कृषि
धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहन
- 20 Oct 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली को प्रोत्साहन, 16वीं कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC), राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (NAAS) मेन्स के लिये:भारत में धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता, भारत में खाद्य प्रसंस्करण और संबंधित उद्योग- दायरा तथा महत्त्व, अवस्थिति, अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम आवश्यकताएँ, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि-खाद्य प्रणाली में धारणीयता को प्रोत्साहित करने के लिये केरल के कोच्चि में 16वीं कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (Agricultural Science Congress- ASC) का उद्घाटन किया है।
- राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (National Academy of Agricultural Sciences- NAAS) द्वारा आयोजित कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC) ऐसी सिफारिशें प्रस्तुत करेगा जो कृषि क्षेत्र को अधिक संधारणीयता के मार्ग पर आगे बढ़ने में सुविधा प्रदान करेंगी।
नोट:
- कृषि विज्ञान कॉन्ग्रेस (ASC): यह कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के विशेषज्ञों, शोधकर्त्ताओं, चिकित्सकों और हितधारकों को एकजुट करने तथा कृषि, धारणीयता व संबंधित विषयों के विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
- राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (NAAS): यह भारत में कृषि विज्ञान और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित एक प्रतिष्ठित संगठन है। इसका प्राथमिक उद्देश्य कृषि वैज्ञानिकों को कृषि तथा संबंधित विज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण मुद्दों एवं प्रगति पर विचार-विमर्श करने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली:
- परिचय:
- धारणीय कृषि-खाद्य प्रणाली पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि उत्पादन, वितरण, उपभोग तथा अपशिष्ट प्रबंधन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण है।
- इन प्रणालियों का लक्ष्य दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए वर्तमान खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना, पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करना, आजीविका में सुधार करना और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2020 में वैश्विक कृषि खाद्य प्रणालियों का उत्सर्जन 16 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर था, जो वर्ष 2000 के बाद से 9% की वृद्धि को दर्शाता है।
- कृषि खाद्य प्रणालियों में स्थिरता की आवश्यकता:
- भोजन की बढ़ती मांग:
- भोजन की बढ़ती वैश्विक मांग के कारण बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त और निरंतर खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करने हेतु धारणीय कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
- पर्यावरणीय क्षरण:
- अस्थिर कृषि पद्धतियों के कारण व्यापक पर्यावरणीय क्षरण पर्यावरण के और अधिक नुकसान को कम करने के लिये धारणीय तरीकों में परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- जलवायु परिवर्तन चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन कृषि के लिये एक बड़ा खतरा है। इन मुद्दों को संबोधित करने और जलवायु परिवर्तन में इस क्षेत्र की भूमिका को कम करने के लिये धारणीय प्रथाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत में कई धारणीय और जलवायु प्रतिरोधी कृषि पद्धतियाँ हैं जो विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS) से मान्यता प्राप्त हैं, जैसे पोक्कली चावल, केरल के समुद्र स्तर के नीचे कुट्टनाड कृषि प्रणाली आदि।
- जलवायु परिवर्तन कृषि के लिये एक बड़ा खतरा है। इन मुद्दों को संबोधित करने और जलवायु परिवर्तन में इस क्षेत्र की भूमिका को कम करने के लिये धारणीय प्रथाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- भोजन की बढ़ती मांग:
धारणीय कृषि खाद्य प्रणालियों को अपनाने का महत्त्व:
- उन्नत तकनीकी हस्तक्षेप:
- वैज्ञानिक नवाचार और उन्नत तकनीकी हस्तक्षेप धारणीय कृषि पद्धतियों, कुशल संसाधन उपयोग में सहायता और नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- जीनोम एडिटिंग और आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ:
- पारंपरिक प्रजनन विधियों की सीमा को संबोधित करते हुए कृषि में तकनीकी सफलताओं के लिये जीनोम एडिटिंग और अन्य आधुनिक प्रौद्योगिकियों को मुख्य उपकरण के रूप में उजागर किया गया है।
- कार्बन-तटस्थ कृषि पद्धतियाँ:
- जलवायु प्रभावों को कम करने, पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में योगदान के लिये कार्बन-तटस्थ कृषि प्रथाओं में परिवर्तन किया जा सकता है।
धारणीय कृषि खाद्य प्रणाली को अपनाने में समस्याएँ:
- भोजन की बर्बादी और हानि:
- भोजन का एक बहुत बड़ा हिस्सा उत्पादन से लेकर उपभोग तक खाद्य आपूर्ति शृंखला के विभिन्न चरणों में बर्बाद हो जाता है। खाद्य प्रणाली की धारणीयता में सुधार के लिये भोजन की बर्बादी और हानि को समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभाव:
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, निर्वनीकरण, जल प्रदूषण और मृदा क्षरण में कृषि का प्रमुख योगदान है। इन प्रभावों को कम करने के लिये संधारणीय प्रथाओं को लागू करना एक धारणीय खाद्य प्रणाली के लिये आवश्यक है।
- संसाधन की कमी:
- जल, कृषि योग्य भूमि और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की कमी धारणीय खाद्य उत्पादन के लिये एक चुनौती है। संसाधनों का कुशल उपयोग और धारणीय कृषि पद्धतियों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है।
- जैवविविधता ह्रास:
- आधुनिक कृषि पद्धतियों से प्रायः जैवविविधता का नुकसान होता है, पारिस्थितिकी तंत्र क्रियाएँ प्रभावित होती हैं और प्राकृतिक संतुलन बाधित होता है। धारणीय खाद्य प्रणाली के लिये जैवविविधता-अनुकूल कृषि दृष्टिकोण को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- मोनोकल्चर और फसल विविधता:
- मोनोकल्चर अर्थात् एकल कृषि के प्रभुत्व से खाद्य आपूर्ति में कमी आ सकती है। फसल विविधता और धारणीय कृषि प्रणालियों को प्रोत्साहित करने से समुत्थानशीलता और संधारणीयता बढ़ सकती है।
कृषि खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहन हेतु सरकारी पहल:
- भारतीय पहल:
- भारत ने एक समर्पित कृषि अवसंरचना कोष बनाया है जिसका उद्देश्य उद्यमियों को ब्याज सब्सिडी और क्रेडिट गारंटी प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म गेट तथा कृषि विपणन बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना है जो फसल प्राप्ति के उपरांत खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण में हुए नुकसान को कम करने में मदद करेगा।
- बहुमूल्य जल संसाधनों के संरक्षण के लिये सरकार ने सूक्ष्म-सिंचाई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये एक योजना शुरू की है, जिसके लिये एक समर्पित सूक्ष्म-सिंचाई कोष स्थापित किया गया है।
- भारत ने विभिन्न फसलों की 262 एबॉयोटिक स्ट्रेस-टॉलरेंट किस्में विकसित की हैं।
- कुपोषण और अल्प-पोषण जैसे मुद्दों के समाधान के लिये भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सुरक्षा तंत्र कार्यक्रम चला रहा है। इसमें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) शामिल है। इसके माध्यम से वर्ष 2020 में लगभग 80 करोड़ लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई है।
- 2023 को 'अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (International Year of Millets- IYM)' के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता प्रदान की।
निष्कर्ष:
- किसानों सहित व्यापक स्तर पर समाज की भलाई सुनिश्चित करते हुए अनाज की बढ़ती मांग, पर्यावरणीय चुनौतियों तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समाधान करने हेतु कृषि-खाद्य प्रणालियों में संधारणीयता का समावेश करना अनिवार्य है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. गन्ना उत्पादन के लिये एक व्यावहारिक उपागम का, जिसे ‘धारणीय गन्ना उपक्रमण’ के रूप में जाना जाता है, क्या महत्त्व है(2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019) प्रश्न. अनाज वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार द्वारा कौन-कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (2019) |