अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दुर्लभ खनिज गठबंधन
- 04 Aug 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:दुर्लभ खनिज, खनिज सुरक्षा साझेदारी मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण खनिजों का अनुप्रयोग, अंतर्राष्ट्रीय समूहों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
खनिज सुरक्षा साझेदारी में स्थान न मिलने के कारण भारत सरकार की चिंता बढ़ी है।
- खनिज सुरक्षा साझेदारी चीन पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने के लिये एक नई महत्त्वाकांक्षी US -नेतृत्व वाली साझेदारी है।
- दुर्लभ खनिजों की मांग, जो स्वच्छ ऊर्जा और अन्य प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक हैं, का आने वाले दशकों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ने का अनुमान है।
दुर्लभ खनिज
- परिचय:
- दुर्लभ खनिज ऐसे तत्त्व हैं जो आधुनिक युग में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों की बुनियाद हैं और इनकी कमी की वजह से पूरी दुनिया में आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ा है।
- इन खनिजों का उपयोग अब मोबाइल फोन और कंप्यूटर बनाने से लेकर बैटरी, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) तथा हरित प्रौद्योगिकी जैसे सौर पैनल एवं पवन टरबाइन बनाने में किया जाता है।
- प्रमुख दुर्लभ खनिज::
- EV बैटरी बनाने के लिये ग्रेफाइट, लिथियम और कोबाल्ट का उपयोग किया जाता है।
- एयरोस्पेस, संचार और रक्षा उद्योग भी कई ऐसे खनिजों पर निर्भर हैं, जिनका उपयोग लड़ाकू जेट, ड्रोन, रेडियो सेट तथा अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
- एयरोस्पेस, संचार और रक्षा उद्योग भी कई ऐसे खनिजों पर निर्भर हैं, जिनका उपयोग लड़ाकू जेट, ड्रोन, रेडियो सेट और अन्य महत्त्वपूर्ण उपकरणों के निर्माण में किया जाता है।
- जबकि कोबाल्ट, निकेल और लिथियम इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली बैटरी के लिये आवश्यक हैं, अर्द्धचालक और हाई-एंड इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण में दुर्लभ हैं।
- महत्त्व:
- जैसे-जैसे दुनिया भर के देश स्वच्छ ऊर्जा और डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर अपने कदम बढ़ाते हैं, ये दुर्लभ संसाधन उस पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो इस परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
- इनमें से किसी की भी आपूर्ति में कमी दुर्लभ खनिजों की खरीद के लिये दूसरे देशों पर निर्भर देश की अर्थव्यवस्था और सामरिक स्वायत्तता को गंभीर रूप से संकट में डाल सकती है।
खनिज सुरक्षा भागीदारी (MSP):
- परिचय:
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा दुर्लभ खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने की पहल है।
- भागीदार:
- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, जापान, कोरिया गणराज्य, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय आयोग।
- उद्देश्य:
- MSP का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि दुर्लभ खनिजों का उत्पादन, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण इस तरह से किया जाए कि देशों के उनके भूवैज्ञानिक प्रबंधन के पूर्ण आर्थिक विकास का लाभ प्राप्त कर सके।
- कोबाल्ट, निकेल, लिथियम जैसे खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं और 17 "दुर्लभ पृथ्वी" के खनिजों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
- महत्त्व:
- MSP उच्चतम पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन मानकों का पालन करने वाली पूर्ण मूल्य शृंखला में रणनीतिक अवसरों के लिये सरकारों और निजी क्षेत्र से निवेश को उत्प्रेरित करने में मदद करेगा।
MSP से बाहर होना भारत हेतु चिंता का विषय:
- महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति:
- भारत की विकास रणनीति के प्रमुख तत्त्वों में से एक सार्वजनिक और निजी परिवहन के बड़े हिस्से को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के माध्यम से गतिशीलता के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी बदलाव द्वारा संचालित है।
- यह मज़बूत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पहल के साथ महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति को सुरक्षित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- भारत की विकास रणनीति के प्रमुख तत्त्वों में से एक सार्वजनिक और निजी परिवहन के बड़े हिस्से को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के माध्यम से गतिशीलता के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी बदलाव द्वारा संचालित है।
- अन्य देशों पर निर्भरता:
- पृथ्वी पर सत्रह दुर्लभ तत्त्व हैं और इन्हें हल्के RE तत्त्वों (LREE) और भारी RE तत्त्वों (HREE) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- कुछ RE भारत में उपलब्ध हैं, जैसे- लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेज़ोडियम और समैरियम, जबकि अन्य जैसे कि डिस्प्रोसियम, टेरबियम, यूरोपियम जिन्हें HREE के रूप में वर्गीकृत किया गया है, की निकालने योग्य मात्रा में भारत में उपलब्ध नहीं हैं।
- भारत को ऐसे तत्त्वों के लिये आपूर्ति समर्थन की आवश्यकता होगी।
- कुछ RE भारत में उपलब्ध हैं, जैसे- लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रेज़ोडियम और समैरियम, जबकि अन्य जैसे कि डिस्प्रोसियम, टेरबियम, यूरोपियम जिन्हें HREE के रूप में वर्गीकृत किया गया है, की निकालने योग्य मात्रा में भारत में उपलब्ध नहीं हैं।
- पृथ्वी पर सत्रह दुर्लभ तत्त्व हैं और इन्हें हल्के RE तत्त्वों (LREE) और भारी RE तत्त्वों (HREE) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- प्रौद्योगिकी स्थिति:
- उद्योग पर नज़र रखने वालों का कहना है कि भारत को समूह में जगह नहीं मिलने का एक कारण यह है कि देश इस क्षेत्र पर ज़्यादा सशक्त नहीं है।
- समूह में, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों के पास भंडार हैं और उन्हें निकालने की तकनीक भी है तथा जापान जैसे देशों के पास उन्हें संसाधित करने की तकनीक है।
- उद्योग पर नज़र रखने वालों का कहना है कि भारत को समूह में जगह नहीं मिलने का एक कारण यह है कि देश इस क्षेत्र पर ज़्यादा सशक्त नहीं है।
दुर्लभ खनिजों से संबंधित भारत के प्रयास:
- लिथियम समझौता:
- वर्ष 2021 के मध्य में भारत ने सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी ‘खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड’ के माध्यम से अर्जेंटीना, जहाँ विश्व में धातु का तीसरा सबसे बड़ा भंडार मौजूद है, में संयुक्त रूप से लिथियम की खोज करने के लिये अर्जेंटीना की एक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- भारत-ऑस्ट्रेलिया दुर्लभ खनिज निवेश साझेदारी
- भारत और ऑस्ट्रेलिया ने दुर्लभ खनिजों के लिये परियोजनाओं एवं आपूर्ति शृंखलाओं के क्षेत्र में अपनी साझेदारी को मज़बूत करने का निर्णय लिया।
- ऑस्ट्रेलिया के पास भारत के अंतरिक्ष और रक्षा उद्योगों, सौर पैनलों, बैटरी एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में मदद करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों की बढ़ती मांग को पूरा करने तथा भारत की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद के लिये संसाधन मौजूद हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न. हाल में तत्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुलर्भ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से क3थन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (C) सही है। |