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सामाजिक न्याय

बलात्कार का अपराध

  • 21 Jun 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बलात्कार का अपराध, आईपीसी की धारा 375, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013, POCSO, सुप्रीम कोर्ट

मेन्स के लिये

बलात्कार का अपराध, संबंधित चुनौतियाँ और समाधान के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जापान द्वारा एक विधेयक पारित किया गया है जो बलात्कार और यौन अपराधों के संबंध में नाबालिगों के लिये कानूनी सुरक्षा बढ़ाने हेतु महत्त्वपूर्ण उपाय प्रस्तुत करता है। 

नए उपायों के प्रमुख बिंदु:

  • बलात्कार की नई परिभाषा:
    • जापान ने बलात्कार की परिभाषा को "बलपूर्वक यौन-संबंध बनाने " से "गैर-सहमति वाले यौन-संबंध" तक विस्तारित किया है, जिसका लक्ष्य उन परिदृश्यों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करना है जहाँ पीड़ित यौन संबंध में शामिल होने की अपनी सहमति को अस्वीकार करने या व्यक्त करने में असमर्थ हो सकते हैं।
  • सहमति की आयु: 
    • सहमति की उम्र को 13 वर्ष से बढ़ाकर 16 वर्ष  कर दिया गया है (G-7 देशों में सबसे कम), जो कि यूके, फिनलैंड और नॉर्वे सहित कई अमेरिकी राज्यों और यूरोपीय देशों के समान है।
      • सहमति की उम्र उस न्यूनतम उम्र को संदर्भित करती है जिस पर कानूनी रूप से यौन गतिविधि की अनुमति है, उस उम्र से कम किसी भी गतिविधि को वैधानिक रूप से बलात्कार माना जाता है।
  • मुलाकात अनुरोध अपराध: 
    • कानून "मुलाकात अनुरोध अपराध" नामक एक नया अपराध प्रस्तुत करता है, जो उन व्यक्तियों को लक्षित करता है जो 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन उद्देश्यों के लिये मिलने की धमकी, प्रलोभन या धन का उपयोग करते हैं।
      • इस अपराध का उल्लंघन करने वालों को एक वर्ष तक की कैद या 500,000 येन (3,500 अमेरिकी डॉलर) का ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।
    • कानूनी संशोधन "फोटो वॉयेरिज़्म"  गुप्त रूप से लोगों की यौन तस्वीरें लेना और बच्चों की ऑनलाइन ग्रूमिंग को भी अपराध की श्रेणी में रखता है। 

भारतीय संदर्भ में बलात्कार के विरुद्ध प्रावधान:

  • विषय: 
    • बलात्कार को महिला के शरीर के अंगों जैसे योनि, मूत्रमार्ग, मुंँह या गुदा में महिला की सहमति के बिना किसी भी अनैच्छिक और जबरदस्ती प्रवेश (Penetration) के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अनुसार, बलात्कार एक पुरुष द्वारा तब किया जाता है जब वह निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति में किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाता है:
      • उसकी इच्छा के विरुद्ध।
      • उसकी सहमति के विरुद्ध।
      • उसके या उसकी देखभाल करने वाले किसी व्यक्ति के खिलाफ मौत या चोट पहुँचाने का भय दिखाकर प्राप्त उसकी सहमति से।
      • उसकी सहमति से यह जानते हुए कि वह विवाहित है या स्वयं को कानूनी रूप से विवाहित मानती है और वह उसका पति नहीं है
      • जब वह मानसिक विकार, नशा या बेहोश करने वाले या अस्वास्थ्यकर पदार्थों के सेवन के कारण सहमति देने की प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ हो, ली गई उसकी सहमति।
      • उसकी सहमति के साथ या उसके बिना, जब वह 18 वर्ष से कम आयु की हो।
      • जब वह सहमति संप्रेषित करने में असमर्थ हो।
  • बलात्कार का अपराध और दंड:
    • बलात्कार के दौरान अगर आरोपी द्वारा महिला को इतनी बुरी तरह से घायल कर दिया जाता है कि वह मर जाती है या कोमा में चली जाती है, तो ऐसे मामले में आरोपी को  मृत्युदंड या आजीवन कारावास दिया जा सकता है।
    • यदि एक महिला का एक ही समय में लोगों के एक समूह द्वारा बलात्कार किया जाता है, तो उनमें से प्रत्येक को अपराध के लिये  दंडित किया जाएगा (धारा 376D IPC)।
    • IPC की धारा 376E मृत्युदंड देने की अनुमति देती है, जब किसी व्यक्ति को बलात्कार हेतु दूसरी बार दोषी ठहराया जाता है।

भारत में बलात्कार होने के कारण: 

  • लैंगिक असमानता: लैंगिक असमानता की गहरी जड़ें और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण महिलाओं के वस्तुकरण एवं अधीनता में योगदान करते हैं, साथ ही ऐसा वातावरण निर्मित करते हैं जहाँ यौन हिंसा हो सकती है।
  • सामाजिक मानदंड और दृष्टिकोण: महिलाओं के प्रति प्रतिगामी सामाजिक मानदंड तथा  दृष्टिकोण, जैसे पीड़ित-दोष वाली मानसिकता एवं "महिलाओं के सम्मान" की धारणा, यौन हमले के संबंध में चुप्पी तथा कलंक की संस्कृति को कायम रखती है।
  • यह पीड़ितों को घटनाओं की रिपोर्ट करने और न्याय मांगने से हतोत्साहित कर सकता है।
  • जागरूकता की कमी: लैंगिक समानता, सहमति और यौन अधिकारों के बारे में अपर्याप्त जागरूकता, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यौन हिंसा को रोकने एवं उजागर करने के प्रयासों को बाधित करती है।
    • अतः गलत धारणाओं को चुनौती देने और सम्मानजनक व्यवहार को बढ़ावा देने हेतु व्यापक यौन शिक्षा एवं जागरूकता अभियान महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अपर्याप्त कानून प्रवर्तन: कानून प्रवर्तन और आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर भ्रष्टाचार, लापरवाही/उपेक्षा तथा असंवेदनशीलता के उदाहरण बलात्कार के मामलों की प्रभावी जाँच, अभियोजन एवं दोषसिद्धि में बाधा डालते हैं।
    • जवाबदेही की कमी अपराधियों को अधिक साहस दे सकती है, साथ ही पीड़ित लोगों को कानूनी सहारा लेने से हतोत्साहित कर सकती है।
  • धीमी न्यायिक प्रक्रियाएँ: लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रियाएँ, अधिक लंबित मामले अक्सर देरी से न्याय मिलने के कारण हैं तथा पीड़ितों को कानूनी कार्रवाई करने से हतोत्साहित कर सकती हैं।
    • फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना और न्यायिक प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से बलात्कार के मुकदमों को तेज़ी से निपटाने में मदद मिल सकती है।
  • सामाजिक कलंक/स्टिग्मा और पीड़िता को दोषी ठहराना: बलात्कार पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक कलंक, दोषारोपण एवं भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उन्हें अधिक आघात पहुँचा सकता है तथा रिपोर्टिंग को हतोत्साहित कर सकता है।
    • इस चक्र को तोड़ने हेतु पीड़ित के प्रति दोषपूर्ण व्यवहार को उजागर करना और बलात्कार पीड़ित को सहायता सेवाएँ प्रदान करना आवश्यक है।

भारत में यौन शोषण/बलात्कार से संबंधित कानून: 

  • आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013:
    • इस अधिनियम के तहत बलात्कार की न्यूनतम सज़ा को सात वर्ष से बढाकर दस वर्ष कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त पीड़ित की मृत्यु के मामले में न्यूनतम सज़ा को विधिवत बढ़ाकर बीस वर्ष कर दिया गया है।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो):
    • इस अधिनियम को बच्चों को यौन अत्याचार, यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य से बचाने के लिये लाया गया था।
    • POCSO अधिनियम के तहत सहमति की आयु बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई (जो वर्ष 2012 तक 16 वर्ष थी) और 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिये सभी यौन गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में सूचीबद्ध कर दिया गया, भले ही दो नाबालिगों के बीच  तथ्यात्मक रूप से सहमति हो।
      • बच्चे की रक्षा, सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न अपराधों के लिये सज़ा बढ़ाने के प्रावधान करने के लिये इस अधिनियम में वर्ष 2019 में भी संशोधन किया गया था।
  • बलात्कार पीड़िता के अधिकार:
    • ज़ीरो FIR का अधिकार: इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति किसी भी पुलिस स्टेशन में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा सकता है, भले ही घटना का अधिकार क्षेत्र कोई भी हो।
    • मुफ्त चिकित्सा उपचार: आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 357C के अनुसार, कोई भी निजी अथवा सरकारी अस्पताल बलात्कार पीड़ितों के इलाज के लिये शुल्क नहीं ले सकता है।
    • टू-फिंगर टेस्ट का प्रावधान खत्म: चिकित्सीय जाँच करते समय किसी भी चिकित्सक को टू फिंगर टेस्ट करने का अधिकार नहीं होगा।
    • मुआवज़े का अधिकार: CrPC की धारा 357A के रूप में एक नया प्रावधान पेश किया गया है, यह पीड़ित के लिये मुआवज़े से संबंधित है।

भारत में बलात्कार से संबंधित प्रमुख निर्णय: 

  • तुकाराम और गणपत बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1972 (मथुरा बलात्कार मामला):
    • ट्रायल कोर्ट के फैसले ने आरोपी के पक्ष का समर्थन किया, जिसमें कहा गया कि यौन-संबंध की आदी होने के कारण मथुरा की सहमति स्वैच्छिक थी। हालाँकि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को कारावास की सज़ा सुनाई।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में अभियुक्तों को बरी कर दिया, जिससे जनता में आक्रोश फैल गया। इस मामले के बाद बलात्कार कानूनों में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। 
  • पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह, 1984: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने निचली न्यायपालिका को सलाह दी कि पीड़िता को चरित्रहीन के रूप में नहीं वर्णित किया जाना चाहिये, भले ही वह यौन-संबंध की आदी हो। यह फैसला मामले की जाँच के दौरान बलात्कार के कृत्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, न कि पीड़िता के चरित्र पर।
  • दिल्ली की घरेलू कामकाजी महिलाएँ बनाम भारत संघ, 1995: 
    • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अहम दिशा-निर्देश दिये:
      • यौन उत्पीड़न के मामलों में शिकायतकर्त्ता को कानूनी प्रतिनिधित्व प्रदान करना।
      • पुलिस स्टेशन में एक वकील द्वारा कानूनी सहायता और मार्गदर्शन सुनिश्चित करना।
      • बलात्कार के मुकदमों में पीड़िता की गुमनामी/गोपनीयता बनाए रखना।
      • एक आपराधिक चोट मुआवज़ा बोर्ड की स्थापना करना।
      • बलात्कार पीड़ितों को अंतरिम मुआवज़ा प्रदान करना।
      • यदि बलात्कार के कारण पीड़िता गर्भवती हो जाती है तो चिकित्सा सहायता प्रदान करना और गर्भपात की अनुमति देना।
  • बी गौतम बनाम सुभ्रा चक्रवर्ती, 1996: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अंतरिम मुआवज़ा के रूप में रेप पीड़िताओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह की सहायता दी जाए।
  • अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड बनाम चंद्रिमा दास, 2000: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बलात्कार पीड़ितों को संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर घरेलू न्यायशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के आधार पर मानवाधिकार न्यायशास्त्र के आधार पर मुआवज़ा दिया जा सकता है।

आगे की राह 

  • बलात्कार के अपराधियों के लिये सख्त कानून और कठोर सज़ा की आवश्यकता है। यह  कथन अपराध की गंभीरता को प्रतिबिंबित करता है और एक निवारक के रूप में कार्य करना चाहिये। न्यायिक प्रणाली को पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिये बलात्कार के मामलों का समय पर एवं उचित निपटान सुनिश्चित करना चाहिये।
  • शिक्षा एवं जागरूकता अभियानों के माध्यम से लैंगिक समानता, सम्मान और सहमति को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। महिलाओं के अधिकारों के लिये सहमति और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु व्यापक यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये।
  • बलात्कार पीड़ितों को समर्थन और सशक्तीकरण प्रदान करना आवश्यक है। इसमें कानूनी सहायता, परामर्श एवं पुनर्वास सेवाएँ शामिल हैं। पीड़ितों की गोपनीयता बनाई रखी जानी चाहिये तथा सामाजिक कलंक के डर को कम करउनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • पुलिस और न्यायिक कर्मियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम संवेदनशीलता, लैंगिक संवेदनशीलता तथा पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण पर आधारित होने चाहिये। उचित जाँच प्रक्रियाओं और पीड़ितों के अनुकूल अदालती प्रक्रियाओं को लागू किया जाना चाहिये।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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