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ओल्गा टेलिस वाद 1985

  • 26 Apr 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985), फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन का अधिकार, अतिक्रमण रोधी पूर्व स्वीकृति।

मेन्स के लिये:

जीवन का अधिकार, निर्णय और मामले, न्यायपालिका

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम 1985 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले में कहा गया कि जहाँगीरपुरी (दिल्ली) मामले में फुटपाथ के निवासी, आतिक्रमणकारियों से भिन्न हैं, जो आगामी निर्णयों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाए गए प्रश्न:

  • पृष्ठभूमि: यह मामला 1981 में तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र राज्य और बॉम्बे नगर निगम ने फैसला किया कि बॉम्बे शहर में फुटपाथ एवं झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को बेदखल किया जाना चाहिये तथा उन्हें "उनके मूल स्थान या बॉम्बे शहर के बाहर के क्षेत्रों पर निर्वासित किया जाना चाहिये।"
  • फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन के अधिकार का प्रश्न: एक मुख्य प्रश्न यह था कि क्या फुटपाथ पर रहने वाले को बेदखल करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके गारंटीशुदा आजीविका के अधिकार से वंचित करना होगा।
    • अनुच्छेद 21 के अनुसार, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।
    • भारत में लगभग दो करोड़ लोग फुटपाथ पर रहने वालों में शामिल हैं।
  • अतिक्रमण हटाने के लिये पूर्व स्वीकृति का प्रश्न: संविधान पीठ को यह निर्धारित करने के लिये भी कहा गया था कि क्या बॉम्बे नगर निगम अधिनियम, 1888 में शामिल प्रावधान,  मनमाने और अनुचित तथा बिना किसी पूर्व सूचना के अतिक्रमण हटाने की अनुमति प्रदान करते हैं। 
  • अतिक्रमण पर प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय ने इस सवाल की जांँच करने का भी निर्णय लिया कि क्या फुटपाथ पर रहने वालों को अतिचारियों (Trespassers) के रूप में चिह्नित करना संवैधानिक रूप से अनुचित होगा।

ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम, 1985 मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:  

  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम निर्णय 1985, (Olga Tellis vs Bombay Municipal Corporation judgment in 1985) में न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को बिना तर्क के बल प्रयोग कर तथा उन्हें समझाने का मौका दिये बिना बेदखल करना असंवैधानिक है।
    • यह उनके आजीविका के अधिकार (Right to Livelihood) का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने फुटपाथ पर रहने वालों को केवल आतिक्रमणकारी मानने वाले प्राधिकारियों पर कड़ी आपत्ति जताई थी। 
    • “वे (फुटपाथ पर रहने वाले) निहायत खराब आर्थिक स्थिति के कारण ज़्यादातर गंदी या दलदली जगहों पर रहने की जगह ढूंँढ लेते हैं।

राज्य सरकार का बचाव: 

  • विबंधन (Estoppel) का प्रश्न: राज्य सरकार और निगम ने विरोध किया कि फुटपाथ पर रहने वालों को रोका जाना चाहिये।
    • विबंधन (Estoppel) एक न्यायिक उपकरण है जिसके द्वारा एक अदालत किसी व्यक्ति को दावा करने से ‘रोक’ सकती है।  
    • विबंधन किसी को यह दावा करने से रोक सकता है कि फुटपाथ पर उसके द्वारा बनाई गई झोपड़ी को उसके आजीविका के अधिकार के कारण ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। 
  • सार्वजनिक रास्ते का अधिकार: वे फुटपाथ या सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण करने और झोपड़ियों को बनाने के किसी भी मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि लोगों को उन रास्तों पर आवाजाही का अधिकार है।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय:

  • विबंधन पर: अदालत ने विबंधन के सरकार के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि "संविधान के खिलाफ कोई विबंधन नहीं हो सकता।" .
    • कोर्ट ने कहा कि फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन का अधिकार दाँव पर लगा है।  
  • आजीविका के अधिकार पर: आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक "अभिन्न घटक" है। 
    • यदि आजीविका के अधिकार को जीने के संवैधानिक अधिकार के हिस्से के रूप में नहीं माना जाता है, तो किसी व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार से वंचित करने का सबसे आसान तरीका यह होगा कि उसे उसकी आजीविका के साधन से वंचित कर दिया जाए।
  • पूर्व सूचना पर: दूसरे प्रश्न कि क्या वैधानिक प्राधिकारियों को बिना पूर्व सूचना के अतिक्रमण हटाने की अनुमति देने वाले कानून के प्रावधान मनमाना थे।
    • ऐसे अधिकारों को ‘अपवाद’ के रूप में संचालित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, न कि "सामान्य नियम" की भाँति।
    • बेदखली की प्रक्रिया प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के पक्ष में होनी चाहिये जो न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का पालन करती हो जैसे- दूसरे पक्ष को सुनवाई का अवसर देना। 
    • सुनवाई का अधिकार पीड़ित व्यक्तियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और गरिमा के साथ अपनी बात रखने का अवसर प्रदान करता है।
  • अतिचार: अदालत ने फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को अतिचारी मानने वाले अधिकारियों पर कड़ी आपत्ति जताई है। 
    • शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि फुटपाथ पर रहने वाले लोग "बेहद बेबसी से गंदे फुटपाथों" पर रहते हैं, न कि किसी को अपमानित करने, डराने या परेशान करने के उद्देश्य से।
    • वे फुटपाथ पर रहते हैं और कमाते हैं क्योंकि उनके पास "शहर में देखभाल के छोटे-छोटे काम हैं और रहने के लिये कोई घर नहीं है।"

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की सुरक्षा का अधिकार प्रदान करता है? (2019) 

(a) अनुच्छेद 19  
(b) अनुच्छेद 21 
(c) अनुच्छेद 25  
(d) अनुच्छेद 29 

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • विवाह का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक घटक है जिसमें कहा गया है कि "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"। 

स्रोत- द हिंदू

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