भूगोल
ग्रीष्म लहर (Heat Waves)
- 22 May 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में तापमान बढ़कर 43 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच गया। चित्तूर ज़िले में आम तौर पर मई माह के पहले सप्ताह में सर्वाधिक गर्मी होती है लेकिन इस वर्ष अप्रैल माह से ही यहाँ तापमान बढ़ने लगा और प्रायः जो तापमान अप्रैल माह में 40 डिग्री सेल्सियस से कम होता था वह 42 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया। इस तरह से बढ़ते तापमान के कारण ग्रीष्म लहर (Heat Waves) एक बार फिर से चर्चा का विषय बनी हुई है।
क्या होती है ग्रीष्म लहर?
- ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह स्थिति है, जिसमें तापमान सामान्य से अधिक रहता है और यह मुख्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी भागों को प्रभावित करता है।
- ग्रीष्म लहर मार्च-जून के बीच चलती है परंतु कभी-कभी जुलाई तक भी चला करती है। ऐसे चरम तापमान के परिणामतः बनने वाली वातावरणीय स्थितियाँ तथा अत्यधिक आर्द्रता के कारण लोगों पर पड़ने वाले शारीरिक दबाव बेहद दुष्प्रभावी होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।
ग्रीष्म लहर से प्रभावित क्षेत्र के संबंध में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मानदंड
- ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित किये जाने के लिये किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान मैदानी इलाके के लिये कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी इलाके के लिये कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिये।
- जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे कम हो, ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 5 डिग्री सेल्सियस से 6 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 7 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
- जब किसी क्षेत्र का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा हो, ऊष्मा तरंग का सामान्य से विचलन 4 डिग्री सेल्सियस से 5 डिग्री सेल्सियस हो और प्रचंड ग्रीष्म लहर का सामान्य से विचलन 6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो।
- वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक बने रहने पर उस क्षेत्र को ग्रीष्म लहर प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया जाना चाहिये, चाहे अधिकतम तापमान कितना भी रहे।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।
- IMD विश्व मौसम संगठन के छह क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्रों में से एक है।
- वर्ष 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति और 1866 तथा 1871 के अकाल के बाद, मौसम विश्लेषण और डाटा संग्रह कार्य के एक ढाँचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया।
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- IMD में उप महानिदेशकों द्वारा प्रबंधित कुल 6 क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र आते हैं।
- ये चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर, नई दिल्ली और हैदराबाद में स्थित हैं।
- हेनरी फ्राँसिस ब्लैनफर्ड को विभाग के पहले मौसम विज्ञान संवाददाता के रूप में नियुक्त किया गया था।
- IMD का नेतृत्व मौसम विज्ञान के महानिदेशक द्वारा किया जाता है।
- IMD का मुख्यालय वर्ष 1905 में शिमला, बाद में 1928 में पुणे और अंततः नई दिल्ली में स्थानांतरित किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग 27 अप्रैल 1949 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य बना।
भारत में ग्रीष्म लहर और शीत लहर में वृद्धि
- सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Program Implementation) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान देश में ग्रीष्म लहर और शीत लहर में कई गुना वृद्धि हुई है।
- वर्ष 1970 से 2018 तक राजस्थान ने ग्रीष्म और शीत लहरों का सबसे अधिक प्रकोप झेला है।
- वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2017 में ग्रीष्म लहरों की संख्या में 14 गुना वृद्धि हुई जबकि इसी अवधि के दौरान शीत लहरों की संख्या में 34 गुना वृद्धि हुई। हालाँकि वर्ष 2018 के दौरान इनमें मामूली कमी हुई।
- राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ग्रीष्म लहरों से सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं।
- वर्ष 1970 से 2018 तक शीत लहरों का सर्वाधिक प्रभाव राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहा जबकि दक्षिण भारत शीत लहरों से ज़्यादा प्रभावित नहीं हुआ।
- नीचे दिये गए मानचित्र में इन वर्षों के दौरान राज्यों में दोनों प्रकार की लहरों की व्यापकता को दर्शाया गया है।
ग्रीष्म लहर और जलवायु परिवर्तन
- ऐसा कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन ने पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए प्राकृतिक सीमाओं को परिवर्तित कर दिया है, जिससे ग्रीष्म लहर की तीव्रता और बारंबारता अधिक हो गई है।
- वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापमान में होने वाली वृद्धि से अतिशय मौसमी घटनाओं, जैसे-ऊष्मा तरंगों को और बढ़ावा मिलेगा।
- भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि अल-नीनो (El-Nino) की घटना और मानवीय क्रियाकलापों के कारण ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा ही देशभर में ग्रीष्म लहर की बढ़ी हुई बारंबारता और खिचीं हुई अवधि के लिये ज़िम्मेदार है।
ग्रीष्म लहर के प्रभाव
- ग्रीष्म लहर से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों में सामान्यतः पानी की कमी, गर्मी से होने वाली ऐंठन तथा थकावट और लू लगना आदि शामिल हैं।
- गर्मी से होने वाली ऐंठन (Heat cramps)- इसके लक्षण हैं- 39 डिग्री सेल्सियस (यानी 102 डिग्री फारेनहाइट) से कम ताप के हल्के बुखार के साथ सूज़न और बेहोशी।
- गर्मी से होने वाली थकान (Heat exhaustion)- थकान, कमज़ोरी, चक्कर, सिरदर्द, मितली (Nausea), उल्टियाँ, मांसपेशियों में खिचाव और पसीना आना इसके कुछ लक्षण हैं।
- लू लगना या हीट स्ट्रोक (Heat stroke)- यह एक संभावित प्राणघातक स्थिति है। जब शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस यानी 104 डिग्री फॉरेनहाइट या उससे अधिक हो जाता है तो उसके साथ अचेतना, दौरे या कोमा भी हो सकता है।
- विनाशकारी रूप से फसल का नष्ट होना, अतिताप (Hyperthermia) से मृत्यु और बिजली की अत्यधिक कटौती आदि ग्रीष्म लहर के कुछ अन्य प्रभाव हैं।
ग्रीष्म लहर के कारण होने वाली क्षति कम करने के लिये ओडिशा मॉडल
(Heat Wave Action Plan Of Odisha)
- वर्ष 1998 में ग्रीष्म लहर के कारण बड़ी संख्या में हुई मौतों के बाद ओडिशा सरकार इसे चक्रवात या बड़े स्तर की आपदा के रूप में देखती है।
- अप्रैल-जून के दौरान राज्य-स्तर और ज़िला-स्तर के आपदा केंद्रों द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) द्वारा व्यक्त तापमान पूर्वानुमान की लगातार निगरानी की जाती है। इसके बाद स्थानीय स्तर पर ग्रीष्म लहर से निपटने की रणनीति बनाई जाती है।
- सरकार द्वारा ग्रीष्म लहर से बचने के लिये किये गए उपायों में - विद्यालयों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों का कार्य समय सुबह-सुबह का करना, सार्वजनिक वेतन कार्यक्रम, जैसे-मनरेगा पर रोक, दिन के विभिन्न घंटों में सार्वजनिक यातायात सुविधा को बंद करना इत्यादि शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ग्रीष्म लहर का सामना करने के लिये लोगों में जागरूकता लाने हेतु विज्ञापन लगाती है, ग्रीष्म लहरों से प्रभावित या लू के मरीजों के इलाज के लिये अस्पतालों में अतिरिक्त साधन उपलब्ध करवाए जाते हैं और नागरिक समाज संगठन जागरूकता फैलाने का कार्य करते हैं।
आगे की राह
- जलवायु परिवर्तन के कारण ग्रीष्म लहर वैश्विक रूप से तीव्र हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप दैनिक उच्चतम तापमान अधिक एवं लंबी अवधि का होगा।
- ग्रीष्म लहर के प्रतिकूल प्रभावों और उनके कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने के लिये, दीर्घावधि उपायों के साथ-साथ अल्पावधि क्रियान्वयन योजनाओं को भी लागू करना होगा।
- जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय सरकारों की तत्परता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता एवं सहयोग ही मुख्य निर्धारक सिद्ध होंगे।