कृषि
चावल के लिये न्यूनतम निर्यात मूल्य
- 04 Sep 2023
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में चावल और गेहूँ दोनों का उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है, फिर भी कृषि क्षेत्र में निर्यात प्रतिबंधों तथा व्यापार नियंत्रण के रूप में सप्लाई साइड एक्शन (सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की उपलब्धता या सामर्थ्य बढ़ाने के लिये किये गए उपाय) में वृद्धि का अनुभव किया गया है।
- सरकार ने घरेलू कीमतों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से बासमती चावल शिपमेंट पर 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (Minimum Export Price- MEP) निर्धारित किया है।
चावल-गेहूँ के निर्यात पर अंकुश लगाने को सरकार द्वारा किये गए हालिया उपाय:
- मई 2022 में सरकार ने गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- टूटे हुए चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया तथा सितंबर 2022 में सभी सफेद (गैर-उबला हुआ) गैर-बासमती चावल के शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाया।
- जुलाई 2023 में सरकार ने सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, केवल उबले हुए गैर-बासमती तथा बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी।
- अगस्त 2023 में सभी उबले हुए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर "तत्काल प्रभाव से" 20% शुल्क लगाया गया था। इस प्रकार के चावल के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिये यह शुल्क लागू किया गया था।
- अगस्त 2023 में सरकार ने कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural & Processed Food Products Exports Development Authority- APEDA) को 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन तथा उससे अधिक मूल्य के बासमती चावल निर्यात के लिये अनुबंधों को पंजीकरण-सह-आवंटन प्रमाण पत्र (आरसीएसी) जारी करने का निर्देश दिया।
- यह MEP बासमती चावल के नाम पर सफेद गैर-बासमती चावल के संभावित अवैध निर्यात को रोकने के लिये लगाया गया था।
चावल और गेहूँ का उत्पादन:
- चावल उत्पादन:
- चावल का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 124.37 मिलियन टन (mt) से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 129.47 mt हो गया, जो वर्ष 2022-23 में 135.54 mt तक पहुँच गया।
- हालाँकि सरकार ने विपरीत प्रभाव के कारण चावल पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया।
- इन उपायों में टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध तथा सफेद गैर-बासमती शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाना शामिल है।
- विविध/वृहत्त गेहूँ उत्पादन:
- गेहूँ का उत्पादन शुरू में 109.59 मिलियन टन से गिरकर 107.74 मिलियन टन हो गया जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 112.74 मिलियन टन हो गया।
- सरकार ने गेहूँ के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जो घरेलू मांग को प्रबंधित करने के उसके इरादे को दर्शाता है।
निर्यात प्रतिबंधों को प्रभावित करने वाले कारक:
- रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति तथा खुले बाज़ार की कीमतें बढ़ी हैं।
- खुदरा चावल और गेहूँ की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे सरकार को घरेलू कीमतों को स्थिर करने के लिये हस्तक्षेप करना पड़ा।
- सरकार के उपायों का उद्देश्य घरेलू अनाज की उपलब्धता बढ़ाने और बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने के लिये निर्यात को कम करना अथवा रोकना है।
- बढ़ती मांग, थाईलैंड जैसे प्रमुख उत्पादकों के उत्पादन में व्यवधान और El Nino के संभावित प्रतिकूल प्रभावों की आशंकाओं के कारण अगस्त 2023 में एशियाई चावल की कीमतें लगभग 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गईं।
निर्यात नियंत्रण की चुनौतियाँ एवं प्रभाव:
- चावल पर लगाए गए चयनात्मक नियंत्रण जैसे कि गलत वर्गीकरण के माध्यम से चोरी होने की संभावना है।
- उदाहरण हेतु सफेद गैर-बासमती चावल का निर्यात उबले हुए चावल और बासमती चावल के कोड के तहत किया जाता था।
- निर्यात प्रतिबंधों के बावजूद खुले बाज़ार में कीमतें ऊँची रहीं, जिससे पता चलता है कि इन उपायों से कीमतों में कोई अपेक्षित गिरावट नहीं आई।
निर्यात को सुव्यवस्थित और कीमतों को स्थिर करने हेतु उठाए जाने वाले कदम:
- विशेषज्ञ सभी प्रकार के चावल के लिये एक समान MEP लागू करने का सुझाव देते हैं, चाहे वह बासमती हो, आंशिक रूप से उबला हुआ (Parboiled) हो, अथवा गैर-बासमती हो। यह दृष्टिकोण निर्यात को सुव्यवस्थित करने तथा कीमतों को स्थिर करने में मदद कर सकता है।
- MEP कुछ निर्यात योग्य वस्तुओं अथवा उत्पादों पर सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य सीमा या न्यूनतम मूल्य है। यह वह न्यूनतम कीमत है जिस पर इन वस्तुओं को देश से निर्यात किया जा सकता है।
- 800 अमेरिकी डॉलर प्रति टन जैसे उचित स्तर पर निर्धारित एक समान MEP, विभिन्न अधिमूल्य चावल किस्मों के निर्यात को प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे उत्पादकों और घरेलू खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के सरकार के लक्ष्य दोनों को लाभ होगा।
चावल और गेहूँ संबंधी प्रमुख बिंदु:
- चावल:
- चावल भारत की अधिकांश आबादी का मुख्य भोजन है।
- यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25°C से ऊपर) और उच्च आर्द्रता के साथ 100 cm से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई की सहायता से उगाया जाता है।
- दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियों के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें उगाई जाती हैं।
- पश्चिम बंगाल में किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन' और 'बोरो' कहा जाता है।
- भारत में कुल फसली क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई क्षेत्र चावल की खेती में इस्तेमाल होता है।
- अग्रणी उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
- उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
- चीन के बाद भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- गेहूँ:
- चावल के बाद यह भारत में दूसरी सबसे प्रमुख अनाज की फसल है।
- यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य खाद्य फसल है। गेहूँ एक रबी फसल है जिसे पकने के समय ठंडे मौसम तथा तेज़ धूप की आवश्यकता होती है।
- हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों, विशेषकर गेहूँ की वृद्धि में योगदान दिया।
- मैक्रो मैनेजमेंट मोड ऑफ एग्रीकल्चर, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती को समर्थन देने वाली कुछ सरकारी पहल हैं।
- तापमान: तेज़ धूप के साथ 10-15°C (बुवाई के समय) और 21-26°C (पकने और कटाई के समय) के बीच होना चाहिये। वर्षा: लगभग 75-100 cm होनी चाहिये।
- मृदा के प्रकार: अच्छी तरह से सूखी उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट (दक्कन के गंगा-सतलुज मैदान और काली मृदा क्षेत्र) मृदा।
- मुख्य गेहूँ उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, गुजरात।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों के दौरान विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019) (a) चीन उत्तर: (b) |