जैव विविधता और पर्यावरण
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP) का 24वाँ सत्र संपन्न
- 17 Dec 2018
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संदर्भ
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के अंतर्गत शीर्ष निकाय कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 24वें सत्र का आयोजन 2 से 15 दिसंबर, 2018 तक पोलैंड के काटोविस (Katowice) में किया गया।
इस सम्मेलन में तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें शामिल थे-
- पेरिस समझौते के कार्यान्वयन के लिये दिशा निर्देशों/तौर-तरीकों/नियमों को अंतिम रूप देना।
- सुविधा प्रदान करने वाले तालानोआ संवाद-2018 (2018 Facilitative Talanoa Dialogue) का समापन।
- 2020 से पूर्व उठाए जाने वाले कदमों का कार्यान्वयन एवं महत्त्वाकांक्षाओं का सर्वेक्षण।
कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP) क्या है?
- यह UNFCCC सम्मेलन का सर्वोच्च निकाय है। इसके तहत विभिन्न दलों के प्रतिनिधियों को सम्मेलन में शामिल किया गया है। यह हर साल अपने सत्र आयोजित करता है।
- COP, सम्मेलन के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक निर्णय लेता है और नियमित रूप से इन प्रावधानों के कार्यान्वयन की समीक्षा करता है।
COP 24
- लगभग 2 सप्ताह तक चली वार्ता के बाद ऐतिहासिक 2015 पेरिस समझौते (2015 Paris Agreement) जिसका उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है, के कार्यान्वयन के लिये दिशा-निर्देशों के ‘मज़बूत’ सेट को अपनाया गया।
- पेरिस समझौते को क्रियान्वित करने के लिये एक नियम पुस्तिका का विकास एक महत्त्वपूर्ण कदम है, विशेष रूप से उस स्थिति में जब जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट (जलवायु परिवर्तन के लिये संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिक निकाय) में पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने की आवश्यकता और व्यवहार्यता पर बल दिया गया है ताकि यह पूर्व-औद्योगिक स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो पाए।
- एक दर्जन से अधिक बैठकों ने 2015 में हस्ताक्षर किये गए पेरिस समझौते को लागू करने के उद्देश्य से सिद्धांतों के संबंध में विभिन्न विषयों पर वार्ता को सफल बनाने में सक्षम बनाया। इस दौरान जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला पर चर्चा की गई, जिसने जटिल और कठिन दस्तावेज़ को जन्म दिया। इस दस्तावेज़ के प्रमुख पहलू वित्त, पारदर्शिता और अनुकूलन हैं।
COP 24 और भारत
- भारत ने पेरिस समझौते को कार्यान्वित करने के अपने वादे को दोहराते हुए COP-24 के दौरान प्रतिबद्धता एवं नेतृत्व और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने के लिये सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना प्रदर्शित की।
- भारत विकसित एवं विकासशील देशों के विभिन्न आरंभिक बिंदुओं की स्वीकृति; विकासशील देशों के लिये लचीलेपन एवं समानता सहित सिद्धांतों पर विचार और समान लेकिन विभेदकारी ज़िम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities, CBDR-RC) सहित देश के प्रमुख हितों की रक्षा करते हुए सभी वार्ताओं में सकारात्मक एवं रचनात्मक तरीके से संलग्न रहा।
- राष्ट्रीय तौर पर निर्धारित योगदानों पर जारी दिशा-निर्देश NDC की राष्ट्रीय रूप से निर्धारित प्रकृति को संरक्षित करते है तथा पार्टियों के लिये अनुकूलन सहित विभिन्न प्रकार के योगदानों को प्रस्तुत करते हैं।
- ये समग्र दिशा-निर्देश पेरिस समझौते के सिद्धांतों को प्रदर्शित करते हैं तथा विकसित देशों द्वारा पेरिस समझौते के उद्देश्यों को अर्जित करने वाले नेतृत्व को स्वीकृति देते हैं।
- अनुकूलन पर दिशा-निर्देश विकासशील देशों के संयोजन की आवश्यकता को स्वीकृति देता है और यह CBDR-RC के अति सफल सिद्धांत पर आधारित है।
- भारत एक मज़बूत पारदर्शी व्यवस्था के पक्ष में है और अंतिम रूप से संवर्द्धित पारदर्शिता संरचना विकासशील देशों के लिये लचीलापन प्रदान करते हुए मौजूदा दिशा-निर्देशों पर आधारित है।
- वित्तीय प्रावधानों पर दिशा-निर्देश विकासशील देशों को कार्यान्वयन का माध्यम प्रदान करने में विकसित देशों के उत्तरादायित्व को परिचालित करता है तथा जलवायु वित्त के नए एवं अतिरिक्त तथा जलवायु विशिष्ट होने की आवश्यकता की स्वीकृति देता है।
- पार्टियों ने 100 बिलियन डॉलर के निम्न मूल्य (Floor) से 2020 के बाद नए सामूहिक वित्तीय लक्ष्यों की स्थापना हेतु कार्य शुरू करने पर भी सहमति जताई है।
- प्रौद्योगिकी के लिये सफल संरचना के परिचालन की दिशा में अधिक समर्थन की आवश्यकता की बात स्वीकार की गई है तथा यह प्रौद्योगिकी विकास एवं अंतरण के सभी चरणों को व्यापक रूप से कवर करती है।
- भारत COP24 के परिणाम को सकारात्मक मानता है जो सभी पार्टियों की चिंताओं पर ध्यान देता है तथा पेरिस समझौते के सफल कार्यान्वयन की दिशा में कदम बढ़ाता है।
पेरिस जलवायु समझौता
- इस ऐतिहासिक समझौते को 2015 में ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (UNFCCC) की 21वीं बैठक में अपनाया गया, जिसे COP21 के नाम से जाना जाता है। इस समझौते को 2020 से लागू किया जाना है।
- इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी देशों को वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है (दूसरे शब्दों में कहें तो 2 डिग्री सेल्सियस से कम ही रखना है) और 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये सक्रिय प्रयास करना है।
- पहली बार, विकसित और विकासशील देश, दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) को प्रस्तुत किया, जो प्रत्येक देश का अपने स्तर पर स्वेच्छा से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक विस्तृत कार्रवाइयों का समूह है।
- पेरिस समझौते का मुख्य सार इसके 27 में से छः अनुच्छेदों में निहित है। ये इस प्रकार हैं-
- 'बाज़ार तंत्र' (market mechanism) (A-6) : यह एक देश को किसी दूसरे देश में हरित परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और क्रेडिट खरीदने की अनुमति देता है।
- 'वित्त' (Finance) (A-9)
- 'प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण' (technology development and transfer) (A-10);
- 'क्षमता निर्माण' capacity building (A-11);
- 'पारदर्शिता ढाँचा' (transparency framework) (A-13), यह प्रत्येक देश के कार्यों की रिपोर्टिंग से संबंधित है;
- 'ग्लोबल स्टॉक-टेक' (global stock-take) (A-14), यह जलवायु परिवर्तन से लड़ने में प्रत्येक देश की प्रतिबद्धता और उसकी कार्रवाई की आवधिक समीक्षा करता है तथा उसमें सुधार की मांग करता है।
UNFCCC
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है।
- यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
- वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
- UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (COP) के नाम से जाना जाता है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
- ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हुई है। पृथ्वी पर तापमान बढ़ने के कारण ध्रुवों की बर्फ तेज़ी से पिघलने लगी है जिसके कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।
- ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पृथ्वी की ओज़ोन परत पर भी पड़ा है और इसके क्षरण से पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव में वृद्धि हुई है।
- न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षी और वनस्पतियों पर भी इसके दुष्प्रभाव में वृद्धि हो रही है। इसके कारण कई दुर्लभ प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी हैं।
- पशु-पक्षियों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है और बाढ़, सूखा, समुद्री तूफान, चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं में भी वृद्धि हुई है।
आगे की राह
- सितंबर 2019 में भी संयुक्त राष्ट्र दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई को मज़बूती प्रदान करने के लिये संगठित रूप से राजनीतिक और आर्थिक प्रयास करने के लिये जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन करेगा।
- पेरिस समझौते के तहत देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं को हासिल करने के बावजूद इस सदी के अंत तक पूरी दुनिया का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने के का अनुमान है।
- शिखर सम्मेलन छह क्षेत्रों अर्थात् ऊर्जा संक्रमण (energy transition), जलवायु वित्त (climate finance) और कार्बन मूल्य निर्धारण (carbon pricing), उद्योग संक्रमण (industry transition), प्रकृति-आधारित समाधान (nature-based solutions), शहर और स्थानीय स्तर पर कार्रवाई (cities and local action) तथा लचीलेपन (resilience) में जारी कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करेगा।