सामाजिक न्याय
यौन उत्पीड़न पर राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ
- 02 Jan 2023
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प्रिलिम्स के लिये:यौन उत्पीड़न पर राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ, NCW, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, संरक्षण और निवारण) विधेयक, 2012, संशोधित विधेयक वर्ष 2013 में संसद द्वारा पारित। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की पृष्ठभूमि और शासनादेश। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) ने सभी राज्यों से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून को सख्ती से लागू करने को कहा है।
राष्ट्रीय महिला आयोग की चिंताएँ:
- राष्ट्रीय महिला आयोग ने कोचिंग केंद्रों और शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है तथा कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 एवं उसके तहत स्थापित दिशा-निर्देशों को सख्ती से लागू करने को कहा है।
- हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विश्व भर में महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले सबसे अधिक दबाव वाले मुद्दों में से एक बनता जा रहा है।
- NCW को वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की लगभग 31,000 शिकायतें प्राप्त हुईं, जो कि वर्ष 2014 के बाद सबसे अधिक हैं।
- इनमें करीब 54.5 फीसदी शिकायतें उत्तर प्रदेश से मिलीं। दर्ज शिकायतों की संख्या दिल्ली में 3,004, महाराष्ट्र में 1,381, बिहार में 1,368 और हरियाणा में 1,362 है।
- महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के अंतर्गत घरेलू हिंसा, विवाहित महिलाओं का उत्पीड़न या दहेज उत्पीड़न, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, बलात्कार और यौन शोषण का प्रयास, साइबर अपराध आदि आते हैं।
यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013:
- भूमिका: सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले के एक ऐतिहासिक फैसले में 'विशाखा दिशा-निर्देश' दिये।
- इन दिशा-निर्देशों ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (यौन उत्पीड़न अधिनियम) का आधार बनाया।
- तंत्र: अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है और शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र प्रदान करता है।
- प्रत्येक नियोक्ता के लिये आवश्यक है कि वह प्रत्येक कार्यालय या शाखा में एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करे।
- शिकायत समितियों को साक्ष्य एकत्र करने के लिये दीवानी न्यायालयों की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
- शिकायत समितियों को शिकायतकर्त्ता द्वारा अनुरोध किये जाने पर जाँच शुरू करने से पहले सुलह का प्रावधान करना होता है।
- दंडात्मक प्रावधान: नियोक्ताओं के लिये दंड निर्धारित किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर जुर्माना देना होगा।
- बार-बार उल्लंघन के मामले में अधिक दंड और व्यवसाय संचालित करने के लिये जारी लाइसेंस या पंजीकरण को रद्द किया जा सकता है।
- प्रशासन की ज़िम्मेदारी: राज्य सरकार प्रत्येक ज़िलाधिकारी को अधिसूचित करेगी, जो एक स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaints Committee- LCC) का गठन करेगा ताकि असंगठित क्षेत्र या छोटे प्रतिष्ठानों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से मुक्त वातावरण में कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके।
NCW की पृष्ठभूमि और अधिदेश:
- परिचय:
- राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत NCW को जनवरी 1992 में एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था।
- प्रथम आयोग का गठन 31 जनवरी, 1992 को श्रीमती जयंती पटनायक की अध्यक्षता में किया गया था।
- आयोग में एक अध्यक्ष, एक सदस्य सचिव और पाँच अन्य सदस्य होते हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष को केंद्र सरकार द्वारा नामित किया जाता है।
- अधिदेश और कार्य:
- यह मिशन महिलाओं को समानता और समान भागीदारी प्रदान करने हेतु उपयुक्त नीति निर्माण, विधायी उपायों आदि के माध्यम से उनको अधिकार प्रदान कर जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्षम बनाने की दिशा में प्रयास करता है।
- इसके कार्य हैं:
- महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना।
- उपचारात्मक विधायी उपायों की सिफारिश करना।
- शिकायतों के निवारण को सुगम बनाना।
- महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना।
- इसने बड़ी मात्रा में शिकायतें प्राप्त की हैं और त्वरित न्याय प्रदान करने हेतु कई मामलों का स्वत: संज्ञान में लिया है।
- इसने बाल विवाह, प्रायोजित कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों, पारिवारिक महिला लोक अदालतों के मुद्दे को उठाया और निम्नलिखित कानूनों की समीक्षा की:
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961
- गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994
- भारतीय दंड संहिता 1860
महिलाओं के कल्याण हेतु प्रमुख कानूनी ढाँचा:
- संवैधानिक सुरक्षा:
- मौलिक अधिकार:
- यह सभी भारतीयों को समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं [अनुच्छेद 15 (1)] और महिलाओं के पक्ष में राज्य द्वारा किये जाने वाले विशेष प्रावधान [अनुच्छेद 15(3)] की गारंटी देता है।
- मौलिक कर्तव्य:
- यह सुनिश्चित करता है कि अनुच्छेद 51(A) के अंतर्गत महिलाओं की गरिमा के लिये अपमानजनक व्यवहार प्रतिबंधित है।
- मौलिक अधिकार:
- विधायी संरचना:
- महिला अधिकारिता योजनाएँ:
- बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना
- वन स्टॉप सेंटर योजना
- उज्ज्वला: तस्करी की रोकथाम और व्यावसायिक यौन शोषण के पीड़ितों के बचाव, पुनर्वास व पुन: एकीकरण के लिये एक व्यापक योजना।
- स्वाधार गृह
- नारी शक्ति पुरस्कार
- महिला पुलिस वालंटियर्स
- महिला शक्ति केंद्र (एमएसके)
- निर्भया फंड।
आगे की राह
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम को लेकर जे.एस. वर्मा समिति (J.S. Verma Committee) की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है:
- रोज़गार न्यायाधिकरण: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के बजाय एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।
- स्वयं की प्रक्रिया बनाने की शक्ति: शिकायतों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करने के लिये समिति ने प्रस्ताव दिया कि न्यायाधिकरण को एक दीवानी अदालत के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये, लेकिन प्रत्येक शिकायत से निपटने हेतु उसे अपनी स्वयं की प्रक्रिया का चयन करने की शक्ति दी जानी चाहिये।
- अधिनियम के दायरे का विस्तार: घरेलू कामगारों को अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
- समिति ने कहा कि किसी भी तरह के 'अवांछनीय व्यवहार' को शिकायतकर्त्ता की व्यक्तिपरक धारणा से देखा जाना चाहिये, जिससे यौन उत्पीड़न की परिभाषा का दायरा व्यापक हो सके।
- वर्तमान भारत में महिलाओं की भूमिका में लगातार वृद्धि हो रही है तथा राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की भूमिका का विस्तार समय की आवश्यकता है।
- इसके अलावा राज्य आयोगों को भी अपने दायरे का विस्तार करना चाहिये।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा समानता, विकास, शांति के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की पूर्ति में एक बाधा बनी हुई है।
- कुल मिलाकर सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) का वादा- ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना’, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को समाप्त किये बिना पूरा नहीं किया जा सकता है।
- महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का समाधान केवल कानून के तहत न्यायालयों में ही नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिये एक समग्र दृष्टिकोण और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलना आवश्यक है।
- इसके लिये कानून निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों, फोरेंसिक विभाग, अभियोजकों, न्यायपालिका, चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग, गैर-सरकारी संगठनों, पुनर्वास केंद्रों सहित सभी हितधारकों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |