भारतीय अर्थव्यवस्था
जीवाश्म से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण के जोखिम
- 25 Jan 2023
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ ऊर्जा, हरित संक्रमण, शुद्ध शून्य, जीवाश्म ईंधन। मेन्स के लिये:जीवाश्म से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण की चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल एन्वायरनमेंटल चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत का वित्तीय क्षेत्र अर्थव्यवस्था की बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता तथा स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
अध्ययन के निष्कर्ष:
- संक्रमण के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं:
- भारत का वित्तीय क्षेत्र जीवाश्म ईंधन से संबंधित गतिविधियों के लिये अत्यधिक जोखिम में है और जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण का इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- तेल और गैस निष्कर्षण खनन ऋण का 60% हिस्सा है।
- विनिर्माण क्षेत्र का 20% ऋण पेट्रोलियम रिफाइनिंग और संबंधित उद्योगों के लिये है।
- बिजली उत्पादन कार्बन उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है, जो कुल बकाया ऋण का 5.2% है।
- भारत का वित्तीय क्षेत्र जीवाश्म ईंधन से संबंधित गतिविधियों के लिये अत्यधिक जोखिम में है और जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण का इस क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- विशेषज्ञों की कमी:
- भारत के वित्तीय संस्थानों में ऐसे विशेषज्ञों की कमी है जिनके पास जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा में संक्रमण हेतु संस्थानों को उचित सलाह देने की विशेषज्ञता होती है।
- सर्वेक्षण किये गए दस प्रमुख वित्तीय संस्थानों में से केवल चार पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ESG) जोखिमों पर जानकारी एकत्र करते हैं और ये फर्म भी व्यवस्थित रूप से उस डेटा को वित्तीय नियोजन में शामिल नहीं करते हैं।
- घाटे और तनाव को सहने की कम क्षमता:
- उच्च कार्बन उद्योग- विद्युत उत्पादन, रसायन, लौह एवं इस्पात तथा विमानन में भारतीय वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋण का 10% हिस्सा है।
- हालाँकि ये उद्योग भी भारी ऋणग्रस्त हैं और इसलिये घाटे एवं तनाव को सहन करने की इनकी कम वित्तीय क्षमता है।
- यह संक्रमण से जुड़े भारत के वित्तीय क्षेत्र के जोखिम को उजागर करेगा।
- अधिक प्रदूषणकारी एवं अधिक महँगी ऊर्जा आपूर्ति:
- भारतीय बैंकों और संस्थागत निवेशकों के वित्तीय निर्णय देश को अधिक प्रदूषणकारी और अधिक महँगी ऊर्जा आपूर्ति की ओर ले जा रहे हैं।
- उदाहरण के लिये विद्युत क्षेत्र को दिये गए कुल बैंक ऋण का केवल 17.5% विशुद्ध रूप से नवीकरणीय ऊर्जा हेतु प्रदान किया गया है।
- नतीजतन भारत में विश्व औसत की तुलना में कार्बन-स्रोतों से अधिक विद्युत उत्पादन होता है।
- वर्तमान में कोयले का भारत के प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों में लगभग 44% का योगदान है तथा विद्युत वितरण में इसका 70% हिस्सा है।
- देश के कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों की औसत आयु 13 वर्ष है और भारत में 91,000 मेगावाट की नई प्रस्तावित कोयला क्षमता पर काम चल रहा है, जो चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।
- राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022 के मसौदे के अनुसार, विद्युत् उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2030 तक घटकर 50% हो जाएगी।
- क्षमता:
- वर्तमान ऋण और निवेश पैटर्न से पता चलता है कि भारत का वित्तीय क्षेत्र संभावित संक्रमण जोखिमों से भलीभाँति अवगत है।
- हालाँकि जोखिम का दूसरा पक्ष स्थायी परिसंपत्तियों और गतिविधियों की ओर वित्त को स्थानांतरित करने का सुलभ अवसर है।
- वर्ष 2021 में भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी आधी बिजली ज़रूरतों (50%) को पूरा करने की योजना की भी घोषणा की है।
- इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये कम-से-कम एक ट्रिलियन डॉलर के वित्तपोषण की आवश्यकता होगी।
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