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भारतीय अर्थव्यवस्था

विश्व भर में महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग

  • 15 Jul 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 13/07/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Critical mineral supplies vital to clean energy shift’’ लेख पर आधारित है। इसमें दुनिया भर में महत्त्वपूर्ण खनिजों की बढ़ती मांग और संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

खनिज, महत्त्वपूर्ण खनिज, इलेक्ट्रिक वाहन, सौर पैनल, विंड टर्बाइन, KABIL

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण खनिजों का महत्त्व, विश्व भर में महत्त्वपूर्ण खनिजों का वर्तमान परिदृश्य

जैसे-जैसे दुनिया तेज़ी से स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाती जा रही है और एक संवहनीय भविष्य की ओर आगे बढ़ रही है, महत्त्वपूर्ण खनिजों (critical minerals) की मांग अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ गई है। लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और कॉपर जैसे ये आवश्यक खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों, सौर पैनलों, विंड टर्बाइनों और अन्य स्वच्छ ऊर्जा उपकरणों के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि इन महत्त्वपूर्ण खनिजों की मांग में वृद्धि ने इनकी आपूर्ति को पीछे छोड़ दिया है, जिससे उल्लेखनीय चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।

हरित संक्रमण हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण सामग्रियों की आपूर्ति में चीन एक प्रमुख स्थान रखता है, जिसे संभावित आपूर्ति जोखिम के रूप में देखा जाता है। गैलियम और जर्मेनियम जैसी महत्त्वपूर्ण धातुओं के निर्यात पर चीन द्वारा हाल ही में लगाए गए प्रतिबंध को इसके उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। यह इन आवश्यक सामग्रियों की आपूर्ति के लिये एक ही देश पर बहुत अधिक निर्भर रहने से जुड़ी चिंता को उजागर करता है।

खनिज तथा महत्त्वपूर्ण खनिज

  • खनिज (Minerals):
    • खनिज प्राकृतिक पदार्थ हैं जो भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होते हैं। उनकी एक निश्चित रासायनिक संरचना और भौतिक गुण होते हैं।
    • उन्हें गुणों और उपयोग के आधार पर धात्विक एवं गैर-धात्विक खनिजों में वर्गीकृत किया जाता है।
      • धात्विक खनिज वे हैं जिनमें धातु या धातु यौगिक मौजूद होते हैं, जैसे लोहा, ताँबा, सोना, चाँदी आदि।
      • अधात्विक खनिज वे हैं जिनमें धातु नहीं होती, जैसे चूना पत्थर, कोयला, अभ्रक, जिप्सम आदि।
  • महत्त्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals):
    • महत्त्वपूर्ण खनिज वे खनिज हैं जो आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक होते हैं। इन खनिजों की उपलब्धता में कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों में निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता से आपूर्ति शृंखला संबंधी भेद्यताएँ पैदा होती हैं और यहाँ तक कि इनसे आपूर्ति में व्यवधान भी उत्पन्न हो सकता है।

भारत के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज:

  • खान मंत्रालय के तहत विशेषज्ञ समिति ने भारत के लिये 30 महत्त्वपूर्ण खनिजों के एक समूह की पहचान की है।
  • ये हैं: एंटीमनी, बेरिलियम, बिस्मथ, कोबाल्ट, कॉपर, गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, हैफनियम, इंडियम, लिथियम, मोलिब्डेनम, नाइओबियम, निकल, PGE, फॉस्फोरस, पोटाश, REE, रेनियम, सिलिकॉन, स्ट्रोंशियम, टैंटलम, टेल्यूरियम, टिन, टाइटेनियम, टंगस्टन, वैनेडियम, ज़िरकोनियम, सेलेनियम और कैडमियम।
  • भारत ने खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) की स्थापना की है। यह तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का एक संयुक्त उद्यम है जो भारतीय घरेलू बाज़ार में महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखता है।
    • यह राष्ट्र की खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करता है; यह आयात प्रतिस्थापन के समग्र उद्देश्य को साकार करने में भी मदद करता है।

विश्व भर में महत्त्वपूर्ण खनिजों का वर्तमान परिदृश्य

  • ऊर्जा संक्रमण खनिजों (Energy Transition Minerals) की मांग और बाज़ार में तेज़ी से वृद्धि:
    • वर्ष 2017 से 2022 के बीच लिथियम की मांग में तीन गुना वृद्धि हुई, कोबाल्ट की मांग 70% बढ़ गई और निकल की मांग में 40% वृद्धि हुई, जो मुख्य रूप से ऊर्जा क्षेत्र द्वारा प्रेरित थी।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, ऊर्जा संक्रमण खनिजों का बाज़ार वर्ष 2022 में 320 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया और इसके तेज़ी से बढ़ते रहने की उम्मीद है।
  • नीतिगत उपायों के माध्यम से वैश्विक प्रयास:
    • महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति की उपलब्धता ऊर्जा संक्रमण की वहनीयता और गति को वृहत रूप से प्रभावित करेगी। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं की अनिश्चितता को कम करने के लिये विभिन्न देश अपनी खनिज आपूर्ति में विविधता लाने हेतु नई नीतियाँ लागू कर रहे हैं।
  • कार्यक्षेत्र एकीकरण के माध्यम से उद्योग की भूमिका:
    • खनिज आपूर्ति सुरक्षित करने के लिये वाहन निर्माता, बैटरी सेल निर्माता और उपकरण निर्माता जैसे उद्योग महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य शृंखला में अधिक सक्रिय रूप से संलग्न हो रहे हैं।
      • इसमें खनिजों की खरीद के लिये दीर्घकालिक समझौते करने के साथ-साथ खनन और शोधन जैसी गतिविधियों में संलग्न होना शामिल है।
  • भू-राजनीतिक तनाव और संसाधन राष्ट्रवाद:
    • इन चुनौतियों को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रों के बीच वैश्विक संबंध अधिक ध्रुवीकृत हो गए हैं, विशेष रूप से अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और रूस-यूक्रेन युद्ध जैसी घटनाओं के कारण। इन संघर्षों के कारण स्थापित व्यापार पैटर्न में प्रतिबंध और व्यवधान उत्पन्न हुए हैं।
    • इसके अतिरिक्त, संसाधन राष्ट्रवाद (resource nationalism) की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जहाँ देश अपने संसाधनों को प्राथमिकता देते हैं और निर्यात पर प्रतिबंध लगाते हैं। ये कारक वैश्विक व्यापार प्रवाह की अनिश्चितताओं में योगदान करते हैं।
  • आपूर्ति-मांग की गतिशीलता:
    • आपूर्ति से अधिक मांग की वृद्धि के कारण तांबे जैसी महत्त्वपूर्ण औद्योगिक धातुओं के मूल्य आने वाले वर्षों में बढ़ सकते हैं। सामग्री के मूल्यों में इस वृद्धि से सौर पैनलों और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे उपकरणों की उत्पादन लागत प्रभावित होने की संभावना है।

भारत में महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • भारत वर्तमान में महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला सुनिश्चित करने में वैश्विक और घरेलू दोनों स्तरों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विचार करने योग्य कुछ प्रमुख जोखिम ये हैं:
    • कोविड-19 का प्रभाव: चीन, जो महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं में प्रमुख स्थान रखता है, अभी भी कोविड-19 से संघर्ष कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण, प्रसंस्करण और निर्यात में मंदी का एक उल्लेखनीय जोखिम मौजूद है।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध: इस संघर्ष का महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं के लिये कुछ निहितार्थ हैं। रूस निकल, पैलेडियम, टाइटेनियम स्पंज धातु और दुर्लभ मृदा तत्त्व स्कैंडियम का एक प्रमुख उत्पादक है।
      • यूक्रेन टाइटेनियम का एक महत्त्वपूर्ण उत्पादक है और लिथियम, कोबाल्ट, ग्रेफाइट एवं दुर्लभ मृदा तत्त्वों का भंडार रखता है।
        • दोनों देशों के बीच चल रहा युद्ध वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में इन महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिरता और उपलब्धता के संबंध में एक चिंता उत्पन्न करता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय पहलों में चीन-रूस साझेदारी और असमानता का प्रभाव: देशों और महाद्वीपों के बीच शक्ति संतुलन का उभार महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखलाओं के लिये खतरा पैदा करता है, जिसका मुख्य कारण है चीन और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी।
      • दोनों देशों के इस गठबंधन का महत्त्वपूर्ण खनिजों की स्थिरता और उपलब्धता पर प्रभाव पड़ सकता है। इसकी प्रतिक्रिया में विकसित देशों ने खनिज सुरक्षा साझेदारी (Minerals Security Partnership- MSP) और G7 के सतत् महत्त्वपूर्ण खनिज गठबंधन (Sustainable Critical Minerals Alliance) जैसी सहयोगी रणनीतियों का निर्माण किया है।
        • हालाँकि, विकासशील देशों को इन पहलों में सक्रिय रूप से शामिल नहीं किया गया है, जिससे वे इन साझेदारियों द्वारा प्रदान किये जाने वाले लाभों और सुरक्षा से वंचित रह सकते हैं।
  • भारत के पास इनमें से बहुत से खनिजों के भंडार नहीं हैं या उसे उपलब्धता से अधिक की आवश्यकता हो सकती है, जिससे घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विदेशी भागीदारों पर निर्भर रहना पड़ता है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों से संबंधित चुनौतियों को कम करने के लिये अनुशंसित रणनीतियाँ:

  • तीव्र मांग वृद्धि की पूर्ति करना: यह सुनिश्चित करना कि महत्त्वपूर्ण खनिजों की भविष्य की आपूर्ति जलवायु-संचालित परिदृश्यों से प्रेरित तेजी से बढ़ती मांग को पूरा कर सके। यह आकलन करना महत्त्वपूर्ण है कि इन खनिजों की वैश्विक आपूर्ति मांग में इस वृद्धि के साथ तालमेल बिठा सकती है या नहीं।
  • आपूर्ति के स्रोतों का विविधीकरण: वर्तमान में इन खनिजों के लिये कुछ ही देशों पर निर्भरता आपूर्ति शृंखला के लिये जोखिम पैदा करती है। स्रोतों में विविधता लाकर विश्व के देश और विभिन्न उद्योग भू-राजनीतिक कारकों, व्यापार प्रतिबंधों या अन्य अनिश्चितताओं के कारण आपूर्ति में व्यवधान की आशंका को कम कर सकते हैं।
  • स्वच्छ और ज़िम्मेदार स्रोत सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करना कि ऊर्जा संक्रमण के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति स्वच्छ एवं ज़िम्मेदार स्रोतों से की जा सके। खनन और शोधन प्रक्रियाओं का पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव हो सकता है, जिसमें प्रदूषण, पर्यावास विनाश और मानवाधिकार संबंधी चिंताओं जैसे मुद्दे शामिल हैं।
    • इन प्रभावों को कम करने और एक संवहनीय ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज मूल्य शृंखला में संवहनीय और ज़िम्मेदार अभ्यासों को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

  • संसाधन उपलब्धता सुनिश्चित करना: संसाधन के पहलू को संबोधित करना अत्यंत आवश्यक है। स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण सामग्रियों की उपलब्धता और पहुँच का आकलन करना आवश्यक है। इसमें महत्त्वपूर्ण खनिजों के घरेलू भंडार का मूल्यांकन करना और विविध अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से उनके स्थायी निष्कर्षण या सोर्सिंग के अवसर तलाशना शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में संभावित व्यवधानों से जुड़े जोखिमों को कम करते हुए इन सामग्रियों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियाँ होनी चाहिये।
  • वित्तीय दृष्टिकोण: स्वच्छ ऊर्जा की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रायः अवसंरचना के विकास, अनुसंधान एवं विकास और नीति समर्थन में उल्लेखनीय निवेश की आवश्यकता होती है। ऐसे वित्तपोषण तंत्र, प्रोत्साहन और वित्तपोषण मॉडल की आवश्यकता है जो सार्वजनिक और निजी दोनों निवेशों को आकर्षित कर सके।
    • एक सफल ऊर्जा संक्रमण के लिये आवश्यक पूंजी जुटाने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये अवसरों की पहचान करना और नवीन वित्तपोषण विकल्पों की खोज करना भी महत्त्वपूर्ण होगा।
  • मुख्य चालक के रूप में प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रौद्योगिकी हमारे ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विश्व के लिये घरेलू तकनीकी क्षमताओं को बढ़ावा देने, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, शिक्षा जगत एवं उद्योग के साथ सहयोग और एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की आवश्यकता है जो नवोन्मेषी स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के विकास, अंगीकरण और विस्तार का समर्थन करता हो।

निष्कर्ष

भारत को वैश्विक परिदृश्य से महत्त्वपूर्ण सबक लेने की ज़रूरत है। तीव्र डीकार्बोनाइजेशन और ऊर्जा संक्रमण के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत को तीव्र संक्रमण के लिये आवश्यक प्रमुख खनिजों और धातुओं की सीमित उपलब्धता के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत के प्रयासों की सफलता इन महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिये विश्व बाज़ार की अनिश्चितताओं और उतार-चढ़ाव पर निर्भर करेगी।

अभ्यास प्रश्न: वैश्विक बाज़ार की अनिश्चितताओं को देखते हुए, स्वच्छ ऊर्जा की ओर त्वरित संक्रमण कर सकने की भारत की क्षमता पर महत्त्वपूर्ण खनिजों तक सीमित पहुँच के संभावित प्रभावों की चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुर्लभ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाए जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है, इन तत्त्वों की माँग बढती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)

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