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संसद टीवी संवाद


भारतीय अर्थव्यवस्था

बजट विशेष: MSME बजट 2024-25

  • 26 Aug 2024
  • 21 min read

प्रिलिंस के लिये:

केंद्रीय बजट 2024-25, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र, मुद्रा ऋण, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, ई-कॉमर्स निर्यात केंद्र, कौशल विकास और उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति, GST, MSME प्रदर्शन को बढ़ाना और तेज़ करना (RAMP), व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली (TReDS), पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिये निधि योजना (SFURTI), विशेष क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी योजना (SCLCSS), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये एक योजना (ASPIRE), गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था और समावेशी विकास में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2024-25 में सरकार ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को बढ़ाने के लिये कई पहलों की घोषणा की।

बजट में एक नया MSME ऋण मूल्यांकन मॉडल पेश किया गया, मुद्रा ऋण सीमा बढ़ाई गई, SIDBI शाखाओं का विस्तार किया गया, ई-कॉमर्स निर्यात केंद्र स्थापित किये गए तथा व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली (TReDS) की ऑनबोर्डिंग सीमा को कम किया गया।

MSMEs क्या हैं?

  • परिचय
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) ऐसे व्यवसाय हैं, जो माल एवं वस्तुओं (कमोडिटी) का उत्पादन, प्रसंस्करण एवं संरक्षण करते हैं।
    • इन्हें विनिर्माण के लिये संयंत्र तथा मशीनरी या सेवा उद्यमों के लिये साधन में उनके निवेश के साथ-साथ उनके वार्षिक कारोबार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है-
      • सूक्ष्म उद्यम: संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 1 करोड़ रुपए तथा कारोबार 5 करोड़ रुपए तक
      • लघु उद्यम: संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 10 करोड़ रुपए तथा कारोबार 50 करोड़ रुपए तक
      • मध्यम उद्यम: संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में निवेश 50 करोड़ रुपए तथा कारोबार 250 करोड़ रुपए तक।
  • MSME क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
    • सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, MSME विनिर्माण भारत के कुल विनिर्माण सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 40.83% का योगदान देता है तथा MSME क्षेत्र भारत के कुल निर्यात में 45.56% का योगदान देता है।
    • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, MSMEs की कुल अनुमानित संख्या का 99% से अधिक हिस्सा सूक्ष्म क्षेत्र से संबंधित है, जबकि लघु क्षेत्र और मध्यम क्षेत्र में क्रमशः कुल अनुमानित MSME का 0.52% व 0.01% हिस्सा है।
    • MSME की अनुमानित 633.88 प्रतिशत इकाइयों में से 51.25 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित हैं।
    • सामाजिक रूप से पिछड़े समूहों के पास MSMEs का लगभग 66.27% हिस्सा है। 
    • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (NSS) के 73वें दौर के अनुसार, MSME क्षेत्र ने 11.10 करोड़ रोज़गार सृजित किये हैं।

MSME क्षेत्र के लिये बजट 2024-25 में नए प्रावधान क्या हैं?

  • क्रेडिट गारंटी योजना: यह MSMEs को मशीनरी और उपकरणों के लिये बिना किसी संपार्श्विक या तीसरे पक्ष की गारंटी के टर्म लोन की सुविधा प्रदान करती है।
  • विस्तारित क्रेडिट गारंटी: एक स्व-वित्तपोषण निधि उधारकर्त्ता से अपेक्षित अग्रिम और वार्षिक शुल्क के साथ प्रति उधारकर्त्ता 100 करोड़ रुपए तक की गारंटी प्रदान करती है।
  • नया मूल्यांकन मॉडल: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पारंपरिक परिसंपत्ति और टर्नओवर मानदंडों से हटकर MSME के लिये डिजिटल फुटप्रिंट-आधारित ऋण मूल्यांकन का उपयोग करेंगे।
  • तनाव अवधि समर्थन: एक नया तंत्र MSME को तनाव में भी निरंतर ऋण प्रदान करेगा, जिसमें विशेष उल्लेख खातों में शामिल MSME भी शामिल हैं और तरुण श्रेणी के तहत पूर्व में ऋण चुका देने वालों के लिये मुद्रा ऋण सीमा 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 20 लाख रुपए कर दी गई है।
  • TReDS के लिये कम टर्नओवर सीमा: व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली (TReDS) प्लेटफॉर्म पर अनिवार्य ऑनबोर्डिंग के लिये टर्नओवर सीमा को 500 करोड़ रुपए से घटाकर 250 करोड़ रुपए किया जाएगा ताकि MSMEs की अधिक भागीदारी को सुगम बनाया जा सके।
  • SIDBI शाखा विस्तार: अपनी पहुँच में सुधार करने और इन व्यवसायों को प्रत्यक्ष ऋण प्रदान करने के लिये SIDBI द्वारा अगले तीन वर्षों में MSME क्लस्टरों में नई शाखाएँ खोली जाएंगी। इस वर्ष 24 शाखाएँ स्थापित करके यह 242 प्रमुख क्लस्टरों में से 168 तक अपनी सेवा कवरेज़ का विस्तार करेगा।
  • गुणवत्ता और निर्यात के लिये वित्तीय सहायता: MSME और पारंपरागत कारीगरों को अंतर्राष्ट्रीय बिक्री में सहायता करते हुए ई-कॉमर्स निर्यात केंद्रों के निर्माण के अलावा, 50 विकिरण (Irradiation) इकाइयों और 100 NAB-मान्यता प्राप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिये वित्त उपलब्ध कराया जाएगा।

MSME क्षेत्र के लिये प्रमुख पहल और योजनाएँ क्या हैं?

  • RAMP योजना: MSME प्रदर्शन को बढ़ाना और तेज़ करना (RAMP) योजना का उद्देश्य बाज़ार और ऋण तक पहुँच को बढ़ाना, केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर संस्थानों तथा शासन को सुदृढ़ करना, केंद्र-राज्य संबंधों एवं भागीदारी में सुधार करना, साथ ही MSME के लिये विलंबित भुगतान तथा पर्यावरणीय धारणीयता के मुद्दों को हल करना है।
  • FIRST: इंटरनेट रिटेलर्स, सेलर्स और ट्रेडर्स (FIRST) के लिये फोरम का उद्देश्य पूरे भारत में MSME को डिजिटल होने व आत्मनिर्भर बनने के लिये जागरूकता और समर्थन को बढ़ावा देना है। इसका उद्देश्य ऑनलाइन बिक्री में लगे MSME का प्रतिनिधित्व करना और सरकारी अधिकारियों एवं नीति निर्माताओं के लिये अधिवक्ता के रूप में काम करके उनके विकास का समर्थन करना है।
  • TReDs योजना: व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली (TReDS) एक संस्थागत तंत्र है जिसे कॉर्पोरेट खरीदारों, सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) से कई वित्तपोषकों के माध्यम से MSME व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण की सुविधा के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • CHAMPIONS पोर्टल: वर्ष 2020 में लॉन्च किया गया, यह MSMEs को उनकी शिकायतों को दूर करने, प्रोत्साहित करने, समर्थन करने और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करने के लिये एक प्रौद्योगिकी-संचालित मंच है। यह MSMEs को सिंगल-विंडो समाधान प्रदान करता है
  • उद्यम पंजीकरण: यह MSMEs के लिये एक सरलीकृत ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया है, जिसने उद्योग आधार ज्ञापन दाखिल करने की पिछली प्रणाली की जगह ली है। इसका उद्देश्य MSME पंजीकरण की प्रक्रिया को आसान बनाना और उन्हें विभिन्न लाभ प्रदान करना है
  • MSME समाधान: यह एक विलंबित भुगतान निगरानी प्रणाली है जो MSME आपूर्तिकर्त्ताओं को केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, CPSE या राज्य सरकारों द्वारा विलंबित भुगतान से संबंधित अपने मामलों को सीधे पंजीकृत करने में सक्षम बनाती है।
  • SFURTI योजना: पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिये निधि योजना (SFURTI) का उद्देश्य पारंपरिक उद्योगों और कारीगरों को समूहों में संगठित करके पारंपरिक उद्योगों को अधिक उत्पादक एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाना है ताकि उनकी दीर्घकालिक स्थिरता व अर्थव्यवस्था के लिये समर्थन प्रदान किया जा सके।
  • विशेष क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी स्कीम (SCLCSS): राष्ट्रीय SC-ST हब के तहत विशेष क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी योजना (SCLCSS) SC-ST MSE के लिये संयंत्र और मशीनरी पर 25% सब्सिडी प्रदान करता है, जिसकी अधिकतम सीमा 25 लाख रुपए है ताकि नए व विस्तारित उद्यमों का समर्थन किया जा सके तथा सार्वजनिक खरीद में उनकी भागीदारी बढ़ाई जा सके।
  • MSME इनोवेटिव स्कीम: यह योजना MSME क्षेत्र की अप्रयुक्त रचनात्मकता को बढ़ावा देती है और उसका समर्थन करती है। इनोवेटर्स की सहायता और सुरक्षा के लिये इसमें इनक्यूबेशन, डिज़ाइन तथा  IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) घटक शामिल हैं।
  • MSME संबंध: यह एक सार्वजनिक खरीद पोर्टल है, जो MSMEs की सार्वजनिक खरीद नीति के कार्यान्वयन की निगरानी करता है और MSMEs से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा खरीद को ट्रैक करता है।
  • ASPIRE योजना: नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने की योजना, ग्रामीण आजीविका व्यवसाय इनक्यूबेटर (LBI) और प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह योजना ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नए सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने तथा रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के लिये ऋण-लिंक्ड सब्सिडी प्रदान करती है
    • सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में 25% और शहरी क्षेत्रों में 15% मार्जिन मनी सब्सिडी मिलती है, जबकि विशेष श्रेणी के लाभार्थियों को ग्रामीण क्षेत्रों में 35% तथा शहरी क्षेत्रों में 25% मार्जिन मनी सब्सिडी मिलती है।
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिये ऋण गारंटी निधि ट्रस्ट (CGTMSE): यह ट्रस्ट MSME को बिना किसी जमानत के ऋण उपलब्ध कराता है। यह वित्तीय संस्थाओं को ऋण गारंटी प्रदान करता है ताकि वे बिना किसी जमानत या तीसरे पक्ष की गारंटी के MSMEs को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित हों।
  • सूक्ष्म एवं लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE-CDP): इस योजना का उद्देश्य प्रौद्योगिकी, कौशल, गुणवत्ता, बाज़ार पहुँच और अन्य में सुधार जैसे सामान्य मुद्दों को हल करके MSMEs की स्थिरता एवं विकास का समर्थन करना है।
    • यह मांग आधारित केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसमें राज्य सरकार क्लस्टरों में आवश्यकताओं के अनुसार सामान्य सुविधा केंद्रों (CFC) की स्थापना और बुनियादी ढाँचे के विकास परियोजनाओं की स्थापना या उन्नयन के लिये प्रस्ताव भेजती है।

MSME क्षेत्र के लिये अन्य पहल

  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (2024):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि बैंकों को MSME खातों को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति(NPA) के रूप में वर्गीकृत करने से पहले उनमें दबाव के शुरुआती संकेतों की पहचान करनी चाहिये।
    • यह फैसला सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के तहत मई 2015 की अधिसूचना पर आधारित है, जिसके अनुसार बैंकों को खातों के NPA बनने से पहले "MSMEs के पुनरुद्धार एवं पुनर्वास के लिये रूपरेखा" का पालन करना आवश्यक है।
    • यह निर्णय MSMEs की सुरक्षा के साथ-साथ वित्तीय संस्थानों द्वारा उचित परिश्रम सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
  • यू.के. सिन्हा समिति:
    • MSME के सामने आने वाली समस्याओं का अध्ययन करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा यू.के. सिन्हा समिति का गठन किया गया था, जिसने कई प्रमुख सिफारिशें की थीं
    • मुद्रा योजना के तहत ऋण सीमा बढ़ाने और MSME की परिभाषा को अपडेट करने जैसी कुछ सिफारिशों को सरकार द्वारा लागू किया गया है।

MSME क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ऋण तक पहुँच: औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच MSME के लिये एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
    • लगभग 16% MSME के पास औपचारिक ऋण तक पहुँच है और वित्त पर स्थायी समिति “Strengthening Credit Flows to the MSME Sector” के अनुसार MSME क्षेत्र में ऋण अंतर लगभग 20-25 लाख करोड़ रुपए है।
  • प्रौद्योगिकी अनुकूलन: जागरूकता की कमी और वित्तीय बाधाओं के कारण कई MSMEs आधुनिक तकनीकों को अपनाने के लिये संघर्ष करते हैं।
    • कई MSMEs (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) ई-कॉमर्स और आधुनिक व्यावसायिक पद्धतियों के लिये आवश्यक डिजिटल टूल्स एवं प्लेटफॉर्म्स तक पहुँच की कमी है।
  • कौशल विकास: MSME क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की अत्यधिक कमी है।
    • कौशल विकास एवं उद्यमिता पर राष्ट्रीय नीति की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल कार्यबल का केवल 4.7% ही औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर पाया है, जबकि अमेरिका में यह आँकड़ा 52%, जापान में 80% तथा दक्षिण कोरिया में 96% है।
    • इसके अलावा MSME के पास प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुँच का अभाव है, जो उनके कार्यबल के कौशल उन्नयन में मदद कर सकते हैं।
  • बाज़ार तक पहुँच: सीमित विपणन संसाधनों और सीमित बाज़ार के ज्ञान के कारण MSMEs को घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाएँ और निर्यात समर्थक बुनियादी ढाँचे की कमी MSMEs के वैश्विक विस्तार में बाधा डालती है
  • विनियामक अनुपालन: जटिल विनियमन और सतत् नीतिगत परिवर्तन MSMEs के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं।
    • कर कानूनों (जैसे GST स्लैब में परिवर्तन) और नियमों में लगातार परिवर्तन अनिश्चितता पैदा करते हैं तथा MSME के लिये अनुपालन बोझ बढ़ाते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: अनियमित विद्युत् आपूर्ति और खराब परिवहन सुविधाओं सहित अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, MSME की उत्पादकता और विकास में बाधा डालते हैं।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण बड़े उद्यमों की तुलना में MSMEs की परिचालन लागत अधिक हो जाती है।
    • यद्यपि सरकार औद्योगिक पार्क विकसित करने की योजना बना रही है, फिर भी कई MSMEs अभी भी सुस्थापित औद्योगिक क्षेत्रों तक पहुँच के बिना काम कर रहे हैं।
  • विलंबित भुगतान: बड़ी कंपनियों और सरकारी संस्थाओं द्वारा विलंबित भुगतान से MSME की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ता है।
    • एक अनुमान के अनुसार, खरीदारों से MSMEs को विलंबित भुगतान का मूल्य वार्षिक 10.7 लाख करोड़ रुपए है।

आगे की राह

  • ऋण पहुँच में वृद्धि: ऋण गारंटी योजनाओं का विस्तार और सरलीकरण करना तथा बैंकों को MSME-विशिष्ट वित्तीय उत्पाद विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करना।
  • प्रौद्योगिकी अधिग्रहण में तेज़ी लाना: MSMEs के लिये एक व्यापक डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम लागू करना और प्रौद्योगिकी अधिग्रहण हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • कौशल की कमी को दूर करना: क्षेत्र-विशिष्ट कौशल विकास कार्यक्रम विकसित करना और MSMEs को प्रशिक्षुता योजनाओं में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना, साथ ही कार्यबल कौशल को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना।
  • बाज़ार पहुँच में सुधार: MSMEs की बाज़ार पहुँच बढ़ाने के लिये बाज़ार जागरूकता और उत्पादों के मानकीकरण को बढ़ावा देना, साथ ही व्यापार समझौतों के माध्यम से टैरिफ हेतु गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने पर काम करना।
  • विलंबित भुगतान से निपटना: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 की धारा 43B(h) में प्रावधान है कि MSMEs से सामान या सेवाएँ खरीदने वाले व्यवसायों को 45 दिनों के भीतर अपना भुगतान करना होगा। समय पर भुगतान के इस प्रावधान को और अधिक सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सरकार के समावेशी विकास के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है? (2011)

  1. स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देना
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू करना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a)केवल 1
(b)केवल 1 और 2
(c)केवल 2 और 3
(d)1, 2 और 3

उत्तर: (d)

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