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सामाजिक न्याय

लॉकडाउन के दौरान महिला सुरक्षा के लिये विशेष दिशा-निर्देश

  • 09 Apr 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

 राष्ट्रीय महिला आयोग, वन स्टॉप सेंटर

मेन्स के लिये:

भारत में विभिन्न क्षेत्रों में COVID-19 का प्रभाव, महिला सुरक्षा से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन के दौरान महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जुड़े विभिन्न संस्थानों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की और महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये।

मुख्य बिंदु:  

  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री (Union Women and Child Development Ministe) ने  8 अप्रैल, 2020 को विभिन्न संस्थानों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस बैठक के माध्यम से महिला सुरक्षा के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने तथा इसके लिये विभिन्न विभागों के बीच समन्वय को बढ़ाने का निर्देश दिया।  
  • ध्यातव्य है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने COVID-19 की महामारी के दौरान महिला हिंसा की घटनाओं में वृद्धि को देखते हुए विश्व के सभी देशों से महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देने और COVID-19 पर नियंत्रण की नीति में महिला सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक परिवर्तन करने को कहा था।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission of Women) के अनुसार, 24 मार्च के बाद पहले हफ्ते में ही घरेलू हिंसा और सेक्सुअल असॉल्ट (Sexual Assault) के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है और इस दौरान पुलिस शिथिलता के ममलों में तीन गुना वृद्धि दर्ज़ की गई है। 
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हाल के दिनों में चीन में घरेलू हिंसा की हेल्पलाइन पर शिकायतों की संख्या में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है, मलेशिया और लेबनान में पिछले वर्ष के तुलना में ऐसे मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है तथा इस दौरान ऑस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा के लिये सहायता की ऑनलाइन सर्च की संख्या पिछले पाँच वर्षों की तुलना में सर्वाधिक रही है। 

महिला उत्पीडन के मामलों पर COVID-19 का प्रभाव:

  • राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, हाल में फोन के माध्यम से हेल्पलाइन पर मिलने वाली शिकायतों में कमी आई है, आयोग को प्राप्त ज़्यादातर शिकायतें ईमेल द्वारा भेजी गई हैं। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा के मामलों में अपराधी (Abuser) के हमेशा घर पर रहने के कारण महिलाएँ फोन करने या बाहर जाकर सहायता माँगने में असमर्थ रही हैं।
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस फर्स्ट रिस्पाॅडंर (First Responder) नहीं होती बल्कि ऐसे मामलों के लिये स्थापित परामर्श केंद्र शिकायतकर्त्ता की सहायता करते हैं।
  • परंतु लॉकडाउन के कारण इन केंद्रों का संचालन प्रभावित हुआ है, जिससे हिंसा के ऐसे मामलों में पीड़ितों की समस्या और भी गंभीर हो गई है।

सरकार के प्रयास:      

  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि पीड़ितों को विधिक और मनोसमजिक सहायता उपलब्ध कराने वाले ‘वन स्टॉप सेंटर्स’ स्थानीय स्वास्थ्य टीम और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से जुड़े हुए हों। जिससे लॉकडाउन  के बावज़ूद भी पीड़ितों को आसानी से ये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सके।     
  • उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे यह भी सुनिश्चित करें कि सभी ‘वन स्टॉप सेंटर’(One Stop Center) ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान’ (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences or NIMHANS) से जुड़े हुये हों जिससे पूरे देश में महिलाओं की विशेष समस्याओं के लिये परामर्शदाताओं की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
  • राज्य स्तर पर महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये राज्य-स्तर पर गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से डिजिटल-गवर्नेंस (Digital Governence) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जिससे ऐसे मामलों में सूचना और सहायता की कोई कमी न होने पाए।
  • केंद्रीय मंत्री ने गैर-सरकारी संगठनों को महिलाओं में सुरक्षा की भावना को बढ़ाने के लिये एक दिन में कम-से-कम 10 महिलाओं से फोन पर बात करने का सुझाव दिया। 

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका-विज्ञान संस्थान

(National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences or NIMHANS): 

  • NIMHANS मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में रोगी देखभाल और अकादमिक खोज का एक बहु-विषयक संस्थान है।
  • वर्ष 1974 में मैसूर (कर्नाटक) सरकार द्वारा स्थापित मानसिक अस्पताल और केंद्र सरकार द्वारा स्थापित ‘अखिल भारतीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान’ को मिलाकर  NIMHANS की स्थापना की गई थी।
  • यह संस्थान बंगलूरु (कर्नाटक) में स्थित है। 
  • वर्ष 1994 में केंद्र सरकार ने इस संस्थान के योगदान को देखते हुए इसे शैक्षिक स्वायत्तता के साथ मानद विश्वविद्यालय (Deemed University) का दर्जा प्रदान किया 
  • वर्ष 2012 में ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका-विज्ञान संस्थान बंगलौर अधिनियम, 2012’ के माध्यम से इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ (Institute of National Importance) घोषित किया गया। 
  • यह संस्थान मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, मौजूदा सुविधाओं में सुधार और मानसिक स्वास्थ्य के राष्ट्रीय कार्यक्रम की रणनीति तैयार करने में केंद्र तथा राज्य सरकारों को परामर्श देने का कार्य भी करता है।  

आगे की राह: 

  • सरकार को महिला सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न सेवाओं (हेल्पलाइन, परामर्श केंद्र आदि) को अतिआवश्यक सेवाओं (Essential Services) के श्रेणी में रखना चाहिये, जिससे किसी आपदा की स्थिति में भी इनका निर्बाध संचालन सुनिश्चित किया जा सके। 
  • महिला सुरक्षा और घरेलू हिंसा पर काम करने वाले स्वयंसेवी संस्थानों और ज़मीनी कार्यकर्त्ताओं के लिये बेहतर संसाधन और सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिये।  
  • हिंसा के अतिरिक्त सामान्य मामलों में भी देश में महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को मज़बूत करना अति आवश्यक है।
  • महिला अधिकारों को बढ़ावा देने के साथ ही घरेलू कामों में पुरुषों की बराबर भागीदारी के माध्यम से एक सकारात्मक माहौल बनाया जाना चाहिये।   

स्रोत:  द हिंदू

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