जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट: IPCC
- 10 Aug 2021
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन 2021 रिपोर्ट के मुख्य बिंदु मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) का पहला भाग क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस शीर्षक से जारी किया।
- इसे वर्किंग ग्रुप- I के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। शेष दो भाग वर्ष 2022 में जारी किये जाएंगे।
- यह नोट किया गया कि वर्ष 2050 तक वैश्विक शुद्ध-शून्य तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने के लिये न्यूनतम आवश्यकता है।
- यह नवंबर 2021 में कॉप (COP) 26 सम्मेलन के लिये मंच तैयार करता है।
प्रमुख बिंदु:
औसत सतही तापमान:
- पृथ्वी की सतह का औसत तापमान अगले 20 वर्षों (2040 तक) में पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1.5 डिग्री सेल्सियस) और उत्सर्जन में तीव्र कमी के बिना सदी के मध्य तक 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा।
- वर्ष 2018 में IPCC की 1.5 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग की विशेष रिपोर्ट ने अनुमान लगाया था कि वैश्विक आबादी का 2-5वाँ हिस्सा 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान वाले क्षेत्रों में रहता है।
- पिछला दशक पिछले 1,25,000 वर्षों में किसी भी अवधि की तुलना में अधिक गर्म था। वैश्विक सतह का तापमान 2011-2020 के दशक में 1850-1900 की तुलना में 1.09 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- यह पहली बार है जब IPCC ने कहा है कि सबसे अच्छी स्थिति में भी 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान अपरिहार्य था।
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) सांद्रता:
- यह कम-से-कम दो मिलियन वर्षों में सबसे अधिक है। 1800 के दशक के अंत से मनुष्य ने 2,400 बिलियन टन CO2 का उत्सर्जन किया है।
- इसमें से अधिकांश को मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- मानवीय गतिविधियों के प्रभाव ने 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व दर से जलवायु को गर्म कर दिया है।
- विश्व अपने उपलब्ध कार्बन बजट का 86 प्रतिशत पहले ही समाप्त कर चुका है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव:
- समुद्र स्तर में वृद्धि:
- वर्ष 1901-1971 की तुलना में समुद्र स्तर में तीन गुना वृद्धि हो गई है। आर्कटिक सागर की बर्फ 1,000 वर्षों में सबसे कम है।
- तटीय क्षेत्रों में 21वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप तटीय कटाव और निचले इलाकों में अधिक लगातार और गंभीर बाढ़ आएगी।
- समुद्र के स्तर में लगभग 50% वृद्धि तापीय विस्तार के कारण होती है (जब पानी गर्म होता है, तो यह फैलता है, इस प्रकार गर्म महासागर अधिक जगह घेर लेते हैं)।
- वर्षा और सूखा:
- हर अतिरिक्त 0.5 °C तापीय वृद्धि से गर्म चरम सीमा, अत्यधिक वर्षा और सूखे में वृद्धि होगी। अतिरिक्त तापीय वृद्धि पौधों, मिट्टी और समुद्र में मौजूद पृथ्वी के कार्बन सिंक को भी कमज़ोर कर देगी।
- अत्यधिक गर्मी:
- चरम गर्मी में वृद्धि हुई है, जबकि सर्दी में कमी आई है और ये रुझान आने वाले दशकों में एशिया में जारी रहेंगे।
- घटती हिमरेखा और पिघलते ग्लेशियर:
- ग्लोबल वार्मिंग का हिमालय सहित दुनिया भर की पर्वत शृंखलाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- पहाड़ों के हिमांक के स्तर में बदलाव की संभावना है और आने वाले दशकों में हिमरेखाएँ पीछे हट जाएंगी।
- हिमरेखाओं का पीछे हटना और ग्लेशियरों का पिघलना चिंता का विषय है क्योंकि इससे जल चक्र में बदलाव, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, बाढ़ में वृद्धि तथा साथ ही भविष्य में हिमालय के राज्यों में पानी की कमी में वृद्धि हो सकती है।
- पहाड़ों में तापमान वृद्धि और हिमनदों के पिघलने का स्तर 2,000 वर्षों में अभूतपूर्व है। हिमनदों के पिघलने का कारण अब मानवजनित कारकों एवं मानव प्रभाव को बताया जाता है।
भारतीय उपमहाद्वीप के विशिष्ट परिणाम:
- ग्रीष्म लहर: दक्षिण एशिया में 21वीं सदी के दौरान ग्रीष्म लहर और आर्द्र ग्रीष्म तनाव अधिक तीव्र और निरंतर घटित होगा।
- मानसून: मानसूनी वर्षा में परिवर्तन की भी उम्मीद है, वार्षिक और ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा दोनों में वृद्धि का अनुमान है।
- एरोसोल की वृद्धि के कारण पिछले कुछ दशकों में दक्षिण-पश्चिम मानसून में गिरावट आई है, लेकिन एक बार एरोसोल के कम हो जाने पर हम पुन: भारी मानसूनी वर्षा प्राप्त करेंगे।
- समुद्री तापमान: हिंद महासागर, जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल हैं, वैश्विक औसत से अधिक तेज़ी से गर्म हुआ है।
- हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान ग्लोबल वार्मिंग (1.5°C से 2°C ) होने पर 1 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है।
- हिंद महासागर में समुद्र का तापमान अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक तीव्र गति से गर्म हो रहा है और इसलिये अन्य क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।
नेट ज़ीरो उत्सर्जन :
- परिचय :
- 'नेट ज़ीरो उत्सर्जन' से तात्पर्य है सभी मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जैसे जीवाश्म-ईंधन वाले वाहनों और कारखानों से) को यथासंभव शून्य के करीब लाया जाना चाहिये। दूसरा, किसी भी शेष GHGs को कार्बन को अवशोषित (प्राकृतिक और कृत्रिम सिंक के माध्यम से) कर (जैसे- जंगलों की पुनर्स्थापना द्वारा) संतुलित किया जाना चाहिये।
- इस तरह मानवजनित कार्बन न्यूट्रल होगा और वैश्विक तापमान स्थिर होगा।
- वर्तमान स्थिति :
- 100 से अधिक देशों ने पहले ही 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा कर दी है। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख उत्सर्जक शामिल हैं।
- भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, यह तर्क देते हुए स्थिर है कि यह पहले से ही अन्य देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है अर्थात् वैश्विक रूप से निर्धारित मानक से कहीं अधिक कमी कर रहा है।
- किसी भी प्रकार का बोझ उसके लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के सतत् प्रयासों को खतरे में डालेगा।
- आईपीसीसी ने सूचित किया है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रखने के लिये वर्ष 2050 तक न्यूनतम वैश्विक नेट-शून्य आवश्यक था। भारत के बिना यह संभव नहीं होगा।
- यहाँ तक कि दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन ने भी वर्ष 2060 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य घोषित किया हुआ है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
- यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान का आकलन करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था है।
- IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी। यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
- IPCC आकलन जलवायु संबंधी नीतियों को विकसित करने हेतु सभी स्तरों पर सरकारों के लिये एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं और वे संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) में इस पर बातचीत करते हैं।
IPCC आकलन रिपोर्ट
- हर कुछ वर्षों (लगभग 7 वर्ष) की IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करता है जो पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक वैज्ञानिक मूल्यांकन है।
- अब तक पाँच मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की गई हैं, पहली वर्ष 1990 में जारी की गई है। पाँचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट 2014 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिये जारी की गई थी।
- वैज्ञानिकों के तीन कार्य समूहों द्वारा मूल्यांकन रिपोर्ट।
- कार्यकारी समूह- I : जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार से संबंधित है।
- कार्यकारी समूह- II : संभावित प्रभावों, कमज़ोरियों और अनुकूलन मुद्दों को देखता है।
- कार्यकारी समूह-III : जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये की जा सकने वाली कार्रवाइयों से संबंधित है।
आगे की राह
- कई लोगों ने जलवायु परिवर्तन को इसके अपरिवर्तनीय प्रभावों के कारण कोविड-19 की तुलना में मानवता के लिये कहीं अधिक बड़ा खतरा बताया है। इसके कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने जैसे कई प्रभाव कई वर्षों तक जारी रहेंगे।
- कार्बन उत्सर्जन में भारी और तत्काल कटौती की आवश्यकता है यह देखते हुए कि पहले से किये गए जलवायु में परिवर्तन प्रतिवर्ती नहीं हैं।
- सभी देशों विशेष रूप से G20 व अन्य प्रमुख उत्सर्जकों को स्कॉटलैंड के ग्लासगो में COP26 से पहले शुद्ध-शून्य उत्सर्जन गठबंधन में शामिल होने और विश्वसनीय, ठोस तथा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान एवं नीतियों के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।