भारत का बढ़ता विदेश व्यापार घाटा

संदर्भ

हाल ही में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने पिछले वित्त वर्ष 2018-19 से संबंधित भारत के विदेश व्यापार के आँकड़े जारी किये हैं। इनके मुताबिक वर्ष 2018-19 में भारत का निर्यात 9 फीसदी बढ़कर लगभग 331 अरब डॉलर हो गया। यद्यपि निर्यात का यह रिकॉर्ड स्तर है, लेकिन यह निर्यात के 350 अरब डॉलर के लक्ष्य से कम ही है। इसी तरह पिछले वित्त वर्ष में देश का आयात भी लगभग 9 फीसद बढ़कर लगभग 507 अरब डॉलर रहा। अर्थात् पिछले वित्त वर्ष के दौरान व्यापार घाटा बढ़कर लगभग 176 अरब डॉलर के रिकार्ड स्तर पर रहा, जो वर्ष 2017-18 में 162 अरब डालर था।

क्या है व्यापार संतुलन?

आयात और निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन (Balance of Trade) कहते हैं। जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो उसे व्यापार घाटे (Trade Deficit) का सामना करना पड़ता है। अर्थात् वह देश अपने यहाँ लोगों की मांग के अनुरूप वस्तुओं और सेवाओं का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहा है, इसलिये उसे अन्य देशों से इनका आयात करना पड़ रहा है। इसके विपरीत जब कोई देश आयात की तुलना में निर्यात अधिक करता है तो उसे ट्रेड सरप्लस (Trade Surplus) की स्थिति कहते हैं।

  • वित्त वर्ष 2017-18 में भारत ने लगभग 238 देशों और शासनाधिकृत क्षेत्रों के साथ कुल 768 अरब डॉलर का व्यापार (303 अरब डॉलर निर्यात और 465 अरब डॉलर आयात) किया।
  • इस अवधि में भारत का व्यापार घाटा 162 अरब डॉलर रहा। इनमें से 130 देशों के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस था जबकि करीब 88 देशों के साथ ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) रहा।
  • भारत का सर्वाधिक व्यापार घाटा पड़ोसी देश चीन के साथ 63 अरब डॉलर है। अर्थात् चीन के साथ व्यापार भारत के हित में कम तथा चीन के लिये अधिक फायदेमंद है।
  • चीन की तरह स्विट्ज़रलैंड, सऊदी अरब, इराक, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, नाइजीरिया, कतर, रूस, जापान और जर्मनी जैसे देशों के साथ भी भारत का व्यापार घाटा अधिक है।
  • जहाँ तक बात ट्रेड सरप्लस की है तो अमेरिका के साथ भारत का ट्रेड सरप्लस सर्वाधिक (21 अरब डॉलर) है। अर्थात् हम अमेरिका से आयात कम करते है और वहाँ के लिये निर्यात अधिक होता है। इस तरह अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार संतुलन का झुकाव भारत की ओर है। अमेरिका से व्यापार भारतीय अर्थव्यवस्था के अनुकूल है।
  • अमेरिका की तरह बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, हॉन्गकॉन्ग, नीदरलैंड्स, पाकिस्तान, वियतनाम और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भी भारत का ट्रेड सरप्लस है।
  • वैसे अमेरिका का व्यापार घाटा दुनिया में सर्वाधिक है, लेकिन अमेरिका इसे झेलने में सक्षम है क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे बड़ी है और डॉलर को पूरी दुनिया में रिज़र्व करेंसी के रूप में रखा जाता है।

अर्थव्यवस्था होती है प्रभावित

व्यापार घाटे का सीधा असर देश की आर्थिक स्थिति विशेषकर चालू खाते, रोज़गार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर पड़ता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि किसी देश का व्यापार घाटा लंबे समय तक बना रहता है तो उस देश की आर्थिक स्थिति, विशेषकर रोज़गार सृजन, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। चालू खाते के घाटे पर व्यापार घाटे का नकारात्मक असर पड़ता है। दरअसल, चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है तथा जब व्यापार घाटा बढ़ता है तो चालू खाते का घाटा भी भी बढ़ जाता है। चालू खाता घाटा विदेशी मुद्रा के देश में आने और बाहर जाने के अंतर को दर्शाता है। निर्यात के ज़रिये विदेशी मुद्रा अर्जित होती है, जबकि आयात से विदेशी मुद्रा बाहर जाती है। यही वज़ह है कि सरकार ने हाल में कई वस्तुओं पर आयात शुल्क की दर बढ़ाकर गैर-ज़रूरी वस्तुओं के आयात को कम करने का प्रयास किया है।

चीन से बढ़ता व्यापार असंतुलन चिंता का बड़ा कारण

  • पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में देश का आयात खर्च जिस तरह से बढ़ा है उससे विदेश व्यापार घाटे में कमी आने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही। पिछले कई वर्षों से चीन के साथ लगातार बढ़ता व्यापार घाटा भारत के लिये बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह व्यापार घाटा देश की अर्थव्यवस्था को लगातार प्रभावित कर रहा है। इस व्यापार घाटे का सीधा अर्थ यह है कि हम चीन से जितना उत्पाद और सेवाएँ खरीदते हैं उससे कम उत्पाद और सेवाएँ हम चीन के बाज़ार में बेचते हें।
  • हालाँकि पिछले वित्त वर्ष में चीन से होने वाले व्यापार घाटे में कुछ कमी आई है, लेकिन इससे देश के बढ़ते हुए विदेश व्यापार घाटे के कम होने पर कोई खास असर नहीं दिखा है। हाल में प्रकाशित भारत-चीन व्यापार के आँकड़ों के अनुसार, 2018-19 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88 अरब डॉलर रहा। इसमें खास बात यह कि पहली बार भारत, चीन के साथ व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर तक कम करने में सफल रहा और भारत का कुल व्यापार घाटा करीब 52 अरब डॉलर रहा।
  • यहाँ उल्लेखनीय यह है कि चीन के बाजार तक भारत की अधिक पहुँच और अमेरिका व चीन के बीच चल रहे मौजूदा व्यापार युद्ध के कारण पिछले वर्ष भारत से चीन को निर्यात बढ़कर 18 अरब डॉलर पर पहुँच गया, जो वर्ष 2017-18 में 13 अरब डॉलर था। इसी अवधि में चीन से भारत का आयात भी 76 अरब डॉलर से कम होकर 70 अरब डालर रह गया।
  • वर्तमान में चीन भारतीय उत्पादों का तीसरा बड़ा निर्यात बाजार है, जबकि चीन से भारत सबसे अधिक आयात करता है। दोनों देशों के बीच 2001-02 में आपसी व्यापार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2018-19 में बढ़कर करीब 88 अरब डॉलर पर पहुँच गया। चीन से भारत मुख्यत: इलेक्ट्रिक उपकरण, मशीनी सामान, कार्बनिक रसायन उत्पाद आदि आयात करता है। वहीं भारत से चीन को मुख्य रूप से खनिज, र्इंधन और कपास आदि का निर्यात किया जाता है।
  • पिछले एक दशक के दौरान चीन ने भारतीय बाज़ार में तेज़ी से अपनी पैठ बढ़ाई है, लेकिन 2018-19 में पहली बार चीन से होने वाले आयात में कमी आई। यह भारत-चीन व्यापार को रेखांकित करने वाला नया तथ्य है। भारत ने कुछ समय पहले चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिये 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिनका चीन को निर्यात बढ़ाया जा सकता है। इनमें मुख्य रूप से बागवानी, कपड़ा, रसायन और औषधि क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं।

अमेरिका की ओर से भी आ रही चुनौती

इस समय देश के व्यापार घाटे के सामने एक बड़ी चुनौती अमेरिका की ओर से आती दिखाई दे रही है। अमेरिका का कहना है कि भारत की संरक्षणवादी नीतियों से विदेशी कंपनियों पर बोझ बढ़ता है। दिल्ली में हुए ट्रेड विंड्स फोरम और ट्रेड मिशन में अमेरिका कॉमर्स सेक्रेटरी विल्बर रॉस ने कहा कि भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों के लिये बाधाएँ कम करने की ज़रूरत है। इनमें डेटा लोकलाइजेशन की पाबंदी भी शामिल है। इससे डेटा सिक्योरिटी कमज़ोर होगी और भारत में बिज़नेस करने की लागत बढ़ेगी। अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी कंपनियों के लिये व्यापार बाधाएँ हटाए और डेटा लोकलाइज़ेशन की बाध्यता समाप्त करे। जबकि भारत का कहना है कि उसके नागरिकों की वित्तीय और अन्य संवेदनशील सूचनाएँ देश में ही स्टोर की जानी चाहिये। अभी अमेरिकी कंपनियों को भारत में बाज़ार पहुँच को लेकर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनमें टैरिफ और नॉन-टैरिफ दोनों तरह की बाधाएँ शामिल हैं।

अमेरिका भारत की ई-कॉमर्स पॉलिसी से भी संतुष्ट नहीं है। उसका मानना है कि इसके ज़रिये एमेजॉन और वॉलमार्ट के मालिकाना हक वाली फ्लिपकार्ट के साथ भेदभाव किया गया है। भारत ने विदेशी निवेश वाली ई-कॉमर्स कंपनियों पर सहयोगी कंपनियों के सामान बेचने पर रोक लगा दी थी। ई-कॉमर्स पॉलिसी में इन प्लेटफॉर्म्स पर किसी प्रोडक्ट की एक्सक्लूसिव सेल पर भी रोक लगाई गई है। पॉलिसी में कहा गया है कि ऐसी कंपनियाँ सिर्फ मार्केटप्लेस के तौर पर काम कर सकती हैं।

इसके अलावा अमेरिका मेडिकल डिवाइसेज़ और दवाओं के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम प्रोडक्ट्स पर लगने वाले टैरिफ से भी खुश नहीं है। अमेरिका यह मानता है कि दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार 'संतुलित' नहीं है। राउटर और स्विच के साथ भारत में सेलुलर फोन के कुछ पार्ट्स पर 20 फीसदी तक शुल्क लगाया जाता है, जबकि अमेरिका में ऐसे उत्पादों पर कोई शुल्क नहीं लगता। ज़ीरो बनाम 20 फीसदी...इस असंतुलन को सही नहीं ठहराया जा सकता। ऊँचे टैरिफ से भारत को डिजिटल एक्सेस का लक्ष्य हासिल करने में दिक्कत होगी। भारत के साथ अमेरिका का गुड्स और सर्विसेज़ दोनों में व्यापार घाटा है, जबकि दुनिया के अन्य देशों के साथ इस मामले में अमेरिका ट्रेड सरप्लस में है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अक्सर भारत को 'टैरिफ किंग' कहते रहे हैं। उन्होंने हार्ली डेविडसन मोटरसाइकल पर टैरिफ की कई बार शिकायत की है। वह कह चुके हैं कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं पर अन्यायपूर्ण तरीके से आयात शुल्क लगाए हैं। अब अमेरिका भी भारत को मिलने वाली विभिन्न प्रकार की निर्यात संबंधी रियायतों पर नियंत्रण करेगा।

अमेरिका ने भारत को दी गई प्राथमिकताओं की सामान्यीकरण प्रणाली (GSP) का दर्जा समाप्त कर दिया है। अमेरिका से मिली व्यापार छूट के तहत अब भारत से दिये जाने वाले लगभग 5.6 अरब डॉलर यानी 40 हज़ार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता था। अमेरिका द्वारा भारत से आयात को दी जा रही तरजीह को बंद करने से भारत में कपड़े, रेडीमेड कपड़े, रेशमी कपड़े, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, फुटवियर, प्लास्टिक के उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, हाथ के औज़ार, साइकिल के पुर्ज़ों जैसी संबंधित औद्योगिक इकाइयों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है।

अन्य देशों से भी मिल रही चुनौती

इस समय देश से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की राह में कुछ और चुनौतियाँ भी दिखाई दे रही हैं। इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती तब सामने आई जब हाल ही में यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड ने अमेरिका के साथ मिलकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत की निर्यात संवर्द्धन योजनाओं के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया। इसमें कहा गया है कि अब भारत अपने निर्यातकों के लिये सब्सिडी योजनाएँ लागू नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करना WTO समझौते का उल्लंघन है।

क्या किया जा सकता है ?

  • निश्चित रूप से निर्यात परिदृश्य पर दिखाई दे रही मुश्किलों को दूर करना होगा। भारतीय निर्यातकों के संगठन फियो (FIEO) का कहना है कि भारत के मुकाबले बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड जैसे कई छोटे देशों ने अपने निर्यातकों को भारी सुविधाएँ देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी चुनौती पेश की है।
  • भारतीय निर्यातकों को वस्तु एवं सेवा कर (GST) में आने वाली रिफंड संबंधी कठिनाई को दूर करना होगा।
  • निर्यात को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिये और सभी निर्यातकों के लिये ब्याज सब्सिडी बहाल की जानी चाहिये।
  • सरकार द्वारा निर्यात वृद्धि के दीर्घकालिक प्रयासों के तहत निर्यात कारोबार का कमज़ोर बुनियादी ढाँचा सुधारे जाने की ज़रूरत है। खासतौर से समुद्री व्यापार से संबंधित बुनियादी ढाँचे पर विशेष ध्यान देना होगा।
  • विभिन्न क्षेत्रीय कारोबारी समूहों और मुक्त व्यापार समझौतों के क्षेत्र में पूरा नियंत्रण हासिल करना होगा।
  • सार्क देशों- श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान को भारतीय निर्यात बढ़ने की संभावनाएँ हैं।
  • ब्राज़ील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका में भी निर्यात बढ़ने की संभावना है।
  • म्यांमार और मलेशिया सहित आसियान देशों को भी निर्यात बढ़ाया जा सकता है।
  • सरकार को निर्यात को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर ध्यान देना होगा, जैसे- अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएँ, मुद्रा का उतार-चढ़ाव और सेवा कर।
  • तुलनात्मक रूप से कम उपयोगी आयात पर कुछ नियंत्रण करना होगा, जबकि निर्यात की नई संभावनाएँ खोजनी होंगी।
  • इस समय भारत-चीन के बीच व्यापार बढ़ने और भारत से चीन को निर्यात बढ़ाने का जो नया परिदृश्य दिखाई दे रहा है, उसका भरपूर लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • चीन को निर्यात बढ़ाने के लिये हमें चीन के बाज़ार में भारतीय सामान की पैठ बढ़ाने के लिये उन क्षेत्रों को समझना होगा, जहाँ चीन को गुणवत्तापूर्ण भारतीय वस्तुओं की आवश्यकता है। गुणवत्तापूर्ण उत्पादों के मामले में भारत चीन से बहुत आगे है।
  • देश से कृषि निर्यात की नई संभावनाएँ भी उभर रही हैं। खाद्यान्न, फलों और सब्जियों का उत्पादन हमारी खपत से बहुत ज़्यादा है। कृषि क्षेत्र में होने वाला यह अतिरिक्त उत्पादन देश से निर्यात की नई संभावनाएँ प्रस्तुत कर रहा है।

आज जब दुनिया में वैश्विक मंदी के हालात बन रहे हैं और अमेरिका द्वारा ईरान से भारत के कच्चे तेल के आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के कारण तेल की कीमतें फिर से बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं, ऐसे में भारत रणनीतिक रूप से निर्यात बढ़ाने और आयात नियंत्रण की सही राह पर कैसे आगे बढ़े, यह चुनौती सरकार के समक्ष है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लगातार बढ़ रहे विदेश व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के उपायों पर प्रकाश डालिये। विशेषकर चीन के साथ बढ़ रहे व्यापार घाटे को कम करने के लिये भारत को क्या कदम उठाने चाहिये?