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सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A

  • 13 Oct 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 A, अनुच्छेद 19(1)(a),

मेन्स के लिये:

भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नीतियों, सरकारी नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों और उनके पुलिस बलों को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A के तहत सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मुकदमा चलाने से रोकने का आदेश दिया।

  • हालाँकि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह निर्देश केवल धारा 66A के तहत लगाए गए आरोप पर लागू होगा और किसी मामले में अन्य अपराधों पर लागू नहीं होगा।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A: 

  • परिचय:
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A ने किसी भी व्यक्ति के लिये कंप्यूटर या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उपयोग करके आपत्तिजनक जानकारी भेजना एक दंडनीय अपराध बना दिया है।
    • इस प्रावधान ने किसी व्यक्ति के लिये ऐसी जानकारी भेजना दंडनीय बना दिया जिसे वे निषेध मानते थे।
      • सोशल मीडिया संदेश "आसामाजिक" या "बेहद आक्रामक" होने पर धारा 66A के तहत तीन साल की कैद निर्धारित की गई थी।
    • ई-मेल भेजने के क्रम में असुविधा होने या प्राप्तकर्त्ता को धोखा देने या गुमराह करने और यहाँ तक कि संदेश की उत्पत्ति में फेरबदल को भी इस धारा के तहत दंडनीय माना गया था।
    • न्यायालय ने वर्ष 2015 में श्रेया सिंघल मामले में इस प्रावधान को असंवैधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करार दिया।
      • भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त भाषण की स्वतंत्रता का उल्लंघन करने के आधार पर ऑनलाइन भाषण पर प्रतिबंध से संबंधित धारा को असंवैधानिक घोषित किया गया था।
      • इसमें कहा गया कि ऑनलाइन मध्यस्थ, केवल न्यायालय या सरकारी प्राधिकरण से आदेश प्राप्त करने पर प्लेटफॉर्म से सामग्री को हटाने के लिये बाध्य होंगे।
  • धारा 66A से संबंधित मुद्दे:
    • अपरिभाषित कार्यों के आधार पर: 
      • धारा 66A की कमज़ोरी इस तथ्य में निहित है कि इसमें अपरिभाषित कार्यों को अपराध का आधार बनाया गया था: जैसे कि "असुविधा, खतरा, बाधा और अपमान" (Inconvenience, Danger, Obstruction and Insult)। ये सभी संविधान के अनुच्छेद 19 जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है, के अपवादों की श्रेणी में नहीं आते हैं।
    • कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं:
      • इसके अतरिक्त अदालत ने पाया था कि धारा 66A में समान उद्देश्य वाले कानून के अन्य वर्गों की तरह प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं थे जैसे- कार्रवाई करने से पहले केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता।
        • स्थानीय अधिकारी स्वायत्त रूप से अपने राजनीतिक प्रमुखों/व्यक्तियों की इच्छा के इतर कार्य कर सकते हैं।
    • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध:
      • धारा 66A संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) दोनों के विपरीत थी।
        • सूचना का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) द्वारा प्रदान किये गए भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार के अंतर्गत आता है।

आगे की राह

  • एक ऐसी प्रणाली से आगे बढ़ने की सख्त आवश्यकता है जहाँ न्यायिक निर्णयों के बारे में संचार ईमानदार अधिकारियों की पहल द्वारा हो, एक ऐसे तरीके से जो मानवीय त्रुटि पर निर्भर न हो। तात्कालिकता को अतिरंजित नहीं किया जा सकता है।
    • असंवैधानिक कानूनों को लागू करना जनता के पैसे की बर्बादी है।
  • लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब तक इस बुनियादी दोष को दूर नहीं किया जाता है, तब तक कुछ व्यक्ति अपने जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित रहेंगे।
    • वे अपनी गरीबी और अज्ञानता एवं अपने अधिकारों की मांग करने में असमर्थता के अलावा किसी अन्य कारण से कानून विहीन गिरफ्तारी तथा नज़रबंदी का अपमान सहेंगे।

स्रोत: द हिंदू

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