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किशोर न्याय संशोधन विधेयक, 2021 से संबंधित मुद्दा

  • 28 Jun 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

किशोर न्याय अधिनियम, गैर-संज्ञेय अपराध, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, बाल अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन

मेन्स के लिये:

किशोर न्याय संशोधन विधेयक, 2021 से जुड़ी चिंताएंँ, बच्चों के कल्याण के लिये कानूनी ढांँचा

चर्चा में क्यों?

किशोर न्याय अधिनियम संशोधन, बाल देखभाल संस्थानों (Child Care Institutions-CCI) में कर्मचारियों या प्रभारी व्यक्तियों द्वारा दुर्व्यवहार एवं क्रूरता को गैर-संज्ञेय अपराध बनाकर बाल देखभाल संस्थानों में दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करने को और अधिक जटिल बना रहा है।

  • किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन करने के लिये किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 के प्रावधान:

  • गैर-संज्ञेय अपराध:
    • बच्चों के खिलाफ अपराध जो किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अध्याय "बच्चों के खिलाफ अन्य अपराध" में वर्णित हैं, जिस अपराध के लिये तीन से सात वर्ष की जेल की सज़ा हो, वह ''गैर-संज्ञेय'' होगा।
  • गोद लेना/एडॉप्शन:
    • संशोधन बच्चों के संरक्षण और गोद लेने के प्रावधान को संरक्षण प्रदान करता है। न्यायालय के समक्ष गोद लेने के कई मामले लंबित हैं तथा न्यायालय की कार्यवाही को तीव्र करने के लिये शक्ति ज़िला मजिस्ट्रेट को हस्तांतरित कर दी गई है।
    • संशोधन में प्रावधान है कि ऐसे गोद लेने के आदेश जारी करने का अधिकार ज़िला मजिस्ट्रेट के पास है।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015

  • संसद ने किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को बदलने के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को पारित किया था।
  • यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
  • इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है। अधिनियम ने हिंदू दत्तक ग्रहण व रखरखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक रूप से सुलभ दत्तक कानून के साथ बदल दिया।
  • अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) को वैधानिक निकाय बनाता है, यह भारतीय अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • बाल देखभाल संस्थान (CCI):
    • सभी बाल देखभाल संस्थान, चाहे वे राज्य सरकार अथवा स्वैच्छिक या गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित हों, अधिनियम के लागू होने की तारीख से 6 महीने के भीतर अधिनियम के तहत अनिवार्य रूप से पंजीकृत होने चाहिये।
  • किशोर न्याय संशोधन अधिनियम, 2021 से संबद्ध चुनौतियाँ: विशेष रूप से संशोधन में चुनौती किशोर न्याय अधिनियम की धारा 86 में से एक है, जिसके अनुसार विशेष कानून के तहत अपराधों को तीन से सात साल के बीच की सज़ा के साथ गैर-संज्ञेय के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया है।
  • जबकि शक्ति में असंतुलन के कारण पीड़ित स्वयं सीधे उनकी रिपोर्ट करने में असमर्थ हैं, ऐसे अधिकांश अपराध माता-पिता या बाल अधिकार निकायों और बाल कल्याण समितियों (CWC) द्वारा पुलिस को रिपोर्ट किये जाते हैं।
    • इन बच्चों के माता-पिता: वे ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर हैं, या तो इस बात से अनजान हैं कि पुलिस को अपराधों की रिपोर्ट कैसे करें या फिर न करें।
      • वे कानूनी प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहते क्योंकि इससे उन्हें काम से समय निकालने के लिये मज़बूर होना पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप मज़दूरी का नुकसान होगा।
    • बाल कल्याण समितियांँ (CWC): ज़्यादातर मामलों में CWC की पहली प्रवृत्ति पुलिस को मामले को आगे बढ़ाने के बजाय "बात करना और समझौता करना" है।
  • विशेष कानून के तहत कई अन्य गंभीर अपराधों के साथ इन अपराधों को गैर-संज्ञेय बनाना पुलिस को अपराध की रिपोर्ट करना और भी कठिन बना देगा।

संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध:

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही के संचालन के लिये नियम निर्धारित करती है, जिसने किसी भी आपराधिक कानून के तहत अपराध किया है।
  • संज्ञेय अपराध:
    • संज्ञेय अपराध एक ऐसा अपराध है जिसमें पुलिस अधिकारी पहली अनुसूची के अनुसार या वर्तमान में लागू किसी अन्य कानून के तहत दोषी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है और अदालत की अनुमति के बिना जाँच शुरू कर सकता है।
    • संज्ञेय अपराध आमतौर पर जघन्य या गंभीर प्रकृति के होते हैं जैसे कि हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, दहेज हत्या आदि।
    • प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) केवल संज्ञेय अपराधों के मामले में दर्ज की जाती है।
  • गैर-संज्ञेय अपराध:
    • एक गैर-संज्ञेय अपराध भारतीय दंड संहिता की पहली अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अपराध होता है और प्रकृति में ज़मानती होता है।
    • गैर-संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है और साथ ही जाँच शुरू नहीं कर सकती है।
      • मजिस्ट्रेट के पास एक आपराधिक शिकायत दर्ज की जाती है, जो संबंधित पुलिस स्टेशन को जाँच शुरू करने का आदेश देता है।
    • जालसाजी, धोखाधड़ी, मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव आदि अपराध गैर-संज्ञेयअपराधों की श्रेणी में आते हैं।
  • संज्ञेय और गैर-संज्ञेय दोनों अपराधों से जुड़े मामले:
    • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155(4) के अनुसार, जब किसी मामले में दो या दो से अधिक अपराध होते हैं, जिनमें से कम-से-कम एक संज्ञेय प्रकृति का होता है, और दूसरा गैर-संज्ञेय प्रकृति का होता है।
      • फिर पूरे मामले को एक संज्ञेय मामले के रूप में निपटाया जाना चाहिये और जाँच अधिकारी के पास संज्ञेय मामले की जाँच के लिये सभी शक्तियां एवं अधिकार होंगे।

आंँकड़े:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2017 में इन अपराधों को दर्ज करने की शुरुआत के बाद से वर्ष 2019 तक इसमें 700 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई थी।
  • NCRB ने वर्ष 2017 में भारत भर में CCI प्रभारी द्वारा किये गए अपराधों के 278 मामले दर्ज किये जिनमें 328 बाल पीड़ित शामिल थे। वर्ष 2019 तक ये मामले बढ़कर 1,968 हो गए, जिसमें 2,699 बाल पीड़ित थे।

बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण के लिये अन्य कानूनी ढांँचे:

आगे की राह

  • प्रक्रियात्मक कमियों को दूर करने और न्याय की तेज़ी से डिलीवरी सुनिश्चित करने के साथ-साथ, माता-पिता या स्वतंत्र नागरिक समाज संगठनों के माध्यम से पीड़ितों की रिपोर्टिंग क्षमता को आसान बनाने की आवश्यकता है जो पीड़ित को आवश्यक सहायता प्रदान करेगी तथा यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चा सामान्य जीवन में लौट आए।
    • बच्चों के लिये एक सुरक्षित दुनिया सुनिश्चित करने के लिये उच्च दोषसिद्धि दर एक लंबा रास्ता तय करेगी।
  • बाल संरक्षण नियम विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये, क्योंकि ज़िला मज़िस्ट्रेट आमतौर पर इन विशिष्ट कानूनों से निपटने के लिये प्रशिक्षित या सुसज्जित नहीं होते हैं।
  • बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये ज़िला प्रशासन को सभी पांँच अंगों - CWC, JJ बोर्ड, CCI, ज़िला बाल संरक्षण इकाइयों और विशेष किशोर पुलिस इकाइयों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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