जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रीनहाउस गैस सांद्रता रिकॉर्ड उच्च स्तर पर: संयुक्त राष्ट्र
- 20 Nov 2023
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, ग्रीनहाउस गैस, पेरिस समझौता, क्योटो प्रोटोकॉल, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन मेन्स के लिये:बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक, बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के प्रमुख प्रभाव, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिये प्रमुख पहल |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में हुई अभूतपूर्व वृद्धि को उजागर करते हुए चेतावनी जारी की, जिसने वर्ष 2022 में नया रिकॉर्ड स्थापित किया।
- संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के 19वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में संबंधित प्रभावों की रूपरेखा प्रदान की गई है, जिसमें बढ़ते तापमान, मौसम की घटनाओं में तीव्रता तथा परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि शामिल है।
बुलेटिन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में अभूतपूर्व वृद्धि: WMO ने अपने 19वें वार्षिक ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन में कहा कि तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर ने विगत रिकॉर्ड को पार कर लिया है, जो वायुमंडल में इनकी उपस्थिति में वृद्धि को दर्शाता है।
- वर्ष 2022 में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता 418 भाग प्रति मिलियन, मीथेन 1,923 भाग प्रति बिलियन तथा नाइट्रस ऑक्साइड 336 भाग प्रति बिलियन तक पहुँच गई, जो पूर्व-औद्योगिक काल के स्तरों से क्रमशः 150%, 264% एवं 124% अधिक है।
- जलवायु पर वार्मिंग प्रभाव के मामले में तीन प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का हिस्सा लगभग 64% है।
- जलवायु परिवर्तन में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता मीथेन है, जो लगभग 16% वार्मिंग का कारण है।
- वार्मिंग प्रभाव में नाइट्रस ऑक्साइड का योगदान लगभग 7% है।
- वर्ष 2022 में कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता 418 भाग प्रति मिलियन, मीथेन 1,923 भाग प्रति बिलियन तथा नाइट्रस ऑक्साइड 336 भाग प्रति बिलियन तक पहुँच गई, जो पूर्व-औद्योगिक काल के स्तरों से क्रमशः 150%, 264% एवं 124% अधिक है।
- पेरिस समझौते के लक्ष्यों के लिये चुनौतियाँ: वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तथा अधिमानतः 1.5C तक सीमित करना था। दुर्भाग्य से वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान पहले ही 1.5C के स्तर को पार कर पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.15C ऊपर पहुँच गया।
- वर्तमान प्रक्षेपपथ एक गंभीर समस्या को इंगित करता है, जिसके अनुसार सदी के अंत तक पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पार करते हुए तापमान में काफी वृद्धि होने का अनुमान है, इसके कारण मौसम की घटनाओं में तीव्रता, बर्फ पिघलने एवं समुद्र के अम्लीकरण जैसे विनाशकारी परिणाम होंगे।
- अनुमानित जलवायु व्यवधान: ऊष्मा को प्रग्रहित करने वाली गैसों में निरंतर वृद्धि तीव्र जलवायु व्यवधानों से ग्रस्त भविष्य की ओर इंगित करती है।
- बुलेटिन इन बढ़ते जोखिमों को कम करने के लिये जीवाश्म ईंधन की खपत को तेज़ी से कम करने की अनिवार्य आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
- जलवायु प्रणाली गंभीर "टिपिंग पॉइंट्स" के करीब पहुँच सकती है, जहाँ कुछ बदलावों से अपरिवर्तनीय जलप्रपात (कैस्केड्स) की स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे- अमेज़न का तेज़ी से खत्म होना, उत्तरी अटलांटिक परिसंचरण में बाधा तथा प्रमुख बर्फ की चादरों का अस्थिर होना।
ग्रीनहाउस गैस क्या हैं?
- ग्रीनहाउस गैस (GHGs) पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली तथा मानव-जनित गैसों के समूह हैं।
- इन गैसों में ऊष्मा को अवशोषित करने और उत्सर्जित करने, वातावरण के भीतर तापीय ऊर्जा को संगठित करने की अनूठी शक्ति होती है।
- वे एक थर्मल ब्लैंकेट (कंबल) के रूप में कार्य करते हैं, जो वायुमंडल में सूर्य के प्रकाश को प्रवेश करने की अनुमति देते हैं और अवशोषित गर्मी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से को वापस अंतरिक्ष में जाने से रोकते हैं।
- यह घटना, जिसे ग्रीनहाउस प्रभाव के रूप में जाना जाता है, पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है और इसे जीवन के लिये रहने योग्य बनाती है।
- हालाँकि मानवीय गतिविधियाँ, जैसे- जीवाश्म ईंधन जलाना, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं ने इन गैसों की सांद्रता में काफी वृद्धि की है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ गया है तथा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न हुई है।
- कुछ प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में शामिल हैं- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और जल वाष्प।
बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक क्या हैं?
- जीवाश्म ईंधन दहन: ऊर्जा के लिये जीवाश्म ईंधन को जलाना, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्त्ता है।
- कोयले पर निर्भर औद्योगिक गतिविधियाँ, परिवहन और विद्युत उत्पादन जिसके कारण वायुमंडल में बहुत अधिक CO2 उत्सर्जन होता है।
- वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन: वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, CO2 को अवशोषित करते हैं। मुख्य रूप से कृषि या शहरीकरण के लिये वनों की कटाई एवं भूमि-उपयोग परिवर्तन की वजह से कार्बन सिंक में कमी आती है, ये कारक संग्रहीत कार्बन को मुक्त करने के साथ ही CO2 को अवशोषित करने की पृथ्वी की क्षमता में कमी लाते हैं।
- वनों की कटाई ने अमेज़न वर्षावन के कुछ हिस्सों, जो पहले कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते थे, को कार्बन के एक महत्त्वपूर्ण उत्सर्जक में बदल दिया है।
- कृषि पद्धतियाँ: कृषि मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। पशुधन खेती से मीथेन उत्पन्न होता है, जबकि नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
- अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन: अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, विशेष रूप से लैंडफिल में अपशिष्ट का निपटान, मीथेन उत्पादन की ओर ले जाता है क्योंकि कार्बनिक अपशिष्ट अवायवीय स्थितियों में विघटित हो जाते हैं।
- प्राकृतिक प्रक्रियाएँ: ज्वालामुखी विस्फोट, वनाग्नि और प्राकृतिक क्षय प्रक्रियाएँ भी GHG जारी करती हैं। हालाँकि ये घटनाएँ ऐतिहासिक रूप से घटित होती हैं, लेकिन मानवीय गतिविधियों ने उनकी आवृत्ति और प्रभाव को बढ़ा दिया है।
- शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि: तेज़ी से शहरी विस्तार और जनसंख्या वृद्धि के कारण ऊर्जा की मांग, वाहनों और बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता बढ़ जाती है, जिससे उच्च GHG उत्सर्जन होता है।
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना और मीथेन रिलीज़: बढ़ते तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से मीथेन मुक्त होती है, जो मृदा के भीतर संगृहीत एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
- यह एक फीडबैक लूप/ प्रतिक्रिया प्रदान करता है, जहाँ अधिक मीथेन जारी होने से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है तथा पर्माफ्रॉस्ट पिघलने का क्रम और भी तेज़ हो जाता है।
बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के प्रमुख प्रभाव क्या हो सकते हैं?
- प्रेरित जलवायु परिवर्तन: बढ़ी हुई ग्रीनहाउस गैसें ग्रीनहाउस प्रभाव को तीव्र करती हैं, जिससे वातावरण में अधिक गर्मी एकत्रित हो जाती है।
- इसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे मौसम में बदलाव, तापमान में वृद्धि और वर्षा के पैटर्न में परिवर्तन देखा जाता है, जो सूखा, लू, बाढ़ एवं अधिक गंभीर तूफान उत्पन्न कर सकती है।
- पिघलती बर्फ और बढ़ता समुद्र स्तर: गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ की चोटियाँ पिघल जाती हैं, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है।
- यह घटना तटीय समुदायों, जैवविविधता और बुनियादी ढाँचे के लिये खतरा उत्पन्न करती है, जिससे तटीय कटाव एवं बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
- खाद्य और जल सुरक्षा: तापमान और वर्षा पैटर्न में परिवर्तन कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है, जिससे फसल बर्बाद हो सकती है और खाद्य सुरक्षा में कमी देखी जा सकती है।
- जल की कमी या अत्यधिक वर्षा पेयजल, कृषि और उद्योग के लिये जल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है।
- महासागरीय अम्लीकरण: महासागरों द्वारा अवशोषित अतिरिक्त CO2 अम्लीकरण का कारण बनती है, जिससे समुद्री जीवन प्रभावित होता है।
- अम्लीय जल कुछ समुद्री जीवों की सीपियाँ और कंकाल बनाने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है, जिसका प्रभाव प्लवक, मूँगा चट्टानों तथा शेलफिश पर पड़ता है, जो समुद्री खाद्य शृंखलाओं का आधार बनाते हैं।
- भू-राजनीतिक तनाव: भूमि, जल एवं संसाधनों पर भू-राजनीतिक तनाव और संघर्ष के परिणामस्वरूप जलवायु-प्रेरित विस्थापन, संसाधनों की कमी तथा रहने योग्य स्थानों को लेकर प्रतिस्पर्द्धा देखी जा सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जो पहले से ही सामाजिक-राजनीतिक अस्थिरता का अनुभव कर रहे हैं।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिये प्रमुख पहल क्या हैं?
- वैश्विक:
- भारत:
आगे की राह
- शमन रणनीतियाँ: ऊर्जा, परिवहन, उद्योग और कृषि जैसे क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित नीतियों तथा प्रौद्योगिकियों को लागू करना।
- इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन, ऊर्जा दक्षता में सुधार, स्थायी भूमि उपयोग को बढ़ावा देना और जीवाश्म ईंधन निर्भरता को कम करना शामिल है।
- अनुकूलन के उपाय: जलवायु परिवर्तन के मौजूदा और अनुमानित प्रभावों से निपटने के लिये अनुकूलन रणनीतियों का विकास तथा कार्यान्वयन करना।
- इसमें विषम मौसम की घटनाओं और बदलते जलवायु पैटर्न का सामना करने के लिये बुनियादी ढाँचे, कृषि, जल प्रबंधन तथा शहरी नियोजन में लचीलापन बढ़ाना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और साझेदारियों के माध्यम से जलवायु कार्रवाई के प्रति वैश्विक सहयोग तथा प्रतिबद्धता को बढ़ावा देना।
- वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करते हुए पेरिस समझौते जैसे समझौतों के तहत देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने और उन्हें मज़बूत करने के लिये प्रोत्साहित करना
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022) प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019) प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |