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एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई

  • 04 Mar 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा, विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व 

मेन्स के लिये:

एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विरुद्ध भारत की लड़ाई, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, संरक्षण

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2018 में भारत ने वर्ष 2022 तक एकल उपयोग वाले प्लास्टिक वस्तुओं (SUP) को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की प्रतिबद्धता जताई थी, तीन वर्ष बाद, 12 अगस्त, 2021 को, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 के माध्यम से चिह्नित किये गए एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध अधिसूचित किया गया था। इस संदर्भ में SUP पर लगाए गए प्रतिबंधों के साथ कुछ प्रगति हुई है, साथ ही, कुछ चुनौतियाँ वर्तमान में अभी भी बरकरार है।

छठी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA-6) के दौरान जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में तेज़ी से फलता-फूलता स्ट्रीट फूड क्षेत्र एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर बहुत अधिक निर्भर है।

SUP के संबंध में UNEA-6 में जारी रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • स्ट्रीट फूड क्षेत्र का एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर निर्भरता: 
    • भारत के स्ट्रीट फूड बाज़ार अथवा यूँ कहें कि इस क्षेत्र में प्रयोग में लाई जाने वाली प्लेट, कटोरे, कप और कंटेनर जैसे एकल-उपयोग प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। ये वस्तुएँ वहनीय होने के साथ-साथ देश की अपशिष्ट प्रबंधन को चुनौतीपूर्ण बनाती हैं।
  • पुन: उपयोग प्रणाली के लाभ: रिपोर्ट से पता चलता है कि पुन: उपयोग प्रणाली के विभिन्न लाभ हो सकते हैं जिनमें व्यावसायिक लाभ भी शामिल हैं:
    • कम लागत: इस प्रणाली का प्रयोग विक्रेताओं और ग्राहकों दोनों के लिये लाभकारी हो सकता है।
    • अपशिष्ट में कमी आना: इस प्रणाली के प्रयोग से आवश्यक पैकेजिंग सामग्री की मात्रा काफी कम हो जाती है।
    • वित्तीय दृष्टि से व्यवहार्य: रिपोर्ट के अनुसार इस प्रणाली में निवेश से 2-3 वर्ष की पेबैक अवधि के साथ संभावित 21% रिटर्न मिलने की अच्छी संभावना होती है।
    • अन्य कारक: इस प्रणाली की प्रभावशीलता को अधिकतम करने के लिये सामग्री का चयन, प्रतिधारण समय, वापसी दर, जमा राशि और सरकारी प्रोत्साहन आदि महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  • सुझाव: 
    • भारत के स्ट्रीट फूड क्षेत्र में पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग प्रणाली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य और पर्यावरण की दृष्टि से एक सतत् समाधान हो सकता है, जो कि सभी हितधारकों के लाभ तथा भारतीय शहरों के लिये अधिक सुनम्य व धारणीय भविष्य का मार्ग प्रशस्त करता है।

एकल उपयोग वाली प्लास्टिक क्या है?

  • “इसका अर्थ प्लास्टिक की ऐसी वस्तुओं से है जिसके निपटान अथवा पुनर्चक्रण से पूर्व एक उद्देश्य के लिये एक ही बार उपयोग किया जाता है।"
    • वस्तुओं की पैकेजिंग से लेकर शैंपू, डिटर्जेंट, सौंदर्य प्रसाधन की बोतलें, पॉलिथीन बैग, फेस मास्क, कॉफी कप, क्लिंग फिल्म, अपशिष्ट बैग, खाद्य पैकेजिंग आदि निर्मित और उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की हिस्सेदारी सर्वाधिक है।
  • उत्पादन की वर्तमान गति को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का योगदान 5-10% तक हो सकता है।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुएँ: 
    • भारत ने वर्ष 2021 में 19 चिह्नित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिया था, किंतु इसके प्रचलन पर पूरी तरह नियंत्रण प्राप्त करने में विफल रहा।
    • प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं की वार्षिक हिस्सेदारी लगभग 0.6 मिलियन टन प्रति वर्ष है।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) ने वर्ष 2022 में विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) नीति लागू की, जो शेष एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर लागू होती है, जिसमें मुख्य रूप से पैकेजिंग उत्पाद शामिल हैं।
      • EPR नीति मुख्यतः संग्रह और पुनर्चक्रण पर केंद्रित है।

  • प्लास्टिक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी:
    • प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन में भारत वैश्विक स्तर पर 13वाँ सबसे बड़ा निवेशक था।
    • 5.5 मिलियन टन एकल उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन के साथ भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है तथा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 4 किलोग्राम एकल उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन के साथ 94वें स्थान पर है, जो दर्शाता है कि भारत में एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर इसे पूरी तरह नियंत्रित करने की दिशा में काफी कुछ शेष है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और भारत:
    • UNEP के देश-आधारित प्लास्टिक संबंधी डेटा से पता चला है कि प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन के संदर्भ में भारत काफी पीछे है, जहाँ भारत अपने प्लास्टिक अपशिष्ट का मात्र 15% प्रबंधित करता है।
    • सामान्यतया प्रयोग में लाया जाने वाला SUP अपशिष्ट सड़कों के किनारे फेंक दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है, इससे कभी नालियाँ अवरुद्ध हो जाती हैं, कभी ये नदियों में बह जाती हैं, यह समुद्र में भी फैल जाता है, जिससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्री जीवों को नुकसान पहुँचता है क्योंकि महीनों, वर्षों और दशकों में यह सूक्ष्म तथा नैनो-आकार के कणों में बदल जाता है।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विकल्प का अभाव: 
    • व्यवहार्य विकल्पों की सीमित उपलब्धता एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की प्रक्रिया में प्रमुख बाधाओं में से एक है।
    • हालाँकि कुछ विकल्प उपलब्ध हैं, किंतु वे लागत प्रभावी, सुविधाजनक अथवा व्यापक रूप से सुलभ नहीं हैं, जिस कारण उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिये एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना एक मुश्किल काम है।
  • आर्थिक संदर्भ: 
    • वहनीय और सुविधाजनक होने के कारण एकल उपयोग वाले प्लास्टिक आमतौर पर प्रयोग में लाये जाने हेतु पसंदीदा विकल्प होते हैं। विकल्पों में बदलाव लाने के लिये अनुसंधान, विकास तथा बुनियादी ढाँचे में निवेश आवश्यक हो सकता है, जो व्यवसायों व सरकार दोनों के लिये महँगा हो सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, इस बात की भी काफी संभावना होती है कि उपभोक्ता वैकल्पिक उत्पादों के लिये अधिक कीमत चुकाने को तैयार न हों
  • अवसंरचना: 
    • प्लास्टिक के निपटान और पुनर्चक्रण के प्रबंधन के लिये पर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचा आवश्यक है। हालाँकि विशेष रूप से विकासशील देशों में, उचित अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप प्लास्टिक प्रदूषण तथा पर्यावरणीय क्षरण हो रही है।
  • नीति और विनियम: 
    • हालाँकि कुछ देशों ने एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये कुछ नियम लागू किये हैं, किंतु उनका क्रियान्वयन और अनुपालन चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • कुछ मामलों में, यह एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उद्योग जगत के लिये अहितकारी भी हो सकता है जो मुख्यतः इसी पर निर्भर हैं, साथ ही उन उपभोक्ताओं के लिये भी जो उनकी सुविधा के आदी हैं।
  • उपभोक्ता अभिवृत्ति: 
    • एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के प्रति उपभोक्ता अभिवृत्ति तथा दृष्टिकोण को बदलना इसके उपयोग में कमी लाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
    • हालाँकि यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि इसका एक कारण यह है कि इसके उपयोगकर्त्ता इसके आदि हो चुके हैं और दूसरी बात कि उनमें इसके पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता की कमी हो सकती है।
  • आजीविका पर प्रभाव: 
    • कुछ मामलों में, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध के आजीविका पर अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, विशेष रूप से उन उद्योगों में कार्यरत लोगों के लिये जो एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उत्पादन अथवा बिक्री पर निर्भर हैं।
    • एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रयासों में सामाजिक-आर्थिक निहितार्थों पर विचार किया जाना आवश्यक है तथा साथ ही, प्रभावित व्यक्तियों एवं समुदायों को सहायता प्रदान भी की जानी चाहिये।

एकल उपयोग वाले प्लास्टिक की समस्या के निपटान के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • कानून लागू किया जाना: 
    • निरीक्षण के दौरान ध्यान दी जाने वाली बातों के संबंध में अधिकारियों, विशेषकर चालान जारी करने वालों की क्षमता को उन्नत किये जाने की आवश्यकता है। निरीक्षण टीमों को गेज़ मीटर जैसे उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही विभिन्न सुविधाओं में निरीक्षण पैमाने पर रिपोर्टिंग सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • पर्यावरण अनुपालन का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य किया जाना चाहिये:
    • CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) और MOEFCC को आदेशित करना चाहिये कि स्थानीय सरकारें व राज्य अपनी वेबसाइटों पर त्रैमासिक अपडेट उपलब्ध करें, जिसमें पर्यावरणीय मुआवज़े, लगाए गए ज़ुर्माने की जानकारी शामिल हो।
    • राज्यों को भी पाक्षिक रूप से CPCB को प्रवर्तन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिये। CPCB को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह जानकारी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार उसकी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल की जाए तथा निजी अभिकर्त्ताओं व राज्य प्राधिकरणों से एकत्र किये गए डेटा को साझा किया जाए।
  • माइक्राॅन व्यवसाय पर प्रतिबंध: 
    • कैरी बैग (चाहे इसकी मोटाई कुछ भी हो ) पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। यह भारत की तुलना में कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है जैसे कि तंज़ानिया और रवांडा जैसे विभिन्न पूर्वी अफ्रीकी देश।
    • भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश ने अपने गैर-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट नियंत्रण अधिनियम 1998 के माध्यम से कैरी बैग के उत्पादन, वितरण, भंडारण और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है।
  • वैकल्पिक SUP बाज़ार में निवेश:
    • विकल्पों की कमी के कारण SUP के प्रयोग को पूर्णतया बंद करना एक बड़ी समस्या है। लागत प्रभावी एवं सुविधाजनक विकल्प व्यापक रूप से उपलब्ध हो जाने के पश्चात बाज़ार में बदलाव आएगा।
    • हालाँकि, मौज़ूदा विकल्प वर्तमान में काफी नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास के साथ ही पिछले काफी लंबे समय से सरकार द्वारा वैकल्पिक उद्योग को बढ़ावा देने में सरकार की उपेक्षा है।

अन्य देश SUP के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं?

  • हस्ताक्षर संकल्प:
    • भारत उन 124 देशों में शामिल था, जिन्होंने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये निर्माण से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के संपूर्ण जीवन को संबोधित किया और साथ ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा के प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने हेतु वर्ष 2022 में एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये थे। यह समझौता अंततः हस्ताक्षरकर्त्ताओं के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य हो जाएगा।
    • जुलाई 2019 तक, 68 देशों में प्रवर्तन की अलग-अलग डिग्री के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध है।
  • वे देश जहाँ प्लास्टिक प्रतिबंधित हैं:
    • बांग्लादेश:
      • वर्ष 2002 में बांग्लादेश पतली प्लास्टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश बना।
    • न्यूज़ीलैंड:
      • जुलाई 2019 में न्यूज़ीलैंड प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगाने वाला देश बन गया।
    • चीन:
      • चीन ने चरणबद्ध कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2020 में प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध जारी किया।
    • अमेरिका:
      • अमेरिका के आठ राज्यों द्वारा एकल-उपयोग प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2014 में कैलिफोर्निया से हुई थी। सिएटल वर्ष 2018 में प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला प्रमुख अमेरिकी शहर बन गया।
    • यूरोपीय संघ:
      • जुलाई, 2021 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर निर्देश यूरोपीय संघ (EU) में प्रभावी हुआ।
      • निर्देश कुछ एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाता है जिसके लिये विकल्प उपलब्ध हैं, एकल-उपयोग प्लास्टिक प्लेटें, कटलरी, स्ट्रॉ, गुब्बारे की छड़ें तथा कपास की कलियाँ यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के बाज़ारों में नहीं बेची जा सकती हैं।
      • यही उपाय विस्तारित पॉलीस्टाइनिन से बने कप, खाद्य एवं पेय पदार्थों के कंटेनरों के साथ-साथ ऑक्सो-डिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने सभी उत्पादों पर लागू होता है।

निष्कर्ष

एकल-उपयोग प्लास्टिक के विरुद्ध भारत की लड़ाई नीति निर्माताओं, उद्योग हितधारकों एवं नागरिकों से समान रूप से ठोस प्रयास की मांग करती है। हालाँकि प्रगति हुई है, प्रवर्तन, जागरूकता तथा बुनियादी ढाँचे में खामियाँ बनी हुई हैं। स्थायी समाधानों को अपनाने के साथ-साथ सक्रिय उपायों को प्राथमिकता देकर, भारत एकल-उपयोग प्लास्टिक के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकता है और एक स्वच्छ, हरित भविष्य का मार्ग भी प्रशस्त कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पर्यावरण में मुक्त हो जाने वाली सूक्ष्म कणिकाओं (माइक्रोबीड्स) के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019) 

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a) 

  • सूक्ष्म मणिकाएँ (माइक्रोबीड्स) छोटे, ठोस, निर्मित प्लास्टिक के कण हैं जिनका आकार 5 मिमी. से छोटा होता है और जल में निम्नीकृत या वियोजित नहीं होते हैं।
  • मुख्य रूप से पॉलीथीन से बने माइक्रोबीड्स को पेट्रोकेमिकल प्लास्टिक जैसे- पॉलीस्टाइरीन और पॉलीप्रोपाइलीन से भी तैयार किया जा सकता है। उन्हें उत्पादों की एक शृंखला में जोड़ा जा सकता है, जिसमें सौंदर्य प्रसाधन, व्यक्तिगत देखभाल तथा सफाई उत्पाद शामिल हैं।
  • माइक्रोबीड्स अपने छोटे आकार के कारण सीवेज उपचार प्रणाली के माध्यम से अनफिल्टर्ड हो जाते हैं एवं जल निकायों तक पहुँच जाते हैं। जल निकायों में अनुपचारित माइक्रोबीड्स समुद्री जीवों द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं एवं इस प्रकार विषाक्तता उत्पन्न करते हैं तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • वर्ष 2014 में कॉस्मेटिक्स माइक्रोबीड्स पर प्रतिबंध लगाने वाला नीदरलैंड पहला देश बन गया।
  • अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।
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