शासन व्यवस्था
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए
- 09 Jul 2022
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, साइबर अपराध मेन्स के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए और मध्यस्थ |
चर्चा में क्यों?
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए के तहत ट्विटर (माइक्रोब्लॉगिंग साइट) से कुछ पोस्ट हटाने के आदेश जारी किये है।
- ट्विटर ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसमें दावा किया गया है कि अधिनियम की धारा 69ए के तहत कई अवरुद्ध आदेश प्रक्रियात्मक रूप से अपर्याप्त हैं।
वर्तमान चुनौतियाँ:
- मंत्रालय ने कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 69ए के तहत कंपनी "कई मौकों पर निर्देशों का पालन करने में विफल रही है"।
- ट्विटर ने वर्ष 2021 में सरकार के अनुरोध के आधार पर 80 से अधिक खातों और ट्वीट्स की एक सूची प्रस्तुत की जिन्हें ब्लॉक कर दिया गया था।
- ट्विटर का दावा है कि जिस आधार पर मंत्रालय द्वारा कई खातों और पोस्ट को ब्लॉक किया गया है, वह या तो "व्यापक और मनमाना" है या "अनियमित" है।
- ट्विटर के अनुसार, मंत्रालय द्वारा चिह्नित कुछ सामग्री राजनीतिक दलों के आधिकारिक खातों से संबंधित हो सकती है, जिसे अवरुद्ध करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A:
- परिचय:
- यह केंद्र और राज्य सरकारों को "किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त या संग्रहीत किसी भी जानकारी को इंटरसेप्ट, मॉनिटर या डिक्रिप्ट करने के लिये" निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- जिन आधारों पर इन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है वे हैं:
- भारत की संप्रभुता या अखंडता के हित में भारत की रक्षा, राज्य की सुरक्षा।
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
- सार्वजनिक आदेश या इनसे संबंधित किसी भी संज्ञेय अपराध हेतु उकसाने से रोकने के लिये।
- किसी भी अपराध की जांँच के लिये।
- इंटरनेट वेबसाइटों को ब्लॉक करने की प्रक्रिया:
- धारा 69A समान कारणों और आधारों के लिये (जैसा कि ऊपर बताया गया है) केंद्र सरकार को किसी भी एजेंसी या मध्यस्थों से किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, पारेषित, प्राप्त या भंडारित की गई किसी भी जानकारी की जनता तक पहुंँच को अवरुद्ध करने के लिये कहने में सक्षम बनाती है।
- 'मध्यस्थों' शब्द में सर्च इंजन, ऑनलाइन भुगतान और नीलामी साइटों, ऑनलाइन मार्केटप्लेस तथा साइबर कैफे के अलावा दूरसंचार सेवा, नेटवर्क सेवा, इंटरनेट सेवा तथा वेब होस्टिंग के प्रदाता भी शामिल हैं।
- पहुंँच को अवरुद्ध करने के लिये ऐसा कोई भी अनुरोध लिखित में दिये गए कारणों पर आधारित होना चाहिये।
- धारा 69A समान कारणों और आधारों के लिये (जैसा कि ऊपर बताया गया है) केंद्र सरकार को किसी भी एजेंसी या मध्यस्थों से किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, पारेषित, प्राप्त या भंडारित की गई किसी भी जानकारी की जनता तक पहुंँच को अवरुद्ध करने के लिये कहने में सक्षम बनाती है।
अन्य संबंधित कानून:
- भारत में समय-समय पर संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000, कंप्यूटर संसाधनों के उपयोग से संबंधित सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
- इसमें सभी 'मध्यस्थ' शामिल हैं जो कंप्यूटर संसाधनों और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के उपयोग में भूमिका निभाते हैं।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश) नियम, 2011 में इस उद्देश्य के लिये बनाए गए अलग-अलग नियमों में मध्यस्थों की भूमिका का वर्णन किया गया है।
मध्यस्थों द्वारा अधिनियम का अनुपालन किये जाने का कारण:
- अंतर्राष्ट्रीय अनिवार्यताएँ:
- अधिकांश देशों ने कुछ परिस्थितियों में कानून और व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों के साथ इंटरनेट सेवा प्रदाताओं या वेब होस्टिंग सेवा प्रदाताओं तथा अन्य बिचौलियों द्वारा सहयोग को अनिवार्य बनाने वाले कानून बनाए हैं।
- साइबर अपराध से निपटने हेतु:
- वर्तमान में साइबर अपराध और कंप्यूटर संसाधनों से संबंधित अन्य कई अपराधों से लड़ने की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता कंपनियों एवं कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- ऐसे अपराधों में हैकिंग, डिजिटल प्रतिरूपण और डेटा की चोरी शामिल होती है।
- इंटरनेट के दुरुपयोग को रोकने हेतु:
- इंटरनेट के दुरुपयोग की संभावनाओं ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इसके दुष्प्रभावों को रोकने हेतु इंटरनेट पर अधिक नियंत्रण के लिये प्रेरित किया है।