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जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक ओवरशूट डे

  • 03 Aug 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक ओवरशूट, एकल-उपयोग प्लास्टिक, समुद्री प्रदूषण, एकल उपयोग प्लास्टिक और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के उन्मूलन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022, प्रोजेक्ट रिप्लान

मेन्स के लिये:

भारत में प्लास्टिक-अपशिष्ट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

28 जुलाई, 2023 को पृथ्वी पर प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) मनाया गया। यह वर्ष का वह समय होता है, जब संपूर्ण विश्व में उत्पादित प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की क्षमता से अधिक हो जाती है।

  • प्लास्टिक ओवरशूट डे पर अर्थ एक्शन (EA) (स्विस-बेस्ड रिसर्च कंसल्टेंसी) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट प्लास्टिक प्रदूषण के चिंताजनक मुद्दे और पर्यावरण पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:  

  • परिचय:  
    • प्लास्टिक ओवरशूट डे का निर्धारण देश के कुप्रबंधित अपशिष्ट सूचकांक (MWI) के आधार पर किया जाता है। अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता और प्लास्टिक खपत के अंतर को MWI के नाम से जाना जाता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण संकट: रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 में 68,642,999 टन अतिरिक्त प्लास्टिक अपशिष्ट प्रकृति में प्रवेश करेगा, जो गंभीर प्लास्टिक प्रदूषण संकट का संकेत देता है।
    • रिपोर्ट में विश्व के 52% कुप्रबंधित प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये 12 ज़िम्मेदार देशों की पहचान की गई है। जिसमें चीन, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस, मैक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, सउदी अरब, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, ईरान, कज़ाखस्तान और भारत शामिल हैं।
    • सबसे अधिक कुप्रबंधित अपशिष्ट प्रतिशत वाले तीन देशों में अफ्रीका के मोज़ाम्बिक (99.8%), नाइजीरिया (99.44%) और केन्या (98.9%) शामिल हैं।
      • 98.55% अपशिष्ट के साथ भारत MWI में चौथे स्थान पर है।
  • शॉर्ट-लाइफ प्लास्टिक: प्लास्टिक पैकेजिंग और एकल-उपयोग प्लास्टिक सहित शॉर्ट-लाइफ प्लास्टिक, वार्षिक उपयोग किये जाने वाले कुल प्लास्टिक का लगभग 37% है। ये श्रेणियाँ पर्यावरण में रिसाव का अधिक जोखिम उत्पन्न करती हैं।
  • भारत के मामले में प्लास्टिक ओवरशूट डे: देश में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन इसकी अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता से अधिक होने के कारण भारत के लिये 6 जनवरी, 2023 को प्लास्टिक ओवरशूट डे (Plastic Overshoot Day) के रूप में मनाया गया।
    • भारत की प्रति व्यक्ति खपत 5.3 किलोग्राम है, जो वैश्विक औसत 20.9 किलोग्राम से अत्यधिक कम है।

प्लास्टिक का प्रमुख उपयोग:

  • खाद्य संरक्षण: खाद्य पैकेजिंग में प्लास्टिक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है जो खराब होने वाले सामानों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने, खाद्य अपव्यय (Food Waste) कम करने तथा माल का कुशल परिवहन सुनिश्चित करने में सहायता करता है।
  • चिकित्सा अनुप्रयोग: आधुनिक चिकित्सा में प्लास्टिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका उपयोग सिरिंज (Syringes), कैथेटर (Catheters) और कृत्रिम संयोजी अंगों (Artificial Joints) जैसे चिकित्सा उपकरणों में किया जाता है, जो रोगी की देखभाल तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।
  • परिवहन सुरक्षा: वाहनों के वजन को कम करने के लिये ऑटोमोटिव अनुप्रयोगों में प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है, जिससे ईंधन दक्षता में सुधार हो सकता है तथा उत्सर्जन में कमी आ सकती है, जिससे हरित वातावरण में योगदान दिया जा सकता है।
  • इन्सुलेशन: प्लास्टिक सामग्री विद्युत और तापीय प्रयोजनों के लिये उत्कृष्ट इंसुलेटर है। ये इमारतों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में ऊर्जा दक्षता में सुधार करने में सहायता करते हैं।
  • जल संरक्षण: कुछ प्रकार के प्लास्टिक, जो पाइप निर्माण और सिंचाई प्रणालियों में उपयोग किये जाते हैं, रिसाव को कम करके तथा जल वितरण दक्षता में सुधार कर जल संरक्षण में सहायता करते हैं।

भारत में प्लास्टिक-अपशिष्ट संबंधी मुद्दे:

  • खराब अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना: भारत में अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना एक बड़ी समस्या है।
    • अधिकांश नगर निगम अधिकारियों के पास प्लास्टिक अपशिष्ट के पृथक्करण, संग्रह, परिवहन और पुनर्चक्रण के लिये उचित सुविधाओं का अभाव है।
    • परिणामस्वरूप प्लास्टिक अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल (Landfills), खुले डंपसाइट्स (Open Dumpsites) में चला जाता है या पर्यावरण में पड़ा रहता है, जो पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है।
    • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 12.3% प्लास्टिक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जाता है और 20% को जला दिया जाता है।  
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पाद: थैला, बोतलें, स्ट्रॉ और पैकेजिंग में एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों का व्यापक उपयोग, प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या को और बढ़ा देता है। 
    • ये वस्तुएँ सुविधाजनक तो हैं परंतु एक बार उपयोग के बाद फेंक दिये जाने के कारण  काफीप्लास्टिक अपशिष्ट का संचय होता है।
  • समुद्री प्रदूषण: भारत के तटीय क्षेत्रों पर प्लास्टिक अपशिष्टों का अधिक प्रभाव पड़ता है। नदियों और अन्य जल निकायों के माध्यम से प्लास्टिक अपशिष्ट महासागरों तक पहुँचता है, जिसके परिणामस्वरूप समुद्री प्रदूषण की स्थिति उत्पन्न होती है। 
    • यह प्रदूषण समुद्री जीवन, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाता है और मत्स्य पालन तथा पर्यटन पर निर्भर तटीय समुदायों को आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकता है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: अनुचित प्लास्टिक अपशिष्ट निपटान और प्लास्टिक को जलाने से हानिकारक रसायन तथा विषाक्त पदार्थ उत्सर्जित हो सकते हैं, जिससे अपशिष्ट निपटान स्थलों के निकट रहने वाले अथवा अनौपचारिक पुनर्चक्रण गतिविधियों से जुड़े समुदायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित सरकारी पहलें: 

आगे की राह 

  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व(Extended Producer Responsibility- EPR): भारत को EPR जैसी अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों, जो उत्पादकों को उनके प्लास्टिक उत्पादों के पूर्ण निपटान के लिये ज़िम्मेदार ठहराने और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का कार्य करती हैं, में निवेश करना चाहिये। 
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र की स्थापना: भारत के लिये ज़रूरी है कि वह गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक अपशिष्ट को ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिये प्लाज़्मा गैसीकरण जैसी उन्नत तकनीकों के उपयोग वाले अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों में निवेश करे।
    • ये संयंत्र प्लास्टिक अपशिष्ट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करते हुए जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने और विद्युत उत्पादन में मदद कर सकते हैं।
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, भारत में सालाना 14.2 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट (उत्पादित सभी प्राथमिक प्लास्टिक का 71%) को संसाधित करने की क्षमता है। 
  • विकल्पों की अभिकल्पना: इस दिशा में पहला कदम प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना होगा जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल-उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन की गई वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • ‘ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ (Oxo-biodegradable Plastics) के उपयोग को बढ़ावा देना, जो कि आम प्लास्टिक की तुलना में अल्ट्रा-वायलेट विकिरण और ऊष्मा से अधिक तीव्रता से विखंडित हो सकता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र संधि का समर्थन: प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • यह वर्ष 2019 में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर वैश्विक प्रतिबंध का प्रस्ताव करने वाले देशों में से एक था।
    • प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिये संयुक्त राष्ट्र संधि प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ वैश्विक कार्रवाई का प्रतिनिधित्व करती है और इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त होने वाली ‘सूक्ष्म मणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019

(a) ये समुद्री पारितंत्र के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्र में सफल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है

उत्तर: (a) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ  

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