इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहेली

  • 06 Mar 2024
  • 32 min read

यह एडिटोरियल 05/03/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Why Minerals Are Critical” लेख पर आधारित है। इसमें महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच की अपर्याप्तता और उन्हें संसाधित करने एवं अंतिम उत्पाद के निर्माण के लिये प्रौद्योगिकी तक पहुँच की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण खनिज, खनन क्षेत्र, दुर्लभ मृदा धातु, खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, खनिज सुरक्षा साझेदारी

मेन्स के लिये:

भारत के लिए महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व, भारत में खनिज वितरण।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2023 में महत्त्वपूर्ण खनिजों (Critical Minerals) के विषय में दो महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गए। पहला कदम यह रहा कि जुलाई 2023 में 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों (दुर्लभ मृदा तत्त्व के अलावा, जिन्हें आवर्त सारणी में स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया है) की एक सूची की पहचान की गई, जबकि दूसरा कदम यह रहा कि महत्त्वपूर्ण खनिजों/दुर्लभ मृदा तत्वों के 20 ब्लॉकों की नीलामी में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने के लिये नवंबर 2023 में मौजूदा खनन कानूनों में संशोधन किया गया। 

खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023:

  • मूल अधिनियम (वर्ष 1957 का अधिनियम) के तहत कुछ निर्दिष्ट मामलों को छोड़कर रियायतों की नीलामी राज्य सरकारों द्वारा की जाती थी।
  • वर्ष  2023 के संशोधित अधिनियम में कहा गया है कि निर्दिष्ट महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों के लिये समग्र लाइसेंस और खनन पट्टे की नीलामी केंद्र सरकार द्वारा आयोजित की जाएगी।
  • इन खनिजों में लिथियम, कोबाल्ट, निकेल, फॉस्फेट, पोटाश, टिन आदि शामिल हैं। हालाँकि रियायतें अभी भी राज्य सरकार की ओर से प्रदान की जाएँगी।

दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements- REEs):

  • दुर्लभ पृथ्वी तत्व आवर्त सारणी में 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह है—विशेष रूप से स्कैंडियम (scandium) और येट्रियम (yttrium) के साथ 15 लैंथेनाइड्स (lanthanides) का समूह। दुर्लभ मृदा तत्व जैसे उनके नाम के बावजूद वस्तुतः वे पृथ्वी के क्रस्ट में अपेक्षाकृत प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन वे शायद ही कभी ऐसी सांद्रता में पाए जाते हैं कि उनका आर्थिक रूप से दोहन किया जा सके।
  • REEs में कुछ विशिष्ट गुण पाए जाते हैं जो उन्हें स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टरबाइन और रक्षा प्रणालियों सहित आधुनिक प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत शृंखला में महत्त्वपूर्ण घटक बनाते हैं। उनका उपयोग चुंबक, उत्प्रेरक (catalysts), फॉस्फोरस और ऐसे कई अन्य अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ उनके विशिष्ट गुण आवश्यक होते हैं।

महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) क्या हैं?

  • परिचय:
    • महत्त्वपूर्ण खनिज ऐसे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं; इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों में निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता से आपूर्ति शृंखला की भेद्यता और यहाँ तक कि आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • महत्त्वपूर्ण खनिजों की कोई विशेष परिभाषा नहीं है और विभिन्न देश अपने स्वयं के मानदंडों का उपयोग कर अपने लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान करते हैं।

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की घोषणा:
    • यह एक गतिशील प्रक्रिया है और यह समय के साथ नई प्रौद्योगिकियों, बाज़ार की गतिशीलता एवं भू-राजनीतिक विचारों के उभार के साथ विकसित हो सकती है।
    • विभिन्न देशों के पास अपनी विशिष्ट परिस्थितियों और प्राथमिकताओं के आधार पर महत्त्वपूर्ण खनिजों की अपनी विशिष्ट सूची हो सकती है।
      • अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा या आर्थिक विकास में कुछ खनिजों की भूमिका के मद्देनजर 50 खनिजों को महत्त्वपूर्ण खनिज घोषित किया है।
      • जापान ने 31 खनिजों के एक समूह को अपनी अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज माना है।
      • इसी प्रकार, यूके ने 18, यूरोपीय संघ ने 34 और कनाडा 31 खनिजों को महत्त्वपूर्ण खनिज घोषित किया है।
  • भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज:
    • भारत ने अपने महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान उनकी व्यवधान क्षमता, प्रतिस्थापन क्षमता, विभिन्न क्षेत्रों में क्रॉस-कटिंग उपयोग, आयात निर्भरता, पुनर्चक्रण दरों आदि के आधार पर की है।
    • खान मंत्रालय के तहत विशेषज्ञ समिति ने भारत के लिये 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों के एक समूह की पहचान की है। इनमें शामिल हैं:
      • एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, कॉपर, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हेफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नायोबियम, निकेल, PGE, फॉस्फोरस, पोटाश, REE, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंटियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम। 
        • जिन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में ये 30 चिह्नित महत्त्वपूर्ण खनिज पाए जाते हैं, वे हैं: बिहार, गुजरात, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर।
      • समिति ने खान मंत्रालय के तहत महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence for Critical Minerals (CECM) के गठन की भी सिफ़ारिश की है। CECM आवधिक रूप से भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की सूची को अद्यतन करेगा और समय-समय पर महत्त्वपूर्ण खनिज रणनीति को अधिसूचित करेगा।

विश्व भर में महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग और बाज़ार में तेज़ वृद्धि:
    • वर्ष 2017 से 2022 के बीच लिथियम की मांग में तीन गुना वृद्धि हुई, जबकि कोबाल्ट की मांग में 70% और निकेल की मांग में 40% की वृद्धि देखी गई। इन खनिजों की मांग में वृद्धि मुख्यतः ऊर्जा क्षेत्र की मांग से अभिप्रेरित थी।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अनुमान लगाया है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अगले दो दशकों में महत्त्वपूर्ण खनिजों की कुल मांग में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की हिस्सेदारी तांबे एवं दुर्लभ मृदा तत्वों के लिये 40%, निकेल एवं कोबाल्ट के लिये 60-70% और लिथियम के लिये 90% से अधिक होगी।
      • जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये खनिज की मांग वर्ष 2040 तक कम से कम चार गुना बढ़ जाएगी।
  • नीतिगत उपायों के माध्यम से वैश्विक प्रयास:
    • महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति की उपलब्धता ऊर्जा परिवर्तन की वहनीयता और गति को वृहत रूप से प्रभावित करेगी। अनिश्चित वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के शमन के लिये विभिन्न देश अपनी खनिज आपूर्ति में विविधता लाने के लिये नई नीतियाँ लागू कर रहे हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने नियामक कानून बनाये हैं, जबकि इंडोनेशिया, नामीबिया और ज़िम्बाब्वे जैसे संसाधन संपन्न देशों ने असंसाधित खनिज अयस्कों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है।
  • चुनिंदा देशों में महत्त्वपूर्ण खनिजों की सांद्रता:
    • ये संसाधन कुछ देशों में संकेंद्रित हैं और लिथियम, कोबाल्ट एवं दुर्लभ मृदा तत्वों के मामले में विश्व के शीर्ष तीन उत्पादक देश वैश्विक उत्पादन के लगभग तीन-चौथाई भाग पर नियंत्रण रखते हैं।
    • विशेष रूप से, विश्व में ऑस्ट्रेलिया 55% लिथियम भंडार, चीन 60% दुर्लभ मृदा तत्व भंडार, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) 75% कोबाल्ट भंडार, इंडोनेशिया 35% निकेल भंडार और चिली 30% तांबा भंडार रखता है।
  • भू-राजनीतिक तनाव और संसाधन राष्ट्रवाद:
    • इन चुनौतियों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रों के बीच वैश्विक संबंध अधिक ध्रुवीकृत हो गए हैं, विशेष रूप से अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं के कारण। इन संघर्षों के कारण स्थापित व्यापार पैटर्न में प्रतिबंध और व्यवधान की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • आपूर्ति-मांग की गतिशीलता:
    • आपूर्ति से अधिक मांग की वृद्धि के कारण तांबे जैसी महत्त्वपूर्ण औद्योगिक धातुओं की कीमतें आने वाले वर्षों में बढ़ सकती हैं। सामग्री कीमतों में इस वृद्धि से सौर पैनलों और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे उपकरणों की उत्पादन लागत प्रभावित होने की संभावना है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों का क्या महत्त्व है?

  • जैसा कि पूर्ववर्ती योजना आयोग ने रेखांकित किया था:
    • भारत में देश के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान करने के लिये अतीत में कुछ प्रयास किये गए थे, जिनमें वर्ष 2011 में भारत के योजना आयोग की एक पहल भी शामिल थी जिसने महत्त्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता को रेखांकित किया था।
      • उस रिपोर्ट में धात्विक, अधात्विक, कीमती रत्नों एवं धातुओं और रणनीतिक खनिजों जैसी श्रेणियों के तहत खनिजों के 11 समूहों का विश्लेषण किया गया था। वर्ष 2017 से 2020 के बीच देश में दुर्लभ मृदा तत्वों की खोज एवं विकास के अध्ययन पर विशेष रूप से बल दिया गया था।
  • आर्थिक विकास:
    • हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन और रक्षा जैसे उद्योग इन खनिजों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त, सौर पैनल, पवन टरबाइन, बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के लिये भी महत्त्वपूर्ण खनिज आवश्यक हैं।
      • महत्त्वपूर्ण खनिज डीकार्बोनाइज़ेशन (decarbonisation) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन इनकी भूमिका यहीं तक सीमित नहीं है। उर्वरक, निर्माण, उद्योगों के लिये चुंबक, परिवहन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा आदि क्षेत्रों में भी इनकी आवश्यकता होती है।
      • इन क्षेत्रों में भारत की बड़ी घरेलू मांग और क्षमता को देखते हुए, उनकी वृद्धि से रोज़गार सृजन, आय सृजन और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा:
    • ये खनिज रक्षा, एयरोस्पेस, परमाणु और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ चरम स्थितियों का सामना करने और जटिल कार्य करने में सक्षम उच्च गुणवत्तापूर्ण एवं विश्वसनीय सामग्रियों के उपयोग की आवश्यकता होती है।
    • रक्षा तत्परता और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिये भारत को महत्त्वपूर्ण खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।
  • पर्यावरणीय संवहनीयता:
    • चूँकि भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य (net-zero by 2070) अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है, इसके लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों (और दुर्लभ मृदा तत्वों) की उपलब्धता महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, भारत वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन बिजली उत्पादन क्षमता स्थापित करने का भी लक्ष्य रखता है।
      • भारत 30% निजी कारों, 70% वाणिज्यिक वाहनों और 80% दो/तीन पहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक करने की भी मंशा रखता है। इलेक्ट्रिक वाहनों हेतु बैटरी निर्माण के लिये आवश्यक लिथियम एवं अन्य खनिजों के स्थिर स्रोत के बिना यह संभव नहीं हो सकेगा।
  • उर्ध्वाधर एकीकरण के माध्यम से औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देना:
    • इन खनिजों की पहचान करना औद्योगिक उत्पादन और सुदृढ़ आपूर्ति-शृंखला नेटवर्क में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है क्योंकि ये खनिज विभिन्न रणनीतिक मूल्य शृंखलाओं के आवश्यक घटक हैं, जिनमें शून्य-उत्सर्जन वाहन, पवन टरबाइन एवं सौर पैनल जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकी पहलें; सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (सेमीकंडक्टर सहित); और उन्नत विनिर्माण इनपुट एवं सामग्री (जैसे रक्षा अनुप्रयोग, स्थायी चुंबक, सिरेमिक आदि) शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • इन सहयोगों से भारत को अपने आयात स्रोतों में विविधता लाने, चीन पर निर्भरता कम करने और खनिज सुरक्षा एवं प्रत्यास्थता बढ़ाने में सक्षमता प्राप्त हो रही है। इसने अमेरिका के नेतृत्व वाली खनिज सुरक्षा साझेदारी (Minerals Security Partnership- MSP) के गठन का मार्ग प्रशस्त किया है।
      • भारत भी MSP में शामिल हुआ है। MSP का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करना है। MSP में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, स्वीडन एवं नॉर्वे जैसे देश शामिल हैं, जिनके पास महत्त्वपूर्ण खनिजों के भंडार हैं, जबकि जापान एवं दक्षिण कोरिया जैसे देश भी शामिल हैं जिनके पास प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी तक पहुँच है।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबंधित विभिन्न चिंताएँ क्या हैं?

  • सीमित घरेलू भंडार:
    • भारत में लिथियम, कोबाल्ट और अन्य दुर्लभ मृदा तत्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के सीमित भंडार हैं। इनमें से अधिकांश खनिजों का आयात किया जाता है, जिससे भारत इसकी आपूर्ति के लिये अन्य देशों पर अत्यधिक निर्भर हो जाता है।
    • आयात पर यह निर्भरता मूल्य में उतार-चढ़ाव, भू-राजनीतिक कारकों और आपूर्ति में व्यवधान के मामले में भेद्यता उत्पन्न कर सकती है। भारत महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर है (लिथियम एवं निकेल के लिये 100%, जबकि तांबे के लिये 93% आयात निर्भरता)।

  • खनिजों की बढ़ती मांग:
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर आगे बढ़ने के लिये बड़ी मात्रा में तांबा, मैंगनीज, जस्ता, लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्वों जैसे खनिजों की आवश्यकता होती है।
    • उल्लेखनीय है कि सौर पीवी संयंत्र या पवन फार्म या इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के संबंध में उनके जीवाश्म ईंधन समकक्षों की तुलना में अधिक खनिजों की आवश्यकता होती है।
      • एक पारंपरिक कार की तुलना में एक इलेक्ट्रिक कार को छह गुना अधिक खनिज संसाधनों की और ऑन-शोर पवन संयंत्र को गैस से संचालित संयंत्र की तुलना में नौ गुना अधिक खनिज संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • अमेरिका के नेतृत्व वाली MSP की सीमित सदस्यता:
    • उल्लेखनीय है कि MSP में चिली, DRC, इंडोनेशिया (जो कुछ महत्त्वपूर्ण खनिजों से समृद्ध हैं) जैसे देश शामिल नहीं हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं। MSP का मूल आधार ‘फ्रेंड शोरिंग’ (friend shoring) है, जिसका अर्थ है विनिर्माण को सत्तावादी एवं अमित्र राज्यों से दूर सहयोगियों की ओर ले जाना।
  • चीन द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ:
    • दुर्लभ मृदा तत्व में बड़ी हिस्सेदारी: चीन के पास न केवल दुर्लभ मृदा तत्व का एक बड़ा हिस्सा मौजूद है, बल्कि उसने इन खनिजों की प्रसंस्करण क्षमता पर भी पूरी तरह से एकाधिकार कर रखा है। चीन विश्व के 35% निकेल, 50-70% लिथियम एवं कोबाल्ट और लगभग 90% दुर्लभ मृदा तत्व का प्रसंस्करण करता है।
      • चीनी कंपनियों ने उन खनिजों की प्राप्ति के लिये ऑस्ट्रेलिया, चिली, इंडोनेशिया और DRC में निवेश किया है जिनमें स्वयं चीन पर्याप्त रूप से समृद्ध नहीं है।
    • तैयार उत्पादों के विनिर्माण पर एकाधिकार: चीन ने तैयार उत्पादों के विनिर्माण पर भी एकाधिकार कायम किया है जहाँ वह दुर्लभ मृदा तत्वों से निर्मित 78% कैथोड, 85% एनोड, 70% बैटरी सेल और 95% स्थायी चुंबक की आपूर्ति करता है।
    • राजनीतिक प्रतिशोध में अपनी स्थिति का इस्तेमाल करना: चीन दुर्लभ मृदा तत्वों पर अपने एकाधिकारपूर्ण स्थिति का उपयोग अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ उनके निर्यात एवं संबंधित प्रौद्योगिकी को प्रतिबंधित करने के रूप में राजनीतिक प्रतिशोध के लिये कर रहा है।
      • महत्त्वपूर्ण खनिजों के कारोबार में चीन की प्रमुख स्थिति और अन्य देशों पर दबाव डालने की उसकी इच्छा ने विश्व समुदाय को स्पष्ट रूप से चिंतित किया है।
  • अंतिम उत्पादों के प्रसंस्करण और विनिर्माण का अभाव:
    • भारत ने ऑस्ट्रेलिया में लिथियम और कोबाल्ट संपत्तियों का संयुक्त रूप से पता लगाने के लिये ऑस्ट्रेलिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। समस्या यह है कि खनिजों की उपलब्धता पर्याप्त नहीं है। इसे संसाधित करने और अंतिम उत्पाद का निर्माण करने की आवश्यकता होती है जिसके लिये प्रौद्योगिकी तक पहुँच आवश्यक है।
  • इसकी परियोजना पूरी होने की अवधि (gestation period) लगभग 15 वर्ष या उससे अधिक की मानी जाती है। एक बड़ा भय यह है कि महत्त्वपूर्ण खनिजों तक पहुँच की कमी भारत के डीकार्बोनाइज़ेशन की दिशा में सबसे बड़ी बाधा सिद्ध हो सकती है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिये कौन-से कदम आवश्यक हैं?

  • संसाधन उपलब्धता सुनिश्चित करना:
    • संसाधन के पहलू को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है। स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण सामग्रियों की उपलब्धता एवं पहुँच का आकलन करना आवश्यक है। इसमें महत्त्वपूर्ण खनिजों के घरेलू भंडार का आकलन करना और विविध अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से उनके स्थायी निष्कर्षण या ‘सोर्सिंग’ के अवसर तलाशना शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में संभावित व्यवधानों से जुड़े जोखिमों को कम करते हुए, इन सामग्रियों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।
  • वित्तीय विचार:
    • स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये प्रायः बुनियादी ढाँचे के विकास, अनुसंधान एवं विकास और नीति समर्थन में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है। ऐसे वित्तपोषण तंत्र, प्रोत्साहन (incentives) और वित्तपोषण मॉडल की आवश्यकता है जो सार्वजनिक एवं निजी दोनों निवेशों को आकर्षित कर सके।
    • एक सफल ऊर्जा संक्रमण के लिये आवश्यक पूंजी जुटाने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अवसरों की पहचान करना और नवीन वित्तपोषण विकल्पों की खोज करना भी महत्त्वपूर्ण होगा।
  • प्रमुख चालक के रूप में प्रौद्योगिकी:
    • प्रौद्योगिकी हमारे ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विश्व के लिये यह आवश्यक है कि वह घरेलू तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा देने, अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में नवाचार को समर्थन देने पर ध्यान केंद्रित करे।
      • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, शिक्षा जगत एवं उद्योग के साथ सहयोग और एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है जो नवोन्मेषी स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के विकास, अंगीकरण एवं विस्तार का समर्थन करता हो।
  • विशेष निकाय की स्थापना करना:
    • खान मंत्रालय के तहत गठित विशेषज्ञ समिति ने ऑस्ट्रेलिया के CSIRO (जो ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़ा खनिज अनुसंधान एवं विकास संगठन है और इस क्षेत्र में विश्व के सबसे बड़े संगठनों में से एक है) की तर्ज पर देश में महत्त्वपूर्ण खनिजों पर एक राष्ट्रीय संस्थान या उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता जताई है।
      • खान मंत्रालय में एक प्रभाग को महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये उत्कृष्टता केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकता है। यह प्रस्तावित केंद्र आवधिक रूप से भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की सूची को अद्यतन करेगा और समय-समय पर महत्त्वपूर्ण खनिज रणनीति को अधिसूचित करेगा।

उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये भारत द्वारा हाल ही में कौन-से कदम उठाये गए हैं?

  • पहचान के लिये एक सुदृढ़ त्रि-चरणीय प्रक्रिया अपनाना:
    • पैनल ने भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान करने के लिये अपने त्रि-चरणीय मूल्यांकन के तहत पहले चरण में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, यूके, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे विभिन्न देशों की रणनीतियों पर विचार किया।
    • दूसरे चरण में विभिन्न मंत्रालयों के साथ उनके क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान करने के लिये एक अंतर-मंत्रालयी परामर्श का आयोजन किया गया।
    • तीसरे चरण में यूरोपीय संघ की कार्यप्रणाली का संज्ञान लेते हुए खनिजों की गंभीरता का मूल्यांकन करने के लिये एक अनुभवजन्य सूत्र प्राप्त करना था, जिसमें दो प्रमुख कारकों- आर्थिक महत्त्व एवं आपूर्ति जोखिम, पर विचार किया गया।
  • GSI द्वारा किया गया अन्वेषण:
    • खान मंत्रालय से संलग्न एक कार्यालय GSI ने जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले के सलाल-हैमना क्षेत्रों में फील्ड सीज़न 2020-21 और 2021-22 के दौरान G3 स्टेज खनिज अन्वेषण (G3 stage mineral exploration) किया है और लिथियम अयस्क के 5.9 मिलियन टन के अनुमानित संसाधन का अनुमान लगाया है। 
      • मानचित्रण परिणाम के आधार पर भविष्य में जम्मू-कश्मीर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में लिथियम सहित अन्य खनिज संसाधनों पर अन्य कई अन्वेषण कार्यक्रम शुरू किये जाएँगे।
  • खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की स्थापना:
    • इसे लिथियम, कोबाल्ट और अन्य महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक प्रकृति के विदेशी खनिज संपत्तियों की पहचान करने और अधिग्रहित करने का कार्य सौंपा गया है ताकि आपूर्ति पक्ष आश्वस्ति सुनिश्चित की जा सके।
    • KABIL ने लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्वों सहित विभिन्न खनिज संपत्ति हासिल करने के लिये विदेश मंत्रालय और अर्जेंटीना एवं ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में स्थिति भारतीय दूतावासों के माध्यम से शॉर्टलिस्ट किये गए स्रोत देशों के विभिन्न राज्य स्वामित्व वाले संगठनों के साथ संलग्नता शुरू की है।

निष्कर्ष

महत्त्वपूर्ण खनिजों के संबंध में सरकार की हाल की कार्रवाइयाँ इन आवश्यक संसाधनों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने के लिये खनन कानूनों में संशोधन के साथ-साथ 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों की पहचान करना इनकी संभावित कमी को दूर करने की दिशा में एक सक्रिय दृष्टिकोण को परिलक्षित करती है। हालाँकि, कुछ देशों में संसाधनों का संकेंद्रण और प्रसंस्करण एवं विनिर्माण में चीन की प्रमुख स्थिति जैसी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। वर्ष 2070 तक डीकार्बोनाइज़ेशन और शुद्ध-शून्य लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग इन चुनौतियों पर काबू पाने और महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित करने पर निर्भर करता है।

अभ्यास प्रश्न: स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण खनिजों के महत्त्व और इन संसाधनों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने में भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुलर्भ मृदा धातु’ कहते है की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

1- चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
2- चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाये जाते हैं।
3- दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है इन तत्त्वों की माँग बढती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन अभी भी विकास के लिये अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2