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द बिग पिक्चर: साइबर बुलिंग

  • 07 May 2018
  • 19 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
आज के बच्चे जहाँ बड़ी आसानी से इंटरनेट-फ्रेंडली हो रहे हैं, वहीं वे अनजाने में कई प्रकार के दुष्प्रभावों का शिकार भी आसानी से हो रहे हैं, जिसे तकनीकी भाषा में साइबर बुलिंग कहा जाता है। बेहद आम होती जा रही साइबर बुलिंग को सरलतम अर्थों में स्पष्ट किया जाए तो कहा जा सकता है कि अभद्र-अश्लील भाषा, चित्रों तथा धमकियों से इंटरनेट पर किसी को परेशान करना साइबर बुलिंग की श्रेणी में आता है। 

हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council for Educational Research & Training-NCERT) ने पहली बार बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों को तीन हिस्सों में जारी किया गया है। 

पहले हिस्से में स्कूलों के लिये, दूसरे में विद्यार्थियों और तीसरे में शिक्षकों के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। इसमें क्या करें और क्या नहीं करें, इसके निर्देश दिये गए हैं। 

  • स्कूलों को निर्देश दिये गए हैं कि वह साइबर सुरक्षा के लिये सुनिश्चित करें कि उनके स्कूल के सभी कंप्यूटरों में लाइसेंस वाले (Non-Pirated) सॉफ्टवेयर चल रहे हैं और स्कूल का वाई-फाई पासवर्ड से भलीभांति सुरक्षित किया गया है। इसके लिये स्कूलों को किसी थर्ड पार्टी की सेवा लेने का भी सुझाव दिया गया है।
  • विद्यार्थियों से कहा गया है कि वह बुलिंग के खिलाफ अविलंब शिक्षकों या अभिभावक के पास जाकर इसकी शिकायत करें या किसी भी ऐसे व्यक्ति के पास जाकर इसकी शिकायत करें, जिस पर वे विश्वास करते हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें दूसरे बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से चिढ़ाने, गलत तरीके से पासवर्ड हासिल कर दूसरों के मेल पढऩे आदि से मना किया गया है। 
  • शिक्षकों को निर्देश दिये गए हैं कि वह नियमित तौर पर बच्चों द्वारा प्रयोग किये जा रहे डिवाइस की ब्राउजिंग हिस्ट्री की जाँच करते रहें और उन पर नज़र रखें।
  • स्कूल की कंप्यूटर प्रयोगशालाओं तक केवल अधिकृत लोगों की पहुँच हो, USB का उपयोग प्रतिबंधित किया जाए, पॉप-अप को ब्लॉक करने और डेस्कटॉप पर किसी नए और अनजान आइकन की मौजूदगी पर निगाह रखने जैसे कई दिशा-निर्देश NCERT द्वारा जारी साइबर सुरक्षा और सुरक्षा दिशा-निर्देशों में हैं।

साइबर अपराध क्या हैं?

  • आज कंप्यूटर और इंटरनेट का युग है और इनके बिना किसी भी काम की कल्पना करना मुश्किल है। 
  • ऐसे में अपराधी भी तकनीक के साथ हाईटेक हो गए हैं और वे अपराध करने के लिये इनका इस्तेमाल करते हैं। 
  • साइबर अपराध ऐसे गैर-कानूनी कार्य हैं जिनमें कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन तथा टेबलेट एवं इंटरनेट नेटवर्क का प्रयोग एक साधन अथवा लक्ष्य अथवा दोनों के रूप में किया जाता है।
  • ऐसे अपराधों में बुलिंग, हैकिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिग, सॉफ्टवेयर पाइरेसी, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग आदि को शामिल किया जाता है। 
  • साइबर अपराध साधारणत: किसी प्रकार की हिंसा नहीं फैलाते, लेकिन लालच, सम्मान और किसी व्यक्ति के चरित्र के कमज़ोर पहलू के साथ खिलवाड़ कर विभिन्न अपराधों को जन्म देते हैं।

साइबर बुलिंग क्या है?
आज के दौर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बिना जीवन की कल्पना करना बेमानी है; और ऐसे में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट आदि के ज़रिये बच्चों और किशोरों को परेशान करने के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। 

  • साइबर बुलिंग को ऑनलाइन रैगिंग कहा जा सकता है।
  • इन आधुनिक तरीकों से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर अपराध के दायरे में ही आता है। 
  • किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना, नफरत फैलाना या बदनाम करना भी इसी श्रेणी का अपराध है। 
  • इंटरनेट के माध्यम से गलत फोटो, गलत भाषा या फेक न्यूज़ आदि का इस्तेमाल करते हुए किसी भी व्यक्ति को डराना, धमकाना, उसे टॉर्चर करना या उसे गलत दिशा में भटकाना आदि साइबर बुलिंग के तहत आता है।

लगाम लगाना मुश्किल 
इंटरनेट पर बुलिंग अर्थात् साइबर बुलिंग का अनुभव बेहद खतरनाक है और इससे बच्चों की मनःस्थिति को चोट पहुंचती है। सड़क या किसी अन्य स्थान पर इसे नज़रअंदाज़ कर, बहस कर या आमना-सामना कर बदतमीज़ी करने वाले को पकड़ने का प्रयास किया जा सकता है या पुलिस की सहायता ली जा सकती है। लेकिन इंटरनेट पर क्या? जहाँ अक्सर परेशान करने वाले व्यक्ति की पहचान करना मुश्किल होता है और सोशल नेटवर्किंग साइट्स तो ऐसे खुले मंच हैं जहाँ किसी भी तरह की लगाम लगाना मुश्किल होता है।

कैसे पता चले बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार है?

  • असामान्य व्यवहार...बच्चा शांत रहने लगा है...बात-बात पर गुस्सा करने लगा है...कंप्यूटर को देखकर अजीब बर्ताव करता है...कंप्यूटर ऑन होने से डर जाता है...सोशल इवेंट आदि में या स्कूल की गतिविधियों में भाग लेने से कतराने लगा है...भाई-बहनों और दोस्तों के साथ व्यवहार में बदलाव आ गया है...पढ़ाई में रुचि कम हो गई है...परीक्षा में नंबर लगातार कम आने लगे हैं ...ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा...आपको देखते ही वेब पेज को बंद कर देता है...आदि-इत्यादि।

यदि उपरोक्त में से कोई या अन्य किसी प्रकार की असामान्यता बच्चे में दिखाई दे तो वह साइबर बुलिंग का शिकार हुआ हो सकता है। ऐसे में आवश्यक है कि बच्चे से इस बारे में बात कर उसे विश्वास दिलाएं कि आप उसकी मदद कर सकते हैं।

बेहद खतरनाक है साइबर बुलिंग

  • ब्रिटेन के स्वानसी विश्वविद्यालय, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने लगभग 21 साल की अवधि के दौरान लगभग डेढ़ लाख बच्चों और किशोरों पर पड़ने वाले साइबर बुलिंग के प्रभाव की पड़ताल की। 
  • आजकल बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल मनोरंजन के अलावा अपनी पढ़ाई के लिये अधिक करते हैं। ऐसे में कई बार इंटरनेट पर सर्चिंग टूल में बच्चों को ऐसे लिंक या ग्रुप में लोग मिल जाते हैं, जिसमें उन्हें धमकाया, डराया या तंग किया जाता है। 
  • इस शोध में सामने आया कि जो बच्चे और किशोर साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं, उनके दिमाग में स्वयं को नुकसान पहुँचाने और आत्महत्या करने का विचार आने का खतरा दोगुना होता है। 
  • ‘जनरल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च’ में प्रकाशित इस शोध में सोशल मीडिया पर लोगों को तंग करने वालों और इसके शिकार दोनों पर पड़ने वाले महत्त्वपूर्ण प्रभाव को रेखांकित किया गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने सोशल मीडिया में दबंगई से निपटने के लिये प्रभावी नीति बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि स्कूल की नीतियों में साइबर बुलिंग की रोकथाम को शामिल करना चाहिये।
  • इसके अलावा सोशल मीडिया पर दोस्तों का ऑनलाइन सपोर्ट उपलब्ध कराने के साथ ही इसमें किसी अन्य के हस्तक्षेप को रोकने की तकनीक सिखाने, मोबाइल फोन कंपनियों से संपर्क करने, लोगों को ब्लॉक करने की तकनीक की जानकारी देने तथा लोगों की पहचान करने के तरीके सिखाने पर विचार करना चाहिये।

(टीम दृष्टि इनपुट)

साइबर बुलिंग होने पर क्या करें?
साइबर बुलिंग से निपटने के दो तरह के विकल्प हैं...कानून की मदद से और निजी स्तर पर।

  • यदि किसी फोरम पर कोई आपको तंग कर रहा है तो उस फोरम से निकल जाइए।
  • यदि फिर भी आपको तंग किया जाए तो फेसबुक (या अन्य सोशल मीडिया साइट) को रिपोर्ट करें। हालाँकि इस पर प्रायः कोई कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि इन पर अमेरिकी कानून लागू होता है।
  • यदि धमकी तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिये।
  • यदि पुलिस कार्रवाई न करे तो अदालत की शरण ली जा सकती है।

कानूनी प्रावधान क्या हैं?

  • भारत में साइबर अपराधों की चर्चा तो होती है, लेकिन साइबर बुलिंग से बच्चों को बचाने की चर्चा कम ही होती है।
  • इंटरनेट पर बच्चों को साइबर बुलिंग का शिकार बनाने वाले को कड़ी सज़ा होनी चाहिये ताकि उनमें इस बात का भय रहे कि इसके परिणाम बहुत बुरे हो सकते हैं। 
  • भारत में साइबर क्राइम के मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 लागू होते हैं।
  • इसी श्रेणी के कई मामलों में आईपीसी, कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहाँ तक कि आतंकवाद निरोधक कानून के तहत भी कार्रवाई की जा सकती है।
  • लेकिन फिलहाल बच्चों की सुरक्षा न तो भारतीय कानून का उद्देश्य है, और न ही इसके लिये कोई विशिष्ट प्रावधान है।
  • आईटी कानून की धारा 509 कहती है कि कोई शब्द या गतिविधि या संकेत यदि महिलाओं की मॉडेस्टी भंग करता है तो इसके खिलाफ मामला दर्ज हो सकता है। 
  • यह बुलिंग के लिये इस्तेमाल होने वाले शब्दों पर भी लागू होता है, क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना अपराध है। 
  • इसी कानून की धारा 66(a)(b) बुलिंग पर लागू होती है, जिसके तहत तीन साल तक की सज़ा तथा जुर्माना हो सकता है।
  • किसी को मानसिक आघात पहुँचाने के लिये आपत्तिजनक सामग्री भेजना दंडनीय अपराध है। यह अपराध इस कानून की धारा 72 के तहत आता है।
  • वर्तमान परिस्थितियों में सूचना प्रोद्यौगिकी कानून में 18 साल से कम आयु के बच्चों की साइबर सुरक्षा के लिये विशिष्ट प्रावधानों की आवश्यकता है।
  • कई देशों में साइबर बुलिंग से बच्चों को बचाने के लिये हेल्पलाइन की व्यवस्था है, भारत में भी ऐसा किया जा सकता है।

बच्चों को इंटरनेट पर कैसे सुरक्षित रखें?
कुछ समय पूर्व हुए एक सर्वे से पता चला था कि देश में इंटरनेट तक पहुँच रखने वाले 70% अभिभावक बच्चों और युवाओं को कुछ बेहतर करने के लिये सोशल मीडिया और इंटरनेट इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं। लेकिन इनमें लगभग 58% बच्चे अभिभावकों के साथ हर जानकारी छुपाते हैं और इस चक्कर में वे अनचाही बिन बुलाई परेशानियों में घिर जाते हैं।

खतरे को कम कैसे किया जाए?

  • बच्चे के साथ ऑनलाइन समय व्यतीत करें 
  • उसकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री पर नज़र रखें
  • इंटरनेट नेटवर्क को परिवार के लिये सुरक्षित करें 
  • पैरेंटल लॉक की सहायता से अभिभावक यह तय करें कि बच्चे किस प्रकार की वेबसाइट देखेंगे 
  • वेबसाइट फिल्टरिंग का इस्तेमाल करके भी बच्चों की इंटरनेट पहुँच को सीमित किया जा सकता है
  • बच्चों को बताएँ कि कौन सी जानकारी हर किसी के साथ ऑनलाइन शेयर नहीं करनी चाहिये 
  • बच्चों को सिखाएँ कि किसी भी अनजान व्यक्ति से ऑनलाइन बात न करे और न ही उनके मैसेज का जवाब दें
  • बच्चे को खुलकर बात करने के लिये प्रेरित करें
  • स्कूलों में इस समस्या पर शिक्षकों और बच्चों के बीच नियमित संवाद हो
  • प्रभावित बच्चे की काउंसिलिंग की जाए
  • जागरूकता उत्पन्न करने के लिये स्कूलों में वर्कशॉप आयोजित किये जाएं 

लाइफ स्टाइल बदलने से भी हो रही परेशानी 
जिंदगी में अच्छे दोस्तों की कमी और ऑनलाइन दोस्तों की अनदेखी के साथ घर में अभिभावकों का प्रभावी नियंत्रण न होने से भी बच्चे आसानी से साइबर बुलिंग की चपेट में आ जाते हैं। दोस्ती टूटने, निगेटिव कमेंट्स मिलने या लाइक्स कम मिलने से भी उनमें हीन भावना घर कर लेती है। आज 10 में से 6 छात्र किसी-न-किसी रूप में साइबर बुलिंग के शिकार हैं, लेकिन स्कूलों और अभिभावकों को इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।

  • 92% बच्चे और किशोर फेसबुक साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं
  • 23.8% प्रतिशत ट्विटर से होते हैं शिकार 
  • 75% अभिभावक साइबर बुलिंग से अनभिज्ञ 
  • 43% से ज्यादा यूज़र साइबर बुलिंग के शिकार 
  • 25% टेक्स्ट मैसेजिंग से करते हैं परेशान 
  • 4 घंटे तक सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बुलिंग होने की संभावना अधिक रहती है 

ब्रिटेन में हुआ नवीनतम शोध 

  • ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिस्टिक के साथ ब्रिटेन के एजुकेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक हालिया शोध में बताया गया है कि वहाँ 10 से 15 वर्ष आयु के 56% रोज़ तीन घंटे से ज्यादा समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं। 
  • ब्रिटेन के एजुकेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक नए शोध में शोधकर्त्ताओं ने पाया कि बच्चों के इंटरनेट इस्तेमाल को सीमित कर देने मात्र से उन्हें सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव से नहीं बचाया जा सकता। 
  • इस नवीनतम अध्ययन में कहा गया है कि इंटरनेट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने से बच्चों में डिजिटल स्किल और भावनात्मक रूप से संवेदनशील होने का अभाव हो सकता है।
  • इंटरनेट इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने से ऑनलाइन समस्याएँ तो कम हो जाती हैं, लेकिन इससे बच्चों में अन्य समस्याओं का सामना करने की क्षमता कम हो जाती है।
  • बच्चों में इंटरनेट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने से उनके अंदर ऑनलाइन जोखिम से निपटने की क्षमता का भी अभाव हो जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: बच्चों की शैक्षिक यात्रा में आज कंप्यूटर उनका हमसफर बन गया है। सूचनाओं के अथाह भंडार और मनोरंजन के स्रोत के रूप में बच्चों के दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। इसके साथ ही इंटरनेट ने उन्हें अपना दृष्टिकोण प्रकट करने और किसी के प्रति टिप्पणी करने का विश्वव्यापी मंच भी उपलब्ध कराया है। लेकिन इसके साथ ही इंटरनेट की सर्वसुलभता ने इसे किसी की निजता को भंग करने या आधुनिकता का लबादा ओढ़कर मनचाहा उन्मुक्त आचरण करने का उपकरण बना दिया है। बच्चे तथा किशोर भी इससे बच नहीं पाए हैं तथा साइबर बुलिंग का सबसे ज़्यादा और आसान शिकार बन रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के साथ अब वॉट्सएप जैसे मैसेंजर के दौर में साइबर बुलिंग अब एक नया रूप लेती जा रही है, क्योंकि इनमें बन रहे ग्रुप भी इसे बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। ऐसे में इसे नियंत्रित करने के लिये सरकार के स्तर पर यदि प्रशासकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़े तो उसमें कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये। परिवार के स्तर पर अभिभावक कुछ क्वालिटी टाइम बच्चों के साथ बिताने की आदत डालें तो इससे बच्चे के व्यवहार को अच्छी तरह से समझने में सरलता तो होगी ही, साथ ही किसी भी तरह की समस्या होने पर आसानी से उसका निदान भी तलाशा जा सकेगा।

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