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सामाजिक न्याय

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ सख्त कदम

  • 20 Jan 2020
  • 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:

महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013

मेन्स के लिये:

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये कानूनी प्रावधान

चर्चा में क्यों:

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से कानूनी ढाँचे को मज़बूत करने के लिये गृह मंत्री की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह (Group of Ministers- GoM) ने अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप दे दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • इन सिफारिशों के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) में नए प्रावधानों को शामिल करने की बात कही गई है। साथ ही इन सिफारिशों को जनता की राय के लिये सार्वजनिक किया जाएगा।

मंत्रियों के समूह का गठन:

  • GoM का गठन पहली बार ‘मी टू’ अभियान (#MeToo Movement) के परिणामस्वरूप अक्तूबर 2018 में किया गया था जिसके तहत कई चर्चित महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपने कटु अनुभव साझा किये थे।
  • इसे जुलाई 2019 में गृह मंत्री की अध्यक्षता में पुनर्गठित किया गया।
  • GoM के अन्य सदस्यों में केंद्रीय वित्त मंत्री, मानव संसाधन एवं विकास मंत्री और महिला एवं बाल विकास मंत्री भी शामिल हैं।

भारतीय दंड संहिता का पुनरीक्षण:

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) वर्ष 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा लागू की गई IPC का पुनरीक्षण करने के लिये एक योजना पर काम कर रहा है।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ मौजूदा कानूनों में बदलाव IPC के प्रावधानों के पूर्ण अवलोकन के बाद ही किया जाएगा।
  • ‘ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (Bureau of Police Research and Development- BPR&D) द्वारा IPC और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- Cr.PC) के विभिन्न प्रावधानों में संशोधन के लिये कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, कानूनवेत्ताओं और राज्य सरकारों से परामर्श किया जा रहा है।
  • अगर IPC में बदलाव किया जाता है तो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन किया जाएगा।

अन्य कानूनी प्रावधान:

Workplace woes

  • प्रस्तावित संशोधन काफी हद तक वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित उन विशाखा दिशा-निर्देशों (Vishaka Guidelines) पर आधारित होंगे जिन पर ‘महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013 आधारित था।
  • इस अधिनियम ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये नियोक्ता को ज़िम्मेदार बनाया।
  • वर्ष 2013 के अधिनियम में आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee-ICC) के सदस्यों की कानूनी पृष्ठभूमि की आवश्यकता को तय किये बिना इस समिति को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान करने जैसी कमियाँ विद्यमान थीं।
  • इस अधिनियम का अनुपालन न करने वाले नियोक्ताओं पर 50,000 रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया।
  • इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि यदि कोई महिला जाँच संपन्न होने के बाद दोषी के खिलाफ IPC के तहत शिकायत दर्ज करना चाहती है तो नियोक्ता द्वारा महिला को सहायता प्रदान की जाएगी।

GoM द्वारा किये गए अन्य अवलोकन:

  • GoM ने वर्ष 2012 में निर्भया गैंगरेप और हत्या की वीभत्स घटना के संदर्भ में गठित न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की रिपोर्ट का भी निरीक्षण किया।
  • वर्मा समिति ने आंतरिक शिकायत समिति के स्थान पर एक रोज़गार न्यायाधिकरण (Employment Tribunal) की स्थापना की सिफारिश की थी, जिससे घरेलू स्तर पर ऐसी शिकायतों का निपटान किया जा सके।

कार्यस्थल पर यौन शोषण की घटनाओं से संबंधित आँकड़े:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के अनुसार, ‘कार्यस्थल या कार्यालय परिसर’ में IPC की धारा 509 (किसी शब्द, इशारे या किसी कृत्य द्वारा एक महिला के शील या सम्मान को चोट पहुँचाना) के तहत वर्ष 2017 और 2018 में क्रमशः 479 और 401 मामले दर्ज किये गए।
  • वर्ष 2018 में ऐसे सबसे ज्यादा मामले दिल्ली (28), बंगलुरु (20), पुणे (12) और मुंबई (12) में दर्ज किए गए।
  • वर्ष 2018 में सार्वजनिक स्थानों, शेल्टर होम और अन्य स्थानों पर यौन उत्पीड़न के कुल 20,962 मामले दर्ज किये गए।
  • दिसंबर 2018 में गृह मंत्रालय ने ‘महिलाओं का यौन उत्‍पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013’ के तहत आंतरिक शिकायत समिति के गठन और पुलिस विभागों को इसके संदर्भ में अधिसूचित करने के लिये सभी राज्यों को सूचित किया था।

स्रोत- द हिंदू

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