भारतीय राजव्यवस्था
एल्डरमैन
- 23 May 2023
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प्रिलिम्स के लिये:एल्डरमैन, लेफ्टिनेंट-गवर्नर, MCD, दिल्ली नगर निगम अधिनियम-1957, संविधान का अनुच्छेद 239AA, कार्य संचालन नियम 1961 मेन्स के लिये:दिल्ली में एल्डरमैन की नियुक्ति का मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर विचार करते हुए कहा कि उपराज्यपाल का सदस्यों को नामित करने का अधिकार निर्वाचित दिल्ली नगर निगम को अस्थिर कर सकता है।
एल्डरमैन:
- परिचय:
- व्युत्पन्न रूप से यह शब्द "एल्डर" और "मैन" के संयोजन से बना है जिसका अर्थ है वृद्ध व्यक्ति या अनुभवी व्यक्ति है।
- यह शब्द मूल रूप से एक कबीले या जनजाति के बुजुर्गों के लिये संदर्भित था, हालाँकि जल्द ही यह उम्र पर विचार किये बिना राजा के वायसराय के लिये एक शब्द बन गया। साथ ही इसने नागरिक और सैन्य दोनों कर्तव्यों वाले एक अधिक विशिष्ट शीर्षक- "एक काउंटी के मुख्य मजिस्ट्रेट" को निरूपित किया।
- 12वीं सदी CE में जैसे-जैसे संघ नगरपालिका सरकारों के साथ तीव्रता से जुड़ते गए, इस शब्द का प्रयोग नगर निकायों के अधिकारियों के लिये किया जाने लगा। यही वह अर्थ है जिसको आज तक प्रयोग किया जाता है।
- दिल्ली के संदर्भ में:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक आयु के दस लोगों को उपराज्यपाल (LG) द्वारा निगम में नामित किया जा सकता है।
- इन लोगों से नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव की अपेक्षा की जाती है।
- वे सार्वजनिक महत्त्व के निर्णय लेने में सदन की सहायता करते हैं।
एल्डरमैन की नियुक्ति से संबंधित चिंताएँ
- पहली चिंता नामित व्यक्तियों की उपयुक्तता से संबंधित है। उपराज्यपाल को सिफारिशें सौंपे जाने के बाद यह पता चला कि 10 नामांकित व्यक्तियों में से दो को तकनीकी रूप से पद के अनुपयुक्त माना गया था। यह नामांकन प्रक्रिया की संपूर्णता और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति जो इस भूमिका के लिये योग्य या उपयुक्त नहीं हैं, उन्हें नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये।
- दूसरी चिंता इस धारणा के इर्द-गिर्द घूमती है कि उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi- MCD) के भीतर चुनाव में पराजित दल के नियंत्रण और प्रभाव को बनाए रखने का एक प्रयास है। यह दिल्ली नगर निगम के भीतर प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांतों तथा शक्तियों की गतिशीलता की निष्पक्षता के संबंध में चिंता को दर्शाता है।
सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
- उपराज्यपाल का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत उपराज्यपाल की शक्तियों और राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासक के रूप में उनकी भूमिका के बीच अंतर है। उन्होंने दावा किया कि कानून के आधार पर एल्डरमैन के नामांकन में उपराज्यपाल की सक्रिय भूमिका है।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल को शक्ति देकर यह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित MCD को संभावित रूप से अस्थिर कर सकता है क्योंकि उनके पास मतदान की शक्ति होगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उपराज्यपाल के पास राष्ट्रीय राजधानी में व्यापक कार्यकारी शक्तियाँ नहीं हैं, जो शासन के अद्वितीय "असममित संघीय मॉडल" के तहत संचालित होती हैं।
- यह शब्द "असममित संघीय मॉडल" शासन की एक प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें एक संघ के भीतर विभिन्न क्षेत्रों या घटकों के पास स्वायत्तता एवं शक्तियों का अलग-अलग क्षेत्राधिकार होता है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239AA(3)(A) के तहत केवल तीन विशिष्ट क्षेत्रों में अपने विवेक से कार्यकारी शक्ति का प्रयोग कर सकता है:
- सार्वजनिक व्यवस्था
- पुलिस
- दिल्ली में भूमि
- न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद से असहमत है, तो उसे लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम 1961 में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करना चाहिये।
- लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम संविधान के अनुच्छेद 77(3) का भाग हैं, जो सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के मध्य कार्य एवं ज़िम्मेदारियों के आवंटन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करये हैं। ये नियम सरकारी नीतियों के निर्माण, निर्णयों और कार्यों, अनुमोदन और कार्यान्वयन के लिये प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करने में सहायक होते हैं।
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच क्या मतभेद है?
- प्रष्ठभूमि:
- अनुच्छेद 239 और 239AA के सह-अस्तित्त्व के कारण NCT की सरकार और केंद्र सरकार तथा उसके प्रतिनिधि के रूप में उपराज्यपाल के मध्य एक न्यायिक संघर्ष की स्थिति रही है।
- केंद्र सरकार का मानना है कि नई दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है एवं अनुच्छेद 239 उपराज्यपाल को यहाँ की मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार देता है।
- जबकि दिल्ली की राज्य सरकार का मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 239AA दिल्ली में विधायी रूप से निर्वाचित सरकार होने का विशेष दर्जा देता है।
- यह दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उपराज्यपाल और राज्य सरकार की प्रशासनिक शक्तियों के मध्य विवाद की स्थिति को पैदा करता है।
- केंद्र और राज्य सरकारों के तर्क:
- केंद्र सरकार का मानना है कि क्योंकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और देश का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिये नियुक्तियों एवं तबादलों सहित प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र का अधिकार होना चाहिये।
- हालाँकि दिल्ली सरकार का तर्क है कि संघवाद की भावना में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास स्थानांतरण और नियुक्ति पर निर्णय लेने की शक्ति होनी चाहिये।
- कानूनी मुद्दे :
- फरवरी 2019 में दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्तियों के आवंटन पर निर्णय लेते समय यह मुद्दा सामने आया था।
- उन्होंने प्रशासनिक सेवा नियंत्रण के सवाल को बड़ी बेंच द्वारा तय किये जाने के लिये छोड़ दिया था।
- केंद्र सरकार की याचिका पर मई 2022 में तीन जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था।
- तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय लिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के प्रश्न को "पुनः समीक्षा" की आवश्यकता है।
- दूसरे मुद्दे में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 शामिल है।
- अधिनियम में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में उल्लिखित "सरकार" शब्द उपराज्यपाल को संदर्भित करेगा।