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भारतीय राजनीति

विस्मृत करने का अधिकार

  • 05 Aug 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का सर्वोच्च न्यायालय, विस्मृत करने का अधिकार, व्यक्तिगत डेटा, निजता का अधिकार, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

मेन्स के लिये:

विस्मृत करने का अधिकार और गोपनीयता की रक्षा के लिये सरकार के कदम, संबंधित चुनौतियाँ, डेटा गोपनीयता अधिकार

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक ऐसे मामले की सुनवाई के लिये सहमत हो गया है जो भारत में "विस्मृत करने का अधिकार" को पुनः परिभाषित कर सकता है, जहाँ वर्तमान में कोई वैधानिक ढाँचा मौजूद नहीं है।

  • यह अधिकार यूरोपीय गोपनीयता कानून में "राईट टू इरेज़" के रूप में भी जाना जाता है, जो किसी व्यक्ति की अपनी डिजिटल छाप को सार्वजनिक दृश्य से हटाने की क्षमता से संबंधित है, जब यह उसकी गोपनीयता का उल्लंघन करता है।
  • इस निष्कर्ष से पूरे देश में इस अधिकार को समझने और इसके कार्यान्वयन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।

विस्मृत करने का अधिकार क्या है?

  • परिभाषा: विस्मृत करने का अधिकार व्यक्तियों को डिजिटल प्लेटफॉर्मों से अपने व्यक्तिगत डेटा को हटाने का अनुरोध करने की अनुमति देता है जब यह पुराना, अप्रासंगिक या उनकी गोपनीयता के लिये हानिकारक हो।
  • यूरोपीय संदर्भ: लक्ज़मबर्ग स्थित यूरोपीय संघ के न्यायालय (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में स्थापित, विस्मृत करने के अधिकार को "गूगल स्पेन मामले" में उजागर किया गया था, जिसके तहत गूगल को अनुरोध किये जाने पर 'अपर्याप्त, अप्रासंगिक या अब प्रासंगिक नहीं' डेटा को हटाने की आवश्यकता थी।
    • न्यायालय ने कहा कि सर्च इंजनों को ऐसी सूचना को हटाने के अनुरोधों पर प्रतिक्रिया देनी चाहिये जो अब प्रासंगिक नहीं है या समय बीतने के साथ अत्यधिक हो गई है।
    • यूरोपीय संघ में, विस्मृत करने का अधिकार सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) के अनुच्छेद 17 में निहित है, जो सूचनात्मक आत्मनिर्णय और व्यक्तिगत डेटा को नियंत्रित करने के अधिकार पर ज़ोर देता है।
  • अन्य राष्ट्र: कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, अर्जेंटीना और जापान जैसे देशों ने भी इसी तरह के कानून अपनाए हैं। वर्ष 2023 में एक कनाडा के न्यायालय ने व्यक्तिगत डेटा पर सर्च ब्लॉक की मांग करने के अधिकार को बरकरार रखा।
    • कैलिफोर्निया: वर्ष 2015 का ऑनलाइन इरेज़र कानून (Eraser law) नाबालिगों को अपनी पोस्ट की गई जानकारी हटाने की अनुमति देता है। वर्ष 2023 का डिलीट एक्ट (DELETE Act ) वयस्कों को भी यह अधिकार देता है, जिससे उन्हें डेटा ब्रोकर्स द्वारा एकत्र की गई व्यक्तिगत जानकारी हटाने की अनुमति मिलती है।

भारत में विस्मृत करने के अधिकार की व्याख्या कैसे की जाती है?

  • वर्तमान स्थिति: भारत में विस्मृत करने के अधिकार के लिये कोई विशिष्ट वैधानिक ढाँचा नहीं है। हालाँकि इस अवधारणा को गोपनीयता और डिजिटल अधिकारों के संदर्भ में संदर्भित किया गया है।
  • न्यायिक मान्यता: न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में वर्ष 2017 के निर्णय में निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई, जिसमें विस्मृत करने का अधिकार भी शामिल है।
    • पुट्टस्वामी मामले में न्यायालय ने विस्मृत करने के अधिकार को स्वीकार किया, लेकिन स्पष्ट किया कि यह पूर्ण नहीं होना चाहिये। इसने उन परिदृश्यों को रेखांकित किया, जहाँ यह अधिकार लागू नहीं हो सकता है, जैसे कि सार्वजनिक हित, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अभिलेखीकरण, अनुसंधान या कानूनी दावों के लिये।
    • कहा गया कि इस तरह के अधिकार को मान्यता देने का अर्थ केवल यह होगा कि कोई व्यक्ति अपना व्यक्तिगत डेटा तब हटा सकेगा जब वह प्रासंगिक न हो या किसी वैध हित में कार्य न करता हो।
  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023: यह अधिनियम "मिटाने" के अधिकार को मान्यता देता है, लेकिन ये नियम न्यायालय के रिकॉर्ड और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आँकड़ों पर कैसे लागू होते हैं, यह असंगत न्यायिक व्याख्याओं के कारण स्पष्ट नहीं है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021: मध्यस्थों को शिकायत के 24 घंटे के भीतर गोपनीयता का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने या उस तक पहुँच अक्षम करने के लिये बाध्य करता है।

विस्मृत करने के अधिकार से संबंधित न्यायिक पूर्ववर्ती उदाहरण क्या हैं?

  • राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य मामला, 1994: इस ऐतिहासिक मामले में "अकेले रहने के अधिकार" पर चर्चा की गई, लेकिन इसे न्यायालय के निर्णयों जैसे सार्वजनिक अभिलेखों के प्रकाशन से अलग रखा गया, जो सार्वजनिक टिप्पणी हेतु एक वैध विषय है।
  • धर्मराज भानुशंकर दवे बनाम गुजरात राज्य, 2017: गुजरात उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक रिकॉर्ड से बरी किये जाने के विवरण को हटाने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और इस तर्क पर ज़ोर दिया कि न्यायालय के आदेश सुलभ रहने चाहिये।
  • उड़ीसा उच्च न्यायालय (2020): उड़ीसा उच्च न्यायालय ने "रिवेंज पोर्न" से जुड़े एक आपराधिक मामले में विस्मृत करने के अधिकार पर गहन बहस के महत्त्व पर बल दिया।
    • न्यायालय ने कहा कि इस अधिकार के क्रियान्वयन में जटिल मुद्दे शामिल हैं, जिसके लिये  स्पष्ट कानूनी सीमाओं और निवारण तंत्र की आवश्यकता है।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय (2021): आपराधिक मामले में विस्मृत करने के अधिकार को बढ़ाया गया, जिससे याचिकाकर्त्ता के सामाजिक जीवन और कॅरियर की संभावनाओं की रक्षा के लिये खोज परिणामों से विवरण हटाने की अनुमति मिली।
  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश (जुलाई 2022): सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री को एक विवादास्पद वैवाहिक विवाद में शामिल जोड़े के व्यक्तिगत विवरणों को सर्च इंजन से हटाने के लिये एक तंत्र बनाने का निर्देश दिया। इसने विस्मृत करने के अधिकार की व्याख्या का विस्तार किया।
  • केरल उच्च न्यायालय (दिसंबर 2023): न्याय का अधिकार और सार्वजनिक हित के विषय में चिंताओं का हवाला देते हुए निर्णय सुनाया कि विस्मृत करने के अधिकार को चल रही न्यायालय की कार्यवाही पर लागू नहीं किया जा सकता।
    • न्यायालय ने सुझाव दिया कि विधायी स्पष्टता की आवश्यकता है, लेकिन इस बात पर भी सहमति जताई कि अधिकार का मूल्यांकन मामले की विशिष्ट विशेषताओं और बीते समय के आधार पर किया जा सकता है।
  • हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (जुलाई 2024): बलात्कार के एक मामले में आरोपी और पीड़िता दोनों के नाम हटाने का निर्देश दिया, जिसमें इस तर्क पर प्रकाश डाला गया कि एक बार बरी होने के बाद किसी व्यक्ति पर आरोपों का कलंक नहीं रहना चाहिये।

असंगत न्यायिक दृष्टिकोण से क्या चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं?

  • एकरूपता का अभाव: विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णय, विस्मृत करने के अधिकार के अनुप्रयोग के संबंध में भ्रम उत्पन्न करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप असंगत प्रवर्तन और संभावित कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
  • गोपनीयता और सार्वजनिक हित में संतुलन: न्यायालयों को व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों और न्याय का अधिकार तथा सूचना तक सार्वजनिक पहुँच के सिद्धांत के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई होती है, जिससे स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करना कठिन हो जाता है।
  • सार्वजनिक अभिलेखों पर प्रभाव: राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य, 1994 में चर्चा की गई व्यक्तिगत गोपनीयता और सार्वजनिक अभिलेखों के बीच का अंतर चुनौतियाँ पेश करता है।
    • न्यायालयों को यह पता लगाना होगा कि सार्वजनिक न्यायालय के अभिलेखों की पहुँच और वैधता को कम किये बिना व्यक्तिगत गोपनीयता की रक्षा कैसे की जाए।
  • विधायी स्पष्टता की आवश्यकता: व्यापक कानूनी ढाँचे का अभाव अधिकार के असंगत अनुप्रयोग में योगदान देता है, जिससे स्पष्ट मानकों और प्रक्रियाओं को परिभाषित करने के लिये विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता पर प्रकाश डाला जाता है।
  • अतिक्रमण की संभावना: न्यायालयों के अलग-अलग दृष्टिकोण अतिक्रमण और डिजिटल रिकॉर्ड की अखंडता के विषय में चिंता उत्पन्न कर सकते हैं।
    • इस बात का जोखिम है कि निजी संस्थाओं पर ऑनलाइन सूचना की सटीकता और पूर्णता को प्रभावित करने वाली सामग्री को हटाने के लिये अनुचित दबाव पड़ सकता है।
  • अधिकारों में संतुलन: न्यायालयों को विस्मृत करने के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।  इसके अतिरिक्त, विस्मृत करने के अधिकार और सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के बीच समस्याओं को हल करने के लिये स्पष्ट मानकों की आवश्यकता है।
  • अन्य चुनौतियाँ: अनुपालन मुद्दों और डेटा प्रतिकृति जैसी तकनीकी बाधाओं के कारण डिजिटल प्लेटफॉर्मों तथा अधिकार क्षेत्रों में विस्मृत करने के अधिकार को लागू करना चुनौतीपूर्ण है।
    • सर्च इंजन, वेबसाइट और अन्य मध्यस्थों से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत कानूनी एवं तकनीकी तंत्र की आवश्यकता होती है। इंटरनेट से पूरी जानकारी हटाना तकनीकी रूप से कठिन हो सकता है।
    • पत्रकारिता पर प्रतिबंध: यह पत्रकारों को कुछ लोगों के इतिहास और पिछली गतिविधियों का खुलासा करने से रोक सकता है, जिससे पत्रकारों की मीडिया के माध्यम से स्वतंत्र रूप से सूचना तथा विचार प्रदान करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे पत्रकारिता की लोकतांत्रिक भूमिका प्रभावित हो सकती है।

'विस्मृत करने का अधिकार' क्यों अपनाया जाना चाहिये?

  • व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण: डिजिटल युग में व्यक्तियों को अपनी व्यक्तिगत जानकारी और पहचान पर नियंत्रण रखने का अधिकार होना चाहिये।
    • सरकारें और निजी संस्थाएँ ऑनलाइन गतिविधियों पर नज़र रखकर और उन्हें रिकॉर्ड करके गोपनीयता में महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप कर सकती हैं।
    • कई बार व्यक्तिगत जानकारी, जैसे अंतरंग तस्वीरें या निजी विवरण, बिना सहमति के ऑनलाइन साझा कर दिये जाते हैं। 
      • 'विस्मृत करने का अधिकार' इस मुद्दे का समाधान करते हुए, व्यक्तियों को ऐसी सामग्री को सार्वजनिक पहुँच से हटाने की अनुमति देता है।
  • डिजिटल क्षति को कम करना: पुरानी या गलत जानकारी की मौजूदगी किसी व्यक्ति के जीवन पर लंबे समय तक नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिसमें उनके व्यक्तिगत संबंध और पेशेवर अवसर शामिल हैं। यह अधिकार पुराने या अप्रासंगिक डेटा को हटाने की अनुमति देकर ऐसे नुकसान को कम करने में मदद करता है।
    • व्यक्तियों को उनके अतीत के लिये लगातार दंडित नहीं किया जाना चाहिये, खासकर तब जब वे आगे बढ़ चुके हों या बदल चुके हों। अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि पुरानी जानकारी के आधार पर उनके साथ अन्याय न किया जाए।
  • गोपनीयता का अधिकार: अवैध रूप से सार्वजनिक की गई निजी जानकारी तक पहुँचने का कोई अधिकार नहीं है।
    • विस्मृत करने का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तियों को गैर-कानूनी रूप से प्रकट की गई व्यक्तिगत जानकारी के दुष्परिणामों के साथ जीने के लिये बाध्य न किया जाए।

आगे की राह 

  • विधायी रूपरेखा: 'विस्मृत करने के अधिकार' के साथ एक व्यापक डेटा संरक्षण कानून बनाना, डेटा मिटाने के लिये स्पष्ट मानदंड परिभाषित करना और एक स्वतंत्र डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना करना।
    • इस निकाय को गोपनीयता, प्रौद्योगिकी और कानून में विशेषज्ञता प्राप्त होगी, जिससे सुसंगत तथा निष्पक्ष निर्णय सुनिश्चित होंगे।
  • अतिक्रमण: स्पष्ट परिभाषाओं, सीमाओं और निरीक्षण तंत्र के माध्यम से 'विस्मृत करने के अधिकार' के दुरुपयोग को रोकना।
    • 'विस्मृत करने के अधिकार' के मामलों में गोपनीयता और सार्वजनिक हित के बीच संतुलन बनाने के लिये स्पष्ट न्यायिक दिशा-निर्देश विकसित करना, जिसमें सूचना की प्रकृति, सार्वजनिक हित तथा प्रकाशन के बाद से बीता समय जैसे कारकों पर विचार किया जाए।
  • उद्योग स्व-नियमन: ज़िम्मेदार डेटा हैंडलिंग प्रथाओं को विकसित करने के लिये उद्योग स्व-नियमन को प्रोत्साहित करना। डेटा न्यूनीकरण और सुरक्षित डेटा विलोपन प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना।
    • डेटा विलोपन और गुमनामीकरण से संबंधित तकनीकी चुनौतियों का समाधान करने के लिये अनुसंधान तथा  विकास में निवेश करना।
  • जन जागरूकता: डेटा गोपनीयता अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में व्यक्तियों को शिक्षित करने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाना। ज़िम्मेदार ऑनलाइन व्यवहार की संस्कृति को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

"विस्मृत करने का अधिकार" कानूनी और तकनीकी क्षेत्रों में महत्त्व प्राप्त कर रहा है, जो गोपनीयता सुरक्षा में इसकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। भारत में विशिष्ट कानून की कमी का मतलब है कि इस अधिकार को वर्तमान में न्यायपालिका के माध्यम से संबोधित किया जाता है, लेकिन भविष्य के कानून से इस अधिकार को मान्यता देने के चल रहे प्रयासों के साथ एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करने की उम्मीद है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: विश्लेषण कीजिये कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने 'विस्मृत करने के अधिकार' की व्याख्या कैसे की है। भारत में गोपनीयता अधिकारों के लिये इन व्याख्याओं के क्या निहितार्थ हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ‘निजता का अधिकार’ संरक्षित है? (2021)

(a)अनुच्छेद  15
(b)अनुच्छेद  19
(c)अनुच्छेद  21
(d)अनुच्छेद  29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही और समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य नीति के निदेशक तत्त्व।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परीक्षण कीजिये। (2017)

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