भारतीय राजव्यवस्था
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्ति का विभाजन
- 12 May 2023
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प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान, NCT, अनुसूची VII, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2021 मेन्स के लिये:अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान, संघ शासित प्रदेशों का प्रशासन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाही को नियंत्रित करने के मुद्दे पर दिल्ली सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया। इस निर्णय में कहा कि दिल्ली सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर सेवाओं पर विधायी तथा कार्यकारी शक्तियाँ शामिल हैं।
मुद्दा:
- इस मामले में मुद्दा यह है कि क्या NCT (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) दिल्ली की सरकार के पास भारत के संविधान की अनुसूची VII, सूची II और प्रविष्टि 41 के तहत 'सेवाओं' के संबंध में विधायी और कार्यकारी शक्तियाँ शामिल हैं और क्या अधिकारी वर्ग की IAS, IPS, DANICS और DANIPS जैसी विभिन्न 'सेवाएँ', जिन्हें भारत संघ द्वारा दिल्ली को आवंटित किया गया है, दिल्ली सरकार के NCT के प्रशासनिक नियंत्रण में आती हैं।
- दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्ति विभाजन का मुद्दा पहली बार वर्ष 2019 में उठाया गया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इस मामले को एक बड़ी पीठ के विचार के लिये छोड़ दिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर किसका नियंत्रण होगा।
- दिल्ली सरकार ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) बिल, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, जिसमें प्रावधान किया गया था कि दिल्ली की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में संदर्भित "सरकार" शब्द का अर्थ उपराज्यपाल (L-G) होगा।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा कि उपराज्यपाल सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के निर्णय का पालन करेगा।
- केंद्र के प्रति असहमति प्रकट करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क देते हुए कहा कि संविधान एक संघीय संविधान है, जहाँ तक संघ शासित प्रदेश का संबंध है, वह एकात्मक नहीं है।
- साथ ही यह भी कहा कि "लोकतंत्र और संघवाद के सिद्धांत हमारे संविधान की आवश्यक विशेषताएँ हैं, जो कि मूल ढाँचे का हिस्सा हैं"।
- संघवाद "स्वायत्तता के साथ-साथ समानता के भाव के एकीकारण और बहुलतावादी समाज में विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने का एक साधन है"।
- साथ ही यह भी कहा कि "लोकतंत्र और संघवाद के सिद्धांत हमारे संविधान की आवश्यक विशेषताएँ हैं, जो कि मूल ढाँचे का हिस्सा हैं"।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 239AA दिल्ली के NCT के लिये एक विधानसभा की स्थापना करता है क्योंकि इसकी विधानसभा के सदस्य दिल्ली के मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।
- यदि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं दी जाती है, तो उत्तरदायित्व की त्रिपक्षीय शृंखला का सिद्धांत व्यर्थ हो जाएगा।
- सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत अधिकारियों के उत्तरदायित्व तक विस्तृत है, जो बदले में मंत्रियों को रिपोर्ट करते हैं। यदि अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो सामूहिक ज़िम्मेदारी का संपूर्ण सिद्धांत प्रभावित होता है।
- दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की तरह सरकार के प्रतिनिधि रूप का प्रतिनिधित्व करती है अतः संघ की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के विपरीत होगा।
संविधान का अनुच्छेद 239AA:
- संविधान (69वाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 239AA शामिल किया गया था ताकि दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सके।
- इसमें कहा गया है कि दिल्ली के NCT में प्रशासक और विधानसभा होगी।
- कानून प्रवर्तन, लोक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर विधानसभा को "राज्य सूची या समवर्ती सूची के किसी भी मामले के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के पूरे या किसी भी हिस्से हेतु कानून बनाने की शक्ति होगी, जहाँ तक ऐसा कोई मामला संविधान के प्रावधानों के अधीन केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होता है।"
- इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 239AA में यह भी बताया गया है कि उपराज्यपाल को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा या वह राष्ट्रपति द्वारा द्वारा लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य है।
- इसके अतिरिक्त यदि मंत्रिपरिषद और उपराज्यपाल "किसी भी मामले" पर असहमत हों, तब अनुच्छेद 239AA उपराज्यपाल को राष्ट्रपति से परामर्श करने का अधिकार देता है।
- इस प्रकार उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच यह दोहरा नियंत्रण एक शक्ति संघर्ष में परिणत हो सकता है।
भारत में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन:
- परिचय:
- संविधान का भाग VIII (अनुच्छेद 239 से 241) केंद्रशासित प्रदेशों से संबंधित है।
- भारत में केंद्रशासित प्रदेशों को राष्ट्रपति द्वारा उनके द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। यह प्रशासक निर्वाचित नहीं बल्कि राष्ट्रपति का एक प्रतिनिधि होता है।
- कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में, जैसे कि दिल्ली और पुद्दुचेरी में प्रशासक के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं जिसमें केंद्रशासित प्रदेश (UT) के लिये कानून और नियम बनाने की शक्ति भी शामिल है।
- लक्षद्वीप तथा दादरा और नगर हवेली जैसे अन्य केंद्रशासित प्रदेशों में प्रशासक की शक्तियाँ चुनी हुई सरकार को सलाह देने तक सीमित हैं।
- संघ शासित प्रदेशों में न्यायपालिका भी संविधान और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से शासित होती है। हालाँकि कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में, जैसे कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पास अन्य केंद्रशासित प्रदेशों, जैसे- लक्षद्वीप की तुलना में व्यापक शक्तियाँ हैं।
- दिल्ली और पुद्दुचेरी के लिये विशेष प्रावधान:
- पुद्दुचेरी (1963 में), दिल्ली (1992 में) और वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर (अब तक गठित) केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में विधानसभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान है।
- केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी की विधानसभा संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची II या सूची III में वर्णित मामलों के संबंध में कानून बना सकती है, जहाँ तक ये मामले केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में लागू होते हैं।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा के पास भी ये शक्तियाँ हैं, इस अपवाद के साथ कि सूची II की प्रविष्टियाँ 1, 2 और 18 विधानसभा की विधायी क्षमता के भीतर नहीं हैं।
- पुद्दुचेरी (1963 में), दिल्ली (1992 में) और वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर (अब तक गठित) केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में विधानसभा और मंत्रिपरिषद का प्रावधान है।
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