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गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम'

  • 04 May 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 'गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम' (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques- PCPNDT) के नियमों और प्रावधानों को कम करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।

प्रमुख बिंदु

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार,

  • अधिनियम के किसी भी पक्ष के कमज़ोर पड़ने से भ्रूण हत्या को रोकने का इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बालिका के जीवन का अधिकार औपचारिकता मात्र रह जाएगा।
  • इस अधिनियम के लागू होने के 24 वर्ष पश्चात् भी 4202 मामलों में से केवल 586 मामलों में सज़ा सुनाई गई है। यह आँकड़ा इस सामाजिक कानून को लागू करने में उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि

  • गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने दायर की थी।
  • ‘प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के महासंघ’ ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि अधिनियम के तहत कागज़ी कार्यों में लिपिकीय त्रुटियों/गलतियों के कारण इस उदार पेशे के सदस्यों के लाइसेंस निलंबित किये जा रहे हैं।
  • उनके अनुसार, यह अधिनियम वास्तविक लिंग निर्धारण के अपराध में तथा रिकॉर्ड के रखरखाव और लिपिकीय त्रुटि के कारण होने वाली गलतियों को वर्गीकृत करने में विफल रहता है।
  • ज्ञातव्य है कि सरकार ने इस साल की शुरुआत में कहा था कि लिंग निर्धारण के संदर्भ में अभिलेखों का रखरखाव उचित ढंग से न करना केवल एक तकनीकी या प्रक्रियात्मक चूक नहीं है बल्कि यह अभियुक्त की पहचान के लिये सबूत का सबसे महत्त्वपूर्ण टुकड़ा है।

गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम(PCPNDT), 1994

  • गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 ऐसा एक अधिनियम है जो कन्या भ्रूण हत्या और भारत में गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिये लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम ने प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान के बाद भ्रूण के लिंग निर्धारण करने वाली तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग आधारित गर्भपात के लिये प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकना है।
  • यह अधिनियम गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग की जाँच पर रोक लगाने का प्रावधान करता है।
  • कोई भी प्रयोगशाला या केंद्र या क्लिनिक भ्रूण के लिंग का निर्धारण करने के उद्देश्य से अल्ट्रासोनोग्राफी सहित कोई परीक्षण नहीं करेगा।
  • गर्भवती महिला या उसके रिश्तेदारों को शब्दों, संकेतों या किसी अन्य विधि से भ्रूण का लिंग नहीं बताया जा सकता।
  • कोई भी व्यक्ति जो प्रसव पूर्व गर्भाधान लिंग निर्धारण सुविधाओं के लिये नोटिस, परिपत्र, लेबल, रैपर या किसी भी दस्तावेज के रूप में विज्ञापन देता है, या इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट रूप में आंतरिक या अन्य मीडिया के माध्यम से विज्ञापन करता है या ऐसे किसी भी कार्य में संलग्न होता है तो उसे तीन साल तक की कैद और 10,000 तक का जुर्माना हो सकता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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