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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

MSMEs और वैश्विक मूल्य शृंखला

  • 05 May 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 02/05/2022 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “Integrating MSMEs into Global Value Chains” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के MSMEs को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करने के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) की तेज़ी से बढ़ती वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ (Global Value Chains- GVCs) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर लगातार हावी होती जा रही हैं, जिसे भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अनदेखा करने का जोखिम नहीं उठा सकतीं।

GVCs में भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) की सीमित उपस्थिति अंतर्राष्ट्रीयकृत MSMEs की नगण्य हिस्सेदारी का परिणाम है, जो मुख्य रूप से MSMEs के कमज़ोर नेटवर्क से प्रेरित कमज़ोर नवाचार आधार के कारण है।

GVCs के साथ भारतीय MSMEs का एकीकरण MSMEs के लिये वर्तमान समय की आवश्यकता है। भारत को क्षेत्रीय नवाचार प्रणालियों के निर्माण एवं सुदृढ़ीकरण और SMEs संकुलों में एक बहुउद्देशीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना के माध्यम से विभिन्न देशों के साथ एक बाज़ार के रूप में संबद्ध MSMEs के लिये एक ‘हब’ या केंद्र का निर्माण करने की ज़रूरत है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में MSMEs की भूमिका 

  • MSMEs भारत के आर्थिक विकास में एक आधारभूत भूमिका का निर्वहन करते हैं, जहाँ भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 30% और इसके निर्यात में लगभग 50% का योगदान करते हैं।
    • इस क्षेत्र में 63 मिलियन से अधिक उद्यम शामिल हैं और ये 111 मिलियन से अधिक कामगारों को आजीविका प्रदान करते हैं।
  • उद्योग निकायों, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं द्वारा MSMEs की क्षमता को अत्यंत महत्त्व से चिह्नित किया जाता है।
    • हाल ही में संपन्न एक MSMEs संगोष्ठी में एक पूर्ण आपूर्ति शृंखला के निर्माण में (जो उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को उन्नत करता है) MSMEs की क्षमता पर प्रकाश डाला गया।

वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ क्या हैं?

  • वैश्विक मूल्य शृंखलाएँ अंतर्राष्ट्रीय उत्पादन साझाकरण को संदर्भित करती हैं—जो ऐसी परिघटना है जहाँ उत्पादन को विभिन्न देशों में संपन्न गतिविधियों और कार्यों में विभाजित किया जाता है।
  • हाल के दशकों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर बहुराष्ट्रीय निगमों की वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का वर्चस्व लगातार बढ़ा है। दो-तिहाई से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अब ऐसे GVCs के अंतर्गत संपन्न होता है।
  • लगातार बढ़ते GVCs से प्रेरित अंतर्राष्ट्रीयकरण वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यापार के प्रतिस्पर्द्धी माहौल को तेज़ी से बदल रहा है।
    • इसने राष्ट्रीय बाज़ारों को नए प्रतिस्पर्द्धियों के लिये खोल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वृहत एवं लघु दोनों फर्मों के लिये अपार अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।

GVCs में MSMEs के एकीकरण का महत्त्व 

  • रोज़गार सृजन: विश्व बैंक की ‘विश्व विकास रिपोर्ट 2020’ (WDR 20) से पता चलता है, विकासशील देशों में गहन सुधारों और औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में नीति निरंतरता की स्थिति में GVCs गरीबी को कम करने में मदद कर सकते हैं, जबकि विकास एवं रोज़गार में वृद्धि को भी बनाए रख सकते हैं।
    • भारत के आर्थिक सर्वेक्षण ने भी इस बात को रेखांकित किया है कि GVCs में भागीदारी से भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2025 तक चार मिलियन नौकरियों की वृद्धि हो सकती है और इस प्रकार 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में मूल्य-वर्द्धित के संदर्भ में यह कुल के एक-चौथाई का योगदान कर सकता है।
  • आय में वृद्धि: क्रॉस-कंट्री अनुमान बताते हैं कि GVC भागीदारी में 1% की वृद्धि प्रति व्यक्ति आय में 1% से अधिक की वृद्धि कर सकती है, विशेष रूप से जब विभिन्न देश सीमित और उन्नत विनिर्माण में संलग्न हों।
  • उत्पादकता में सुधार: GVC भागीदारी फर्म-स्तरीय उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार ला सकती है।
    • WDR 2020 में कहा गया है कि फर्म-स्तरीय पूंजी तीव्रता को नियंत्रित करने के बाद, विनिर्माण गतिविधियों से संलग्न GVC फर्म वन-वे ट्रेडर्स या नॉन-ट्रेडर्स की तुलना में अधिक श्रम उत्पादकता प्रदर्शित करते हैं।
    • नवोन्मेष या नवाचार प्रतिस्पर्द्धा का एक अन्य घटक है और MSMEs पायलट मोड में उन्नत प्रौद्योगिकियों का परीक्षण कर सकते हैं।
  • अधिक लचीलापन: GVCs में एकीकरण न केवल आर्थिक विकास का समर्थन कर सकता है, बल्कि महामारी के बाद के पुनरोद्धार हेतु एक महत्त्वपूर्ण रणनीति भी बन सकता है।
    • GVCs फर्मों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में अधिक लचीले ढंग से ;प्रतिभाग करने में सक्षम बनाता है, क्योंकि वे किसी संपूर्ण उत्पाद के बजाय समग्र आपूर्ति शृंखला के केवल एक छोटे घटक का भी योगदान कर सकते हैं।
  • आघात से रक्षा/शॉकप्रूफिंग: OECD के मेट्रो मॉडल से पता चलता है कि स्थानीय व्यवस्थाएँ आघात/झटके के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधि का स्तर काफी कम होता है और यहाँ अंतःसंबद्ध व्यवस्थाओं (interconnected regimes) की तुलना में राष्ट्रीय आय में गिरावट आती है।
    • जबकि अंतःसंबद्ध व्यवस्थाएँ उत्पादन नेटवर्क में लचीलापन, स्थिरता और लचीलेपन का निर्माण करती हैं, स्थानीयकृत व्यवस्थाएँ आघात के समायोजन के लिये कुछ ही माध्यम प्रदान करती हैं।

GVC एकीकरण की राह की बाधाएँ 

  • वित्त तक पहुँच: GVCs में MSMEs का एकीकरण वित्त तक पहुँच पर महत्त्वपूर्ण रूप से निर्भर करता है, लेकिन MSMEs को ऋण आपूर्ति की कमी भारत के MSMEs क्षेत्र के लिये एक बाधा रही है।
    • MSMEs क्षेत्र के महत्त्व और इसकी क्षमता के बावजूद यह प्रायः कार्यशील पूंजी की कमी से त्रस्त रहता है, जिससे इसके दिन-प्रतिदिन के कार्यकरण प्रभावित होते हैं।
    • वित्त तक बेहतर पहुँच के बिना MSMEs को आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने का लक्ष्य चुनौतीपूर्ण ही बना रहेगा।
  • अनौपचारिकरण: चूँकि भारत में 95% MSMEs अनौपचारिक क्षेत्र से संबद्ध हैं, औपचारिक वित्त तक पहुँच एक प्रमुख बाधा बनी हुई है।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि MSMEs को समग्र रूप से बैंक क्रेडिट का 6% से भी कम प्राप्त होता है।
  • विलंबित भुगतान: विलंबित भुगतान निगरानी प्रणाली ‘MSME समाधान’ में MSMEs द्वारा दायर किये गए आवेदनों की संख्या 1 लाख का आँकड़ा पार कर गई है, जो 26,000 करोड़ रुपए से अधिक से संबंधित हैं।
  • कम तकनीकी समझ: इसके अलावा, MSMEs प्रायः सीमित समझ और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण डिजिटल समाधान अपनाने में संकोच रखते हैं।
    • चौथी औद्योगिक क्रांति की नई प्रौद्योगिकियों (AI, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स और संबंधित प्रौद्योगिकियाँ) का उदय संगठित वृहत-स्तरित विनिर्माण की तुलना में MSMEs के लिये अधिक बड़ी चुनौती है।
  • अन्य चुनौतियाँ: कुशल कार्यबल, ज्ञान और पर्याप्त भौतिक अवसंरचनाओं की कमी कुछ अन्य बाधाएँ हैं जो MSMEs की दक्षता को बाधित करती हैं और इस प्रकार वैश्विक मूल्य शृंखला में उनके एकीकरण को जटिल बनाती हैं।

GVCs में MSMEs के सुगम एकीकरण के लिये कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?

  • MSMEs का डिजिटलीकरण: PayPal द्वारा हाल ही में किये गए MSMEs डिजिटल रेडीनेस सर्वे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 29% MSMEs ने ऑनलाइन ग्राहकों में वृद्धि देखी और 32% ने बेहतर भुगतान समाधानों का अनुभव किया।
    • डिजिटल भुगतान पारितंत्र MSMEs के लिये अपार संभावनाएँ रखता है, जहाँ वह उनके ऑनलाइन ग्राहक आधार का विस्तार करने और धन के तेज़ प्रवाह को सक्षम करने में मदद कर सकता है।
    • MSMEs द्वारा डिजिटलीकरण को अपनाने हेतु निश्चय ही अधिक समर्थन और नवीन वित्तीय समाधान प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • डिजिटल और फिनटेक साक्षरता: डिजिटल रूपांतरण को आसान बनाने हेतु बैंकिंग प्रणालियों के डिजिटलीकरण और उनकी परिचालन गतिशीलता के बारे में MSMEs के बीच प्रशिक्षण और जागरूकता का प्रसार करना आवश्यक है।
    • इसके साथ ही, वित्त में अधिक से अधिक डिजिटलीकरण की दिशा में एक मज़बूत प्रोत्साहन प्रदान किया जाना भी समय की आवश्यकता है।
    • ऐसा करने से MSMEs की वित्त के अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाएगी और इस प्रकार उच्च उधार दरों से मुक्ति के साथ उनकी परिचालन लागत में कमी आएगी।
  • बैंकों की भूमिका: GVCs में MSMEs की मदद करने के लिये बैंक अन्य भूमिकाएँ भी निभा सकते हैं, जैसे वे वैश्विक कंपनियों के साथ नेटवर्किंग सत्र की सुविधा प्रदान कर सकते हैं।
    • नियमित बाज़ार अपडेट प्रदान किये जाने चाहिये ताकि MSMEs ऐसे बाज़ारों पर सूचित निर्णय ले सकें। इससे उन्हें जोखिम कम करने में मदद मिल सकती है।
    • वैश्विक स्तर पर ग्राहकों को जोड़ने के मामले में भी वैश्विक बैंक एक भूमिका निभा सकते हैं।
  • नीतिगत सुधार: GVCs में भागीदारी के लिये श्रम बाज़ारों, व्यापार अवसंरचना में गहन सुधारों के साथ ही समग्र कारोबारी माहौल में सुधार की आवश्यकता है।
    • घरेलू MSMEs और बड़ी विदेशी एवं घरेलू फर्मों के बीच ऊर्ध्वाधर GVC लिंकेज को सुविधाजनक बनाने की दिशा में निर्देशित नीतियाँ GVC व्यापार में भारत की सापेक्षिक स्थिति को सुदृढ़ करने की दिशा में दीर्घकालिक योगदान कर सकती हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत के MSMEs को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVCs) में एकीकृत करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये और इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये किये जा सकने वाले उपायों के सुझाव दीजिये।

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