भारतीय अर्थव्यवस्था
ग्लोबल ट्रेड मोमेंटम एंड आउटलुक फॉर इंडिया
- 06 Jun 2023
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:वाणिज्यिक निर्यात, मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति, रूस-यूक्रेन, PMI मेन्स के लिये:ग्लोबल ट्रेड मोमेंटम एंड आउटलुक फॉर इंडिया |
चर्चा में क्यों?
अप्रैल 2023 में भारत का वाणिज्यिक निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 12.7% कम होकर 34.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ छह महीने के निचले स्तर पर पहुँच गया। इसी तरह इसी अवधि के दौरान आयात में भी 14% की तीव्र गिरावट आई, जो 49.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- आयात और निर्यात में ये कमी जो धीमी वैश्विक मांग की बड़ी प्रवृत्ति का संकेत है, भारत के साथ- साथ शेष विश्व भी इससे प्रभावित है।
वैश्विक व्यापार में वर्तमान प्रवृत्ति:
- कमज़ोर आर्थिक गतिविधियाँ:
- विश्व स्तर पर आर्थिक विकास में मंदी आई है, जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- विभिन्न देशों में कमज़ोर आर्थिक स्थितियों ने उपभोक्ता खर्च और निवेश को कम कर दिया है, जिससे व्यापार की मात्रा प्रभावित हुई है।
- मुद्रास्फीति और सख्त मौद्रिक नीतियाँ:
- कई देश बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं, जिसने केंद्रीय बैंकों को सख्त मौद्रिक नीतियों को लागू करने हेतु प्रेरित किया है।
- उच्च ब्याज दरें और सख्त ऋण शर्तें उपभोक्ता क्रय शक्ति को कम करके तथा व्यवसायों हेतु सख्त लागत को बढ़ाकर व्यापार को प्रभावित कर सकती हैं।
- रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण आपूर्ति शृंखला में बाधा :
- रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष ने विशेष रूप से यूरोप में आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया है।
- इस संघर्ष ने उच्च ऊर्जा और कमोडिटी की कीमतों को बढ़ावा दिया है, व्यापार प्रवाह को प्रभावित किया है एवं व्यवसायों हेतु लागत में वृद्धि कर दी है।
- वित्तीय अस्थिरता:
- क्रिप्टो एक्सचेंज FTX और अमेरिका में कई बैंकों जैसे वित्तीय संस्थानों के पतन ने वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न कर दी है।
- वित्तीय क्षेत्र मेंआत्मविश्वास की कमी संभावित संक्रमण के बारे में चिंता पैदा करता है और वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
भारत, यूरोप और अमेरिका में व्यापार की स्थिति:
- यूरोपीय संघ (EU):
- फरवरी 2023 में यूरोपीय आर्थिक पूर्वानुमान था कि यह क्षेत्र सितंबर 2022 के आसपास विकसित होने वाली मंदी में प्रवेश करने से बच जाएगा।
- यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति के संदर्भ में मई 2022 में भोजन, शराब और तंबाकू की कीमतों में वृद्धि की उच्चतम वार्षिक दर थी। इसके बाद गैर-ऊर्जा औद्योगिक वस्तुओं, सेवाओं और ऊर्जा का स्थान था।
- फरवरी 2023 में यूरोपीय आर्थिक पूर्वानुमान था कि यह क्षेत्र सितंबर 2022 के आसपास विकसित होने वाली मंदी में प्रवेश करने से बच जाएगा।
- अमेरिका:
- संयुक्त राज्य अमेरिका में मई 2023 में फेडरल रिज़र्व के अनुसार, पिछले वर्ष के मध्य की तुलना में मुद्रास्फीति में सुधार हुआ था। हालाँकि मुद्रास्फीति का दबाव उच्च बना हुआ है और मुद्रास्फीति को 2% के वांछित लक्ष्य तक कम करने में काफी समय लगने की संभावना है।
- जेपी मॉर्गन ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग परचेज़िग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) मई में लगातार तीसरे महीने 49.6 पर रहा, जो कारोबारी स्थितियों में मामूली गिरावट का संकेत है। उत्पादन ने चार महीनों के लिये वृद्धि दिखाई, लेकिन मुख्य रूप से नए के बजाय मौजूदा आदेशों को पूरा करने के कारण।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में मई 2023 में फेडरल रिज़र्व के अनुसार, पिछले वर्ष के मध्य की तुलना में मुद्रास्फीति में सुधार हुआ था। हालाँकि मुद्रास्फीति का दबाव उच्च बना हुआ है और मुद्रास्फीति को 2% के वांछित लक्ष्य तक कम करने में काफी समय लगने की संभावना है।
- भारत के लिये आउटलुक:
- अमेरिका और चीन के बाद यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे बाज़ारों से वैश्विक मांग अनुकूल नहीं है और अगले कुछ महीनों के लिये मांग परिदृश्य आशावादी नहीं है।
- भारत वैश्विक मंदी के संभावित प्रभाव का सामना कर सकता है, विशेष रूप से अमेरिका में, जो भारत के लिये एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है।
- मंदी भारत के व्यापारिक निर्यात की मांग को प्रभावित कर सकती है, हालाँकि सेवाओं के निर्यात के मज़बूत रहने की उम्मीद है।
- यदि आयात का स्तर कम रहता है तो वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो जाती हैं और भारतीय रुपए का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में स्थिर रहता है। हालाँकि तेज़ी से सुधार आयात मांग पर दबाव डाल सकता है।
- औसत वृद्धि की लंबी अवधि को पार करते हुए कुछ गैर-कच्ची वस्तुओं और गैर-आभूषण खंडों ने पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 15% की वृद्धि दिखाई है।
- इससे संकेत मिलता है कि भारत में घरेलू मांग सुदृढ़ बनी हुई है।
- आयात में कमी का श्रेय तेल की स्थिर कीमतों को दिया जा सकता है, जिसने भारत के आयात बिलों को कम कर दिया है।
आर्थिक मंदी का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और व्यक्ति की क्रय शक्ति पर प्रभाव:
- आर्थिक मंदी के दौरान वस्तुओं और सेवाओं की समग्र मांग में कमी के कारण निर्यात और आयात दोनों सहित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में काफी गिरावट आई है।
- लोग विवेकाधीन खर्च से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं जो विशेष रूप से कुछ आयातों और स्थगित खर्चों को प्रभावित करता है।
- इसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग सामान, रत्न एवं आभूषण, रसायन, रेडीमेड वस्त्र, प्लास्टिक और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात वर्ष 2023 में धीमी गति से कम हुआ या बढ़ा है।
- मुद्रास्फीति, कीमतों में असमान वृद्धि, विशेष रूप से भोजन और ऊर्जा जैसी आवश्यक वस्तुओं में व्यक्तियों की क्रय शक्ति को नष्ट कर देती है। हालाँकि यदि आयातित उत्पाद घरेलू विकल्पों की तुलना में सस्ते हैं, तो लोग आयातित वस्तु का विकल्प चुन सकते हैं।
- मुद्राओं के बीच विनिमय दर भी किसी व्यक्ति की क्रय शक्ति का निर्धारण करने में एक अहम भूमिका निभाती है। इसके अतिरिक्त मुद्रास्फीति विकासशील देशों में पूंजी के प्रवाह को प्रभावित करती है।
आगे की राह
- सरकार को इस स्थिति के उत्तर में निर्यात गति में विविधता लाने और बनाए रखने के तरीकों का पता लगाने के लिये विभिन्न मंत्रालयों के साथ चर्चा करनी चाहिये।
- कम आयात के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिये यह पहचान करना महत्त्वपूर्ण है कि कुछ गैर-कच्ची वस्तुओं और गैर-आभूषण खंडों ने मज़बूत घरेलू मांग का संकेत देते हुए सुदृढ़ वृद्धि दिखाई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता और भारतीय रुपए का मूल्य कम आयात स्तर बनाए रखने में सहायता कर सकता है।
- वैश्विक आर्थिक स्थितियों की निगरानी करना, उभरते बाज़ारों को लक्षित करने के लिये निर्यात रणनीतियों को अपनाना और आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये घरेलू मांग को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है? (a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-1 की सही व्याख्या है उत्तर: (a) व्याख्या:
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