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नीतिशास्त्र

सिविल सेवक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  • 02 Sep 2022
  • 8 min read

मेन्स के लिये:

सरकारी नीति और कार्रवाई पर अपने विचार व्यक्त करने के लिये सिविल सेवकों का अधिकार।

चर्चा में क्यों?

तेलंगाना की एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने सुश्री बानो के समर्थन में अपने पर्सनल अकाउंट से ट्वीट किया और वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराए गए 11 लोगों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले पर सवाल उठाया।

  • इसने इस बारे में चर्चा को प्रेरित किया कि क्या अधिकारी ने सिविल सेवा (आचरण), 1964 के नियमों का उल्लंघन किया साथ ही कानून तथा शासन के मामलों पर अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त करने के लिये सिविल सेवकों के अधिकार के बारे में बहस को संज्ञान में लाया।

बिलकिस बानो केस

  • परिचय:
    • 15 अगस्त, 2022 को बलात्कार और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे 11 दोषियों की रिहा किया गया।
    • कई लोगों ने यह भी बताया कि रिहाई संघीय सरकार और गुजरात राज्य सरकार दोनों द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के उल्लंघन है, जिसमें दोनों का कहना है कि बलात्कार एवं हत्या के दोषियों को छूट नहीं दी जा सकती है।
      • इन अपराधों में आमतौर पर भारत में मृत्युदंड तक दिया जाता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने विपक्षी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद गुजरात सरकार से जवाब मांगा है.
  • सिविल सेवक की भूमिका:
    • बिलकिस बानो मामले पर ट्वीट में अधिकारी द्वारा "सिविल सेवक" शब्द जोड़ना इस अर्थ के साथ जुड़ा हुआ है कि सिविल सेवक का धर्म संवैधानिक सिद्धांतों को अक्षरशः और मूल रूप से तथा कानून के शासन को बनाए रखना है।
    • इस मामले में संविधान की भावना और कानून के शासन दोनों को विकृत किया जा रहा है।
    • यह एक बहुत ही खतरनाक मिसाल हो सकती है, क्योंकि हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने आठ हत्या के दोषियों को रिहा किया था (उनके द्वारा अनिवार्य 14 साल की जेल पूरी नहीं करने के बावजूद)।
    • कुछ कार्यों के लिये यदि सिविल सेवक चाहे सेवानिवृत्त हो या सेवा में बोलते हैं, तो यह नौकरशाही शक्ति के मनमाने दुरुपयोग पर किसी प्रकार का निवारक [प्रभाव] होगा।

सिविल सेवक सरकार की नीति और कार्य पर अपने विचार की अभिव्यक्ति:

  • भारत के संविधान में देश के नागरिकों को अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किये जाने के कारण किसी  सिविल सेवक को ट्वीट करने का अधिकार है लेकिन यह अधिकार  राज्य की संप्रभुता, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, स्वास्थ्य, नैतिकता आदि  को सुरक्षित रखने के हित में उचित प्रतिबंधों के अधीन होता  है।
  • लेकिन सरकारी सेवा में रहने के दौरान सिविल सेवक कुछ अनुशासनात्मक नियमों के अधीन होता है।
    • यह नियम सरकारी कर्मचारी को किसी राजनीतिक संगठन, या इस तरह के किसी भी संगठन का सदस्य बनने से रोकते है और यह देश के शासन से संबंधित किसी भी विषय पर इन्हे स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सीमित करते हैं।
    • यह नियम ब्रिटिश कालीन है और उस समय यह नियम अधिकारी की अभिव्यक्ति को सीमित करते हुए अंति अनुशासन को बनाए रखना चाहते थे।
  • हालाँकि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करने का अधिकार मौलिक अधिकार है।

संबंधित निर्णय:

  • लिपिका पॉल बनाम त्रिपुरा राज्य:
    • एक ऐतिहासिक फैसले में, जनवरी 2020 में, त्रिपुरा के उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ‘’एक सरकारी कर्मचारी अपने भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार,एक मौलिक अधिकार से रहित नहीं है।’’
    • न्यायालय ने स्वीकार किया कि भाषण के अधिकार की अभिव्यक्ति कुछ परिस्थितियों में काट-छांट के अधीन है, इस फैसले में सरकारी कर्मचारियों के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित महत्त्वपूर्ण अर्थ निहित है।
      • बिलकिस बानो मामले में, अधिकारी को अपने स्वयं के विश्वासों को धारण करने और उन्हें अपनी इच्छानुसार व्यक्त करने का अधिकार था, जो त्रिपुरा में लागू आचरण नियमों में निर्धारित सीमाओं को पार नहीं करने के अधीन था।
      • किसी विधायिका द्वारा बनाए गए वैध कानून के अलावा किसी मौलिक अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती है।
        • केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) के नियमों में से नियम सं.9 के अनुसार "कोई भी सरकारी कर्मचारी ... तथ्य या राय का कोई बयान नहीं देगा ... जिस पर केंद्र सरकार या राज्य सरकार की किसी मौजूदा या हालिया नीति या कार्रवाई की प्रतिकूल आलोचना का प्रभाव पड़ता है।"
  • केरल उच्च न्यायालय का फैसला:
    • वर्ष 2018 में केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि "केवल एक कर्मचारी होने के कारण किसी को अपने विचार व्यक्त करने से नहीं रोका जा सकता है"।
    • एक लोकतांत्रिक समाज में, प्रत्येक संस्था लोकतांत्रिक मानदंडों द्वारा शासित होती है

आगे की राह

  • लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखना:
    • आजकल, कई सरकारी अधिकारियों और मंत्रियों को सरकारी नीतियों को सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंँचाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
      • दुर्भाग्य से सरकारी अधिकारियों को प्रोत्साहन का एक ही तरीका यानी मीडिया में अच्छी बातें कहने के लिये दिया जाता है।
      • इसके साथ समस्या यह है कि यदि कोई नीति लागू की जा रही है तो लोकतंत्र में हर किसी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार, आपत्ति का अधिकार तथा असहमति का अधिकार है।
  • अधिकारी के अधिकार को बनाए रखना:
    • सोशल मीडिया के माध्यम से नीतियों के बारे में पारदर्शिता बढ़ाना सरकारी अधिकारियों का कर्तव्य है। केस-दर-केस दृष्टिकोण का पालन किया जाना चाहिये।
  • अंतर करने की आवश्यकता :
    • समय की मांग है कि समाज, संविधान और कानून के शासन को चोट पहुंँचाने वाली चीजों के बीच अंतर स्पष्ट किया जाए।
    • बिलकिस बानो के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोषियों को रिहा करने का आदेश दिया, जिसे गुजरात सरकार द्वारा निष्पादित किया गया था, (सवाल यह है कि यह कैसे हुआ) जो एक अपवाद था।

स्रोत: द हिंदू

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