भारतीय राजव्यवस्था
ध्वस्तीकरण अभियान और कानून का शासन
- 17 Aug 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:ध्वस्तीकरण अभियान, मौलिक अधिकार, कानून का शासन, अनुच्छेद 226, मेनका गांधी मामला (1978), मैग्ना कार्टा का अनुच्छेद 39, अनुच्छेद 21 मेन्स के लिये:ध्वस्तीकरण अभियान और कानून का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान के खिलाफ कानून, निर्णय और मामले |
चर्चा में क्यों?
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा में ध्वस्तीकरण अभियान (Demolition Drive) में स्वत: संज्ञान लेते हुए पूछा कि क्या यह जातीय संहार (Ethnic Cleansing) का अभ्यास है और क्या यह मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के संभावित उल्लंघन और कानून के शासन के क्षरण पर प्रकाश डालता है।
- हाल ही में हरियाणा में आवासों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों के ध्वस्तीकरण ने गंभीर संवैधानिक और कानूनी सवाल खड़े कर दिये हैं।
जातीय संहार:
- "जातीय संहार" शब्द की उत्पत्ति 1992 में प्रो. चेरिफ बासिओनी की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के आयोग द्वारा की गई थी।
- यह एक जातीय या धार्मिक समूह द्वारा हिंसक और आतंक-प्रेरक तरीकों का उपयोग करके विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों से दूसरे समूह को ज़बरन हटाने हेतु जान-बूझकर किये गए कृत्यों को संदर्भित करता है।
- यद्यपि इसे भारतीय कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, फिर भी जातीय संहार के कृत्य भारतीय संविधान के भाग III के तहत संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करते हैं।
न्यायालय के हस्तक्षेप का कारण:
- उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर संज्ञान लिया कि विध्वंस अभियान "विध्वंस आदेशों और नोटिस" के बिना चलाया गया था, जिससे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 आदेश देता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- मेनका गांधी मामला, 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय देकर कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के दायरे का विस्तार किया था कि ऐसी प्रक्रिया "निष्पक्ष, उचित और तर्कसंगत होनी चाहिये, काल्पनिक, दमनकारी अथवा मनमानी नहीं", इस निर्णय ने "प्रक्रियात्मक उचित प्रक्रिया" का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
- अनुच्छेद 21 के दायरे के पर्याप्त विस्तार के बावजूद यह एक सविधान के उपहास के समान है कि निर्वाचित सरकारों द्वारा ऐसे बुनियादी सिद्धांतों के प्रति बहुत कम सम्मान प्रदर्शित किया जाता है।
कानून के शासन और कानून द्वारा नियम के विरोधाभास का संविधान पर प्रभाव:
- कानून के शासन को संविधान की एक बुनियादी विशेषता घोषित किया गया है, जबकि कानून द्वारा शासन कानून के शासन की सभी प्रस्तुतियों का विरोधाभास है।
- कानून के शासन का अर्थ है कानून से चलने वाली सरकार, न कि व्यक्तियों द्वारा चलाई जा रही व्यवस्था।
- कानून के शासन की अवधारणा का विवरण मैग्ना कार्टा, वर्ष 1215 के अनुच्छेद 39 में मिलता है, जो यह घोषणा करता है कि किसी देश के कानून के वैध निर्णय के आधार के अतिरिक्त "किसी भी स्वतंत्र व्यक्ति को न कैद किया जाएगा, न निर्वासित किया जाएगा और न ही किसी तरह की कोई क्षति पहुँचाई जाएगी।"
- तब से इस सभ्यतागत यात्रा ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में अपना प्रतिबिंब देखा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी रूपरेखा का विस्तार किया गया है।
- जब कानून द्वारा शासन लागू होता है तो यह प्रगतिशील यात्रा बर्बरतापूर्वक उलट जाती है।
- कानून द्वारा शासन तब होता है जब राजनीतिक एजेंडे को लागू करने के दौरान कानून का उपयोग दमन, उत्पीड़न और सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में किया जाता है।
- चयनात्मक सामाजिक नियंत्रण को आगे बढ़ाने के लिये प्रभावितों को नोटिस जारी किये बिना तथा उनकी सुनवाई किये बिना आवासों और इमारतों को ध्वस्त करने का प्रशासनिक कार्य आवश्यक रूप से न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करता है।
अवैध निर्माण की विध्वंसक प्रक्रिया:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम (Delhi Municipal Corporation Act), 1957 जैसे नगरपालिका अधिनियम ऐसे प्रावधान प्रदान करते हैं जो सार्वजनिक सड़कों और फुटपाथों पर अतिक्रमण को रोकते हैं।
- कोई भी कार्रवाई करने से पहले नगर निगम अधिकारियों को आमतौर पर अवैध अतिक्रमण में शामिल व्यक्तियों या प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी करना आवश्यक होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय सहित न्यायालयों ने उचित प्रक्रिया के महत्त्व पर ज़ोर दिया है तथा प्राय: निर्णय सुनाया है कि किसी भी विध्वंस को अंज़ाम देने से पहले उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर आवश्यक है।
- वर्ष 1985 के ओल्गा टेलिस मामले में आजीविका के अधिकार और झुग्गीवासियों के अधिकारों पर ज़ोर देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है।
- यदि व्यक्ति जवाब देने में विफल रहते हैं या संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देते हैं, तो नगरपालिका अधिकारी विध्वंसक प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं।
- अधिकारियों से आमतौर पर उल्लंघन की प्रकृति और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के लिये की गई प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए आनुपातिक रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
विध्वंसक अभियान:
- पर्याप्त आवास का अधिकार:
- आवास का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता प्राप्त एक मूल अधिकार है।
- ICESCR:
- आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant on Economic, Social and Cultural Right- ICESCR) का अनुच्छेद 11.1 प्रत्येक व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के लिये पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार को मान्यता देता है, जिसमें पर्याप्त भोजन, कपड़े तथा आवास एवं रहने की स्थिति में निरंतर सुधार शामिल है। ”
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचा:
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है।
- उदाहरण के लिये मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) के अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि "हर किसी को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास तथा चिकित्सा देखभाल शामिल हैं।"
- UDHR के पीछे कोई बाध्यकारी शक्ति नहीं है लेकिन इसे सभी देशों द्वारा नैतिक आचार संहिता (Moral Code of Conduct) के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है।
- ICCPR:
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) के अनुच्छेद 17 में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत एवं संयुक्त रूप से संपत्ति रखने का अधिकार है, तथा साथ ही किसी की संपत्ति को बिना कारण बताए उससे नहीं लिया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय:
- ओल्गा टेलिस और अन्य बनाम बॉम्बे नगर निगम एवं अन्य, 1985:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को अवसर दिये बिना अनुचित बल का प्रयोग कर उन्हें हटाना असंवैधानिक है।
- यह उनकी आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को अवसर दिये बिना अनुचित बल का प्रयोग कर उन्हें हटाना असंवैधानिक है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978:
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, उचित होनी चाहिये।
- यदि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया काल्पनिक, दमनकारी तथा मनमानी प्रकृति की है तो इसे बिल्कुल भी प्रक्रिया नहीं माना जाना चाहिये एवं इस प्रकार अनुच्छेद 21 की सभी आवश्यकताएँ पूरी नहीं होंगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, उचित होनी चाहिये।
- नगर निगम लुधियाना बनाम इंद्रजीत सिंह, 2008:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि नगरपालिका कानून के अंर्तगत नोटिस देने की आवश्यकता प्रदान की गई है, तो इस आवश्यकता का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
- कोई भी प्राधिकरण कब्ज़ेदार को नोटिस और सुनवाई का अवसर दिये बिना, यहाँ तक कि अवैध निर्माणों को भी सीधे ध्वस्त करने की कार्रवाई नहीं कर सकता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1980, विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, 1997 और हाल ही में प्रसिद्ध पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत दिया है कि संविधान के अंर्तगत मौलिक अधिकारों की गारंटी होनी चाहिये। इसे इस तरीके से पढ़ें एवं व्याख्या करें जिससे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के साथ उनकी अनुरूपता बढ़े।
आगे की राह
- संवैधानिक मूल्यों, विशेषकर कानून के शासन तथा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के क्षरण के प्रति सतर्कता की आवश्यकता है।
- सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण है कि न्याय निष्पक्षता से और स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार ही लागू हो।
- कानून के शासन और कानून द्वारा शासन के बीच चल रहा संघर्ष एक न्यायपूर्ण तथा समावेशी समाज के लिये संवैधानिक आदर्शों को बनाए रखने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।