विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
- 30 May 2023
- 35 min read
परिचय
- ISRO भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के तहत एक अंतरिक्ष एजेंसी है, जिसका मुख्यालय कर्नाटक राज्य के बेंगलुरु शहर में है।
- इसका लक्ष्य अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान और ग्रहों की खोज़ को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है।
- एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ACL) अंतरिक्ष उत्पादों, तकनीकी परामर्श सेवाओं और ISRO द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण, तथा इसके प्रचार एवं वाणिज्यिक दोहन हेतु ISRO की एक विपणन शाखा है।
- श्री एस. सोमनाथ ISRO के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
स्थापना
- वर्ष 1960 के दशक के दौरान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरुआत की गई थी।
- स्थापना के बाद से, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तीन अलग-अलग प्रकार थे जैसे संचार और सुदूर संवेदन के लिये उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली और अनुप्रयोग कार्यक्रम।
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की शुरुआत डॉ. साराभाई और डॉ. रामनाथन के नेतृत्व में हुई थी।
- वर्ष 1975-76 के दौरान, सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE) आयोजित किया गया था। इसे 'विश्व का सबसे बृहद् समाजशास्त्रीय परीक्षण' कहा गया। इसके बाद 'खेड़ा कम्युनिकेशन प्रोजेक्ट (KCP)' शुरू हुआ, जिसने गुजरात राज्य में आवश्यकता-आधारित और स्थानीय विशिष्ट कार्यक्रम प्रसारण के लिये एक फील्ड प्रयोगशाला के रूप में कार्य किया।
- इस अवधि के दौरान, पहला भारतीय अंतरिक्ष यान 'आर्यभट्ट' विकसित किया गया था और एक सोवियत लॉन्चर का उपयोग करके प्रमोचित किया गया था। लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) हेतु 40 किलोग्राम की भार क्षमता रखने वाले पहले प्रमोचक यान SLV-3 का विकास हुआ और इसका सफल प्रमोचन वर्ष 1980 में किया गया जो अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रमुख मील का पत्थर साबित हुआ।
- 80 के दशक के दौरान प्रायोगिक चरण में, भास्कर- I और II मिशन सुदूर संवेदन क्षेत्र में अग्रणी कदम थे, जबकि 'एरियन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरिमेंट (APPLE)' भविष्य की संचार उपग्रह प्रणाली के लिये अग्रदूत बन गया।
- 90 के दशक में परिचालन चरण के दौरान, प्रमुख अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचा दो व्यापक वर्गों के तहत बनाया गया था: एक बहुउद्देश्यीय भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (INSAT) के माध्यम से संचार, प्रसारण और मौसम विज्ञान के लिये और दूसरा भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (IRS) प्रणाली के लिये। इस चरण के दौरान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक प्रणाली (PSLV) का विकास और संचालन तथा भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (GSLV) के विकास सहित अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ थीं।
ISRO की उपलब्धियाँ
संचार उपग्रह
- INSAT-1B की शुरुआत के साथ वर्ष 1983 में स्थापित, भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (INSAT) प्रणाली एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे विशाल घरेलू संचार उपग्रह प्रणालियों में से एक है, जिसमें तुल्यकाली कक्षा में नौ परिचालन संचार उपग्रह स्थापित किये गए हैं।
- इसने भारत के संचार क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति की शुरुआत की और बाद में भी इस क्रांति को बनाए रखा। INSAT प्रणाली दूरसंचार, टेलीविज़न प्रसारण, उपग्रह समाचार संग्रह, सामाजिक अनुप्रयोगों, मौसम की भविष्यवाणी, आपदा चेतावनी और खोज़ एवं बचाव कार्यों के लिये सेवाएँ प्रदान करती है।
महत्त्वपूर्ण संचार उपग्रहों की सूची |
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उपग्रह |
प्रमोचन तिथि |
प्रमोचक यान |
अनुप्रयोग |
GSAT-31 |
06 फरवरी 2019 |
एरिएन(Ariane)-5 VA-247 |
संचार हेतु |
GSAT-7A |
19 दिसंबर 2018 |
GSLV-F11 / GSAT-7A मिशन |
संचार हेतु |
GSAT-11 मिशन |
05 दिसंबर 2018 |
एरिएन (Ariane)-5 VA-246 |
संचार हेतु |
GSAT-29 |
14 नवंबर 2018 |
GSLV Mk III-D2 / GSAT-29 मिशन |
संचार हेतु |
GSAT-6A |
29 मार्च 2018 |
GSLV-F08/GSAT-6A मिशन |
संचार हेतु |
GSAT-17 |
29 जून 2017 |
एरिएन(Ariane)-5 VA-238 |
संचार हेतु |
GSAT-19 |
05 जून 2017 |
GSLV Mk III-D1/GSAT-19 मिशन |
संचार हेतु |
GSAT-9 |
05 मई 2017 |
GSLV-F09 / GSAT-9 |
संचार हेतु |
GSAT-12 |
15 जुलाई 2011 |
PSLV-C17/GSAT-12 |
संचार हेतु |
GSAT-8 |
21 मई 2011 |
एरिएन(Ariane)-5 VA-202 |
संचार, नौवहन हेतु |
एडुसैट |
20 सितंबर 2004 |
GSLV-F01 / एडुसैट (GSAT-3) |
संचार हेतु |
भूप्रेक्षण उपग्रह
- वर्ष 1988 में IRS-1A से शुरू करके, ISRO ने कई सुदूर संवेदन उपग्रह प्रमोचित किये हैं। वर्तमान में, भारत के सुदूर संवेदन उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह संचालन में है।
- देश और वैश्विक उपयोग के लिये विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विविध आकाशीय, वर्णक्रमीय और कालिक संकल्पों का आवश्यक डेटा प्रदान करने के लिये इन उपग्रहों पर विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं।
- इन उपग्रहों के डेटा का उपयोग कृषि, जल संसाधन, शहरी नियोजन, ग्रामीण विकास, खनिज पूर्वेक्षण, पर्यावरण, वानिकी, समुद्री संसाधनों और आपदा प्रबंधन को शामिल करने वाले कई अनुप्रयोगों के लिये किया जाता है।
महत्त्वपूर्ण भूप्रेक्षण उपग्रहों की सूची |
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उपग्रह |
प्रमोचनतिथि |
प्रमोचक यान |
अनुप्रयोग |
HysIS |
29 नवंबर 2018 |
PSLV-C43 / HysIS मिशन |
भूप्रेक्षण हेतु |
कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
12 जनवरी 2018 |
PSLV-C40/कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह मिशन |
भूप्रेक्षण हेतु |
कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
23 जून 2017 |
PSLV-C38 / कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
भूप्रेक्षण हेतु |
कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
15 फरवरी 2017 |
PSLV-C37 / कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
भूप्रेक्षण हेतु |
रिसोर्ससैट-2A |
07 दिसंबर 2016 |
PSLV-C36 / रिसोर्ससैट-2A |
भूप्रेक्षण हेतु |
SCATSAT-1 |
26 सितंबर 2016 |
PSLV-C35 / SCATSAT-1 |
जलवायु और पर्यावरण हेतु |
INSAT-3DR |
08 सितंबर 2016 |
GSLV-F05 / INSAT-3DR |
जलवायु और पर्यावरण, आपदा प्रबंधन प्रणाली हेतु |
कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
22 जून 2016 |
PSLV-C34 / कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
भूप्रेक्षण हेतु |
सरल (SARAL) |
25 फरवरी 2013 |
PSLV-C20/SARAL |
जलवायु और पर्यावरण, भूप्रेक्षण हेतु |
RISAT-1 |
26 अप्रैल 2012 |
PSLV-C19/RISAT-1 |
भूप्रेक्षण हेतु |
मेघा-ट्रॉपिक्स |
12 अक्तूबर 2011 |
PSLV-C18/मेघा-ट्रॉपिक्स |
जलवायु और पर्यावरण, भूप्रेक्षण हेतु |
रिसोर्ससैट-2 |
20 अप्रैल 2011 |
PSLV-C16/ रिसोर्ससैट-2 |
भूप्रेक्षण हेतु |
कार्टोसैट-2B |
12 जुलाई 2010 |
PSLV-C15/ कार्टोसैट-2B |
भूप्रेक्षण हेतु |
ओशनसैट-2 |
23 सितंबर 2009 |
PSLV-C14 / ओशनसैट-2 |
जलवायु और पर्यावरण, भूप्रेक्षण हेतु |
RISAT-2 |
20 अप्रैल 2009 |
PSLV-C12 / RISAT-2 |
भूप्रेक्षण हेतु |
कार्टोसैट-1 |
05 मई 2005 |
PSLV-C6/कार्टोसैट-1/HAMSAT |
भूप्रेक्षण हेतु |
प्रौद्योगिकी परीक्षण उपग्रह (TES) |
22 अक्तूबर 2001 |
PSLV-C3 / TES |
भूप्रेक्षण हेतु |
ओशनसैट (IRS-P4) |
26 मई, 1999 |
PSLV-C2/IRS-P4 |
भूप्रेक्षण हेतु |
रोहिणी उपग्रह RS-D1 |
31 मई 1981 |
SLV-3D1 |
भूप्रेक्षण हेतु |
भास्कर-I |
07 जून 1979 |
C-1 इंटरकॉसमॉस |
भूप्रेक्षण, परीक्षण हेतु |
नौवहन उपग्रह
- उपग्रह वाणिज्यिक और सामरिक अनुप्रयोगों के साथ एक उभरती हुई उपग्रह आधारित प्रणाली है। नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं की बढ़ती मांगों को पूरा करने और स्वतंत्र उपग्रह नौवहन प्रणाली के आधार पर स्थिति, नौवहन और समय की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु नौवहन सेवाएँ आवश्यक हैं।
- नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये, ISRO GPS एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) सिस्टम की स्थापना हेतु भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के साथ संयुक्त रूप से काम कर रहा है।
- स्वदेशी प्रणाली पर आधारित स्थापन, नौवहन और समय संबंधी सेवाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये, ISRO भारतीय क्षेत्रीय नौवहनउपग्रह प्रणाली (IRNSS) नामक एक क्षेत्रीय उपग्रह नौवहनप्रणाली स्थापित कर रहा है।
अंतरिक्ष विज्ञान और अन्वेषण उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी, ग्रहीय एवं भूविज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और सैद्धांतिक भौतिकी जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान शामिल है। इस श्रेणी में आने वाले उपग्रह हैं:
- एस्ट्रोसैट, श्रीहरिकोटा से PSLV-C30 के माध्यम से 28 सितंबर, 2015 को प्रमोचित किया गया था। यह एक्स-रे, ऑप्टिकल और UV स्पेक्ट्रल बैंड में आकाशीय स्रोतों का एक साथ अध्ययन करने के उद्देश्य से समर्पित पहला भारतीय खगोल विज्ञान मिशन है। एस्ट्रोसैट मिशन की अनूठी विशेषताओं में से एक यह विशेषता है कि यह एक ही उपग्रह के साथ विभिन्न खगोलीय पिंडों की बहु-तरंगदैर्घ्य प्रेक्षणों को सक्षम बनाता है।
- मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM), जिसे (मंगलयान) के रूप में भी जाना जाता है, 5 नवंबर, 2013 को प्रमोचित किया गया। यह ISRO का पहला अंतराग्रहीय मिशन है, जो अपने पहले प्रयास में 24 सितंबर, 2014 को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर गया। MOM ने 24 सितंबर, 2018 को अपनी कक्षा में 4 साल पूरे कर लिये, हालाँकि MOM की निर्धारित मिशन अवधि केवल छह महीने थी। इसे मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना का अध्ययन करने के साथ-साथ मीथेन (मंगल ग्रह पर जीवन का एक संकेतक) का पता लगाने हेतु इसके वातावरण को बारीकी से जाँचने के उद्देश्य से PSLV C25 रॉकेट द्वारा प्रमोचित किया गया था। MOM को अनेक उपलब्धियों का श्रेय भी दिया जाता है जैसे लागत-प्रभावशीलता, प्राप्ति की कम अवधि, किफायती वजन, पाँच विषम नीतभार (पेलोड) का लघुकरण आदि। मार्स कलर कैमरा (MCC) के माध्यम से मंगल ग्रह के दो चंद्रमाओं, फोबोस और डीमोस, का नजदीक से चित्र खींचा गया।
- चंद्रयान-1, भारत का चंद्रमा के लिये पहला मिशन, भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी, बुल्गारिया और स्वीडन में निर्मित 11 वैज्ञानिक नीतभार (पेलोड) के साथ एक मानव रहित अंतरिक्ष यान था। इस मिशन में एक ऑर्बिटर और एक इंपैक्टर शामिल था। इसे 22 अक्टूबर, 2008 को ISRO द्वारा PSLV-C11 के माध्यम से प्रमोचित किया गया था, जिसे चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की उँचाई पर चंद्रमा की कक्षा का अध्ययन करने के लिये विकसित किया गया था। हालाँकि, इसे दो वर्षों के अभिप्रेत संचालन से कम समय के लिये संचालित किया गया लेकिन इसने अपने नियोजित उद्देश्यों का 90% से अधिक प्राप्त किया।
- चंद्रयान-2, चंद्रमा के लिये भारत का दूसरा मिशन एक पूरी तरह से स्वदेशी मिशन है जिसमें ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल हैं। चंद्रयान-2 को GSLV-F10 द्वारा वर्ष 2019 में प्रमोचितकरने की योजना थी। चंद्रमा की कक्षा में 100 किलोमीटर पहुँचने के बाद, लैंडर का भाग रोवर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा। एक नियंत्रित अवरोहण के बाद, लैंडर एक निर्दिष्ट स्थान पर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और रोवर को तैनात करेगा। पेलोड चंद्रमा कीस्थलाकृति, खनिज विज्ञान, तात्विक बहुतायत, चंद्र बाह्यमंडल, हाइड्रॉक्सिल और जल-हिम की उपस्थिति पर वैज्ञानिक जानकारी एकत्र करेगा।
परीक्षणात्मक उपग्रह
ISRO ने मुख्य रूप से प्रायोगिक उद्देश्यों के लिये अनेक छोटे उपग्रह प्रमोचित किये हैं। इस प्रयोग में सुदूर संवेदन, वायुमंडलीय अध्ययन, पेलोड डेवलपमेंट, ऑर्बिट कंट्रोल, रिकवरी टेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं।
महत्त्वपूर्ण परीक्षणात्मक उपग्रहों की सूची |
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उपग्रह |
प्रमोचन तिथि |
प्रमोचक यान |
अनुप्रयोग |
INS-1C |
12 जनवरी 2018 |
PSLV-C40/कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह मिशन |
परीक्षणात्मक हेतु |
यूथसैट |
20 अप्रैल 2011 |
PSLV-C16/RESOURCESAT-2 |
छात्र उपग्रह |
एप्पल |
19 जून 1981 |
एरिएन-1(V-3) |
संचार, परीक्षणात्मक हेतु |
रोहिणी प्रौद्योगिकी पेलोड (RTP) |
10 अगस्त 1979 |
SLV-3E1 |
|
आर्यभट्ट |
19 अप्रैल 1975 |
C-1 इंटरकॉसमॉस |
परीक्षणात्मक हेतु |
लघु उपग्रह
लघु उपग्रह परियोजना का द्रुत प्रतिवर्तन/प्रत्यावर्तन समय में भू-प्रेक्षण एवं वैज्ञानिक मिशनों हेतु एकमात्र नीतभारों के लिये एक मंच प्रदान कर रही है। विभिन्न प्रकार के नीतभार के लिये बहुमुखी मंच बनाने हेतु, दो प्रकार की बसों को संरूपित एवं विकसित किया गया है अर्थात इंडियन मिनी सैटेलाइट -1 (IMS-1) और इंडियन मिनी सैटेलाइट -2 (IMS-2)।
लघु छोटे उपग्रहों की सूची |
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उपग्रह |
प्रमोचन तिथि |
प्रमोचन द्रव्यमान |
प्रमोचन यान |
अनुप्रयोग |
माइक्रोसैट |
12 जनवरी 2018 |
PSLV-C40/कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह मिशन |
परीक्षणात्मक हेतु |
|
यूथसैट |
20 अप्रैल 2011 |
92 किग्रा |
PSLV-C16/रिसोर्ससैट-2 |
छात्र उपग्रह |
शैक्षणिक संस्थान उपग्रह
ISRO ने संचार, सुदूर संवेदन और खगोल विज्ञान के लिये उपग्रह विकसित करने जैसी अपनी गतिविधियों से शिक्षण संस्थानों को प्रभावित किया है। चंद्रयान-1 के प्रमोचन ने परीक्षणात्मक छात्र उपग्रह बनाने की दिशा में विश्वविद्यालयों और संस्थानों की रुचि बढ़ाई है। ISRO के मार्गदर्शन और समर्थन के द्वारा सक्षम विश्वविद्यालय एवं संस्थान नीतभार के डिज़ाइन और विकास तथा उपग्रह के निर्माण के माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं।
महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थान उपग्रहों की सूची |
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1 |
कलामसैट-V2 |
24 जनवरी 2019 |
PSLV-C44 |
4 |
प्रथम (PRATHAM) |
26 सितंबर 2016 |
PSLV-C35 / SCATSAT-1 |
5 |
सत्यभामासैट (SATHYABAMASAT) |
22 जून 2016 |
PSLV-C34 / कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
6 |
स्वयं (SWAYAM) |
22 जून 2016 |
PSLV-C34 / कार्टोसैट-2 शृंखला उपग्रह |
7 |
जुगनू (Jugnu) |
12 अक्टूबर 2011 |
PSLV-C18/मेघा-ट्रॉपिक्स |
9 |
स्टुडसैट (STUDSAT) |
12 जुलाई 2010 |
PSLV-C15/कार्टोसैट-2B |
10 |
अनुसैट (ANUSAT) |
20 अप्रैल 2009 |
PSLV-C12 / RISAT-2 |
अंतरिक्ष के लिये भारत का मानवयुक्त मिशन
- गगनयान ISRO का एक मिशन है जिसे वर्ष 2023 में प्रमोचित किया जाना है। इस मिशन के तहत:
- इसमें तीन उड़ानें कक्षा में भेजी जाएंगी।
- इसमें दो मानव रहित उड़ानें और एक मानव अंतरिक्ष उड़ान होगी।
- ऑर्बिटल मॉड्यूल कहे जाने वाले गगनयान सिस्टम मॉड्यूल में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे।
- यह 5-7 दिनों के लिये पृथ्वी से 300-400 किलोमीटर की ऊँचाई पर लो अर्थ ऑर्बिट में पृथ्वी की परिक्रमा करेगा।
- ISRO गगनयान मिशन के दौरान चालक दल की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2022 में दो मानव रहित 'एबोर्ट मिशन' भी संचालित करेगा।
स्क्रैमजेट (सुपरसोनिक दहन रैमजेट) इंजन
- अगस्त 2016 में, ISRO ने स्क्रैमजेट (सुपरसोनिक दहन रैमजेट) इंजन का परीक्षण सफलतापूर्वक आयोजित किया है।
- स्क्रैमजेट इंजन हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में और वायुमंडलीय से ऑक्सीजन को ऑक्सीकारक के रूप में उपयोग करता है।
- यह परीक्षण मैक 6 की गति पर हाइपरसोनिक उड़ान के साथ ISRO के स्क्रैमजेट इंजन का पहला लघु अवधि का प्रायोगिक परीक्षण था।
- ISRO का उन्नत प्रौद्योगिकी वाहन (ATV) सुपरसोनिक परिस्थितियों में स्क्रैमजेट इंजनों के परीक्षण के लिये उपयोग किया जाने वाला सॉलिड रॉकेट बूस्टर था जो एक उन्नत परिज्ञापी रॉकेट भी है।
- नई प्रणोदन प्रणाली ISRO के पुन: प्रयोज्य प्रमोचन यान का पूरक होगी जिसकी उड़ान अवधि लंबी व अधिक होगी।
- भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र (IN-SPACE):
- भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के लिये निजी कंपनियों को समान अवसर प्रदान करने हेतु IN-SPACe लॉन्च किया गया था।
- यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बीच एकल-बिंदु इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
- न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
- यह अंतरिक्ष विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत वर्ष 2019 में स्थापित भारत सरकार का एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है।
- यह भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों को शुरू करने में सक्षम बनाने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी के साथ ISRO की वाणिज्यिक शाखा है।
- इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है।
- भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA):
- ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
- अमेज़ोनिया-1:
- PSLV-C51 की 53वीं उड़ान ISRO की वाणिज्यिक शाखा, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के लिये पहला समर्पित मिशन है।
- अमेज़ोनिया-1, नेशनल इंस्टीटूट फॉर स्पेस रिसर्च (INPE) का प्रकाशिक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, अमेज़न क्षेत्र में निर्वनीकरण की निगरानी तथा ब्राज़ीलियाई क्षेत्र में विविधतापूर्ण कृषि का विश्लेषण करने के लिये प्रयोक्ताओं को सुदूर संवेदी आँकड़े प्रदान कर विद्यमान संरचना को और अधिक सुदृढ़ करेगा।
- यूनिटीसैट (तीन उपग्रह):
- इन्हें रेडियो रिले सेवाएँ प्रदान करने के लिये स्थापित किया गया है।
- सतीश धवन सैट (SDSAT):
- सतीश धवन उपग्रह (SDSAT) एक नैनो उपग्रह है जिसका उद्देश्य विकिरण स्तर/अंतरिक्ष मौसम का अध्ययन करना और लंबी दूरी की संचार तकनीकों का प्रदर्शन करना है।
- आगामी मिशन:
- चंद्रयान-3 मिशन: वर्ष 2022 की तीसरी तिमाही के दौरान चंद्रयान-3 को प्रमोचित किये जाने की संभावना है।
- तीन पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS):
- EOS-4 (Risat-1A) और EOS-6 (ओशनसैट-3) दोनों उपग्रहों को ISRO के शक्तिशाली प्रमोचन रॉकेट PSLV का उपयोग करके प्रमोचित किया जाएगा जबकि तीसरा उपग्रह EOS-2 (माइक्रोसैट) स्माल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) की पहली विकासात्मक उड़ान के दौरान प्रमोचित किया जाएगा।
- इन उपग्रहों को वर्ष 2022 की पहली तिमाही में प्रमोचित किया जाएगा।
- शुक्रयान मिशन: ISRO भी शुक्र ग्रह के लिये एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से शुक्रयान कहा जाता है।
- स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन: भारत वर्ष 2030 तक अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन प्रमोचित करने की योजना बना रहा है। इस प्रकार भारत भी अमेरिका, रूस और चीन के अंतरिक्ष क्लब के विशिष्ट वर्ग में शामिल हो जाएगा।
- XpoSat: XpoSat (एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह) अंतरिक्ष वेधशाला में ब्रह्मांडीय एक्स-रे का अध्ययन करने के लिये विकसित किया गया।
- आदित्य L1 मिशन: यह एक भारतीय अंतरिक्ष यान को 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर L1 या सूर्य और पृथ्वी के बीच लैग्रेंजियन (Lagrangian) बिंदु तक जाएगा।
- किन्हीं भी दो आकाशीय पिंडों के बीच पाँच लैग्रेंजियन बिंदु हैं जहाँ उपग्रह पर दोनों पिंडों का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव, बिना ईंधन खर्च किये, उपग्रह को कक्षा में रखने के लिये आवश्यक बल के बराबर है, जिसका अर्थ अंतरिक्ष में पार्किंग स्थल है।
ISRO के प्रमोचित यान
- PSLV (ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन प्रणाली) और GSLV (भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन रॉकेट) ISRO द्वारा विकसित उपग्रह-प्रमोचन यान हैं।
- PSLV ध्रुवीय कक्षा में "पृथ्वी-अवलोकन" या "सुदूर संवेदन" उपग्रहों को प्रमोचित करता है।
- सुदूर संवेदन उपग्रहों को सूर्य-तुल्यकाली ध्रुवीय कक्षाओं में प्रमोचित करने के अतिरिक्त, PSLV का उपयोग लगभग 1400 किलोग्राम के कम द्रव्यमान वाले उपग्रहों को दीर्घवृत्ताकार भूतुल्यकाली स्थानांतरण कक्षा (GTO) में प्रमोचित करने के लिये भी किया जाता है।
- यह एक चार चरणों वाला प्रमोचन यान है जिसमें पहले और तीसरे चरण में ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है तथा दूसरे और चौथे चरण में तरल ईंधन का उपयोग किया जाता है। थ्रस्ट बढ़ाने के लिये PSLV के साथ स्ट्रैप-ऑन मोटर्स का भी इस्तेमाल किया गया।
- PSLV को इसके विभिन्न संस्करणों जैसे कोर-एलोन संस्करण (PSLV-CA) या PSLV-XL वेरिएंट में वर्गीकृत किया गया है।
- GSLV संचार-उपग्रहों को लगभग 36000 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित भूतुल्यकाली स्थानांतरण कक्षा (GTO) तक पहुँचाता है।
- GSLV के दो संस्करण ISRO द्वारा विकसित किये गए हैं और तीसरे संस्करण का परीक्षण चरण चल रहा है। पहले संस्करण, GSLV Mk-II में GTO के लिये 2,500 किलोग्राम तक के भार के उपग्रहों को प्रमोचित करने की क्षमता है।
- GSLV MK-II एक तीन चरणों वाला यान है जिसके पहले चरण में ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है, दूसरे चरण में तरल ईंधन का उपयोग किया जाता है और तीसरे चरण को क्रायोजेनिक अपर स्टेज कहा जाता है, जिसमें क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग होता है।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के सामने चुनौतियाँ और अवसर
- भारत अभी भी विशाल विकासात्मक और सुरक्षा चिंताओं के साथ एक विकासशील देश है। इस संदर्भ में अंतरिक्ष मिशनों के आवंटन को सही ठहराना बहुत जटिल है जिसका विकास पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
- MOM के सफल प्रमोचन और चंद्रमा पर एक नियोजित रोवर ने निश्चित रूप से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा दिया है। लेकिन उपग्रहों पर भारत की निर्भरता ने सैन्य भेद्यता उत्पन्न की है।
- वर्ष 2007 में चीन द्वारा परीक्षण की गई एक उपग्रह-रोधी मिसाइल (ASAT) ने भी अंतरिक्ष कार्यक्रम में धीमी गति से चलने वाली हथियारों की दौड़ के खतरे को बढ़ा दिया है।
- DRDO मिसाइल रक्षा के विकास पर कार्य कर रहा है लेकिन यह तेज़ी से संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के साथ साझेदारी करना चाह रहा है।
- चीन ने क्रमशः वर्ष 2011 और 2012 में पाकिस्तान तथा श्रीलंका के लिये उपग्रह प्रमोचित किये हैं। यह अंतरिक्ष सहयोग चीन के लिये दक्षिण एशियाई देशों में पैठ बनाने का एक और रास्ता बना सकता है।
- इस दशक की शुरुआत में भारत अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये एक आचार संहिता बनाने के यूरोपीय संघ के प्रयासों की अत्यधिक आलोचना करता था, लेकिन पिछले वर्षों में यह विशेष रूप से आचार संहिता और अन्य सुरक्षा उपायों पर चर्चा करने में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है।
- भारत का मानना है कि अंतरिक्ष क्षेत्र और साइबर क्षमताओं के एकीकरण पर निर्भरता भविष्य के संघर्षों में ही बढ़ेगी। लेकिन अब समुद्री क्षेत्र से परे, भारत कई अन्य उपग्रह-आधारित संचार और डेटा सेवाओं के लिये विदेशी साझेदारों पर निर्भर रहा है। उदाहरण के लिये, यह अंतरिक्ष संचार के लिये NASA पर निर्भर है।
- निजीकरण भी भारत को अपनी प्रमोचन क्षमता बढ़ाने की अनुमति दे सकता है, जो वर्तमान में प्रति वर्ष चार से पाँच है जबकि चीन औसतन बीस या इतने ही प्रमोचन करता है। निजी क्षेत्र की भागीदारी को निर्देशित करने हेतु भारत के पास कोई स्पष्ट अंतरिक्ष नीति नहीं है।
- ISRO की उपग्रह प्रमोचित करने की क्षमता पर आंतरिक बाधाएँ भी हैं।
- अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा जून 2018 में "अंतरिक्ष बल" या अमेरिकी सशस्त्र बलों की छठी शाखा के निर्माण की घोषणा ने भारत सहित कई देशों को चिंतित किया है। जबकि भारत आधिकारिक रूप से PAROS, या अंतरिक्ष क्षेत्र में हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा को रोकने के लिये प्रतिबद्ध है, फिर भी इस तरह की योजनाओं के लिये एक विश्वसनीय आधिकारिक प्रतिक्रिया तैयार करना अभी बाकी है। भारत को अभी तक अपनी स्वयं की एक विश्वसनीय अंतरिक्ष कमान स्थापित करनी है।
- इस संदर्भ में चीन की प्रतिक्रिया उसकी प्रतीत होने वाली मौन आधिकारिक प्रतिक्रिया से कहीं अधिक सुदृढ़ हो सकती है और उसके पास एक दुर्जेय अंतरिक्ष सैन्य कार्यक्रम है जो वर्तमान में भारतीय क्षमताओं से कहीं अधिक है।
- एलोन मस्क और रिचर्ड ब्रैनसन जैसे विश्व स्तर के उद्यमियों ने अंतरिक्ष गतिविधियों को स्वतंत्र लाभदायक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में परिवर्तित करना शुरू किया जिसे नई अंतरिक्ष क्रांति कहा जा सकता है।
अब अधिक संरचित दृष्टिकोण का समय आ गया है जो भारत में युवा प्रतिभाओं के बेहतर उद्भवन को सक्षम बनाता है। सौभाग्य से, एंट्रिक्स ऐसे विचारों के लिये खुला है। विभिन्न नीतियों और अधिनियमों को बदलने या प्रतिबंधात्मक बनाने के बजाय सक्षम बनाने की आवश्यकता है।