आंतरिक सुरक्षा
भारत में रोहिंग्या शरणार्थी
- 22 May 2023
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:रोहिंग्या, म्याँमार, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR), नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA), शरणार्थी सम्मेलन, 1951 मेन्स के लिये:भारत द्वारा 1951 के शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं करने के निर्णय के पीछे का कारण, शरणार्थियों के प्रबंधन हेतु भारत में वर्तमान विधायी ढाँचा |
चर्चा में क्यों?
'ए शैडो ऑफ रिफ्यूजी: रोहिंग्या रिफ्यूजीज़ इन इंडिया' शीर्षक वाली हालिया रिपोर्ट भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों को उजागर करती है।
- यह रिपोर्ट संयुक्त रूप से आज़ादी प्रोजेक्ट, ए वुमेन राईट नॉन प्रॉफिट एंड रिफ्यूजी इंटरनेशनल, अंतर्राष्ट्रीय NGO द्वारा तैयार की गई है जो राज्यविहीन लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है।
रोहिंग्या संकट:
- रोहिंग्या लोगों ने म्याँमार में दशकों से हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न का सामना किया है।
- रोहिंग्या को आधिकारिक जातीय समूह के रूप में मान्यता नहीं दी गई है और वर्ष 1982 से उन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया गया है। वे दुनिया की सबसे बड़ी राज्यविहीन आबादी में से एक हैं।
- म्याँमार में हिंसा के कारण रोहिंग्याओं ने 1990 के दशक की शुरुआत से पलायन शुरू कर दिया।
- उनका सबसे बड़ा और तीव्र पलायन अगस्त 2017 में शुरू देखा गया जब म्याँमार के रखाइन राज्य में हिंसा भड़क उठी, जिसके कारण 742,000 से अधिक लोग पड़ोसी देशों में शरण लेने हेतु मजबूर हुए, जिनमें अधिकांश महिलाएँ एवं बच्चे थे।
रिपोर्ट में उल्लिखित चुनौतियाँ एवं सिफारिशें:
- रोहिंग्या से संबंधित चुनौतियाँ:
- पुनर्वास हेतु अस्वीकृत निकास अनुमतियाँ:
- वे रोहिंग्या शरणार्थी, जिन्होंने शरणार्थी स्थिति निर्धारण प्रक्रिया पूरी कर ली है और अन्य देशों में पुनर्वास के लिये अनुमोदन प्राप्त कर चुके हैं, भारत का रोहिंग्या शरणार्थी को निकास वीजा देने से इनकार करना एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है।
- लांछन और शरणार्थी विरोधी भावना:
- भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें "अवैध प्रवासी" के रूप में चिह्नित किया जाना भी शामिल है।
- यह लांछन न केवल समाज में उनके एकीकरण को बाधित करता है बल्कि उन्हें म्याँमार वापस निर्वासित किये जाने के जोखिम में भी डालता है, जो कि शासन के डर से वहाँ से पलायन कर गए थे।
- निर्वासन का डर:
- वास्तविक और धमकी भरे निर्वासन ने रोहिंग्या समुदाय के अंदर भय की भावना उत्पन्न कर दी है, जिससे कुछ लोग बांग्लादेश में शिविरों में लौटने के लिये मजबूर हो गए हैं।
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध एवं बाल अधिकारों पर सम्मेलन सहित अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, भारत को रोहिंग्याओं को म्याँमार वापस नहीं भेजने को बाध्य करते हैं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा खतरों के संबंध में सरकार के तर्कों को स्वीकार कर लिया है, जिससे निर्वासन को आगे बढ़ाने की अनुमति मिल गई है।
- जीवनयापन की जटिल स्थिति:
- रिपोर्ट में भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की गंभीर जीवन स्थितियों का विवरण दिया गया है, जो असुरक्षित पेयजल, शौचालय या बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के अभाव के कारण झुग्गी जैसी बस्तियों में रहते हैं।
- वैध यात्रा दस्तावेज़ों के बिना उनका आवश्यक सेवाओं जैसे स्कूल में प्रवेश के लिये आधार कार्ड प्राप्त करना असंभव हो गया है।
- रिपोर्ट में भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों की गंभीर जीवन स्थितियों का विवरण दिया गया है, जो असुरक्षित पेयजल, शौचालय या बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के अभाव के कारण झुग्गी जैसी बस्तियों में रहते हैं।
- पुनर्वास हेतु अस्वीकृत निकास अनुमतियाँ:
- सिफारिशें:
- औपचारिक मान्यता और घरेलू कानून: भारत को औपचारिक रूप से रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध प्रवासियों के बजाय शरण के अधिकार वाले व्यक्तियों के रूप में मान्यता देनी चाहिये।
- शरणार्थी सम्मेलन 1951 पर हस्ताक्षर करना और शरणार्थियों एवं शरण पर घरेलू कानूनों की स्थापना इसे प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
- निवास की स्वीकृति: भारत UNHCR कार्ड को बुनियादी शिक्षा, कार्य और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच के लिये पर्याप्त माना जा सकता है।
- UNHCR कार्ड संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) द्वारा शरणार्थियों को जारी किये गए पहचान दस्तावेज़ को संदर्भित करता है, जो कि ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें शरण चाहने वालों के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
- UNHCR संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था है जो विश्व भर में शरणार्थियों की सुरक्षा और सहायता के लिये कार्य करती है।
- UNHCR कार्ड एक शरणार्थी या शरण चाहने वाले के रूप में व्यक्ति की स्थिति का प्रमाण है और यह उन्हें उस देश में कुछ अधिकार एवं उनके निवास हेतु देशों या स्थानों पर उन्हें कुछ बुनियादी सेवाओं तक पहुँच प्रदान करने में सहायक हो सकते हैं।
- वैश्विक विश्वसनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा: शरणार्थियों के साथ बेहतर व्यवहार करने से भारत की वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ेगी, अतः उन पर कठोर निगरानी को हतोत्साहित कर तथा इनके आगमन का दस्तावेज़ीकरण करने से राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों की पूर्ति होगी।
- रिपोर्ट बताती है कि भारत अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी जैसे सहयोगी देशों और अन्य यूरोपीय देशों में उनकी स्वीकृति की वकालत करके रोहिंग्या शरणार्थियों के लिये पुनर्वास के अवसरों को सुविधाजनक बनाने में सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
- औपचारिक मान्यता और घरेलू कानून: भारत को औपचारिक रूप से रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध प्रवासियों के बजाय शरण के अधिकार वाले व्यक्तियों के रूप में मान्यता देनी चाहिये।
भारत द्वारा 1951 के शरणार्थी समझौते पर हस्ताक्षर न करने के निर्णय के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
- शरणार्थी की परिभाषा से जुड़ा मुद्दा: 1951 के समझौते के अनुसार, शरणार्थियों को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित हैं, किंतु अपने आर्थिक अधिकारों से नहीं।
- अगर आर्थिक अधिकारों के हनन को शरणार्थी की परिभाषा में शामिल कर लिया जाए तो यह स्पष्ट रूप से विकसित देशों पर एक बड़ा बोझ होगा।
- संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: देश अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिये अनिच्छुक हो सकते हैं, जो यह मानते हैं कि वे उनकी संप्रभुता से समझौता कर सकते हैं या उनकी घरेलू नीतियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप कर सकते हैं।
- सम्मेलन पर हस्ताक्षर न करके भारत अपनी शरणार्थी नीतियों को लागू करने की स्वतंत्रता को बनाए रखता है।
- सीमित संसाधन: भारत, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है और पहले से ही अपनी आबादी को बुनियादी सेवाएँ एवं संसाधन प्रदान करने के लिये गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने से शरणार्थियों की सुरक्षा के साथ सहायता से संबंधित उत्तरदायित्व और संसाधन बोझ अधिक बढ़ सकता है
- सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने से शरणार्थियों की सुरक्षा के साथ सहायता से संबंधित उत्तरदायित्व और संसाधन बोझ अधिक बढ़ सकता है
- क्षेत्रीय गतिशीलता: भारत एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है जो ऐतिहासिक रूप से विभिन्न संघर्षों और विस्थापन स्थितियों से प्रभावित रहा है।
- दक्षिण एशिया में सीमाओं की खुली प्रकृति के कारण भारत को पड़ोसी देशों से शरणार्थियों के प्रवाह का सामना करना पड़ा है।
- हालाँकि भारत अभी भी अन्य अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों और प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सिद्धांतों से संबद्द है।
शरणार्थियों को संभालने के लिये भारत में वर्तमान विधायी ढाँचा क्या है?
- भारत सभी विदेशियों के साथ समान व्यवहार करता है चाहे वे अवैध अप्रवासी, शरणार्थी/शरण चाहने वाले हों या वीज़ा परमिट के साथ अधिक समय तक रहने वाले हों।
- विदेशी अधिनियम, 1946 : धारा 3 के अंतर्गत केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: धारा 5 के अंतर्गत अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के अंतर्गत एक अवैध विदेशी को बलपूर्वक हटा सकते हैं।
- विदेशी पंजीकरण अधिनियम, 1939 (Registration of Foreigners Act of 1939): इसके अंतर्गत एक अनिवार्य आवश्यकता लागू है जिसके तहत भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (विदेशी भारतीय नागरिकों को छोड़कर) को दीर्घावधिक वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने के 14 दिनों के भीतर एक पंजीकरण अधिकारी के समक्ष स्वयं को पंजीकृत कराना होगा।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955): इसमें नागरिकता का त्याग, नागरिकता पर्यवसान और नागरिकता से वंचित किये जाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
- इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने का उद्देश्य रखता है।
- भारत ने शरणार्थी होने का दावा करने वाले विदेशी नागरिकों के साथ व्यवहार करते समय सभी संबंधित एजेंसियों द्वारा अनुपालन हेतु एक मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) स्थापित की है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016) कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित समुदाय किसके मामलों में
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. अवैध सीमा पार प्रवास भारत की सुरक्षा के लिये कैसे खतरा उत्पन्न करता है? इस तरह के प्रवासन को बढ़ावा देने वाले कारकों को उजागर करते हुए इसे रोकने के लिये रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। (2014) |