द्वारा एल्गोरिथम द्वारा नियंत्रित होते हैं तथा श्रम प्रक्रिया के नियंत्रण में नई सुविधाएँ लेकर आए हैं।
    • तेज़ी से, प्लेटफ़ॉर्म और गिग कार्य का विस्तार हो रहा है, लेकिन यह काफी हद तक, अनौपचारिक कार्य का विस्तार है, जिसमें शायद ही कोई सामाजिक सुरक्षा प्रावधान है।
  • भविष्य में प्रवासन बढ़ने की संभावना: 
    • भविष्य में शहरीकरण और प्रवासन की दरों में काफी वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2030 में भारत में प्रवासन दर लगभग 40% होने की उम्मीद है और शहरी आबादी लगभग 607 मिलियन होगी।
    • शहरी विकास में इस वृद्धि का बड़ा हिस्सा प्रवासन से आएगा। प्रवासन का पैटर्न श्रम बाज़ारों में क्षेत्रीय असंतुलन को भी दर्शाता है।
    • सामान्यतः प्रवास की दिशा पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और मध्य क्षेत्रों से दक्षिणी, पश्चिमी तथा उत्तरी क्षेत्रों की ओर होती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • विभिन्न राज्यों में रोज़गार परिणामों में महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ मौजूद हैं, कुछ राज्य रोज़गार संकेतकों में लगातार निचले स्थान पर हैं।
    • बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पिछले कुछ वर्षों में खराब रोज़गार परिणामों से जूझ रहे हैं, जो क्षेत्रीय नीतियों के प्रभाव को दर्शाता है।
  • बढ़ता लिंग अंतर:
    • महिला श्रम बल भागीदारी की कम दर के साथ, भारत श्रम बाज़ार में पर्याप्त लिंग अंतर की चुनौती का सामना कर रहा है।
    • युवा महिलाओं, विशेषकर उच्च शिक्षित महिलाओं के बीच बेरोज़गारी की चुनौती बहुत बड़ी है।
    • सकारात्मक कार्रवाई और लक्षित नीतियों के बावजूद सामाजिक असमानताएँ भी बनी हुई हैं, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को बेहतर नौकरी के अवसरों तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
      • यद्यपि सभी समूहों में शैक्षिक उपलब्धि में सुधार हुआ है, सामाजिक पदानुक्रम कायम है, जिससे रोज़गार असमानता बढ़ गई है।
  • नीति सिफारिशें:
    • उत्पादन बढ़ाने और रोज़गार पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकास को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत सिफारिशें प्रस्तावित हैं:
    • व्यापक आर्थिक नीतियों में रोज़गार सृजन के एजेंडे को एकीकृत करना, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादक गैर-कृषि रोज़गार पर ज़ोर देना।
    • अकुशल श्रम को अवशोषित करने और चयनित सेवाओं के साथ पूरक करने के लिये श्रम-गहन विनिर्माण को प्राथमिकता देना।
    • विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों को समर्थन देने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • कृषि उत्पादकता बढ़ाना, गैर-कृषि रोज़गार के अवसर पैदा करना और उद्यमिता को प्रोत्साहित करना।
    • रोज़गार की पर्याप्त संभावनाओं को अनलॉक करने के लिये रणनीतिक निवेश, क्षमता निर्माण पहल और नीति ढाँचे का लाभ उठाते हुए हरित तथा नीली अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करना।
  • कार्य की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु रणनीतियों की अनुशंसा: 
    • स्वास्थ्य देखभाल उद्योग और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में निवेश करने तथा उन्हें विनियमित करने की आवश्यकता है जो युवा लोगों के लिये रोज़गार के महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में भूमिका निभा सकते हैं।
    • शहरी क्षेत्रों में सभ्य रोज़गार के अवसरों की तलाश करने वाले युवाओं द्वारा विशेष रूप से भारत में शहरीकरण और प्रवासन दरों में अनुमानित वृद्धि को देखते हुए एक समावेशी शहरीकरण तथा प्रवासन नीति को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
    • श्रम नीति और विनियमन के लिये एक सुदृढ़ सहायक भूमिका सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें रोज़गार गुणवत्ता के न्यूनतम मानक की गारंटी और सभी क्षेत्रों में श्रमिकों के मूलभूत अधिकारों का संरक्षण शामिल है।
  • श्रम बाज़ार की असमानताओं को दूर करने के लिये प्रमुख दृष्टिकोण:
    • गुणवत्तापूर्ण रोज़गार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये नीतियाँ लागू करने की आवश्यकता है।
    • आर्थिक रूप से वंचित समूहों के उत्थान और रोज़गार क्षमता को बढ़ावा देने के लिये शिक्षा में उच्च गुणवत्ता वाले कौशल प्रशिक्षण को एकीकृत करना आवश्यक है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी तक पहुँच में सुधार कर और डिजिटल अंतराल को पाटना। महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव का समाधान कर एक निष्पक्ष श्रम बाज़ार स्थापित करना

रोज़गार से संबंधित सरकार की क्या पहल हैं?

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियों को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्यतापूर्ण कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 1919 में वर्सेल्स/वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई और वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
  • मुख्यालय: इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।

 

और पढ़ें…NFHS-5 राष्ट्रीय रिपोर्ट, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ है कि: (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता नीची है

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

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