सामाजिक न्याय
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण
- 17 Apr 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, दहेज निषेध अधिनियम 1961 मेन्स के लिये:भारत में घरेलू हिंसा का समाधान करने वाले कानूनी ढाँचे, सामाजिक मानदंडों की भूमिका |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनयम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act of 2005) की सार्वभौमिकता पर बल देते हुए कहा कि ये सभी महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनकी धार्मिक या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
- उच्च न्यायालय ने एक पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा दायर याचिका को खारिज़ करते हुए ये टिप्पणियाँ कीं।
- याचिका में अपीलीय न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने पत्नी द्वारा दायर घरेलू हिंसा की शिकायत को बहाल कर दिया था।
भारत में घरेलू हिंसा कितनी व्यापक है?
- भारत में 32% विवाहित महिलाओं ने बताया कि उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने पतियों द्वारा शारीरिक, यौन हिंसा या भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (National Family Health Survey-5), 2019-2021 के अनुसार, “18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 29.3% विवाहित भारतीय महिलाओं ने घरेलू/यौन हिंसा का सामना किया है; 18 से 49 वर्ष की 3.1% गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है।
- यह तो केवल महिलाओं द्वारा दर्ज़ किये गये मामलों की संख्या है। अक्सर ऐसे कई लोग होते हैं, जो शिकायत करने कभी पुलिस तक नहीं पहुँच पाते हैं।
- NFHS आँकड़ों के मुताबिक, वैवाहिक हिंसा की शिकार 87% विवाहित महिलाएँ मदद नहीं मांगती हैं।
घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?
- लैंगिक असमानताएँ:
- वैश्विक सूचकांकों में परिलक्षित भारत का व्यापक लैंगिक असमानता पुरुष प्रधानता और अधिकार की भावना में योगदान देता है।
- पुरुष प्रभुत्व जताने और अपनी कथित श्रेष्ठता को मज़बूत दिखाने के लिये हिंसा का प्रयोग कर सकते हैं।
- मादक पदार्थों का सेवन:
- शराब या नशीली दवाओं का दुरुपयोग जो निर्णय को बाधित करता है और हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ाता है। नशा करने से संकोच समाप्त हो जाता है और आपसी झगड़े बढ़कर शारीरिक या मौखिक दुर्व्यवहार में परिवर्तित हो जाते हैं।
- दहेज प्रथा:
- घरेलू हिंसा और दहेज प्रथा के बीच एक मज़बूत संबंध होता है, दहेज की अपेक्षाएँ पूरी न होने पर हिंसा की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
- दहेज पर रोक लगाने वाले कानून जैसे दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 के बावजूद, दुल्हन को जलाने और दहेज से संबंधित हिंसा के मामले जारी हैं।
- वित्तीय तनाव और निर्भरता की गतिशीलता जो संबंधों में तनाव को बढ़ाती है।
- घरेलू हिंसा और दहेज प्रथा के बीच एक मज़बूत संबंध होता है, दहेज की अपेक्षाएँ पूरी न होने पर हिंसा की घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
- सामाजिक-सांस्कृतिक मानक:
- पारंपरिक मान्यताएँ एवं प्रथाएँ लैंगिक भूमिकाओं और घरेलू शक्ति असंतुलन को कायम रखती हैं।
- पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएँ महिलाओं पर पुरुष सत्ता और नियंत्रण को प्राथमिकता देती हैं। हिंसा अक्सर महिलाओं के शरीर, श्रम और प्रजनन अधिकारों पर स्वामित्व की धारणा से उत्पन्न होती है, जो प्रभुत्व की भावना को मज़बूत करती है।
- असुरक्षा या अधिकार से उपजी एक साथी पर प्रभुत्व और नियंत्रण की इच्छा।
- सामाजिक अनुकूलन अक्सर पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को मज़बूत करते हुए, महिलाओं के लिये विवाह को अंतिम लक्ष्य के रूप में चित्रित करती है।
- भारतीय संस्कृति अक्सर उन महिलाओं का गौरवान्वित करती है जो सहिष्णुता और समर्पण का प्रदर्शन करती हैं, उन्हें अपमानजनक संबंधों को छोड़ने से हतोत्साहित करती हैं।
- सामाजिक आर्थिक तनाव:
- गरीबी और बेरोज़गारी, परिवारों के भीतर अतिरिक्त तनाव उत्पन्न करती है, जिससे हिंसक व्यवहार की संभावना बढ़ जाती है।
- मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे:
- अनुपचारित मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ जैसे अवसाद, चिंता या व्यक्तित्व विकार जो अस्थिर व्यवहार में योगदान करते हैं।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव:
- स्वस्थ संबंधों की गतिशीलता और अधिकारों की सीमित समझ, जिसके कारण अपमानजनक व्यवहार को स्वीकार या सामान्य किया जा सकता है।
- घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा या उपलब्ध सहायता सेवाओं के बारे में अज्ञानता।
- कई महिलाओं में अपने अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी होती है और वे अपनी अधीनस्थ स्थिति को स्वीकार करती हैं, जिससे कम आत्मसम्मान व अधीनता का चक्र कायम रहता है।
- स्वस्थ संबंधों की गतिशीलता और अधिकारों की सीमित समझ, जिसके कारण अपमानजनक व्यवहार को स्वीकार या सामान्य किया जा सकता है।
भारत में घरेलू हिंसा को कौन-से कानूनी ढाँचे संबोधित करते हैं?
कानूनी ढाँचा |
विवरण |
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA) |
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भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 498A) |
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दहेज निषेध अधिनियम, 1961 |
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बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 |
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समलैंगिक संबंधों के संदर्भ में घरेलू दुर्व्यवहार |
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वैश्विक पहलें:
- महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW):
- वर्ष 1979 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया, CEDAW जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कार्य करता है।
- महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (DEVAW):
- DEVAW, 1993 महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को स्पष्ट रूप से संबोधित करने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय उपकरण था, जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई हेतु एक रूपरेखा प्रदान करता था।
- सुरक्षित शहर और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान:
- यह पहल यू.एन. वुमेन द्वारा गठित एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं और बालिकाओं (W&G) के खिलाफ यौन उत्पीड़न एवं अन्य प्रकार की हिंसा को रोकना व उसपर प्रतिक्रिया देना है।
- यह शहरी सरकारों, स्थानीय समुदायों और नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर कार्य करता है।
- बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन:
- वर्ष 1995 का बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने तथा प्रतिक्रिया देने के लिये सरकारों द्वारा की जाने वाली विशिष्ट कार्रवाइयों की पहचान करता है।
घरेलू हिंसा के विरुद्ध कानून लागू करना चुनौतीपूर्ण क्यों है?
- सामाजिक:
- पीड़ित प्रायः सामाजिक कलंक, प्रतिशोध के भय या पारिवारिक प्रतिष्ठा की चिंताओं के कारण घरेलू हिंसा की रिपोर्ट नहीं करते हैं। यह चुप्पी अधिकारों हेतु कार्रवाई करना चुनौतीपूर्ण बना देती है।
- घरेलू हिंसा की घटनाएँ अक्सर कम ही दर्ज़ की जाती हैं। पीड़ित कुछ व्यवहारों को दुर्व्यवहार के रूप में नहीं पहचान पाते हैं या उन्हें सामान्य बना लेते हैं
- जागरूकता का अभाव:
- पीड़ितों सहित कई लोग अपने विधिक अधिकारों और उपलब्ध संसाधनों से अनभिज्ञ हैं। पर्याप्त जागरूकता के अभाव में मामलों की रिपोर्ट करना तथा विधिक सहायता प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
- निर्भरता और आर्थिक कारक:
- पीड़ितों की अपने साथ दुर्व्यवहार करने वालों पर आर्थिक निर्भरता एक अन्य समस्या है। आर्थिक दुष्परिणामों के भय से वे कानूनी सहायता लेने से बचते हैं।
- अपर्याप्त कार्यान्वयन और प्रशिक्षण:
- इस बात की भी काफी संभावना बनती है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों और न्यायिक निकायों में घरेलू हिंसा के मामलों के निपटान के लिये उचित प्रशिक्षण का अभाव हो। ऐसे में कानूनों का असंगत कार्यान्वयन इसके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधाएँ उत्पन्न करता है।
- विधिक बाधाएँ:
- न्यायालय में घरेलू हिंसा को साबित करने के लिये ठोस प्रमाण की आवश्यकता होती है। गवाहों अथवा भौतिक साक्ष्यों की कमी से मामला कमज़ोर पड़ सकता है।
- पारिवारिक समस्याएँ:
- घरेलू हिंसा अक्सर परिवार से संबंधित होती है। विधिक कार्रवाइयों के कारण पारिवारिक रिश्ते खराब होने का विचार कर पीड़ित व्यक्ति विधिक सहायता प्राप्त करने में झिझकते हैं।
- सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधताएँ:
- घरेलू दुर्व्यवहार की धारणा और इसपर प्रतिक्रिया कई सांस्कृतिक मानदंडों एवं प्रथाओं से प्रभावित होती है।
- प्रवर्तन रणनीतियों में इन विविधताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
आगे की राह
- लैंगिक आधार पर भूमिकाओं एवं शक्तियों के संबंध में विचारधाराओं में परिवर्तन लाना एक मूलभूत शर्त है। परस्पर सम्मान को बढ़ावा देने तथा समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक मानसिकता के उन्मूलन के लिये पुरुष-महिलाओं पर केंद्रित पहलें आवश्यक हैं।
- तदभूति को बढ़ावा देने के लिये कानून प्रवर्तन, सेवा प्रदाताओं और मजिस्ट्रेट जैसे हितधारकों के लिये लैंगिक परिप्रेक्ष्य से प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- पूरी न्यायालयी प्रक्रिया के दौरान पीड़ितों को निःशुल्क अथवा कम लागत वाले विधिक सहायता तक पहुँच की सुविधा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- उत्तरजीवियों के आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देने हेतु रोज़गार संबंधी प्रशिक्षण व वित्तीय साक्षरता कौशल की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. घरेलू हिंसा के विरुद्ध भारत में कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक व विधिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रायः समाचारों में देखी जाने वाली 'बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच (बीजिंग डिक्लरेशन ऐंड प्लैटफॉर्म फॉर ऐक्शन)' निम्नलिखित में से क्या है? (2012) (a) क्षेत्रीय आतंकवाद से निपटने की एक कार्यनीति (स्ट्रैटजी), शंघाई सहयोग संगठन (शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन) की बैठक का एक परिणाम उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबंधों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014) प्रश्न. भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाजी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014) |