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डेली न्यूज़

  • 27 May, 2024
  • 107 min read
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आंतरिक सुरक्षा

पार-देशीय संगठित अपराध

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF), ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय, पार-देशीय संगठित अपराध, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, पार-देशीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन, साइबर अपराध

मेन्स के लिये:

पार-देशीय संगठित अपराध का प्रभाव और नियंत्रण में चुनौतियाँ, साइबर अपराध और उनके प्रभाव, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मनी लॉन्ड्रिंग

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF), इंटरपोल तथा ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) के प्रमुखों ने पार-देशीय संगठित अपराध (Transnational Organised Crime- TOC) से उत्पन्न बड़े पैमाने पर अवैध मुनाफे को लक्षित करने के प्रयासों को तेज़ करने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। 

पार-देशीय संगठित अपराध क्या है?

  • परिचय: संगठित अपराध को एक साथ काम करने वाले समूहों या नेटवर्क द्वारा की जाने वाली अवैध गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें अक्सर वित्तीय या भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिये हिंसा, भ्रष्टाचार या संबंधित कार्य शामिल होते हैं।
    • पार-देशीय संगठित अपराध (Transnational Organised Crime- TOC) तब घटित होता है जब गतिविधियाँ या समूह कई देशों में संचालित होते हैं।
  • अलग-अलग रूप:
    • धन शोधन/मनी लॉन्ड्रिंग:  इसका अभिप्राय अवैध रूप से अर्जित आय को छिपाना या उसके स्रोतों को बदलना है ताकि वह वैध स्रोतों से उत्पन्न प्रतीत हो। अपराधी, आपराधिक गतिविधियों से प्राप्त आय को कानूनी स्रोत के माध्यम से वैध धन में परिवर्तित कर देते हैं।
      • एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग की अनुमानित राशि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 2% से 5% या 800 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से 2 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर है।
    • नशीले पदार्थों की तस्करी: यह अपराधियों के लिये व्यवसाय का सबसे आकर्षक रूप बना हुआ है।
      • अनुमान है कि वैश्विक नशीले पदार्थों की तस्करी लगभग 650 अरब अमेरिकी डॉलर की है, जो कुल अवैध अर्थव्यवस्था में 30% का योगदान करती है।
    • मानव तस्करी: एक वैश्विक अपराध जहाँ पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का उपयोग यौन या श्रम-आधारित शोषण के लिये किया जाता है।
      • विश्व भर में मानव तस्करी से होने वाला वार्षिक लाभ लगभग 150 बिलियन डॉलर है। 
      • ये विश्व भर में अनुमानित 25 मिलियन लोगों को शिकार बनाते हैं, जिनमें से 80% जबरन श्रम और 20% यौन तस्करी में शामिल हैं।  
    • प्रवासियों की तस्करी: यह एक सुव्यवस्थित व्यवसाय है जो तस्करी द्वारा लोगों को आपराधिक नेटवर्क, समूहों और मार्गों के माध्यम से विश्व भर में ले जाता है।
      • वर्ष 2009 में लैटिन अमेरिका से उत्तरी अमेरिका में 3 मिलियन प्रवासियों की अवैध तस्करी के माध्यम से तस्करों ने 6.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक कमाए थे।
    • अवैध आग्नेयास्त्रों की तस्करी: इसमें हथियारों, विस्फोटकों और गोला-बारूद के अवैध व्यापार की तस्करी शामिल है, जो अक्सर पार-देशीय आपराधिक संगठनों से जुड़ी अवैध गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला का हिस्सा होता है।
      • आग्नेयास्त्रों के अवैध व्यापार से वैश्विक स्तर पर लगभग 170 मिलियन डॉलर से 320 मिलियन डॉलर की वार्षिक आय होती है।
    • प्राकृतिक संसाधनों की तस्करी: इसमें खनिज और ईंधन जैसे गैर-नवीकरणीय संसाधनों तथा वन्यजीवन (विदेशी बाज़ारों में निर्यात के लिये चमड़ा व शरीर के अंग), वानिकी एवं मत्स्य पालन जैसे नवीकरणीय संसाधनों (Renewable Resources) आदि का व्यापार शामिल है।
      • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा इस व्यापार को अक्सर "पर्यावरणीय अपराध" कहा जाता है।
      • वर्ष 2010 में सिर्फ एशिया में हाथी के दाँत, गैंडे के सींग और बाघ के अंगों की बिक्री अनुमानित 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर की थी।
    • नकली दवाएँ: इनमें नकली दवाएँ तथा कानूनी और विनियमित आपूर्ति शृंखलाओं से हटाई गई दवाएँ भी शामिल हैं।
      • लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर करने के बजाय, नकली दवाओं (Fraudulent Medicines) के सेवन से रोगियों की मृत्यु हो सकती है या घातक संक्रामक रोगों के इलाज के लिये उपयोग की जाने वाली दवाओं के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
    • साइबर अपराध और पहचान की चोरी: अपराधी निजी डेटा चुराने, बैंक खातों तक पहुँचने और धोखाधड़ी से भुगतान कार्ड विवरण प्राप्त करने के लिये इंटरनेट का उपयोग करते हैं।

भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने वाले साइबर अपराध:

  • साइबर अपराध की घटनाओं में वृद्धि: I4C प्रतिदिन औसतन लगभग 7,000 साइबर-संबंधी शिकायतों की रिपोर्ट करता है, जो साइबर अपराध की घटनाओं में होने वाली उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देता है।
    • डिज़िटल गिरफ्तारी, व्यापारिक घोटाले, निवेश घोटाले और डेटिंग घोटाले सहित विभिन्न प्रकार के साइबर अपराधों की पहचान की गई है, जो साइबर अपराधियों द्वारा अपनाई गई विविध रणनीति को उजागर करते हैं।
  • दक्षिण पूर्व एशिया में उत्पत्ति: भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने वाले लगभग 45% साइबर अपराध दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, विशेष रूप से कंबोडिया, म्याँमार और लाओस में घटित होते हैं।

पार-देशीय संगठित अपराध का प्रभाव क्या है?

  • वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य: नकली दवाएँ, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रचलित, अप्रभावी या हानिकारक हो सकती हैं।
  • समुत्थानित एवं समावेशी वैश्विक अर्थव्यवस्था: धन शोधन और अवैध वित्तीय प्रवाह वित्तीय अखंडता तथा राज्य की सार्वजनिक वित्तपोषण क्षमताओं को कमज़ोर करते हैं, जिससे आर्थिक विकास बाधित होता है। 
    • TOC, विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) को समाप्त कर सकता है और परिसंपत्ति की कीमतों को प्रभावित कर सकता है, जिससे आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
    • वैश्विक अपतटीय अर्थव्यवस्था विश्व की अनुमानित 10% संपत्ति को छुपाती है, जिसमें संगठित अपराध द्वारा प्राप्त आय भी शामिल है।
  • ग्रह स्वास्थ्य: संगठित पर्यावरणीय अपराध वनोन्मूलन, जैवविविधता हानि और जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा: अवैध हथियारों का व्यापार सशस्त्र संघर्ष, हिंसक अपराधों और अन्य संगठित आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।
    • गैर-राज्य सशस्त्र समूह प्राकृतिक संसाधन निष्कर्षण और तस्करी सहित अपनी गतिविधियों का समर्थन करने के लिये अवैध बाज़ारों में संलग्न हैं।
    • सशस्त्र संघर्षों की तुलना में संगठित अपराध-संबंधी हिंसा में खासकर मध्य और दक्षिण अमेरिका मेंअधिक लोग मारे जाते हैं।
  • स्थानीय प्रभाव: हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध एक वैश्विक खतरा है, लेकिन इसका प्रभाव स्थानीय स्तर पर अनुभव किया जाता है।
    • यह संबंधित देशों और कुछ क्षेत्रों में भी अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है तथा उन क्षेत्रों में विकास सहायता को कमज़ोर कर सकता है।
    • संगठित अपराध समूह स्थानीय अपराधियों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, जिससे भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, डकैती और हिंसा के साथ-साथ अन्य परिष्कृत अपराधों में वृद्धि हो सकती है।
    • यह सुरक्षा और पुलिस व्यवस्था के लिये सार्वजनिक व्यय को बढ़ाता है तथा मानवाधिकार मानकों को कमज़ोर करता है।

अवैध लाभ को लक्षित करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • सतत् विकास लक्ष्य: अवैध लाभ को लक्षित करके आपराधिक गतिविधियों को हतोत्साहित करने से वित्तीय स्थिरता, समावेशी आर्थिक विकास और मज़बूत संस्थानों तथा शासन सहित 2030 सतत् विकास एजेंडा के लक्ष्यों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  • आपराधिक गतिविधियों को बाधित करता है: अवैध गतिविधियों से वित्तीय लाभ को लक्षित करने से, अपराधियों के लिये अपने कार्यों को वित्तपोषित करना तथा अपने नेटवर्क को बनाए रखना अधिक कठिन हो जाता है।
    • अवैध लाभ प्राय: अन्य अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देता है। इन कोषों में कटौती करने से भविष्य में अपराधों को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है।
  • विधि के शासन को बढ़ावा देता है: विधि के शासन को बनाए रखने और यह दिखाने के लिये कि अपराध लाभदायक नहीं है, अवैध रूप से अर्जित लाभ को जब्त किया जाना चाहिये।
  • विकास लक्ष्यों में सहायता: अवैध धन को वैध उद्देश्यों की ओर पुनर्निर्देशित करने से आर्थिक विकास तथा अन्य विकासात्मक पहलों को समर्थन मिल सकता है।
  • वैश्विक सुरक्षा को बढ़ाता है: धन शोधन तथा आतंकवाद का वित्तपोषण अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये जोखिम उत्पन्न करता है। अवैध लाभ को लक्षित करने से इन जोखिमों से निपटने में सहायता मिल सकती है।
  • सुभेद्य जनसंख्या की सुरक्षा: अवैध लाभ से वित्तपोषित आपराधिक गतिविधियाँ अक्सर सबसे कमज़ोर वर्ग के लोगों का शोषण करती हैं। इन मुनाफों को लक्षित करके, हम इनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यह पार-देशीय संगठित अपराधों और आतंकवाद के वित्तपोषण को समाप्त करने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करता है।

TOC को नियंत्रित करने के संबंध में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विविध कानूनी प्रणालियाँ: विभिन्न देशों में कानूनी ढाँचों में भिन्नताएँ TOC से निपटने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को जटिल बनाती हैं।
  • सर्वसम्मति का अभाव: अलग-अलग राष्ट्रीय हितों और प्राथमिकताओं के कारण TOC को संबोधित करने की रणनीतियों पर वैश्विक सहमति प्राप्त करना कठिन है।
    • पार-देशीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UN Convention Against Transnational Organized Crime- UNTOC) मुख्य कानूनी साधन है, लेकिन इसका कार्यान्वयन और सहयोग व्यवस्था अप्रभावी है।
    • UNODC और अन्य निकायों में एक सुसंगत रणनीति का अभाव है, जो अनेक भागों में विभाजित दृष्टिकोण को अपना रहा है।
    • शक्तिशाली राज्य अनौपचारिक और एकपक्षीय समाधान की आशा रखते हैं, जिनमें अक्सर निरीक्षण की कमी होती है तथा विधि के शासन और मानवाधिकारों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • भ्रष्टाचार: TOC में अक्सर भ्रष्टाचार शामिल होता है, जो कानून प्रवर्तन और शासन संरचनाओं में घुसपैठ करता है तथा उन्हें कमज़ोर करता है।
  • तकनीकी प्रगतिः अपराधी अवैध गतिविधियों के लिये प्रौद्योगिकी का दोहन करते हैं तथा कानून प्रवर्तन एजेंसियों आगे रहते हैं।
  • सशस्त्र संघर्ष: संघर्ष के क्षेत्रों में TOC हिंसा और अस्थिरता को बढ़ावा दे सकता है, जिससे इसे नियंत्रित करने के प्रयास जटिल हो सकते हैं।
    • एक बड़ा खतरा TOC और आतंकवाद के बीच संबंधों से उत्पन्न होता है, जब आतंकवादी गतिविधियों को आपराधिक कमाई से वित्तपोषित किया जाता है।

संगठित अपराध पर भारत में कानूनी स्थिति:

  • हालाँकि संगठित अपराध भारत में हमेशा से मौज़ूद रहा है, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में आधुनिक सफलताओं ने कई सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक कारकों के साथ मिलकर, इसे और अधिक प्रचलित बना दिया है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर, भारत में संगठित अपराध को संबोधित करने के लिये एक विशिष्ट कानून का अभाव है, और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 तथा नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम 1985 जैसे मौज़ूदा कानून इसके नियंत्रण के लिये अपर्याप्त हैं क्योंकि वे आपराधिक समूहों के बजाय व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने संगठित अपराध से निपटने के लिये अपने स्वयं के कानून लागू किये हैं।
  • भारत अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो विश्व स्तर पर संगठित अपराध को रोकने और समाप्त करने का प्रयास करता है। इनमें मुख्य रूप से UNODC, UNCAC तथा UNTOC शामिल हैं।

आगे की राह

  • ब्लॉकचेन फोरेंसिक: अवैध क्रिप्टोकरेंसी के प्रवाह की निगरानी के लिये ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिये, जो TOC के लिये राजस्व में वृद्धि करने का एक स्रोत है।
  • उन्नत अनुरेखण विधियों (Advanced Tracing Methods) के माध्यम से धन शोधन (Money Laundering) नेटवर्क की पहचान कर उन्हें समाप्त किया जाना चाहिये।
  • डार्क वेब घुसपैठ: डार्क वेब पर नेविगेट करने, TOC द्वारा उपयोग किये जाने वाले ऑनलाइन मार्केटप्लेस में घुसपैठ करने और उनके संचालन पर महत्त्वपूर्ण खुफिया जानकारी एकत्रित करने के लिये प्रशिक्षित विशेष इकाइयाँ विकसित की जानी चाहिये।
  • पारदर्शिता पहल: रिश्वतखोरी और TOC के साथ मिलीभगत के अवसरों को कम करने के लिये सरकारी संस्थानों में पारदर्शिता उपायों का समर्थन एवं प्रचार किया जाना चाहिये।
    • नागरिकों को सुरक्षित चैनलों के माध्यम से भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने के लिये सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • राजनीतिक इच्छाशक्तिः इस बात की व्यापक समझ विकसित की जानी चाहिये कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध और भ्रष्टाचार वैश्विक सार्वजनिक प्रणालियों को कमज़ोर करते हैं।
    • बहुपक्षीय साधनों के माध्यम से प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति का निर्माण करना चाहिये।
    • संघर्ष की रोकथाम, शांति संचालन और शांति निर्माण प्रयासों में अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध से निपटने के लिये रणनीतियों को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • विकासात्मक, मानवाधिकारों और सुरक्षा निहितार्थों को संबोधित करते हुए आपराधिक न्याय प्रतिक्रियाओं से परे एक समग्र दृष्टिकोण को अपनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। 
  • वास्तविक समय संलयन केंद्र: डेटा के त्वरित विश्लेषण, रुझानों की पहचान और संगठित आपराधिक गतिविधि पर समन्वित प्रतिक्रियाओं के लिये कानून प्रवर्तन, खुफिया एजेंसियों तथा निजी क्षेत्र के भागीदारों के बीच तत्काल सहयोग की सुविधा के लिये वास्तविक समय संलयन केंद्र का निर्माण किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सतत् विकास पर अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के प्रभाव का आकलन विशेष रूप से 2030 सतत् विकास एजेंडा के संदर्भ में कीजिये। साथ ही यह बताइए कि TOC के अवैध मुनाफे को लक्षित करने से विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में कैसे सहायता मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये :  (2019)

  1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशंस कर्न्वेंशन अर्गेस्ट करप्शन (UNCAC)] का भूमि, समुद्र और वायुमार्ग से प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध एक प्रोटोकॉल' होता है।
  2. UNCAC अब तक का सबसे पहला विधितः बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार-निरोधी लिखत है।
  3. राष्ट्र-पार संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशंस कर्न्वेशन अर्गेस्ट ट्रांसनैशनल ऑर्गेनाइज़ड क्राइम (UNTOC)] की एक विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है, जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है, जिनसे वे अवैध तरीके से ले ली गई थीं।
  4. मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स ऐंड क्राइम (UNODC)] संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC और UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

मुद्रास्फीति स्थिर रहने के कारण अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने दरें अपरिवर्तित रखीं

प्रिलिम्स के लिये:

अमेरिकी फेडरल रिज़र्व, खुदरा मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति समिति, थोक मूल्य सूचकांक (WPI), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, कोर मुद्रास्फीति, हेडलाइन मुद्रास्फीति,

मेन्स के लिये:

अमेरिकी फेड दर में बढ़ोतरी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने हाल ही में ब्याज दरों को 5.25% से 5.25% के लक्ष्य के दायरे में रखा है और कहा है कि भविष्य में ऋण लेने की लागत संभवतः बढ़ोतरी होती रहेगी। अमेरिका में वर्तमान में 3.5% वार्षिक मुद्रास्फीति देखी जा रही है, जबकि यूके (UK) में 3.2% और यूरोक्षेत्र में 2.4% देखी जा रही है।

हाल के अमेरिकी फेडरल रिज़र्व निर्णय के पीछे क्या कारण हैं? 

  • मुद्रास्फीति का दबाव:
    • अमेरिकी मुद्रास्फीति दर 2021 और 2022 में क्रमशः 7.0% व 6.5% पर पहुँची और फिर 2023 के अंत में इसमें गिरावट आई, लेकिन यह अभी भी 3.5% के उच्च स्तर पर बनी हुई है।
      • यह अमेरिकी फेड के 2% के लक्ष्य से काफी अधिक है।
    • इस निरंतर मुद्रास्फीति से इंगित होता है कि ब्याज दरों को बढ़ाने जैसे पिछले उपायों से मुद्रास्फीति में उतनी तेज़ी से कमी नहीं आई है जितनी आशा की गई थी।
  • प्रतीक्षा करने और देखने का दृष्टिकोण: 
    • वर्ष की शुरुआत में फेड ने अनुमान लगाया था कि मुद्रास्फीति में गिरावट आएगी और दर में कटौती का अनुमान लगाया जाएगा। हालाँकि, मौज़ूदा स्थिति ने उन्हें पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया है।
    • अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरों को बनाए रखकर अधिक डेटा संकलित करने के लिये स्वयं को पर्याप्त समय देता है। साथ ही यह उपभोक्ताओं के खर्च के रुझान, रोज़गार डेटा और मुद्रास्फीति के उपायों पर सावधानीपूर्वक निगरानी भी रखता है।
    • यह आँकड़ा उनके भविष्य के निर्णयों का मार्गदर्शन करेगा कि क्या मुद्रास्फीति से निपटने के लिये दरें बढ़ाई जाएँ या आर्थिक विकास का समर्थन करने के लिये उन्हें अपरिवर्तित रखा जाए।

केंद्रीय बैंक, ब्याज दरें बढ़ाने का सहारा क्यों लेते हैं?

  • मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है।
  • ऐसा करने से ऋण के रूप में ली जाने वाली धनराशि कम हो जाएगी, जिससे अर्थव्यवस्था को धीमा करने और लागतों की तीव्र वृद्धि को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।
  • उच्च ऋण लागत के साथ व्यक्ति और कंपनियाँ उधार लेने के लिये कम इच्छुक हो सकते हैं, जो आर्थिक गतिविधियों एवं विकास को धीमा कर सकता है। 
    • ऋण लेने की बढ़ती लागत की प्रतिक्रिया स्वरुप व्यवसाय ऋण लेने में कमी कर सकते हैं, कम सदस्यों को नियोजित कर सकते हैं और उत्पादन में कमी कर सकते हैं।

inflation

अमेरिकी फेड दरें भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती हैं?

  • पूंजी बहिर्प्रवाह:
    • फेड की दर वृद्धि अमेरिकी डॉलर-मूल्यवर्ग की परिसंपत्तियों (बॉण्ड, कोषागार) को और अधिक आकर्षक बनाती है। यह "कैरी ट्रेड (Carry Trade)" नामक एक घटना को प्रेरित करता है। 
    • निवेशक, भारत जैसे कम ब्याज दर वाले देशों से धन ऋण के रूपों में लेते हैं और उच्च रिटर्न अर्जित करने के लिये इसे अमेरिका में निवेश करते हैं। अन्य देशों से पूंजी (पूंजी उड़ान-Capital Flight) का यह बहिर्वाह हो सकता हैः
      • धीमी आर्थिक वृद्धि: कम विदेशी निवेश भारतीय कंपनियों और समग्र अर्थव्यवस्था के विकास में बाधा बन सकता है।
      • शेयर बाज़ारों पर प्रभाव: विदेशी निवेश की अचानक वापसी से शेयर बाज़ार में अस्थिरता हो सकती है और संभावित रूप से मूल्यांकन भी प्रभावित हो सकता है।
  • मुद्रास्फीति:
    • अमेरिकी फेडरल रिज़र्व दरों (US Fed Rate) में बदलाव से पूंजी प्रवाह और विनिमय दरें प्रभावित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति हो सकती है।
    • घरेलू ब्याज़ दरों और तरलता उपायों को समायोजित करके RBI कमज़ोर रुपए (Weaker Rupee) के मुद्रास्फीति प्रभावों को कम करने का प्रयास कर सकता है।
  • कमज़ोर रुपए:
    • जब विदेशी निवेशक अधिक अमेरिकी रिटर्न के कारण अपना पैसा भारत से बाहर निकालते हैं, तो इससे भारत में USD की आपूर्ति कम हो जाती है और INR की आपूर्ति बढ़ जाती है। यह असंतुलन भारतीय रुपए को कमज़ोर करता है।
    • इसका दोहरा प्रभाव है:
      • आयातित मुद्रास्फीति: सस्ता रुपया (Cheaper Rupees) आयात को और अधिक महँगा, विशेषकर तेल जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिये, बना देता है। जिससे भारत में रहने की कुल लागत में वृद्धि हो सकती है।
      • संभावित निर्यात को बढ़ावा: कमज़ोर रुपया वैश्विक बाज़ार में भारतीय निर्यात को सस्ता कर सकता है, जिससे संभावित रूप से उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है।
  • उच्च उधार लागत:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) फेड के प्रस्ताव के अनुरूप भारत में ब्याज दरें बढ़ा सकता है:
      • मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: उच्च ब्याज़ दरें उधार लेने और खर्च करने को हतोत्साहित करती हैं, जिससे संभावित रूप से मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में सहायता मिलती है।
      • स्टेम कैपिटल फ्लाइट: RBI का लक्ष्य घरेलू निवेश को अधिक आकर्षक बनाकर भारत से पूंजी के बहिर्वाह को रोकना है।
  • शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव:
    • इसके फलस्वरूप भारतीय शेयर बाज़ार में अस्थिरता देखी जा सकती है क्योंकि निवेशक अमेरिका में बेहतर रिटर्न चाहते हैं:
      • मांग में कमी: विदेशी निवेश कम होने से भारतीय शेयरों की मांग कम हो सकती है, जिससे संभावित रूप से उनकी कीमतों में गिरावट आ सकती है।
  • बढ़ा हुआ ऋण बोझ:
    • कमज़ोर रुपया भारत के लिये अपने विदेशी ऋण को चुकाना अधिक महँगा बना सकता है, जो अधिकतर अमेरिकी डॉलर में दर्शाया जाता है। ये हो सकता है:
      • सार्वजनिक वित्त पर दबाव: सरकार को अपने ऋणों का भुगतान करने के लिये अधिक व्यय करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे अन्य महत्त्वपूर्ण विकासात्मक योजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।
  • बैंकों के लिये लाभ:
    • बैंकिंग उद्योग को ब्याज दरों में वृद्धि से लाभ मिलता है, क्योंकि बैंक अपने ऋण पोर्टफोलियो का पुनर्मूल्यांकन अपनी जमा दरों की तुलना में बहुत तेज़ी से करते हैं, जिससे उन्हें अपना शुद्ध ब्याज मार्जिन बढ़ाने में सहायता मिलती है।

भारत अपनी अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के निर्णयों के प्रभाव को कैसे कम कर सकता है?

  • ब्याज़ दरें संतुलित करना:
    • दरें बढ़ाना: भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) अमेरिकी फेडरल की बढ़ोतरी को दोहरा सकता है:
      • विदेशी निवेश को आकर्षित करना: उच्च ब्याज दरें भारतीय बॉण्ड और अन्य निवेशों को विदेशी निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बना सकती हैं, संभावित रूप से रुपए की मांग बढ़ सकती है।
      • मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना: बढ़ी हुई ब्याज दरें, उधार लेने और व्यय को नियंत्रित कर सकती हैं, ये संभावित रूप से मुद्रास्फीति के नियंत्रण में सहायता कर सकती हैं, विशेषकर तब, जब यह रुपए के मूल्यह्रास के साथ जुड़ा हो।
  • रिज़र्व बास्केट (Reserve Basket) में विविधता लाना:
    • डॉलर पर निर्भरता कम करना: भारत यूरो, येन या युआन जैसी अन्य प्रमुख मुद्राओं की होल्डिंग बढ़ाकर अपने विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता ला सकता है।
      • इससे अमेरिकी डॉलर के उतार-चढ़ाव के प्रति भारत की संवेदनशीलता कम हो जाती है। हालाँकि, एक विविध रिज़र्व बास्केट का प्रबंधन जटिल हो सकता है।
  • व्यापार क्षितिज का विस्तार:
    • निर्यात बाज़ारों की खोज: भारतीय निर्यात के लिये नए बाज़ारों की पहचान करने तथा उनमें प्रवेश करने से भारत के व्यापार आधार में विविधता लाने और अमेरिकी बाज़ारों पर इसकी निर्भरता कम करने में सहायता मिल सकती है।
      • व्यापार समझौते: अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर बातचीत करने से व्यापार बाधाओं को कम किया जा सकता है और गैर-अमेरिकी देशों के साथ व्यापार प्रवाह को बढ़ावा मिल सकता है।
        • इससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम हो जाती है।
  • घरेलू उपभोग को प्रोत्साहन:
    • मांग को बढ़ावा देना: यदि US Fed बढ़ोतरी से अर्थव्यवस्था धीमी हो जाती है, तो सरकार घरेलू खपत को प्रोत्साहित करने के लिये उपाय लागू कर सकती है:
      • कर में कटौती: करों को कम करने से लोगों की आय में वृद्धि देखने को मिलती है, संभावित रूप से खर्च बढ़ सकता है और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।
        • वर्ष 2020 में भारत सरकार ने निचले कर ब्रैकेट में आयकर दाताओं के लिये  कर छूट बढ़ा दी। इसका उद्देश्य COVID-19 महामारी के दौरान उपभोग व्यय को बढ़ावा देना है।
      • सब्सिडी: आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये लक्षित सब्सिडी उपभोक्ताओं पर बोझ कम करने और क्रय शक्ति बनाए रखने में सहायता कर सकती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS), प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana- PMUY) ऐसी सरकारी पहलों के उदाहरण हैं।
  • तेल पर निर्भरता कम करना:
    • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना: डॉलर मज़बूत होने से अक्सर तेल की कीमतों में वृद्धि होती है। भारत सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश करके इसे नियंत्रित कर सकता है।
      • यह आयातित तेल पर निर्भरता को कम कर सकता है और किसी भी अर्थव्यवस्था को तेल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचा सकता है।
    • जैव ईंधन की खोज: इथेनॉल जैसे जैव ईंधन का विकास वैकल्पिक ईंधन स्रोत प्रदान कर सकता है, जिससे आयातित तेल पर निर्भरता कम हो सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी फेड (US Fed) दर वृद्धि के प्रभाव के बारे में चर्चा कीजियेI भारत अपनी अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी फेडरल रिज़र्व (US Federal Reserve) के निर्णयों के प्रभाव द्वारा कैसे निपट सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय सरकारी बाॅण्ड प्रतिफल निम्नलिखित में से किससे/किनसे प्रभावित होता है/होते हैं? (2021)

  1. यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाई
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक की कार्रवाई
  3. मुद्रास्फीति एवं अल्पावधि ब्याज दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. US फेडरल रिज़र्व की सख्त मुद्रा नीति पूंजी पलायन की ओर ले जा सकती है।
  2. पूंजी पलायन वर्तमान विदेशी वाणिज्यिक ऋणग्रहण (External Commercial Borrowings (ECBs) वाली फर्मों की ब्याज लागत को बढ़ा सकता है।
  3. घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन, ECBs से संबद्ध मुद्रा जोखिम को घटाता है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं ?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


कृषि

नई कृषि निर्यात-आयात नीति की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि निर्यात प्रवृति, अनाज, चीनी, प्याज, कृषि निर्यात नीति (AEP), बाज़ार पहुँच समझौते, कृषि निर्यात नीति 2018, खाद्य तेल और दलहन 

मेन्स के लिये:

कृषि निर्यात में गिरावट के कारण, कृषि निर्यात नीति (AEP), निर्यात सब्सिडी, दर में कटौती, गुणवत्ता मानक, बाज़ार पहुँच समझौते, कृषि निर्यात नीति 2018, निगरानी ढाँचा, उपभोक्ता खाद्य सुरक्षा और बुनियादी ढाँचा विकास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य विभाग के आँकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2023-24 में भारत के कृषि निर्यात में 8.2% की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण विभिन्न वस्तुओं पर सरकारी प्रतिबंधों का लगना है। इस बीच, खाद्य तेल की कम कीमतों के कारण कृषि आयात में 7.9% की गिरावट आई है।

  • ये प्रवृतियाँ कृषि क्षेत्र को स्थिर करने तथा घरेलू उपलब्धता एवं बाज़ार वृद्धि, दोनों को सुनिश्चित करने के लिये एक संतुलित कृषि निर्यात-आयात नीति की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।

भारतीय कृषि निर्यात एवं आयात की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • कृषि निर्यात:
    • वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कृषि निर्यात में 8.2% की भारी गिरावट देखी गई, जिससे यह 48.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
      • यह गिरावट वित्तीय वर्ष 2022-23 में 53.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड-तोड़ स्थिति के बाद देखी गयी।
    • अस्वीकृत वस्तुएँ:
      • चीनी निर्यात: अक्तूबर 2023 से चीनी निर्यात की अनुमति नहीं दी गई, जिससे 2023-24 में निर्यात पिछले वर्ष के 5.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
      • गैर-बासमती चावल निर्यात: घरेलू उपलब्धता और खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंताओं के कारण जुलाई 2023 से सभी प्रकार के सफेद गैर-बासमती चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
        • वर्तमान में गैर बासमती वाले क्षेत्र में केवल उबले हुए अनाज के नौवहन (Shipments)  की अनुमति है, जिस पर 20% शुल्क लगता है।
        • इन प्रतिबंधों ने कुल गैर-बासमती निर्यात को वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 6.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटाकर वर्ष 2023-24 में 4.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है।
      • गेहूँ निर्यात: मई, 2022 में गेहूँ का निर्यात बंद हो गया, जो 2021-22 में 2.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2023-24 में 56.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
      • प्याज निर्यात: मई 2024 में केंद्र ने प्याज के निर्यात से प्रतिबंध हटा दिया। इसके साथ ही 550 अमेरिकी डॉलर प्रतिटन का न्यूनतम मूल्य (जिसके नीचे कोई निर्यात नहीं हो सकता) और 40% शुल्क निर्धारित किया गया।
        • आधिकारिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान प्याज का कुल निर्यात केवल 17.08 लाख टन हुआ, जिसका मूल्य 467.83 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 25.25 लाख टन था, जिसका मूल्य लगभग 561.38 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
      • हालाँकि, बासमती चावल और मसालों के निर्यात में वृद्धि देखी गई, बासमती चावल 5.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और मसालों के निर्यात ने पहली बार 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आँकड़ा पार कर लिया।
      • समुद्री उत्पादों, अरंडी का तेल (Castor Oil) और अन्य अनाज (मुख्य रूप से मक्का) के निर्यात में भी वृद्धि दर्ज़ की गई, जिसने समग्र निर्यात के बास्केट की वृद्धि में योगदान दिया।
  • कृषि आयात:
    • वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कृषि आयात में 7.9% की गिरावट देखी गई, जो वैश्विक बाज़ार स्थितियों और घरेलू मांग के प्रभाव को स्पष्ट करती है।
    • खाद्य तेल आयात में कमी:
      • समग्र कृषि आयात में उल्लेखनीय गिरावट मुख्यतः एक ही वस्तु के कारण थी: खाद्य तेल
        • रूस-यूक्रेन युद्ध के ठीक एक वर्ष बाद 2022-23 में भारत में वनस्पति वसा का आयात 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जबकि इस दौरान वनस्पति तेलों की वैश्विक कीमतें अपने चरम पर थीं।
        • हालाँकि, वर्ष 2023-24 में औसत FAO वनस्पति तेल उप-सूचकांक घटकर 123.4 अंक हो गया, जो न्यूनतम वैश्विक कीमतों का संकेत देता है।
        • परिणामस्वरूप, पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान वनस्पति तेल का आयात 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम हुआ।
    • दलहन आयात में वृद्धि:
      • वर्ष 2023-24 में दलहन आयात लगभग दोगुना होकर 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2015-16 और वर्ष 2016-17 के क्रमशः 3.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा 4.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर के बाद सर्वाधिक है।
      • दलहन आयात में वृद्धि इस आवश्यक वस्तु की घरेलू मांग की पूर्ति करने के लिये विदेशी स्रोतों पर निरंतर निर्भरता को उजागर करती है।

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भारत के कृषि निर्यात और आयात को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?

  • निर्यात प्रतिबंध: सरकार ने घरेलू उपलब्धता और खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंताओं के कारण चावल, गेहूँ, चीनी और प्याज़ जैसी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
    • इन प्रतिबंधों के कारण इन वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
  • वैश्विक कीमतों में उतार चढ़ाव: संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के खाद्य मूल्य सूचकांक (आधार: 2014-16= 100) का उपयोग वैश्विक कृषि-वस्तु कीमतों को ट्रैक करने के लिये एक संदर्भ के रूप में किया जाता है।
    • FAO खाद्य मूल्य सूचकांक वर्ष 2013-14 में औसतन 119.1 अंक से गिरकर वर्ष 2013-14 और वर्ष 2019-20 के बीच 96.5 अंक हो गया, जो वैश्विक कृषि-वस्तु कीमतों में गिरावट को प्रदर्शित करता है।
    • वैश्विक कीमतों में इस गिरावट ने भारत के कृषि निर्यात की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर दिया।
    • हालाँकि, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक मूल्य सुधार के कारण वर्ष 2022-23 में FAO सूचकांक 140.8 अंक तक बढ़ गया।
    • वैश्विक कीमतों में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में भारत का कृषि निर्यात और आयात वित्तीय वर्ष 2023-24 में गिरावट से पहले, अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
      • वर्ष 2023-24 में औसत FAO सूचकांक घटकर 121.6 अंक हो गया, जबकि वनस्पति तेल उप-सूचकांक घटकर 123.4 अंक हो गया, जिससे भारत के खाद्य तेल आयात बिल में गिरावट आई।
  • सरकारी नीतियाँ: दालों और खाद्य तेलों पर कम अथवा शून्य आयात शुल्क को बनाए रखने का सरकार का निर्णय घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के उसके लक्ष्य के विपरीत है।
    • यह नीति घरेलू कृषि के बजाय आयात को बढ़ावा देती है, जिससे संभावित रूप से किसानों को फसलों में विविधता लाने के प्रति हतोत्साहित किया जा सकता है। अंततः यह दीर्घकालिक कृषि विकास और आत्मनिर्भरता को कमज़ोर करता है।

कृषि निर्यात नीति क्या है?

  • परिचय: एक कृषि निर्यात नीति में सरकारी नियमों, कार्यों और प्रोत्साहनों का एक संग्रह होता है जिसका उद्देश्य एक विशिष्ट राष्ट्र से कृषि वस्तुओं के निर्यात को विनियमित करना तथा बढ़ावा देना होता है।
    • इस नीति में कृषि उत्पादकों और निर्यातकों की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच को बढ़ावा देने तथा उनकी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिये निर्यात सब्सिडी, शुल्क में कमी, गुणवत्ता मानक, बाज़ार पहुँच समझौते, वित्तीय प्रोत्साहन एवं व्यापार संवर्द्धन पहल शामिल हैं।
  • भारत की कृषि निर्यात नीति, 2018: दिसंबर 2018 में सरकार ने भारत को वैश्विक कृषि में अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये उचित नीतिगत उपायों का उपयोग करके भारत की कृषि निर्यात क्षमता का लाभ उठाने के उद्देश्य से, एक व्यापक कृषि निर्यात नीति लागू की।
    • उद्देश्य: इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को 30 अरब डॉलर से दोगुना करके 60 अरब डॉलर से अधिक करना है।
      • नीति में यह उम्मीद की जा रही थी कि किसानों को विदेशी बाज़ार में निर्यात के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा। 
      • यह जातीय, जैविक, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देगा।
      • कृषि निर्यात नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक निगरानी ढाँचा स्थापित किया जाएगा। 
    • घटक:
      • रणनीतिक: नीतिगत उपाय, बुनियादी ढाँचा और रसद; निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण का समर्थन; कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की अधिक भागीदारी को सुनिश्चित करना।
      • क्रियाशील: समूहों पर ध्यान केंद्रित करना, मूल्यवर्द्धित निर्यात को बढ़ावा देना, "ब्रांड इंडिया" का विपणन और प्रचार करना, उत्पादन एवं प्रसंस्करण में निजी निवेश को आकर्षित करना तथा एक मज़बूत गुणवत्ता व्यवस्था स्थापित करके अनुसंधान एवं विकास सुनिश्चित करना।

भारत की कृषि-निर्यात नीति की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • नीति अस्थिरता और दोहरे मानक: निर्यात नियमों में बार-बार होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप किसानों और व्यापारियों को आर्थिक हानि हो सकती है, जो अक्सर घरेलू ग्राहकों को मूल्य वृद्धि से बचाने के लिये लागू किये जाते हैं। प्याज़ और गेहूँ पर  अचानक लगाए गए प्रतिबंध और सीमाएँ बाज़ार के संतुलन को प्रभावित करती हैं और दीर्घकालिक वाणिज्यिक संबंधों को बाधित करते हैं।
  • परस्पर विरोधी लक्ष्य: खाद्य तेलों पर सरकार के न्यूनतम टैरिफ और दालों पर न्यूनतम आयात शुल्क का उद्देश्य उपभोक्ता सामर्थ्य की गारंटी सुनिश्चित करना होता है, लेकिन वे कम जल-गहन एवं आयात-प्रतिस्थापन वाली फसलों में घरेलू फसल विविधीकरण को हतोत्साहित करने का कार्य करते हैं।
  • सब्सिडी केंद्रित योजनाएँ: चुनावी मौसमों के दौरान लोकलुभावन उपाय, जैसे कि उपभोक्ता खाद्य और किसान उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि, कृषि ऋण माफी एवं मुफ्त बिजली, हालाँकि राजनीतिक रूप से लोकप्रिय हैं, राजकोषीय अनुशासन तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय स्थिति को कमज़ोर करते हैं।
  • अनुसंधान एवं विकास पर अपर्याप्त निवेश: कृषि अनुसंधान एवं विकास पर भारत का निवेश कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.5% तक सीमित है, जो किसी महत्त्वपूर्ण वृद्धि को प्रेरित करने के लिये अपर्याप्त है और उत्पादन व निर्यात बढ़ाने के लिये इसे दोगुना या तिगुना करने की आवश्यकता है।
  • गुणवत्ता और मानक: आयातक देशों के SPS उपायों (Sanitary and Phytosanitary Measures) का अनुपालन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। 
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को वैश्विक कृषि बाज़ार में अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है और इसलिये मूल्य निर्धारण एवं गुणवत्ता के मामले में उसका प्रतिस्पर्द्धी होना आवश्यक है। विनिमय दर में उतार-चढ़ाव भारतीय कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है।

भारत में कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी योजनाएँ: 

भारत में स्थिर कृषि-निर्यात नीति के लिये आगे की राह क्या हैं?

  • हितों और दीर्घकालिक लक्ष्यों को संतुलित करना: अर्थशास्त्री अचानक हुए नुकसान के बिना निर्यात का प्रबंधन करने के लिये अस्थायी टैरिफ जैसी अधिक पूर्वानुमानित और नियम-आधारित नीतियों का सुझाव देते हैं।
  • रणनीतिक बफर स्टॉक और बाज़ार हस्तक्षेप: सरकार को मूल्य अस्थिरता को कम करने तथा बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक वस्तुओं का बफर स्टॉक बनाए रखना चाहिये। यह दृष्टिकोण अधिक नियंत्रित एवं कम विघटनकारी बाज़ार हस्तक्षेप की अनुमति देता है, जिससे अचानक होने वाले नीतिगत बदलावों को नियंत्रित किया जा सकता है जो कृषि क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं।
  • किसान कल्याण: किसानों के कल्याण को प्राथमिकता दी जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त कृषि निर्यात की सफलता से कृषक समुदाय को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होना चाहिये।
  • घरेलू उपभोक्ताओं के लिये समर्थन: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये घरेलू उपभोक्ताओं हेतु नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है, जो विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों पर लक्षित घरेलू आय नीति के माध्यम से क्रियान्वित होना चाहिये।
  • उत्पादकता में वृद्धि लाना: प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये कृषि उत्पादकता में वृद्धि आवश्यक है। इसके लिये अनुसंधान एवं विकास, बीज, सिंचाई, उर्वरक और बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश की आवश्यकता होगी।
  • निर्यात टोकरी में विविधता लाना: कृषि निर्यात टोकरी में विविधता लाई जाए, मूल्यवर्द्धित उत्पादों पर बल दिया जाए, कुछ चुनिंदा पण्यों पर निर्भरता को कम किया जाए और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की एक विस्तृत शृंखला को लक्षित किया जाए।
  • अवसंरचना विकास: फसलोत्तर हानियों को कम करने और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण सुविधाओं, परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स सहित आधुनिक अवसंरचना में निवेश किया जाए। 
  • सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों से सीखना: अन्य देशों की सफल कृषि निर्यात नीतियों और उनसे संबंधित सर्वोत्तम अभ्यासों से सीखने की ज़रूरत है। अनुकूल व्यापार समझौते संपन्न करने के राजनयिक प्रयासों को मज़बूत किया जान चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक बेहतर पहुँच प्राप्त करने के लिये व्यापार बाधाओं को कम किया जान चाहिये।
    • नीदरलैंड: बागवानी निर्यात में एक वैश्विक नेता, नीदरलैंड नवाचार, कुशल रसद और मज़बूत उत्पादक संगठनों पर ज़ोर देता है।
    • संयुक्त राज्य: अमेरिकी कृषि विभाग कृषि निर्यात का समर्थन करने के लिये बाज़ार विकास पहल और तकनीकी सहायता सहित कई कार्यक्रम पेश करता है।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये भारत की निर्यात-आयात नीति में सुधार हेतु आवश्यक पहलुओं पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय कृषि की परिस्थितियों के संदर्भ में "संरक्षण कृषि" की संकल्पना का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)

  1. एक धान्य कृषि पद्धतियों का परिहार 
  2. न्यूनतम जोत को अपनाना
  3. बागानी फसलों की खेती का परिहार
  4. मृदा धरातल को ढँकने के लिये फसल अवशिष्ट का उपयोग करना
  5. स्थानिक एवं कालिक फसल अनुक्रमण/फसल आवर्तनों को अपनाना

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 3 और 4 
(b) 2, 3, 4 और 5
(c) 2, 4 और 5 
(d) 1, 2, 3 और 5

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौज़ूद चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं?(2021)

प्रश्न. भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

माइक्रोप्लास्टिक

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोप्लास्टिक्स, पॉलिथीन, सौर यूवी विकिरण, ग्लोबल प्लास्टिक ओवरशूट डे (POD), अष्टमुडी झील,रामसर आर्द्रभूमि, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEP),अंतर सरकारी वार्ता समिति (INC), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) प्लास्टिक संधि, कॉमनवेल्थ क्लीन ओशन एलायंस, न्यूजीलैंड के अपशिष्ट न्यूनतमकरण (माइक्रोबीड्स) विनियम, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024

मेन्स के लिये:

एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध, माइक्रोप्लास्टिक्स और पर्यावरणीय चुनौतियाँ, स्वास्थ्य चुनौतियाँ, नियामकीय एवं नीतिगत चुनौतियाँ, सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन में मनुष्यों और कुत्तों दोनों के अंडकोषों में माइक्रोप्लास्टिक्स का पता चला है, जिसमें पॉलीथीन घटक माइक्रोप्लास्टिक एवं PVC के रूप में उभरा है। यह निष्कर्ष संभावित रूप से शुक्राणुओं की संख्या में कमी से जुड़ा हुआ है।

माइक्रोप्लास्टिक्स क्या हैं?

  • परिचय:
    • उन्हें पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया गया है। यह हमारे महासागरों और जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकता है।
    • सौर UV विकिरण, पवन, धाराओं एवं अन्य प्राकृतिक कारकों के प्रभाव में, प्लास्टिक के टुकड़े छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स (5 मिमी से छोटे कण) या नैनोप्लास्टिक्स (100 NM से छोटे कण) कहा जाता है।
  • वर्गीकरण:
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये व्यावसायिक उपयोग के लिये तैयार किये गए छोटे कण हैं जो परिधानों एवं अन्य वस्त्रों से निकले माइक्रोफाइबर होते हैं।
      • उदाहरण के लिये- व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों एवं प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स: इनका निर्माण बड़े प्लास्टिक, जैसे पानी की बोतलों के टूटने से होता है।
      • पर्यावरणीय कारकों, मुख्य रूप से सौर विकिरण एवं समुद्री लहरों के संपर्क में आना, इसके विघटन का मुख्य कारण है।
  • माइक्रोप्लास्टिक्स के अनुप्रयोग:
    • चिकित्सा एवं फार्मास्युटिकल उपयोग: रसायनों को प्रभावी ढंग से अवशोषित करने एवं मुक्त करने की क्षमता के कारण लक्षित दवा वितरण में उपयोग किया जाता है।
    • औद्योगिक अनुप्रयोग: मशीनरी की सफाई एवं सिंथेटिक वस्त्रों के उत्पादन के लिये एयर-ब्लास्टिंग तकनीक में उपयोग किया जाता है।
    • सौंदर्य प्रसाधन एवं व्यक्तिगत देखभाल उत्पाद: फेस स्क्रब, टूथपेस्ट एवं अन्य व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में एक्सफोलीएटिंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है।

माइक्रोप्लास्टिक्स के संबंध में वर्तमान विकास क्या हैं?

  • वृषण ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक्स: अध्ययन से स्पष्ट है कि कुत्तों में कुल माइक्रोप्लास्टिक स्तर 122.63 µg/g और मनुष्यों में 328.44 µg/g है, जिसमें पॉलीथीन (PE) प्रमुख बहुलक है। यह अध्ययन शुक्राणुओं की घटती संख्या सहित मानव प्रजनन स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंता उत्पन्न करता है।
  • ग्लोबल प्लास्टिक ओवरशूट डे (POD): वर्ष 2024 में, POD, 5 सितंबर को होने का अनुमान है, जो उस बिंदु को चिह्नित करता है जब प्लास्टिक कचरे का उत्पादन विश्व की प्रबंधन क्षमता से अधिक हो जाता है।
    • वर्ष 2024 के अंत तक, 217 देशों द्वारा जलमार्गों में 3 मिलियन टन से अधिक माइक्रोप्लास्टिक मुक्त किये जाने की आशा है, जिसमें चीन और भारत शीर्ष योगदानकर्त्ता हैं।
  • पेयजल में माइक्रोप्लास्टिक्स: एक आलोचनात्मक समीक्षा में पेयजल एवं स्वच्छ जल के स्रोतों में माइक्रोप्लास्टिक पर किये गए 50 अध्ययनों की गुणवत्ता का आकलन किया गया।
    • इसने मानकीकृत नमूने एवं विश्लेषण विधियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, क्योंकि केवल चार अध्ययन ही ऐसे थे जो गुणवत्ता संबंधी सभी मानदंडों को पूर्ण करते थे।
  • अष्टमुडी झील में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण: एक अध्ययन में रामसर आर्द्रभूमि अष्टमुडी झील में महत्त्वपूर्ण माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें मछली, शंख, तलछट एवं जल में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का पता चला है।
    • माइक्रोप्लास्टिक्स में मोलिब्डेनम, आयरन तथा बेरियम जैसी खतरनाक भारी धातुएँ पाई गईं, जो जलीय जीवों एवं दूषित मछली और शंख खाने वाले मनुष्यों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।

माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित विनियम

माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
    • माइक्रोप्लास्टिक्स पर्यावरण में स्थायी होते हैं और उनका छोटा आकार उन्हें लंबी दूरी तक ले जाने की सक्षम बनता है, जिससे वे सर्वव्यापी प्रदूषक बन जाते हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक्स वन्यजीवों, विशेष रूप से सागरीय जीवों के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं, क्योंकि उनके अंतर्ग्रहण के परिणामस्वरूप जहरीले रसायनों का जैव-संचयन (bioaccumulation) हो सकता है।
  • स्वास्थ्य चुनौतियाँ:
    • मनुष्य खाद्य पदार्थ, श्वास लेने और त्वचा के साथ संपर्क के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आते हैं, जो प्लेसेंटा जैसे ऊतकों में पाए जाते हैं और ऑक्सीडेटिव तनाव, डीएनए क्षति, अंग की शिथिलता, चयापचय संबंधी विकार आदि जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
  • विनियामक और नीतिगत चुनौतियाँ
    • कुछ देशों द्वारा माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद, सभी माइक्रोप्लास्टिक स्रोतों के लिये कोई विश्वव्यापी विनियमन नहीं है और असंगत निगरानी प्रदूषण शमन प्रयासों में बाधा उत्पन्न करते हैं।
    • सीमित संसाधन, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और जन जागरूकता की कमी मौजूदा नियमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।
  • परीक्षण और विश्लेषण की चुनौतियाँ: पर्यावरणीय नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक का परीक्षण और उसकी मात्रा निर्धारित करना उनके विविध गुणों के कारण चुनौतीपूर्ण है

आगें की राह:

  • वैज्ञानिक अनुसंधान और निगरानी:
    • बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग को विकसित करने और बढ़ावा देने से पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक की निरंतरता को कम करने में सहायता मिल सकती है। 
    • अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों में निस्पंदन प्रणाली और चक्रवात के दौरान जल प्रवाह से माइक्रोप्लास्टिक के प्रग्रहण के लिये उपकरण जलीय वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक के प्रवेश को रोकने में सहायता कर सकते हैं।
      • फूरियर-ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी ( Fourier-transform infrared spectroscopy-FTIR), रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी तकनीकों का सामान्यतः उपयोग किया जाता है, लेकिन सटीकता एवं विश्वसनीयता में सुधार के लिये और अधिक शोधन की आवश्यकता है।
  • विनियामक उपायः
    • व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में एकल-उपयोग प्लास्टिक और माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लागू करने से पर्यावरण में प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक के निर्गमन को एक सीमा तक कम किया जा सकता है। 
      • यूरोपीय संघ का REACH विनियमन ऐसे उपाय का एक उदाहरण है।
    • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) योजनाएँ उत्पादकों को उनके उत्पादों के संपूर्ण जीवनचक्र के लिये ज़िम्मेदार बनाती हैं। यह निर्माताओं को अधिक धारणीय उत्पाद डिज़ाइन करने तथा प्लास्टिक अपशिष्ट  को कम करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • माइक्रोप्लास्टिक की समस्या से निपटने के नवोन्मेषी उपाय:
    • बायोडिग्रेडेबल सिल्क: MIT के शोधकर्त्ताओं ने एक रेशम-आधारित प्रणाली विकसित की है जो कृषि उत्पादों, पेंट और सौंदर्य प्रसाधनों सहित विभिन्न अनुप्रयोगों में माइक्रोप्लास्टिक्स का स्थान ले सकता है। 
    • प्लांट-आधारित फिल्टर: टैनिन और लकड़ी के बुरादे से बना फिल्टर जो 99.9% तक माइक्रोप्लास्टिक को जल में कैप्चर कर सकता है। 
    • प्राकृतिक रेशे से बने वस्त्र: प्राकृतिक फाइबर से बने वस्त्र धोने के दौरान माइक्रोप्लास्टिक का निर्गमन नही करते हैं और उचित परिस्थितियों में बायोडिग्रेडेबल होते हैं। ये सामग्रियाँ पॉलिएस्टर और नायलॉन जैसे सिंथेटिक फाइबर का एक स्थायी विकल्प प्रदान कर सकती हैं।
  • जन जागरूकता और शिक्षा:
    • स्कूल पाठ्यक्रम में माइक्रोप्लास्टिक्स और उनके प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल करने से आगामी पीढ़ी को प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने तथा धारणीय प्रथाओं को अपनाने के महत्त्व के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. माइक्रोप्लास्टिक द्वारा मानव स्वास्थ्य के लिये उत्पन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन जोखिमों को कम करने के लिये उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स

प्रश्न. विकास की पहल और पर्यटन के नकारात्मक प्रभाव से पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे बहाल किया जा सकता है?  (2019)

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

अफ्रीका में भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज अधिग्रहण योजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण खनिज, इलेक्ट्रिक वाहन (EV), दुर्लभ तत्त्व, खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड, आपूर्ति शृंखला पहल, खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP), शुद्ध शून्य उत्सर्जन, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण

मेन्स के लिये:

भारत के लिये खनिजों का महत्त्व, महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिये भारत की रणनीति, सरकारी पहल, भारत के घरेलू ऊर्जा लक्ष्य

स्रोत: बिज़नेस लाइन

चर्चा में क्यों? 

भारत अफ्रीका में अपनी महत्त्वपूर्ण खनिज अधिग्रहण योजनाओं को आगे बढ़ा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में चीन की ओर से लगातार चुनौतियाँ मिल रही है।

  • भारत द्वारा विभिन्न अफ्रीकी देशों की सरकारों के साथ खनन सहयोग और पहुँच समझौते करने के साथ, आवश्यक खनिजों का उत्खनन चिंता का एक प्रमुख विषय है।

भारत, अफ्रीका में अपनी महत्त्वपूर्ण खनिज अधिग्रहण योजनाएँ क्यों बढ़ा रहा है?

  • संसाधनों का संग्रहण: भारत के घरेलू उद्योगों, विशेष रूप से बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle- EV) और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों के लिये, महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिर एवं विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करना।
    • आयात पर निर्भरता कम करने के साथ ही संभावित आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को भी कम करना।
    • महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता एवं रणनीतिक स्वायत्तता की दिशा में देश की पहल का समर्थन करना।
  • चीन का प्रभुत्व: अनुमान है कि चीन कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में लगभग 5% से अधिक कोबाल्ट प्रसंस्करण सुविधाओं को नियंत्रित करता है।
    • अनुमान है कि टेनके फंगुरम की कुल खदानों में से लगभग 80% पर चीनी कंपनियों का स्वामित्व है, जो विश्व के लगभग 12% कोबाल्ट का उत्पादन करती हैं।
      • चीन द्वारा ज़िम्बाब्वे में लिथियम संसाधनों को सुरक्षित करने के लिये भी पर्याप्त निवेश किया गया है।
    • भारत का लक्ष्य चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिये अफ्रीकी खनन क्षेत्र में एक मज़बूत उपस्थिति स्थापित करना है।
  • उच्च गुणवत्ता वाले भंडार तक पहुँच:
    • अफ्रीका में कोबाल्ट, ताँबा, लिथियम एवं दुर्लभ तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों का भंडार है।
      • विश्व के 30% से अधिक महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार अफ्रीका में पाए जाते हैं, जो अफ्रीकी देशों को प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनने के साथ ही व्यापार करने का अवसर भी प्रदान करता है।
      • भारत की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये उच्च गुणवत्ता वाले एवं आर्थिक रूप से व्यवहार्य खनिज भंडार तक पहुँच प्राप्त करना।
    • भारत की औद्योगिक एवं तकनीकी आकांक्षाओं को समर्थन देने के लिये अफ्रीका की खनिज संपदा का लाभ उठाना।
  • द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत बनाना: भारत, अफ्रीकी देशों के साथ खनन सहयोग और पहुँच समझौतों को सुरक्षित करने के लिये सरकार-से-सरकार (Government-to-Government- G2G) वार्ता का लाभ उठा रहा है।
    • भारत ने दक्षिण अफ्रीका मोज़ाम्बिक, कांगो, तंज़ानिया, ज़ाम्बिया, मलावी, कोटे डी. आइवर गणराज्य और ज़िम्बाब्वे के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • इससे भारत को क्षेत्र के देशों के साथ मज़बूत राजनयिक और आर्थिक संबंध बनाने में सहायता मिलती है।
    • भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अफ्रीका में भारतीय निवेश वर्ष 2030 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है। इसमें कहा गया है कि अप्रैल 1996 से भारत ने अफ्रीका में 74 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।

भारत की अन्य विदेशी महत्त्वपूर्ण खनिज अधिग्रहण योजनाएँ क्या हैं? 

  • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL): यह खान मंत्रालय के तहत केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (Central Public Sector Enterprises- CPSEs) नेशनल एल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड (National Aluminium Company Ltd - Nalco), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (Hindustan Copper Ltd - HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन एंड कंसल्टेंसी लिमिटेड (Mineral Exploration and Consultancy Ltd - MECL) द्वारा संचालित एक संयुक्त उद्यम है।
    • इसका उद्देश्य लिथियम और कोबाल्ट जैसे बैटरी खनिजों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में आपूर्ति के लिये विदेशी स्थानों से रणनीतिक खनिजों की पहचान, अधिग्रहण, विकास, प्रसंस्करण और व्यावसायीकरण करना है।
  • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL): यह विदेशों में लिथियम, कोबाल्ट और निकल संपत्तियों के अधिग्रहण को लक्षित कर रहा है, क्योंकि इसका लक्ष्य अपने मुख्य कोयला व्यवसाय से परे अपने परिचालन में विविधता लाना है।
    • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL): यह विदेशों में लिथियम, कोबाल्ट और निकल संपत्तियों के अधिग्रहण को लक्षित कर रहा है, क्योंकि इसका लक्ष्य अपने मुख्य कोयला व्यवसाय से परे अपने परिचालन में विविधता लाना है।
      • CIL ने अलौह और महत्त्वपूर्ण खनिजों को शामिल करने के लिये अपने मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन में संशोधन किया है।
  • खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP): भारत, जून 2023 में खनिज सुरक्षा साझेदारी (Mineral Security Partnership- MSP) में शामिल हुआ, जिससे यह संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अन्य देशों के साथ इस भागीदारी में शामिल होने वाला 14वाँ सदस्य बन गया।
    • भारत विदेशों में महत्त्वपूर्ण खनिज संपत्ति प्राप्त करने में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertakings- PSU) की सहायता के लिये इस ढाँचे का लाभ उठाना चाहता है।
    • वर्ष 2022 में स्थापित MSP का लक्ष्य सरकारों और उद्योग के बीच सहयोग के माध्यम से विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला तैयार करना, मूल्य शृंखला के साथ रणनीतिक परियोजनाओं के लिये राजनयिक एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI): ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ सहयोग का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आपूर्ति शृंखला लचीलापन/सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस सुनिश्चित करना है।
  • ऑस्ट्रेलियाई साझेदारी: भारत ने महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं में निवेश के लिये ऑस्ट्रेलिया के साथ क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • वैश्विक सहयोग: भारत चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया जैसे देशों के साथ सहयोग कर रहा है, जो अपने महत्त्वपूर्ण लिथियम संसाधनों के लिये जाने जाते हैं।
    • वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति सुनिश्चित करने की अपनी योजना के तहत भारत एक ग्रेफाइट खदान ब्लॉक प्राप्त करने के लिये श्रीलंका के साथ वार्ता कर रहा है।
      • ग्रेफाइट भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग बैटरी निर्माण में किया जाता है। 98% से अधिक कार्बन सामग्री के साथ श्रीलंकाई ग्रेफाइट को विश्व में सबसे शुद्ध माना जाता है।

भारत को महत्त्वपूर्ण खनिज सुरक्षित करने हेतु कौन-सी नई पहलों ने प्रेरित किया है?

महत्त्वपूर्ण खनिज:

  • परिचय: महत्त्वपूर्ण खनिज वे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु आवश्यक हैं, इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या यहाँ तक कि कुछ भौगोलिक स्थानों में इन खनिजों के अस्तित्व, निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता से आपूर्ति श्रृंखला में कमजोरी और व्यवधान हो सकता है। 
    • जून 2023 में, भारत ने 30 आवश्यक खनिजों की पहचान करते हुए महत्त्वपूर्ण खनिजों पहली विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की।
      • ये खनिज हैं एंटीमनी (Antimony), बेरिलियम (Beryllium), बिस्मथ (Bismuth), कोबाल्ट (Cobalt), कॉपर (Copper), गैलियम (Gallium), जर्मेनियम (Germanium), ग्रेफाइट (Graphite), हेफ़नियम (Hafnium), इंडियम (Indium), लिथियम (Lithium), मोलिब्डेनम (Molybdenum), नाइओबियम (Niobium), निकेल (Nickel), पीजीई (PGE), फॉस्फोरस (Phosphorous), पोटाश (Potash), दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व (Rare Earth Elements- REE), रेनियम (Rhenium), सिलिकॉन (Silicon), स्ट्रोंटियम (Strontium), टैंटलम (Tantalum), टेल्यूरियम (Tellurium), टिन (Tin), टाइटेनियम (Titanium), टंगस्टन (Tungsten), वैनेडियम (Vanadium), ज़िरकोनियम (Zirconium), सेलेनियम (Selenium) और कैडमियम (Cadmium)।
  • महत्त्व:  ये खनिज मोबाइल फोन, कंप्यूटर, बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल, सौर पैनल और पवन टरबाइन के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ने पिछले 50 वर्षों में कच्चे तेल के समान भविष्य के संभावित भू-राजनीतिक युद्ध के मैदानों के रूप में दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों और महत्त्वपूर्ण खनिजों के महत्व पर प्रकाश डाला।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में बदलाव से महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है।
    • भारत का घरेलू इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल बाज़ार वर्ष 2022 से वर्ष 2030 तक 49% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compounded Annual Growth Rate) से बढ़ने का अनुमान है, वर्ष 2030 तक 1 करोड़ की अनुमानित वार्षिक बिक्री मात्रा के साथ, उन्नत रसायन विज्ञान सेल (Advanced Chemistry Cell) बैटरियों की मांग बढ़ेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने के लिये भारत की पहल और साझेदारी का आकलन कीजिये तथा भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक विकास के लिये उनके निहितार्थ का मूल्यांकन कीजिये।

और पढ़े:  महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहेली

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत के वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे 'दुर्लभ मृदा धातु' कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाये जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में आवश्यक हैं और इन तत्त्वों की मांग बढ़ती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।" विवेचना कीजिये। (2017)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बिम्सटेक चार्टर

प्रिलिम्स के लिये:

बिम्सटेक, हिंद-प्रशांत क्षेत्र, हिंद महासागर, सार्क

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय सहयोग के लिये बिम्सटेक का महत्त्व।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) ने 20 मई, 2024 को समूह के चार्टर के लागू होने के साथ ही एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर ली है।

BIMSTEC समूह क्या है?

  • परिचय:
    • बिम्सटेक सात सदस्य देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है, जिसमें दक्षिण एशिया के पाँच देश- बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के दो देश-  म्याँमार एवं थाईलैंड शामिल हैं।
    • इसका गठन वर्ष 1997 में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों के बीच बहुमुखी तकनीकी और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था।
    • बिम्सटेक में शामिल देशों की कुल आबादी लगभग 1.5 बिलियन है तथा इनकी संयुक्त GDP 3.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
  • उत्पत्ति:
    • इस उप-क्षेत्रीय संगठन की स्थापना वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा को अपनाने के साथ हुई थी।
    • प्रारंभ में इसमें 4 सदस्य देश शामिल थे, इसलिये इसे 'BIST-EC' (बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग) के नाम से जाना जाता था।
    • वर्ष 1997 में म्याँमार के इसमें शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर 'BIMST-EC' कर दिया गया।
    • वर्ष 2004 में नेपाल और भूटान के शामिल होने के साथ ही एक बार पुनः इसका नाम बदलकर 'बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल' (बिम्सटेक) कर दिया गया।

BIMSTEC चार्टर की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय मान्यता: बिम्सटेक को एक विधिक इकाई के रूप में आधिकारिक दर्ज़ा प्राप्त है, जिसके परिणामस्वरूप इसे कूटनीति एवं सहयोग के मामलों पर अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ प्रत्यक्ष तौर पर वार्ता करने का अधिकार है।
  • साझा लक्ष्य: यह चार्टर, बिम्सटेक के उद्देश्यों को रेखांकित करता है, जो सदस्य देशों के बीच विश्वास एवं मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने तथा बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में आर्थिक विकास व सामाजिक प्रगति में तेज़ी लाने पर केंद्रित है।
  • संरचित संगठन: बिम्सटेक के संचालन हेतु एक स्पष्ट रूपरेखा स्थापित की गई है, जिसमें शिखर सम्मेलन, मंत्रिस्तरीय और वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर नियमित बैठकों की रूपरेखा तैयार की गई है।
  • सदस्यता का विस्तार: यह चार्टर नए देशों को बिम्सटेक में शामिल होने और अन्य देशों को पर्यवेक्षकों के रूप में भाग लेने की अनुमति देकर भविष्योन्मुखी विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • सहयोग के क्षेत्रों का पुनर्गठन करते हुए इनकी संख्या घटाकर 7 कर दी गई है और प्रत्येक सदस्य-राज्य एक क्षेत्र के लिये नेतृत्वकर्त्ता के रूप में कार्य करेगा।
    1. व्यापार, निवेश और विकास के लिये बांग्लादेश
    2. पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के के लिये भूटान
    3. ऊर्जा के साथ-साथ सुरक्षा के लिये भारत
    4. कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिये म्याँमार 
    5. पीपल-टू-पीपल कनेक्ट के लिये नेपाल
    6. विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के लिये श्रीलंका
    7. जुड़ाव (कनेक्टिविटी) के लिये थाईलैंड

 BIMSTEC का क्या महत्त्व है?

  • एक्ट ईस्ट नीति (Act East Policy) के अनुरूप: BIMSTEC भारत की एक्ट ईस्ट नीति के अधिक अनुरूप है। यह भारत को हिंद महासागर क्षेत्र और हिंद-प्रशांत में व्यापार एवं सुरक्षा प्राप्त करने में मदद करता है।
  • सार्क (SAARC) का विकल्प: उरी हमलों के प्रत्युत्तर में वर्ष 2016 के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) शिखर सम्मेलन में पाकिस्तान को अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों के बाद, BIMSTEC एक बेहतर क्षेत्रीय सहयोग मंच के रूप में उभरा है, जो दक्षिण एशिया में सार्क का विकल्प प्रस्तुत करता है।
  • चीन के प्रतिकार के रूप में: जैसे-जैसे चीन दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) का विस्तार कर रहा है, भारत इस बढ़ती उपस्थिति को अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिये एक चुनौती के रूप में देखता है।
    • इसका विरोध करने के लिये, भारत BIMSTEC में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और इसे क्षेत्रीय सहयोग के वैकल्पिक मंच के रूप में बढ़ावा दे रहा है।
  • अमूर्त संस्कृति को बढ़ावा देना: कला, संस्कृति और बंगाल की खाड़ी से संबंधित अन्य विषयों पर अनुसंधान हेतु बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में क्षेत्र की अमूर्त विरासत के संबंध में नई अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है।
  • क्षेत्रीय सहयोग का मंच: यह दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों को एक साथ लाता है तथा क्षेत्रीय सहयोग के संवर्द्धन हेतु एक मंच प्रदान करता है।
    • इसने सुरक्षा मामलों और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR) के प्रबंधन में गहन सहयोग को बढ़ावा दिया है।

सार्क (SAARC) से कैसे अलग है बिम्सटेक (BIMSTEC)?

मानदंड

बिम्सटेक

सार्क 

स्थापना

इसकी शुरुआत वर्ष 1997 में बैंकॉक घोषणा द्वारा हुई 

इसकी शुरुआत 1985 में ढाका में सदस्यों द्वारा चार्टर को अपनाने के साथ हुई

सदस्य देश 

बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड

अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका

भौगोलिक से रूप से केंद्रित 

अंतर्क्षेत्रीय (दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया)

क्षेत्रीय (दक्षिण एशिया)

अंतर-क्षेत्रीय व्यापार

एक दशक में लगभग 6% की वृद्धि 

स्थापना के बाद से लगभग 5% की वृद्धि

प्रमुख शक्तियाँ

सार्क देशों को आसियान से जोड़ता है, सदस्यों के बीच यथोचित मैत्रीपूर्ण संबंध, 14 क्षेत्रों में व्यावहारिक सहयोग

लंबे समय से चला आ रहा क्षेत्रीय मंच, कई समझौतों पर हस्ताक्षर

सचिवालय

ढाका, बांग्लादेश

काठमांडू, नेपाल

नेतृत्व

समूह में थाईलैंड और भारत की उपस्थिति के साथ शक्ति का संतुलन

छोटे सदस्य देशों द्वारा भारत को 'बिग ब्रदर' माना जाता है।

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • दक्षता की कमी और धीमी प्रगति: बिम्सटेक को असंगत नीति-निर्माण, कम परिचालन बैठकों और अपने सचिवालय के लिये पर्याप्त वित्तीय एवं मानव संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • सीमित अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी: बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल की BBIN कनेक्टिविटी परियोजना को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
    • वर्ष 2004 में मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement- FTA) पर हस्ताक्षर करने के बावजूद, बिम्सटेक इस लक्ष्य से बहुत दूर है। FTA के लिये आवश्यक सात घटक समझौतों में से अब तक केवल दो ही लागू हुए हैं।
    • बिम्सटेक के आर्थिक सहयोग के लक्ष्य के बावजूद, क्षेत्रीय व्यापार में कमी बनी हुई है। वर्ष 2020 में बिम्सटेक देशों के साथ भारत का व्यापार उसके कुल विदेशी व्यापार का केवल 4% था। भारत-म्याँमार सीमा को ‘एशिया की सबसे कम खुली सीमा’ (Asia's least open) कहा जाता है। 
  • बिम्सटेक सदस्य एक-दूसरे के मुकाबले गैर-सदस्य देशों के साथ अधिक व्यापार करते हैं।
  • समुद्री व्यापार और मात्स्यिकी क्षेत्र में चुनौतियाँ: बंगाल की खाड़ी एक समृद्ध मत्स्यग्रहण क्षेत्र है, जहाँ वर्ष रूप से 6 मिलियन टन (विश्व के कुल  के कुल का 7%) मत्स्यग्रहण किया जाता है इसके अलावा यहाँ व्यापकरूप से प्रवाल भित्तियाँ भी पायी जाती हैं।
    • FAO के अनुसार, बंगाल की खाड़ी एशिया-प्रशांत में अवैध, असूचित और अनियमित (Illegal, Unreported and Unregulated- IUU) मत्स्यग्रहण हॉटस्पॉट में से एक है।
  • सदस्य देशों के बीच अन्य मुद्दे:

आगे की राह

  • बिम्सटेक चार्टर को अंतिम रूप देना: इससे बिम्सटेक के उद्देश्य, संरचना और कार्यप्रणाली को परिभाषित करने वाला एक आवश्यक विधिक ढाँचा प्राप्त होगा। यह सहयोग प्रयासों में स्थिरता एवं पूर्वानुमेयता को बढ़ावा देगा।
  • बिम्सटेक मास्टर प्लान फॉर ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी: इसे अंतिम रूप दिये जाने से क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे (सड़क, रेलवे, बंदरगाह आदि) में सुधार के लिये 10 वर्षीय रणनीति की रूपरेखा तैयार होगी।
    • कनेक्टिविटी बढ़ने से व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार सृजन होगा तथा लोगों एवं वस्तुओं की आवाजाही सुगम होगी।
  • आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता पर बिम्सटेक कन्वेंशन: इस समझौते में क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये बड़े खतरों तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराध से निपटने में सहयोग को बढ़ावा देने की क्षमता है। सूचना साझाकरण और साक्ष्य एकत्र करने की सुविधा प्रदान करके, यह कानून प्रवर्तन क्षमताओं को मज़बूती प्रदान करेगा।
    • IUU मत्स्यग्रहण पर अंकुश लगाने के लिये FAO और  वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) की बंगाल की खाड़ी बड़े समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र (Bay of Bengal Large Marine Ecosystem-BOBLME) जैसी परियोजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है।
  • बिम्सटेक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा (TTF): सदस्य देशों के बीच तकनीकी अंतराल को समाप्त करने के लिये। श्रीलंका स्थित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा (Technology Transfer Facility- TTF) क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देते हुए प्रमुख क्षेत्रों में ज्ञान और विशेषज्ञता साझा करने की सुविधा प्रदान करेगा।
  • राजनयिक अकादमियों/प्रशिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग: यह सहयोग राजनयिक संबंधों को बढ़ाएगा और भविष्य के नेतृत्त्वकर्त्ताओं के बीच क्षेत्रीय चुनौतियों तथा अवसरों की साझा समझ को बढ़ावा देगा।
    • यह क्षेत्रीय एकता एवं सामुदायिक भावना को प्रोत्साहित करता है।
  • संस्थागत ढाँचा विकसित करना: भारत को क्षेत्र में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिये संगठनात्मक व्यवस्था बनाने पर विचार करना चाहिये। SAARC के अंतर्गत दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (South Asian University- SAU) के समान बिम्सटेक हेतु सफल संस्थान स्थापित करना भी आवश्यक है।
  • नागरिक जुड़ाव को बढ़ावा देना: बिम्सटेक पार्लियामेंटेरियन फोरम, छात्र विनिमय कार्यक्रम और बिज़नेस वीज़ा योजना जैसी पहल घनिष्ठ संबंधों तथा क्षेत्रीय समुदाय की भावना को बढ़ावा दे सकती हैं।

निष्कर्ष:

बिम्सटेक चार्टर का लागू होना समूह के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो इसे एक कानूनी स्वरुप और संरचित राजनयिक संवाद में शामिल होने की क्षमता प्रदान करता है। यह विकास बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के आर्थिक और भूराजनीतिक एकीकरण के लिये आवश्यक है तथा अपने पड़ोस एवं एक्ट ईस्ट नीति को मज़बूत करने के भारत के प्रयासों के अनुरूप है।

दृष्टि मुख्य प्रश्न:

प्रश्न.1 दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के लिये प्राथमिक मंच के रूप में SAARC की जगह लेने में बिम्सटेक की क्षमता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये?

प्रश्न. 2 सदस्य देशों के बीच आर्थिक और तकनीकी सहयोग के अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में बिम्सटेक कितना प्रभावी है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. आपके विचार में क्या बिम्सटेक (BIMSTEC) सार्क (SAARC) की तरह एक समानांतर संगठन है? इन दोनों के बीच क्या समानताएँ और असमानताएँ हैं? इस नये संगठन के बनाए जाने से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य कैसे प्राप्त हुए हैं? (2022)


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