शासन व्यवस्था
भारत में सोशल मीडिया का विनियमन
- 26 Apr 2024
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, सोशल मीडिया, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(1), सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021, LGBTQIA+ मेन्स के लिये:भारत में सोशल मीडिया का विनियमन, समाज के विभिन्न वर्गों पर सोशल मीडिया का प्रभाव। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चल रहे न्यायालयी मामलों के बारे में गलत सूचना फैलाने के लिये सोशल मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय का मानना है कि यह "फेक न्यूज" न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करती है, तथा इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में सोशल मीडिया को कैसे विनियमित किया जाता है?
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम): यह प्रमुख कानून है जो इलेक्ट्रॉनिक शासन (e-Governance) के लिये कानूनी आधार स्थापित करके सोशल मीडिया सहित इलेक्ट्रॉनिक संचार के सभी क्षेत्रों को नियंत्रित करता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A सरकार को विशिष्ट शर्तों के तहत सार्वजनिक पहुँच से निम्न जानकारी को ब्लॉक करने का अधिकार देती है, जिसमें शामिल हैं-
- भारत की संप्रभुता और अखंडता का हित
- भारत की रक्षा
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था
- उपरोक्त से संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध को करने के लिये उकसाने से रोकना।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(1) मध्यस्थों (जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) को कुछ शर्तों के अधीन, तीसरे पक्ष की जानकारी के दायित्व से छूट प्रदान करती है:
- मध्यस्थ की भूमिका एक संचार प्रणाली तक पहुँच प्रदान करने तक सीमित है, जिसके माध्यम से तीसरे पक्ष की जानकारी प्रसारित, होस्ट या संग्रहीत की जाती है।
- ट्राँसमिशन, प्राप्तकर्त्ता का चयन ( Recipient Selection), या सामग्री संशोधन को मध्यस्थ द्वारा प्रारंभ या नियंत्रित नहीं किया जाता है।
- हालाँकि, धारा 66A (ऑनलाइन सामग्री से संबंधित) जैसी कुछ विवादास्पद धाराओं को श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित चिंताओं के कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A सरकार को विशिष्ट शर्तों के तहत सार्वजनिक पहुँच से निम्न जानकारी को ब्लॉक करने का अधिकार देती है, जिसमें शामिल हैं-
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: आईटी नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को सामग्री मॉडरेशन में अधिक परिश्रम करने, अनुचित सामग्री को तुरंत हटाकर ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश देते हैं।
- उपयोगकर्त्ताओं को गोपनीयता नीतियों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये, कॉपीराइट सामग्री, अपमानजनक सामग्री या राष्ट्रीय सुरक्षा या मैत्रीपूर्ण संबंधों को खतरे में डालने वाली किसी भी चीज़ से बचना चाहिये।
- इन नियमों में 2023 के संशोधन में कहा गया है कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और एयरटेल जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाताओं सहित ऑनलाइन मध्यस्थों को भारत सरकार के बारे में गलत जानकारी के प्रसार को रोकना होगा।
- तीसरे पक्ष की सामग्री से कानूनी सुरक्षा बनाए रखने के लिये उन्हें तथ्य-जाँच इकाइयों द्वारा झूठ के रूप में चिह्नित सामग्री को भी हटा देना चाहिये।
- हालाँकि संशोधित प्रावधानों के कार्यान्वयन पर हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी।
सोशल मीडिया का समाज के विभिन्न वर्गों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
- युवा और विद्यार्थी:
- गुण: आत्म-अभिव्यक्ति और सक्रियता के लिये सूचना, शैक्षिक संसाधनों, नेटवर्किंग के अवसरोंं एवं प्लेटफार्मों तक पहुँच।
- दोष: साइबरबुलिंग का खतरा, पढ़ाई से ध्यान भटकना, तुलना और सामाजिक दबाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ।
- उदाहरण: ब्लू व्हेल गेम
- महिलाएँ:
- गुण: सोशल मीडिया महिलाओं को अपनी राय व्यक्त करने, अनुभव साझा करने और लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों एवं सामाजिक मुद्दों की वकालत करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- उदाहरण: मी टू आंदोलन
- दोष: अवास्तविक सौंदर्य आदर्शों को कायम रखता है, जिससे शरीर की छवि संबंधी समस्याएँ, आत्म-सम्मान संबंधी समस्याएँ, उत्पीड़न, साइबरबुलिंग और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- गुण: सोशल मीडिया महिलाओं को अपनी राय व्यक्त करने, अनुभव साझा करने और लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों एवं सामाजिक मुद्दों की वकालत करने के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- LGBTQIA+:
- गुण: सोशल मीडिया LGBTQIA व्यक्तियों को आगे की राह, वकालत मंच, शिक्षा और सामुदायिक नेटवर्किंग प्रदान करके सशक्त बनाता है।
- दोष: हालाँकि, यह उन्हें साइबरबुलिंग, गोपनीयता जोखिम और कलंक के प्रति भी उजागर करता है।
- व्यवसाय और उद्यमी:
- गुण: लागत प्रभावी विपणन, ग्राहक जुड़ाव, ब्रांड प्रचार और वैश्विक बाज़ार तक पहुँच।
- दोष: नकारात्मक प्रतिक्रिया और जनसंपर्क संकट तेज़ी से फैल सकते हैं, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से प्रतिस्पर्धा दृश्यता एल्गोरिदम पर निर्भर करती है।
- सरकार एवं राजनीति:
- गुण: नागरिकों के साथ संचार में वृद्धि, पारदर्शिता, नीतियों और अभियानों के लिये समर्थन जुटाना।
- दोष: गलत सूचना का प्रसार, ध्रुवीकरण, गोपनीयता संबंधी चिंताएँ, चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप की संभावना।
- उदाहरण: कैम्ब्रिज़ एनालिटिका स्कैंडल
- न्यायपालिका:
- गुण: सोशल मीडिया जनता को न्यायालयी कार्यवाही, निर्णयों और कानूनी विकास पर वास्तविक समय पर अपडेट प्रदान करके पारदर्शिता बढ़ा सकता है।
- दोष: सामाजिक प्लेटफॉर्मों पर साझा की गई कानूनी जानकारी की गलत व्याख्या या विरूपण का जोखिम, संभावित रूप से गलत सूचना का कारण बनता है।
- मीडिया एवं पत्रकारिता:
- गुण: त्वरित समाचार प्रसार, दर्शकों की सहभागिता, नागरिक पत्रकारिता और विविध दृष्टिकोण।
- दोष: फर्ज़ी समाचार और गलत सूचना चुनौतियाँ, पारंपरिक राजस्व मॉडल का नुकसान, निष्पक्षता को प्रभावित करने वाले प्रतिध्वनि कक्ष।
- बुज़ुर्ग और कम तकनीक-प्रेमी व्यक्ति:
- गुण: परिवार एवं दोस्तों से कनेक्टिविटी, सूचना और सेवाओं तक पहुँच।
- दोष: डिजिटल विभाजन, ऑनलाइन घोटालों और गलत सूचनाओं के प्रति संवेदनशीलता, तकनीकी ज्ञान की कमी के कारण गोपनीयता संबंधी चिंताएँ।
सोशल मीडिया की उपयोगिता और विश्वसनीयता में सुधार के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- एल्गोरिथम पारदर्शिता: पूर्वाग्रहों को कम करने तथा सामग्री दृश्यता में सुधार करने के लिये प्लेटफार्मों को अपने एल्गोरिदम की कार्यप्रणाली का खुलासा करने और समझाने की आवश्यकता है।
- जवाबदेही बढ़ाने के लिये प्लेटफॉर्मों को सामग्री मॉडरेशन, डेटा प्रथाओं और नियामक मानकों के अनुपालन पर नियमित पारदर्शिता रिपोर्ट प्रकाशित करने की आवश्यकता है।
- डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: गलत सूचना और ऑनलाइन उत्पीड़न की पहचान करने तथा उससे निपटने में उपयोगकर्त्ताओं को सशक्त बनाने के लिये व्यापक डिजिटल साक्षरता संबंधी शिक्षा को लागू करना।
- AI मॉडरेशन उपकरण: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए हानिकारक सामग्री का तेज़ी से पता लगाने और उसे हटाने के लिये सामग्री मॉडरेशन के लिये उन्नत AI उपकरण विकसित करना।
- गोपनीयता-बढ़ाने वाली प्रौद्योगिकियाँ: उपयोगकर्त्ता की गोपनीयता और सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन तथा डेटा अनामीकरण जैसी प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
- नैतिक डिज़ाइन प्रथाएँ: नैतिक डिज़ाइन प्रथाओं को प्रोत्साहित करना जो उपयोगकर्त्ता के ध्यान को अधिकतम करने के बजाय उपयोगकर्त्ता के हित, मानसिक स्वास्थ्य और सार्थक जुड़ाव को प्राथमिकता देती हैं।
- सकारात्मक सामग्री निर्माण को पुरस्कृत करना: सूचनात्मक, शैक्षिक या समुदाय-निर्माण सामग्री बनाने वाले उपयोगकर्त्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिये तंत्र लागू करना।
- भारत का राष्ट्रीय रचनाकार पुरस्कार 2024 इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गोपनीयता संबंधी चिंताओं और जवाबदेही की आवश्यकता के बीच संतुलन पर विचार करते हुए, भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को विनियमित करने की चुनौतियों और संभावनाओं पर चर्चा कीजिये। |
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