कृषि
भारत में कृषि निर्यात नीति
यह एडिटोरियल 30/10/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “How we tame food inflation, and at whose cost” लेख पर आधारित है। इसमें प्रतिबंधात्मक कृषि नीति की खामियों के बारे में चर्चा की गई है और एक प्रत्यास्थी एवं प्रतिस्पर्द्धी कृषि निर्यात रणनीति स्थापित करने के लिये सुझाव दिया गया है।
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सरकार ने खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयास में हाल ही में बासमती चावल के लिये 1200 अमेरिकी डॉलर का न्यूनतम निर्यात मूल्य (Minimum Export Price- MEP) निर्धारित किया है। इसके परिणामस्वरूप पंजाब-हरियाणा क्षेत्र के व्यापारी अब बासमती चावल खरीदने से झिझक रहे हैं और इसके कारण किसानों के लिये सामान्य स्थिति (जब निर्यात प्रतिबंधित नहीं थे) की तुलना में कीमतें गिर गई हैं।
इस उच्च MEP के कारण भारत के निर्यात बाज़ार पाकिस्तान को प्राप्त हो सकते है, जो बासमती चावल निर्यात क्षेत्र में इसका प्रमुख प्रतिद्वंद्वी है। इस परिदृश्य में, आवश्यक प्रतीत होता है कि भारत की कृषि निर्यात नीति (agricultural export policy) को प्रतिबंधात्मक होने से बजाय स्थिर और प्रतिस्पर्द्धी बनना चाहिये।
कृषि निर्यात नीति क्या है?
- परिचय:
- कृषि निर्यात नीति, जिसे प्रायः ‘एग्री-एक्सपोर्ट पॉलिसी’ के रूप में जाना जाता है, किसी देश विशेष से कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रबंधित करने और उसे बढ़ावा देने के लिये अभिकल्पित सरकारी विनियमनों, उपायों और प्रोत्साहनों का एक समूह होती है।
- इस नीति में कृषि उत्पादकों एवं निर्यातकों की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच बढ़ाने, उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने और उनके निर्यात अवसरों का विस्तार करने में मदद करने के लिये निर्यात सब्सिडी, टैरिफ में कटौती, गुणवत्ता मानक, बाज़ार पहुँच समझौते, वित्तीय प्रोत्साहन और व्यापार संवर्द्धन पहल जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
- विज़न: सरकार ने भारत को कृषि क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये उपयुक्त नीति साधनों के माध्यम से भारतीय कृषि की निर्यात क्षमता का दोहन करने की दृष्टि से दिसंबर 2018 में एक व्यापक कृषि निर्यात नीति पेश की।
उद्देश्य:
तत्व:
कृषि-निर्यात नीति की क्या आवश्यकता है?
- आर्थिक प्रभाव: हाल के वर्षों में कृषि निर्यात क्षेत्र की भारत के कुल निर्यात में एक बड़ी हिस्सेदारी रही है। उदाहरण के लिये, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात लगभग 53 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- हालाँकि, वर्ष 2016 में कृषि उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी महज 2.2% रही थी।
- खाद्य सुरक्षा: भारत वैश्विक आबादी के 17.84% का समर्थन करता है लेकिन उसके पास विश्व की केवल 2.4% भूमि और 4% जल संसाधन के रूप में सीमित संसाधन ही उपलब्ध हैं। एक सुनियोजित निर्यात नीति अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न कर सकती है जिसे खाद्य सुरक्षा बढ़ाने और किसानों की आय की वृद्धि करने में पुनर्निवेश किया जा सकता है।
- खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना: कृषि निर्यात घरेलू कीमतों को स्थिर करने में मदद कर सकता है, विशेष रूप से बंपर फसल वर्षों के दौरान। इस मूल्य स्थिरता से उपभोक्ताओं और उत्पादकों, दोनों को लाभ हो सकता है।
- रोज़गार सृजन: वर्ष 2021-22 के लिये NSSO के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार कृषि क्षेत्र भारत में सबसे बड़ा नियोक्ता है, जहाँ लगभग 45% कार्यबल कृषि में संलग्न है। कृषि निर्यात को बढ़ावा देने से रोज़गार के अधिक अवसर सृजित करने में मदद मिल सकती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ आजीविका कृषि कार्यों से निकटता से संबद्ध है।
- भुगतान संतुलन (Balance of Payments- BOP): हाल के वर्षों में कृषि निर्यात ने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय योगदान किया है। यह व्यापार घाटे की भरपाई करने और स्थिर मुद्रा बनाए रखने में मदद करता है।
- फसल विविधता: भारत चावल, गेहूँ, मसाले और बागवानी उत्पादों सहित विभिन्न कृषि पण्यों के विश्व के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इन पण्यों में पर्याप्त निर्यात क्षमता है और एक सुगठित निर्यात नीति इस क्षमता का दोहन कर सकती है।
- व्यापार संबंध: भारत का कृषि निर्यात विभिन्न देशों के साथ व्यापार संबंधों का निर्माण करने और उन्हें सुदृढ़ करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण के लिये, संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में भारत के कृषि उत्पादों के निर्यात में लगातार वृद्धि हुई है।
- संरचनात्मक चुनौतियाँ: यह नीति भारत से कृषि उत्पादों के निर्यात में व्याप्त निम्न कृषि उत्पादकता, कमज़ोर अवसंरचना, वैश्विक मूल्य अस्थिरता और बाज़ार पहुँच जैसी चुनौतियों का समाधान कर सकती है।
भारत की कृषि निर्यात नीति से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ
- प्रतिबंधात्मक निर्यात नीति: किसानों की कीमत पर घरेलू उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने वाली प्रतिबंधात्मक निर्यात नीतियों को निर्यात लक्ष्यों को पूरा करने में विफलता का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
- 1200 अमेरिकी डॉलर का MEP बासमती चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करता है, जिससे इसके निर्यात में भारी गिरावट आ सकती है।
- सब्सिडी केंद्रित योजनाएँ: लोकलुभावनवादी उपाय (विशेष रूप से चुनावी मौसम में) उपभोक्ताओं के लिये खाद्य सब्सिडी और किसानों के लिये उर्वरक सब्सिडी के रूप में सब्सिडी की वृद्धि करते हैं। कई राज्य ऋण माफी की घोषणा करते हैं और किसानों को मुफ्त बिजली प्रदान करते हैं, जो राजनीतिक रूप से लोकप्रिय होने के बावजूद राजकोषीय अनुशासन और कृषि क्षेत्र के वित्तीय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- अनुसंधान एवं विकास पर अपर्याप्त निवेश: कृषि अनुसंधान एवं विकास पर भारत का निवेश कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.5% तक सीमित है, जो किसी महत्त्वपूर्ण वृद्धि को प्रेरित करने के लिये अपर्याप्त है। इस निवेश को दोगुना या यहाँ तक कि तिगुना करने की आवश्यकता है यदि भारत कृषि उत्पादन और निर्यात का ‘पावरहाउस’ बनना चाहता है।
- गुणवत्ता और मानक: कृषि उत्पादों के लिये लगातार गुणवत्ता बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। गुणवत्ता और अनुपालन के मुद्दों में परिवर्तनशीलता निर्यात में बाधक बन सकती है। आयातक देशों के SPS उपायों (Sanitary and Phytosanitary Measures) का अनुपालन कर सकना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि भारतीय कृषि में कीटों एवं रोगों की उपस्थिति बनी रही है।
- आधारभूत संरचना: भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण के लिये अपर्याप्त अवसंरचना फसलोत्तर हानियों (post-harvest losses) का कारण बन सकती है, जिससे भारतीय कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को वैश्विक कृषि बाज़ार में अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है और इसलिये मूल्य निर्धारण एवं गुणवत्ता के मामले में उसका प्रतिस्पर्द्धी होना आवश्यक है। विनिमय दर में उतार-चढ़ाव भारतीय कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है।
- पर्यावरण और संवहनीयता संबंधी चिंताएँ: बढ़ते कृषि निर्यात को पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ संतुलित करना एक चुनौती है, क्योंकि संसाधनों के अत्यधिक दोहन के दीर्घकालिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
भारत में कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी योजनाएँ
- ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’: ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens) फलों और सब्जियों सहित आवश्यक कृषि पण्यों की आपूर्ति एवं मूल्यों को स्थिर करने की एक पहल है। इसका उद्देश्य मूल्य अस्थिरता को कम करना, किसानों के लिये लाभकारी मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करना और संवहनीय कृषि निर्यात को बढ़ावा देना है।
- ‘मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव’ (MAI): MIA एक कार्यक्रम है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों में भागीदारी, क्षमता निर्माण और बाज़ार अनुसंधान सहित निर्यात प्रोत्साहन गतिविधियों का समर्थन करता है। यह भारतीय कृषि निर्यातकों को नए बाज़ार की तलाश करने और बाज़ार तक पहुँच प्राप्त करने में मदद करता है।
- संपदा योजना: कृषि-समुद्री प्रसंस्करण और कृषि-प्रसंस्करण समूहों के विकास के लिये योजना (Scheme for Agro-Marine Processing and Development of Agro-Processing Clusters- SAMPADA) का उद्देश्य कृषि-प्रसंस्करण समूहों के लिये अवसंरचना का आधुनिकीकरण करना है, जो फसलोत्तर हानि को कम करने, कृषि उत्पादों के जीवनकाल (shelf life) को बढ़ाने और भारतीय कृषि उत्पादों की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता की वृद्धि करने में मदद करता है।
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन: राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission- NHM) जैविक खेती, परिशुद्ध खेती और जल-उपयोग दक्षता सहित संवहनीय बागवानी अभ्यासों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह निर्यात के लिये उच्च मूल्य वाले बागवानी उत्पादों के उत्पादन का समर्थन करता है।
- ई-नाम: ई-नाम (E-NAM – Electronic National Agriculture Market) कृषि पण्यों के लिये एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक व्यापार पोर्टल है। यह किसानों को अपनी उपज सीधे खरीदारों को बेचने में सक्षम बनाता है और बिचौलियों को कम करने, उचित मूल्य सुनिश्चित करने और स्थिरता बढ़ाने में योगदान करता है।
- एपीडा: कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) अनुसूचित उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये उत्तरदायी है और निर्यातकों के लिये संवहनीयता, गुणवत्ता एवं प्रमाणन आवश्यकताओं के लिये दिशानिर्देश प्रदान करता है।
- कृषि निर्यात क्षेत्रों की स्थापना: विशिष्ट कृषि वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि निर्यात क्षेत्रों (Agri Export Zones- AEZs) की स्थापना की जा रही है। ये क्षेत्र अवसंरचना विकास और प्रौद्योगिकी अंगीकरण के माध्यम से संवहनीय कृषि निर्यात के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं।
- जैविक खेती को बढ़ावा: सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रम शुरू किये हैं जो पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करते हैं और जैविक उत्पादों की निर्यात क्षमता को बढ़ाते हैं।
भारत में स्थिर कृषि निर्यात नीति के लिये आगे की राह
- किसान कल्याण: किसानों के कल्याण को प्राथमिकता दिया जाए और सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो। कृषि निर्यात की सफलता से कृषक समुदाय को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होना चाहिये।
- घरेलू उपभोक्ताओं के लिये समर्थन: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये घरेलू उपभोक्ताओं हेतु नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है, जो विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों पर लक्षित घरेलू आय नीति के माध्यम से क्रियान्वित होना चाहिये।
- उत्पादकता में वृद्धि लाना: प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये कृषि उत्पादकता में वृद्धि आवश्यक है। इसके लिये अनुसंधान एवं विकास, बीज, सिंचाई, उर्वरक और बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश की आवश्यकता होगी।
- निर्यात टोकरी में विविधता लाना: कृषि निर्यात टोकरी में विविधता लाई जाए, मूल्यवर्द्धित उत्पादों पर बल दिया जाए, कुछ चुनिंदा पण्यों पर निर्भरता को कम किया जाए और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की एक विस्तृत शृंखला को लक्षित किया जाए।
- गुणवत्ता आश्वासन: यह सुनिश्चित करने के लिये कठोर गुणवत्ता मानक और प्रमाणन तंत्र लागू किये जाएँ कि निर्यातित कृषि उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन करते हैं। कृषि उत्पादों, विशेषकर बागवानी वस्तुओं की गुणवत्ता में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये एकसमान या सार्वभौमिक गुणवत्ता एवं मानकीकरण प्रोटोकॉल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- अवसंरचना विकास: फसलोत्तर हानियों को कम करने और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण सुविधाओं, परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स सहित आधुनिक अवसंरचना में निवेश किया जाए। कृषि, अवसंरचना और प्रसंस्करण सुविधाओं में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी एवं ऋण सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
- प्रौद्योगिकी अपनाना: उत्पादकता बढ़ाने के लिये उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों, परिशुद्ध खेती और कुशल सिंचाई तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। कृषि उत्पादन और निर्यात दक्षता बढ़ाने के लिये एग्री-स्टार्टअप और अभिनव समाधानों (innovative solutions) के विकास को प्रोत्साहित किया जाए।
- पर्यावरण की दृष्टि से संवहनीय अभ्यासों को प्रोत्साहन देना: कृषि में पर्यावरणीय संवहनीयता सुनिश्चित करने के लिये जैविक खेती सहित संवहनीय कृषि अभ्यासों को प्रोत्साहित किया जाए।
- अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यासों से सीखना: अन्य देशों की सफल कृषि निर्यात नीतियों और सर्वोत्तम अभ्यासों से सीखने की ज़रूरत है। अनुकूल व्यापार समझौते संपन्न करने के राजनयिक प्रयासों को मज़बूत किया जाए और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक बेहतर पहुँच प्राप्त करने के लिये व्यापार बाधाओं को कम किया जाए।
निष्कर्ष:
वैश्विक कृषि व्यापार बाज़ार में भारत की निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये एक स्थिर कृषि निर्यात नीति को गतिशील, उत्तरदायी और अनुकूलन-योग्य होना चाहिये। इसे विश्व कृषि व्यापार में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में भारत की भूमिका को बढ़ावा देते हुए कृषि की दीर्घकालिक संवहनीयता, पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और किसानों के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: कृषि निर्यात को बढ़ावा देने में भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। भारत के कृषि निर्यात क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और संवहनीयता को आगे बढ़ाने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न: 'राष्ट्रीय कृषि बाज़ार' योजना को लागू करने के क्या लाभ हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020) |