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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

निजी क्षेत्र और भारतीय अंतरिक्ष उद्योग

  • 25 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र

मेन्स के लिये

अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भूमिका: लाभ और जोखिम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान संस्थानों की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये एक नए निकाय के गठन को मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन तथा प्रमाणीकरण केंद्र’ (Indian National Space Promotion and Authorization Centre-IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के माध्यम से दूरगामी सुधार सुनिश्चित करेगा।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह निर्णय भारत की अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू किये गए सुधारों का एक हिस्सा है।

प्रस्तावित निकाय के कार्य

  • सरकार द्वारा प्रस्तावित यह निकाय, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) एवं उस प्रत्येक व्यक्ति तथा संस्था के मध्य एक कड़ी का कार्य करेगा, जो अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं अथवा भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करना चाहते हैं।
  • प्रस्तावित निकाय अंतरिक्ष परिसंपत्तियों एवं गतिविधियों के सामाजिक-आर्थिक उपयोग को बढ़ावा देने का कार्य भी करेगा।
  • इन-स्पेस (IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों को समान अवसर उपलब्ध कराएगा।

उद्देश्य

  • इस निकाय के गठन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी आवश्यक गतिविधियों जैसे- अनुसंधान एवं विकास, ग्रहों के अन्वेषण और अंतरिक्ष के रणनीतिक उपयोग आदि पर ध्यान केंद्रित कर सके और अन्य सहायक कार्यों को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाए। 
  • इसके अतिरिक्त यह निकाय छात्रों और शोधकर्त्ताओं आदि को भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियों तक अधिक पहुँच प्रदान करेगा, जिससे भारत के अंतरिक्ष संसाधनों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा। 

लाभ

  • विशेषज्ञों के अनुसार, सरकार का यह ऐतिहासिक निर्णय ISRO को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देगा। 
  • ये सुधार ISRO को अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों, नई प्रौद्योगिकियों, खोज मिशनों तथा मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान करने में सक्षम बनाएंगे। उल्लेखनीय है कि सरकार कुछ ग्रह संबंधी खोज मिशनों को भी निजी क्षेत्र के लिये खोलने पर विचार कर रही है।
  • विदित हो कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में उन्नत क्षमताओं वाले कुछ प्रमुख देशों में शामिल है और इन सुधारों से देश के अंतरिक्ष क्षेत्र को नई ऊर्जा तथा गतिशीलता प्राप्त होगी जिससे भारत को अंतरिक्ष गतिविधियों के आगामी चरण में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
  • इससे न केवल भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में तेज़ी आएगी बल्कि भारतीय अंतरिक्ष उद्योग विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इसके साथ ही इस निर्णय से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोज़गार की संभावनाएं बनेंगी।

निजी क्षेत्र और भारत

  • भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका अब तक काफी सीमित रही है। सिर्फ कम महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये ही निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली जाती रही हैं। उपकरणों को बनाना और जोड़ना तथा परीक्षण (Assembly, Integration and Testing-AIT) जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य अब तक ISRO द्वारा ही किये जाते रहे हैं।
  • उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited- NSIL) का आधिकारिक रूप से बंगलूरु में उद्घाटन किया गया था, जो कि ISRO की एक वाणिज्यिक शाखा है। NSIL का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना था।
  • बीते दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि आगामी समय भारत का निजी क्षेत्र भारत के अंतरिक्ष संबंधी कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया था कि सरकार ISRO की सुविधाओं को निजी क्षेत्र के साथ साझा करने पर विचार कर रही है।

अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र- लाभ

  • लगातार बढ़ती मांग: हाल के कुछ वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वार्षिक बजट में कुछ वृद्धि हुई है, जो कि ISRO के विकास को दर्शाता है, हालाँकि देश में अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की मांग भी काफी तेज़ी से बढ़ रही है, जिसके कारण ISRO इन मांगों को पूरा करने में समर्थ नहीं है। ऐसे में मांग को पूरा करने के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास: कई विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास निजी क्षेत्र की भागीदारी के बिना सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यदि भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र का समग्र विकास करना है तो उसे निजी क्षेत्र के लिये एक अनुकूल वातावरण निर्मित करना होगा।
  • मानव पूंजी का यथोचित उपयोग: ध्यातव्य है कि अंतरिक्ष गतिविधियों को केवल ISRO तक सीमित करने से, देश में मौजूद मानव पूंजी का यथोचित उपयोग संभव नहीं हो पाता है। इस प्रकार अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिये खोलने से देश में उपलब्ध मानव पूंजी संसाधन का पूर्ण उपयोग संभव हो सकेगा।
  • प्रौद्योगिक उन्नति: अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करने से बेहतर और महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास संभव हो सकेगा। इससे अंतरिक्ष अन्वेषण गतिविधियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी कई अन्य तकनीकों के एकीकरण हो सकेगा। 
  • जोखिम में कमी: अंतरिक्ष संबंधी प्रत्येक लॉन्च में विभिन्न प्रकार के जोखिम निहित होते हैं, ऐसे में निजी क्षेत्र लागत कारक के जोखिम को साझा करने में मदद कर सकता है। 

अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र- जोखिम

  • डेटा संबंधी जोखिम: निजी क्षेत्र को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल करने से ISRO और भारत की सुरक्षा से संबंधी डेटा की संवेदनशीलता और इस प्रकार के डेटा के दुरुपयोग तथा अनुचित उपयोग का खतरा काफी अधिक बढ़ जाएगा। 
  • विनियमन की चुनौती: हालाँकि निजी क्षेत्र को भारत के अंतरिक्ष उद्योग में शामिल करना एक लाभदायक निवेश होगा, किंतु निजी क्षेत्र की भागीदारी का नियमन करना सरकार के लिये सबसे बड़ी चुनौती होगी, जो कि किसी भी प्रकार से सरल कार्य नहीं है। 
  • राजस्व का नुकसान: निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल करने से ISRO के राजस्व पर भी काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा, जिसका स्पष्ट प्रभाव सरकार के राजस्व पर देखने को मिलेगा।
  • अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा- निजी क्षेत्र को इस उद्योग में अनुमति देना एक प्रकार से इस उद्योग में अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं को बढ़ावा देना होगा, इससे न केवल भारतीय अंतरिक्ष मिशन प्रभावित होगा बल्कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की साख में भी कमी होगी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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