जैव विविधता और पर्यावरण
संसाधन कुशल भारत के लिये पुनर्चक्रण एवं पुनरुपयोग की नीति
- 26 Sep 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मसौदा तैयार किया है। इसका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में प्रमुख सामग्रियों की पुनर्चक्रण दर को 50% तक बढ़ाना और भारत को अवशिष्ट प्रबंधन में सक्षम बनाना है।
संदर्भ:
- राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति का मुख्य एजेंडा चक्रीय अर्थव्यवस्था विकसित करना है। यह दो उपायों द्वारा प्राप्त की जा सकती है- पहला सामग्री के पुनर्चक्रण द्वारा और दूसरा, संसाधनों के उपयोग की दक्षता में वृद्धि करके। पुनर्चक्रण का संबंध मुख्यतः उद्योगों से है, जबकि संसाधन दक्षता एक अवधारणा है जिसे सभी क्षेत्रों में पालन किये जाने की आवश्यकता है।
- मसौदा नीति एक राष्ट्रीय संसाधन दक्षता प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करती है। यह प्राधिकरण विभिन्न क्षेत्रों के लिये संसाधन दक्षता रणनीतियों को विकसित करने और उन्हें तीन साल की कार्य-योजना में शामिल करने में मदद करेगी।
- इसके अंतर्गत शुरुआत में सात प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है- ऑटोमोबाइल, प्लास्टिक पैकेजिंग, भवन और निर्माण क्षेत्र, विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षेत्र, सौर फोटो-वोल्टाइक (Solar Photo-Voltaic) क्षेत्र, इस्पात एवं एल्युमीनियम क्षेत्र।
राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति की प्रासंगिकता:
- मसौदा नीति में ज़ोर देकर कहा गया है कि भारत में वैश्विक औसत की तुलना में भौतिक उत्पादकता कम है और पुनर्चक्रण दर भी यूरोप जैसे क्षेत्रों में 70 प्रतिशत की दर के मुकाबले बहुत कम 20-25 प्रतिशत है। सामग्री उत्पादकता का अभिप्राय उपयोग किये गए इनपुट (संसाधनों) की तुलना में प्राप्त आउटपुट का अनुपात है। कम सामग्री उत्पादकता इंगित करती है कि संसाधनों का कुशलता से उपयोग नहीं किया जा रहा है।
- इसी तरह भारत विश्व स्तर पर कृषि के लिये सबसे अधिक पानी का इस्तेमाल करता है एवं यहाँ की 30 प्रतिशत भूमि क्षरण की समस्या से ग्रसित है।
- भारत में महत्त्वपूर्ण कच्चे माल की उच्च आयात निर्भरता है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, जीवाश्म ईंधन, बायोमास, धातु अयस्कों और गैर-धातु अयस्कों की भारत में खपत वर्ष 1970 के 1.18 बिलियन टन से छह गुना से अधिक की वृद्धि के साथ वर्ष 2015 में 7 बिलियन टन हो गई तथा वर्ष 2030 तक इसके वर्ष 2015 के स्तर से दोगुना होने का अनुमान है।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बढ़ते प्रदूषण के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दस साल से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस मसौदा नीति के तहत, सरकार की योजना है कि ऐसे वाहनों को एकत्रित कर उनका विपंजीकरण (Deregistration) करने वाले केंद्रों एवं उक्त वाहनों के कल-पुर्जों को अलग कर पुनर्चक्रण हेतु सामग्री को पृथक करने वाले केंद्रों की स्थापना की जाए।
- उल्लेखनीय है कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र गंभीर तनाव की स्थिति में है और बहुत सारी सामग्रियों के लिये आयात पर निर्भर है। ऐसे में भारत के लिये यह उपयुक्त समय है कि वह भविष्य की मांगों को ध्यान में रखते हुए आवश्यक सुधार करे।
प्लास्टिक पैकेजिंग क्षेत्र
- प्लास्टिक कचरे का कुल ठोस कचरे में 8% योगदान है। मसौदे में वर्ष 2025 तक पॉलीथीन टेरेफ्थेलेट (Polyethylene Terephthalate-PET) प्लास्टिक के संदर्भ में 100% पुनर्चक्रण और पुनरुपयोग की दर तथा वर्ष 2030 तक अन्य प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री के मामले में 75 प्रतिशत पुनर्चक्रण और पुनःप्रयोग की दर प्राप्त करने का लक्ष्य है।
भवन और निर्माण क्षेत्र
- एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक भारत की 40% से अधिक आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करेगी। वर्ष 2030 तक शहरों में आने वाली इस जनसंख्या को समायोजित करने के लिये करीब 70% नए इमारतों का निर्माण करने की आवश्यकता होगी जो कि रेत, मिट्टी, पत्थर और चूना पत्थर जैसे प्राकृतिक रूप से निकाले गए कच्चे माल एवं अन्य भवन निर्माण सामग्रियों की भविष्य में एक बड़ी मांग को सूचित करता है।
- मसौदा नीति का उद्देश्य धीरे-धीरे नवीन सामग्रियों पर निर्भरता को कम करना और निर्माण एवं विध्वंस जैसी गतिविधियों से उत्पन्न कचरे के पुनरुपयोग को बढ़ावा देना है। इसी को ध्यान में रखकर योजना का लक्ष्य निर्धारित करते हुए यह उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2025 तक सिविल क्षेत्र में निर्माण के लिये उपकरणों की कुल सामूहिक खरीद का 30 प्रतिशत पुनर्नवीकृत सामग्री से प्राप्त किया जाएगा।
विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षेत्र
- भारत विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली मोलिब्डेनम, तांबा और निकल जैसी महत्त्वपूर्ण सामग्रियों के लिये आयात पर निर्भर है। भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिये, चाँदी जैसे कच्चे माल की आयात निर्भरता लगभग 75%, सोना लगभग 90%, प्लैटिनम लगभग 95% और तांबा 50- 60% है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 में भारत लगभग 20 लाख मीट्रिक टन ई-कचरे के उत्पादन के साथ दुनिया में ई-कचरे का पांचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक देश था।
- इस मसौदा नीति के तहत विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षेत्र के लिये एक विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (EPR) के अनुपालन को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, ताकि पुनर्चक्रण एवं पुनरुपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
सौर फोटो-वोल्टाइक क्षेत्र
- ध्यातव्य है कि सौर पैनल के निर्माण के लिये उपयोग की जाने वाली प्रमुख सामग्रियों में सिलिकॉन, काँच, चाँदी, एल्युमीनियम और तांबा आदि शामिल हैं और सरकार के सौर उर्जा के संदर्भ में मौजूदा लक्ष्यों (वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट) की प्राप्ति के प्रयास से इस क्षेत्र में वृद्धि के साथ निर्माण सामग्रियों की मांग भी बढ़ेगी।
- प्रस्तावित मसौदे में सौर ऊर्जा क्षेत्र से उत्पन्न कचरे को भी संबोधित किया गया है। इसके तहत निकट भविष्य में निपटाए जाने वाले सौर पैनलों की बड़ी मात्रा को प्रबंधित करने के लिये उचित सौर पैनल रीसाइक्लिंग बुनियादी ढाँचा स्थापित करने की योजना बनाई गई है। मसौदे में वर्ष 2025 तक चार प्रमुख अधिकृत निराकरण सुविधाएँ स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है जिन्हें वर्ष 2030 तक बढ़ाकर आठ किया जाना है।
इस्पात क्षेत्र
- प्रस्तावित मसौदे में इस्पात क्षेत्र के लिये घरेलू स्क्रैप के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु कुछ सीमाओं से परे स्क्रैप आयात पर आयात शुल्क लगाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके तहत वर्ष 2030 तक पुनर्नवीनीकरणीय इस्पात उत्पादन के लिये स्टील स्क्रैप के आयात को शून्य करने का लक्ष्य प्रस्तावित है।
एल्युमीनियम क्षेत्र
- एल्युमीनियम क्षेत्र में भी आयातित स्क्रैप पर भारी निर्भरता है और घरेलू स्क्रैप की उपलब्धता को बढ़ाने के लिये निर्यात करों, निर्यात कोटा, और यहां तक कि निर्यात प्रतिबंध या दंडात्मक कर की दर सहित विभिन्न आर्थिक साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।
- प्रस्तावित मसौदे में वर्ष 2030 तक एल्युमीनियम स्क्रैप की कुल आवश्यकता का 50 प्रतिशत घरेलू स्क्रैप द्वारा पूरा करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही वर्ष 2025 तक पुनर्चक्रण दर को 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है जिसे वर्ष 2030 तक बढाकर 90 प्रतिशत किया जाना है।