कृषि
मोटे अनाजों को बढ़ावा
- 03 Sep 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:मोटे अनाज और उसका उत्पादन मेन्स के लिये:मोटे अनाज का महत्त्व, मोटे अनाज के उपयोग और विशेषताएँ, सरकारी हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) द्वारा वर्ष 2022-2023 के लिये खरीफ उपज की खरीद पर चर्चा के लिये एक बैठक आयोजित की गई।
- भारत सरकार ने मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहन देने पर विचार किया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने गेहूँ और धान की खेती को प्रभावित किया है।
- खरीफ फसल बाज़ार से मोटे अनाज की खरीद का लक्ष्य दोगुना हुआ, राशन में मोटे अनाज की अधिक संभावना नजर आ रही है।
मोटे अनाज:
- परिचय:
- मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
- कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है।
- ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail) , प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं।
- ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।
- मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
- महत्त्व:
- मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
- ये फसलें खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में और एक आशाजनक निर्यात योग्य वस्तु के रूप में भी अच्छी संभावनाएँ प्रदान करती हैं।
- मानव उपभोग के लिये भोजन, पशु और मुर्गीयों के लिये चारा और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिये सूखा प्रवण क्षेत्रों में उनकी खेती, ईंधन और औद्योगिक उपयोग के रूप में इनका उपयोग सामान्य है।
- उनका पौष्टिक मूल्य कुपोषण से निपटने के लिये एक उत्कृष्ट उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- यह अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में रोज़गार-सृजन में सहायता करता है, जहाँ अन्य वैकल्पिक फसलें सीमित हैं और इन फसलों का उपयोग आकस्मिक फसल के रूप में किया जाता है।
- मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
- मोटे अनाज उत्पादक राज्य:
- कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि।
- मोटे अनाज के उपयोग:
- चारा:
- कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्वार और बाजरा की खेती मुख्य रूप से चारे के उद्देश्य से की जाती है।
- औद्योगिक उत्पाद:
- चारा: माल्टिंग, उच्च फ्रुक्टोज सिरप, स्टार्च, गुड़, बेकरी आदि में उपयोग किया जाता है।
- बाजरा: शराब बनाने/माल्टिंग, स्टार्च, बेकरी, पोल्ट्री और पशु आहार में प्रयुक्त।
- मक्का: शराब बनाने, स्टार्च, बेकरी, मुर्गी पालन और पशु चारा, जैव-ईंधन में उपयोग किया जाता है।
- चारा/फीड का स्रोत (Source of Feed):
- पशुओं के लिये मोटे अनाज और पोल्ट्री फीड की मांग बढ़ रही है।
- भारत में चारा की आवश्यकताएँ सामान्य रूप से बेकार अनाज से पूरी की जाती हैं और विशेष रूप से मोटे अनाज से बनाई जाती हैं।
- पोल्ट्री फीड में मक्का आवश्यक कार्बोहाइड्रेट स्रोत है।
- चारा:
सरकार का मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रण:
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन ने देश में गेहूँ और धान के उत्पादन को प्रभावित किया है, जो मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- गेहूँ और धान की खेती अनिश्चित मौसम स्वरुप के कारण देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।
- जलवायु परिवर्तन ने देश में गेहूँ और धान के उत्पादन को प्रभावित किया है, जो मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- मानसून:
- अनियमित मानसून ने वर्ष 2022 के खरीफ मौसम की उपज के लिये सरकार की चिंता बढ़ा दी है।
- वर्ष 2022 में ज़्यादातर इलाकों में धान और दलहन की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
- अनियमित मानसून ने वर्ष 2022 के खरीफ मौसम की उपज के लिये सरकार की चिंता बढ़ा दी है।
- मोटे अनाज का उत्पादन वृद्धि:
- मोटे अनाज की बुवाई वर्ष 2022 में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में की गई है, जबकि वर्ष 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाज की बुवाई की गई थी।
- वर्तमान में देश में लगभग 50 मिलियन टन मोटे अनाज का उत्पादन होता है।
- मक्का और बाजरा सबसे ज़्यादा उगाया जाता है।
- संपोषणीय फसल:
- मोटे अनाज में सूखा सहिष्णुता, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला आदि जैसी विशेषताएँ होती हैं।
- खेती की कम लागत:
- ग्रीष्मकालीन धान की खेती की तुलना में खेती की लागत कम है और सिंचाई के लिये कम मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
मोटे अनाज की सहायता हेतु सरकार की पहल:
- ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millet Promotion-INSIMP):
- सरकार ने बाजरा को पौष्टिक अनाज के रूप में बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2011-12 में 300 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की।
- इस योजना का उद्देश्य देश में बाजरा के बढ़े हुए उत्पादन को उत्प्रेरित करने के लिये दृश्य प्रभाव के साथ एकीकृत तरीके से उचित उत्पादन और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि:
- सरकार ने बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है, जो किसानों के लिये बड़े मूल्य प्रोत्साहन के रूप में देखा जा सकता है।
- इसके अलावा उपज के लिये स्थिर बाज़ार प्रदान करने हेतु सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बाजरा को शामिल किया है।
- सरकार ने बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है, जो किसानों के लिये बड़े मूल्य प्रोत्साहन के रूप में देखा जा सकता है।
- निवेश सहायता:
- सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।
- बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को स्वीकृति दी है।
- भारत ने वर्ष 2018 को "बाजरा के राष्ट्रीय वर्ष (National Year Of Millets)" के रूप में मनाया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथन में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
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