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राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान स्थिति और प्रमुख चुनौतियाँ

राष्ट्रीय सुरक्षा से आशय किसी राष्ट्र-राज्य की सरकार की अपने नागरिकों, अर्थव्यवस्था और अन्य संस्थानों की सुरक्षा करने की क्षमता से है। इक्कीसवीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ सैन्य हमलों के खिलाफ स्पष्ट सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है बल्कि आज तो राष्ट्रीय सुरक्षा में कई गैर-सैन्य मिशन भी शामिल हैं। यदि राष्ट्रीय सुरक्षा के इन गैर-सैन्य मिशनों की बात की जाएं तो इसके अंतर्गत आर्थिक सुरक्षा, राजनीतिक सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, मातृभूमि सुरक्षा, साइबर सुरक्षा, मानव सुरक्षा और पर्यावरण सुरक्षा जैसे विषय शामिल हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा की सुनिश्चितता हेतु सरकारें कूटनीति के साथ-साथ राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य शक्ति आदि रणनीतियों पर अमल करती हैं।

यदि भारत के संदर्भ में राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नीतियों और अवधारणाओं पर बात की जाए तो यह उतनी ही पुरानी है जितनी कि राज्य संचालन हेतु शासन-प्रशासन की पद्धति। महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य के शब्दों में, किसी भी प्रकार के आक्रमण से अपनी प्रजा की रक्षा करना प्रत्येक राजसत्ता का सर्वप्रथम उद्देश्य होता है। इनके अनुसार, “प्रजा का सुख ही राजा का सुख और प्रजा का हित ही राजा का हित होता है।” चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि एक राज्य को चार अलग-अलग प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ सकता है- आंतरिक खतरा, बाहरी खतरा, बाहरी सहायता प्राप्त आंतरिक खतरा आंतरिक रूप से सहायता प्राप्त बाहरी खतरा। कमोबेश यही चार खतरे वर्तमान में भी राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष मौजूद हैं, बस इनके स्वरूप में बदलाव हुआ है।

भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान स्थिति पर यदि गौर करें तो केंद्र की अलग-अलग सरकारों ने इसके लिए तमाम इंतज़ाम किये हैं। वर्ष 1980 का राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधक तत्त्वों के निवारक निरोध की अनुमति देता है। यदि संबंधित सरकारी प्राधिकारी किसी व्यक्ति के संदर्भ में संतुष्ट हो जाएं कि यह कानून और व्यवस्था के लिए बाधक बन सकता है तो उन्हें तीन महीने तक निवारक निरोध के अंतर्गत निरुद्ध किया जा सकता है। इसके बाद भी व्यक्ति का कारावास जारी रखा जा सकता है यदि सलाहकार बोर्ड द्वारा इस सम्बंध में संस्तुति दे दी जाए। इसका लक्ष्य व्यक्ति को अपराध करने से रोकना है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति के निवारक निरोध के आधारों में शामिल हैं- भारत की रक्षा, विदेशी शक्तियों के साथ भारत के संबंधों या भारत की सुरक्षा के प्रतिकूल किसी भी तरीके से कार्य करना आदि।

एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति या नीति, देश के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं और सुरक्षा चिंताओं को पूरा करने और देश के लिए बाहरी और आंतरिक खतरों को दूर करने के लिए देश के लिए एक महत्वपूर्ण ढांचा है। भारतीय राज्य के पास एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का अभाव है जो देश की सुरक्षा के लिए चुनौतियों का व्यापक आकलन करती हो और उनसे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए नीतियां बनाती हो। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता में एक शीर्ष स्तरीय रक्षा योजना समिति की स्थापना वर्ष 2018 में की गई थी, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति तैयार करनी थी लेकिन अब तक इस पर कोई प्रगति नहीं हो पाई है।

इसके साथ ही भारत के पास अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत भी नहीं है। राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत राजनेताओं को देश के भू-राजनीतिक हितों की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने में मदद करता है। इसमें देश की सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों की समग्रता शामिल है जो देश के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा और बढ़ावा देगी।

यदि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष चुनौतियों पर गौर करें तो भारत की भू-राजनीतिक स्थिति, इसके पड़ोसी कारक, विस्तृत एवं जोखिम भरी स्थलीय, वायु और समुद्री सीमा के साथ इस देश के ऐतिहासिक अनुभव इसे सुरक्षा की दृष्टि से अतिसंवेदनशील बनाते हैं। वर्तमान समय में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष सबसे बड़ा खतरा आतंकवाद है। आतंकवाद ऐसे कार्यों का समूह होता है जिसमें हिंसा का उपयोग किसी प्रकार का भय व क्षति उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। यदि भारत मे हुई बड़ी आतंकी घटनाओं की बात की जाएं तो वर्ष 2008 का मुंबई बम धमाका, वर्ष 2016 के पुलवामा हमले ने भारत को गहरे जख्म दिए है।

आतंकवाद के अतिरिक्त संगठित अपराध भी आज राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्मुख बड़ा खतरा है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्थिक अथवा अन्य लाभों के लिये एक से अधिक व्यक्तियों का संगठित दल, जो गंभीर अपराध करने के लिये एकजुट होते हैं, संगठित अपराध की श्रेणी में आता है। गैर-पारंपरिक अथवा आधुनिक संगठित अपराधों में हवाला कारोबार, साइबर अपराध, मानव तस्करी, मादक द्रव्य व्यापार आदि शामिल हैं। यदि भारत मे बढ़ते हुए साइबर खतरों को समझना है तो इस संबंध में कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम की रिपोर्ट उल्लेखनीय है। भारत की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम ने 2022 की अपनी इंडिया रैनसमवेयर रिपोर्ट में कहा था कि भारत में महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचे समेत तमाम क्षेत्रों पर रैनसमवेयर के हमलों की संख्या में 51 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

इन समस्याओं के अतिरिक्त नक्सलवाद भी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक प्रमुख खतरा है। नक्सलियों के हमलों में तमाम निर्दोष लोगों की जानें गई है। इसके अलावा नक्सलियों ने बहुमूल्य राष्ट्रीय अवसंरचनाओं को भी क्षतिग्रस्त किया है।

धार्मिक कट्टरता एवं नृजातीय संघर्ष भी राष्ट्रीय सुरक्षा को चोट पहुँचा रहे हैं। विभिन्न अतिवादी संगठन अपने धर्म, भाषा या क्षेत्र की श्रेष्ठता का दावा प्रस्तुत करते हैं तथा विद्धेषपूर्ण मानसिकता का विकास करते हैं। इन्हीं के कारण स्वतंत्रता से लेकर अब तक भारत में अनेक साम्प्रदायिक दंगे भी हुए हैं। इन समस्याओं के अतिरिक्त मादक द्रव्यों की तस्करी भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को चोट पहुँचा रही है। भारत के पड़ोसी देशों में ‘स्वर्णिम त्रिभुज’ (म्यांमार, थाईलैंड और लाओस) व ‘स्वर्णिम अर्द्धचंद्राकार’ (अफगानिस्तान, ईरान एवं पाकिस्तान) क्षेत्रों की उपस्थिति के परिणामस्वरूप मादक द्रव्यों का बढ़ता व्यापार भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्मुख प्रमुख समस्या बन कर उभरा है।

काले धन को वैध बनाने की प्रकिया धन शोधन अर्थात मनी लांड्रिंग कहलाती है। इसमें शामिल धन का उपयोग राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है। मनी लांड्रिंग से उत्पन्न धन से मादक द्रव्यों की तस्करी, आतंकवाद का वित्तपोषण और हवाला कारोबार किया जाता है। इसके अतिरिक्त भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कुछ नीतिगत चिंताएं भी हैं जैसे अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों द्वारा प्रत्येक वर्ष परिस्थितियों के अनुसार अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतो को संशोधित किया जाता है जबकि भारत में इस संबंध में स्पष्ट कार्ययोजना का अभाव है। इसके अतिरिक्त भारत के पास राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी दीर्घकालिक नीतियों के संबंध में भी अस्पष्टता है।

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को वराह युद्ध नीति(Battle pig policy) की आवश्यकता है। इसे इस परिघटना के माध्यम से समझिये- मेगेरा(ग्रीस का एक शहर) की घेराबंदी के दौरान, मैसेडोनिया का राजा एंटीगोनस (द्वितीय) युद्ध क्षेत्र में भारतीय हाथियों को हमले में लाता है। इसके प्रतिउत्तर में एक रणनीति के तहत मेगेरिया की सेना युद्ध के मैदान में सुअरों को छोड़ देती है। इसके साथ ही वहाँ आग लगा दी जाती है और सुअरों को हाथियों के मध्य तितर-बितर कर दिया जाता है। सुअर आग की यातना से कराहते-चिल्लाते है और हाथियों के बीच जितना हो सके आगे की ओर उछलते है। इससे हाथियों का झुंड भ्रम और भय से अपनी श्रेणियों को तोड़ देता है, और अलग-अलग दिशाओं में भाग जाता है। यह कहानी बताती है कि युद्ध में विजय मजबूत सेना को नही बल्कि तीक्ष्ण बुद्धि और तार्किक निर्णय लेने वाली सेना को मिलती है।

भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए सबसे पहले एक सुस्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति को सुपरिभाषित करना होगा। इसके साथ ही एक अलग मंत्रालय के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के मंत्रालय की स्थापना और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रशासनिक सेवा नाम से एक केंद्रीय सेवा की स्थापना करनी चाहिए। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में नीति निर्माण सम्बंधी स्पष्टता के साथ ही प्रभावी क्रियान्वयन की सुनिश्चितता भी संभव होगी।

  संकर्षण शुक्ला  

संकर्षण शुक्ला उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले से हैं। इन्होने स्नातक की पढ़ाई अपने गृह जनपद से ही की है। इसके बाद बीबीएयू लखनऊ से जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक किया है। आजकल वे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग और पत्र-पत्रिकाओं में किताब की समीक्षा लिखते हैं।

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