समुद्र में जाने वाला प्लास्टिक विघटित होता है और टूट कर माइक्रोप्लास्टिक के रूप में सामने आता है।
माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के वे कण होते हैं, जिनका व्यास 5 मिमी से कम होता है।
वर्गीकरण:
प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: वे छोटे कण होते हैं जिन्हें व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किया जाता है और माइक्रोफाइबर कपड़ों और अन्य वस्त्रों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों और प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स: ये पानी की बोतलों जैसे बड़े प्लास्टिक के टूटने से बनते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक से खतरा
समुद्री मलबा: IUCN के अनुसार, हर साल कम-से-कम 8 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में जाता है और यह सतही जल से लेकर गहरे समुद्र में तलछट तक सभी समुद्री मलबे का लगभग 80% हिस्सा है।
यूएनईपी के अनुसार, पिछले चार दशकों में समुद्र के सतही जल में इन कणों की सांद्रता में काफी वृद्धि हुई है।
समुद्री जीवन पर प्रभाव: सबसे अधिक दिखाई देने वाले और खतरनाक प्रभावों में सैकड़ों समुद्री प्रजातियों का दम घुटना और उनका जीवन संकट में पड़ना शामिल है।
मछली, केकड़े और झींगे जैसे समुद्री जीव इन माइक्रोप्लास्टिक को भोजन के रूप में निगल लेते हैं।
मनुष्य पर प्रभाव: मनुष्य इन समुद्री जीवों का समुद्री भोजन के रूप में सेवन करते हैं, जिससे कई स्वास्थ्य जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि एक औसत व्यक्ति 5 ग्राम प्लास्टिक का उपभोग करता है।
माइक्रोप्लास्टिक पर WHO : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का दावा है कि पीने के पानी में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर अभी तक मनुष्यों के लिये खतरनाक नहीं है, लेकिन भविष्य में संभावित जोखिम को देखते हुए और अधिक शोध किये जाने की आवश्यकता है।
150 माइक्रोमीटर से बड़े माइक्रोप्लास्टिक के मानव शरीर द्वारा अवशोषित होने की संभावना नहीं है, लेकिन नैनो आकार के प्लास्टिक सहित बहुत छोटे माइक्रोप्लास्टिक कणों को अवशोषित करने की संभावना अधिक होती है।
पहल
वैश्विक पहल:
समुद्री कचरे पर वैश्विक भागीदारी (Global Partnership on Marine Litter- GPML): मनीला घोषणा में उल्लिखित एक अनुरोध के प्रत्युत्तर में GMPL को वर्ष 2012 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
मनीला घोषणा के तहत 65 हस्ताक्षरकर्त्ताओं ने उर्वरकों से अपशिष्ट जल, समुद्री कूड़े और प्रदूषण में कमी तथा उसे नियंत्रित करने के लिये नीतियाँ विकसित करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
G7 शिखर सम्मेलन: जर्मनी के बवेरिया में वर्ष 2015 में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन में नेताओं की घोषणा में माइक्रोप्लास्टिक्स के जोखिमों को स्वीकार किया गया था।
ग्लोलिटर (GloLitter) पार्टनरशिप प्रोजेक्ट: IMO और FAO द्वारा शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य शिपिंग और मत्स्य पालन के कारण फैलने वाले समुद्री प्लास्टिक कूड़े को रोकना और कम करना है।
समुद्री कूड़े से निपटने की इस वैश्विक पहल में भारत समेत 30 देश शामिल हैं।
लंदन कन्वेंशन, 1972: डंपिंग वेस्ट और अन्य मैटर द्वारा समुद्री प्रदूषण की रोकथाम को लेकर वर्ष 1972 में आयोजित कन्वेंशन पर समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों को नियंत्रित करने और अपशिष्ट पदार्थों के समुद्र में डंपिंग के नियमन के माध्यम से समुद्र के प्रदूषण को रोकने के लिये हस्ताक्षर किये गए थे।
लंदन कन्वेंशन के लिये वर्ष 1996 प्रोटोकॉल (लंदन प्रोटोकॉल) और जहाज़ों से प्रदूषण की रोकथाम के लिये वर्ष 1978 प्रोटोकॉल इंटरनेशनल कन्वेंशन (MARPOL) इसी तरह की अन्य पहलें हैं।
विश्व पर्यावरण दिवस, 2018: इसका आयोजन भारत में किया गया था, दुनिया के नेताओं ने "प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने" और इसके उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने की कसम खाई थी।
प्लास्टिक पैक्ट्स: प्लास्टिक पैक्ट्स सभी प्रारूपों और उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलने हेतु व्यवसाय आधारित पहल है।
वे व्यावहारिक समाधानों को लागू करने के लिये प्लास्टिक मूल्य शृंखला के सभी लोगों को एक साथ लाते हैं।
पहला प्लास्टिक पैक्ट वर्ष 2018 में यूनाइटेड किंगडम में लॉन्च किया गया था।
भारत द्वारा शुरू की गेन पहलें:
एकल-उपयोग प्लास्टिक का उन्मूलन: वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने दिल्ली शहरी क्षेत्र में तत्काल प्रतिबंध के साथ वर्ष 2022 तक देश में सभी एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया।
महत्त्वपूर्ण नियम: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में कहा गया है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान हेतु बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिये प्रत्येक स्थानीय निकाय को ज़िम्मेदार होना चाहिये।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility) की अवधारणा पेश की।
अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
यह हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने का प्रयास करता है।
विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR)
EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है, जिसके तहत उत्पादकों को उपभोक्ता के उपभोग के बाद उत्पादों के उपचार या निपटान की वित्तीय या भौतिक ज़िम्मेदारी दी जाती है।
इस तरह की ज़िम्मेदारी सौंपना सैद्धांतिक रूप से कचरे के उत्पन्न होने के स्रोत पर ही उसे रोकने, पर्यावरण के लिये उत्पाद डिज़ाइन को बढ़ावा देने और सार्वजनिक रिसाइक्लिंग और सामग्री प्रबंधन लक्ष्यों की उपलब्धि का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।
संबंधित मुद्दे
इस क्षेत्र में कम शोध: माइक्रोप्लास्टिक्स पर कम शोध किया जाता है, शायद इसलिये कि उन्हें पहचानना मुश्किल है।
उन्हें नग्न आँखों से नहीं पहचाना जा सकता है, इसके लिये स्पेक्ट्रोफोटोमीटर जैसे परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता होती है।
मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और केल्प्स जैसे पारिस्थितिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों पर माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव का भी अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है।
दूरदराज़ के क्षेत्रों में उपलब्धता: हाल के दिनों में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति को रिमोट एरिया, जैसे-माउंट एवरेस्ट, आर्कटिक बर्फ, आइसलैंड के ग्लेशियर, फ्रेंच पाइरेनीज़ और मारियाना ट्रेंच की गहराई में भी दर्ज किया गया है।
यह अत्यधिक खतरनाक है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषक कचरे को इकट्ठा करने और प्रबंधित करने की सरकारों की क्षमता कम है।
सरकार की ओर से गैर-ज़िम्मेदारी: भारत में लगातार सरकारों ने कचरा प्रबंधन नियम जारी किये हैं, लेकिन कार्यान्वयन के स्तर पर इसमें कोई खास सुधार नहीं हुआ है।
इसके अलावा शहर एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करने, अपशिष्ट पृथक्करण, उत्पादकों के लिये विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी और मौजूदा नियमों को लागू करने में विफल रहे हैं।
वर्तमान क्षरण तंत्र की अक्षमता: मौजूदा प्लास्टिक क्षरण तंत्र जैसे कि फोटोडिग्रेडेशन (सूर्य के प्रकाश का उपयोग करना) और जैविक क्षरण (रोगाणुओं का उपयोग करना) अप्रभावी हैं क्योंकि वे माइक्रोप्लास्टिक को पूरी तरह से नष्ट करने के बजाय केवल छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं।
आगे की राह
स्वच्छ भारत के वास्तविक अर्थ को समझना: स्वच्छ भारत का अर्थ न केवल कचरे को दृष्टि से दूर रखना, महँगे डंपिंग अनुबंधों के माध्यम से इनका निपटान करना है बल्कि उत्पादन, पूर्ण पृथक्करण और पुनर्चक्रण में तेज़ी से कमी करना है।
माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव के बारे में आम लोगों में जागरुकता पैदा की जानी चाहिये।
डिग्रेडेशन मैकेनिज़्म का संयोजन: माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावी और पूर्ण अपघटन के लिये फोटोडिग्रेडेशन और बायोलॉजिकल डिग्रेडेशन सिस्टम के संयोजन का सुझाव दिया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिये यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते पर आधारित एक नई वैश्विक संधि की मांग करता है।
प्लास्टिक की वैश्विक समस्या का समाधान तभी होगा जब सभी देश अपने-अपने तटों पर माइक्रोप्लास्टिक की निगरानी करने का निर्णय लें और केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग के आदेशों को लागू करें।
सरकार की भूमिका: माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के स्तर में कमी सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा प्लास्टिक की खपत को कम किया जा सकता है।
उचित अपशिष्ट प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये एकल-उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
समुद्र तटों और महासागरों में कूड़े की मात्रा को कम करने के लिये सरकार, उद्योग और नागरिक समाज को मिलकर काम करना चाहिये।
व्यक्तिगत स्तर पर पहल: व्यक्तिगत पहल जैसे कि शून्य-अपशिष्ट, डिस्पोज़ेबल और खुद के बर्तनों का उपयोग करना, बोतलबंद पानी तथा प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग न करना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जिन्हें प्रत्येक नागरिक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये उठा सकता है।
पुनर्चक्रण परियोजनाओं के लिये आर्थिक सहायता: कर छूट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट फंड, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित आर्थिक समर्थन और एकल-उपयोग वाली वस्तुओं की रिसाइक्लिंग तथा कचरे को संसाधन में परिवर्तित करने वाली परियोजनाओं को सहायता दी जानी चाहिये।