नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

पेपर 2


शासन व्यवस्था

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019

  • 02 Jan 2020
  • 13 min read

परिचय:

हाल ही में संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया, जो राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिनियम बन गया है।

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने के लिये लाया गया है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 नागरिकता प्राप्त करने के लिये विभिन्न आधार प्रदान करता है। जैसे- जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र इत्यादि।
    • इसके अलावा यह भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India-OCI) कार्डधारकों के पंजीकरण और उनके अधिकारों को नियंत्रित करता है।
    • OCI भारत यात्रा के लिये पंजीकृत प्रणाली को बहुउद्देशीय, आजीवन वीज़ा जैसे कुछ लाभ प्रदान करता है।
  • हालाँकि अवैध प्रवासियों के लिये भारतीय नागरिकता प्राप्त करना प्रतिबंधित है।
  • अवैध अप्रवासी से तात्पर्य एक ऐसे विदेशी व्यक्ति से है जो वैध यात्रा दस्तावेज़ों जैसे कि वीज़ा और पासपोर्ट के बिना देश में प्रवेश करता है या फिर वैध दस्तावेज़ों के साथ देश में प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समयावधि समाप्ति के बाद भी देश में रुका रहता है।
  • अवैध प्रवासी पर भारत में मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे निर्वासित या कैद किया जा सकता है।
  • सितंबर 2015 और जुलाई 2016 में सरकार ने अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को कैद या निर्वासित करने से छूट दी।

संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • विधेयक में किये गये संशोधन के अनुसार, 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
    • इन प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 में भी छूट प्रदान करनी होगी।
    • 1946 और 1920 के अधिनियम केंद्र सरकार को भारत में विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
  • पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता: अधिनियम किसी भी व्यक्ति को पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है लेकिन इसके लिये कुछ योग्यताओं को पूरा करना अनिवार्य है। जैसे-
    • आवेदनकर्त्ता आवेदन करने के एक वर्ष पहले से भारत में रह रहा हो या उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो, तो वह पंजीकरण के बाद नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता है।
    • स्वाभाविक रूप से नागरिकता प्राप्त करने की योग्यता में से एक यह है कि व्यक्ति आवेदन करने से पहले एक निश्चित समयावधि से भारत में रह रहा हो या केंद्र सरकार में नौकरी कर रहा हो और कम-से-कम 11 वर्ष का समय उसने भारत में बिताया हो।
    • इस योग्यता के संबंध में विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों के लिये एक प्रावधान है। व्यक्तियों के इन समूहों के लिये 11 साल की अवधि को घटाकर पाँच साल कर दिया जाएगा।
    • नागरिकता प्राप्त करने पर: (i) ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और (ii) उनके खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में कानूनी कार्यवाही बंद कर दी जायेगी।

संशोधित अधिनियम की व्यावहारिकता

  • अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता का यह प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इन आदिवासी क्षेत्रों में कार्बी आंगलोंग (असम), गारो हिल्स (मेघालय), चकमा जिला (मिज़ोरम) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र जिला शामिल हैं।
    इसके अलावा यह बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत ‘इनर लाइन’ में आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इन क्षेत्रों में इनर लाइन परमिट के माध्यम से भारतीयों की यात्राओं को विनियमित किया जाता है।

वर्तमान में यह परमिट प्रणाली अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड पर लागू है। मणिपुर को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit- ILP) शासन के तहत लाया गया है और उसी दिन संसद में यह बिल पारित किया गया था।

  • OCI के पंजीकरण को रद्द करना: अधिनियम में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार कुछ आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है। इसमें शामिल हैं: (i) यदि OCI ने धोखाधड़ी द्वारा पंजीकरण कराया हो या (ii) यदि पंजीकरण कराने कि तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई हो या (iii) यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के हित में आवश्यक हो।
    विधेयक पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ता है, इस नए आधार के अनुसार, OCI ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया है तो कार्डधारक को सुनवाई का अवसर दिये बिना OCI रद्द करने के आदेश नहीं दिया जाएगा।

संशोधन अधिनियम को लेकर चिंता

  • उत्तर-पूर्व के मुद्दे:
    • यह 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को धर्म की परवाह किये बिना देश से बाहर निकाल दिया जाएगा।
    • आलोचकों का तर्क है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के आने से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) का प्रभाव खत्म हो जाएगा।
    • असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और उनके कारण राज्य के संसाधनों एवं अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक दबाव पड़ने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी में भी भारी बदलाव आया है।
  • आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है (जो नागरिक और विदेशी दोनों को समानता और अधिकार की गारंटी देता है) क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित है।
  • भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका, तमिल और म्याँमार से आए हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं लेकिन उन्हें अधिनियम के तहत शामिल नहीं किया गया है।
  • अवैध प्रवासियों और सताए गए लोगों के बीच अंतर करना सरकार के लिये मुश्किल होगा।
  • विधेयक उन धार्मिक उत्पीड़न की घटनाओं पर प्रकाश डालता है जो इन तीन देशों में हुए हैं जो उन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर बुरा असर डाल सकता है।
  • यह विधेयक किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं (जैसे नो पार्किंग क्षेत्र में पार्किंग)।

सरकार का रुख

  • सरकार ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश इस्लामिक गणराज्य हैं जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक हैं इसलिये उन्हें उत्पीड़ित अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता है।
    • सरकार के अनुसार, इस विधेयक का उद्देश्य किसी की नागरिकता लेने के बजाय उन्हें सहायता देना है।
  • यह विधेयक उन सभी लोगों के लिये एक वरदान के रूप में है, जो विभाजन के शिकार हुए हैं और अब ये तीन देश लोकतांत्रिक इस्लामी गणराज्यों में परिवर्तित हो गए हैं।
  • सरकार ने इस विधेयक को लाने के कारणों के रूप में पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं सम्मान की रक्षा करने में धार्मिक विभाजन तथा बाद में नेहरू-लियाकत संधि की 1950 की विफलता पर भारत के विभाजन का हवाला दिया है।
  • आज़ादी के बाद दो बार भारत ने माना है कि उसके पड़ोस में रह रहे अल्पसंख्यक उसकी ज़िम्मेदारी हैं।
  • सबसे पहले विभाजन के तुरंत बाद और बाद में 1972 में इंदिरा-मुजीब संधि के दौरान भारत ने 1.2 मिलियन से अधिक शरणार्थियों को आश्रय दिया था। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि दोनों अवसरों पर केवल हिंदू, सिख, बौद्ध और ईसाई ही भारत की शरण आए थे।
  • श्रीलंका, म्याँमार के अल्पसंख्यकों को इसमें शामिल न करने के सवाल पर सरकार ने स्पष्ट किया कि शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर अनुच्छेद 14 के तहत उचित योग्यता के आधार पर की गई है।
  • जनवरी 2019 में सरकार ने असम समझौते की धारा-6 के कार्यान्वयन के लिये उच्च-स्तरीय समिति की बैठक बुलाई और समिति से आग्रह किया कि वह केंद्र सरकार को जल्द-से-जल्द अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये प्रभावी कदम उठाने हेतु प्रावधान करें।
    • इस प्रकार सरकार ने असम के लोगों को आश्वासन दिया है कि उनकी भाषायी, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान संरक्षित रहेगी।

निष्कर्ष

  • अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या और इसकी संवैधानिकता का परीक्षण करने के लिये संविधान के संरक्षक होने के नाते सर्वोच्च न्यायालय अब इस बात का भी परीक्षण करता है कि क्या अनुच्छेद 14 का परीक्षण किया गया है या नहीं, अधिनियम में किया गया वर्गीकरण उचित है या नहीं।
  • भारतीय नागरिकता के मौलिक कर्त्तव्यों में अपने पड़ोसी देशों में सताए गये लोंगों की सुरक्षा करना शामिल है लेकिन सुरक्षा कार्य संविधान के अनुसार होना चाहिये।
  • इसके अलावा पूर्वोत्तर के लोगों को यह समझाने के लिये और अधिक रचनात्मक ढंग से प्रयास किया जाना चाहिए कि इस क्षेत्र के लोगों की भाषायी, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का संरक्षण किया जाएगा।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow